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Saturday, December 12, 2015

बाहुबली मूवी की कहानी महाभारत की कहानी जैसी है

बाहुबली मूवी की कहानी महाभारत की कहानी जैसी है  

कटप्पा भीष्म पितामह की तरह प्रस्तुत किया गया , महिस्मती का एक राजा के विकलांग होने के कारण सिंहासन नहीं मिला और उसके छोटे भाई को मिला ।
बाद में छोटा भाई मर गया और छोटे और बड़े भाई दोनों के बच्चों बाहुबली और भल्लाल देव को समय आने पर योग्यता के आधार पर चुना जाना तय हुआ ।
जैसे पांडवों और कौरवों ने शिक्षा समापत होने के बाद शक्ति व् क्षमता का प्रदर्शन किया ।
भल्लाल देव को दुर्योधन की तरह गदा पकडे हुए ही दिखाया है और उसे गदा युद्ध में पारंगत दिखाया है
बाहुबली को उदार व सभी तरह से क्षमता वान व दयावान दिखाया गया ।

फिल्म राजनीती तो पूरी तरह से महाभारत की कहानी को आधुनिक समय के हिसाब से दिखाई गई थी




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Saturday, October 31, 2015

UPTET SARKARI NAUKRI News - ONLINE E COURT SYSTEM - ऑस्ट्रेलिया की अदालतों में होती है ई हियरिंग / ऑनलाइन सुनवाई , लेकिन हमारा देश भारत जो विश्व में आई टी सेवाओं का परचम लहराता है ,लेकिन ऑनलाइन अदालतों / ऑनलाइन आर टी आई में बहुत पीछे है देखिये ऑस्ट्रेलिया की ऑनलाइन अदालत

UPTET SARKARI NAUKRI   News - ONLINE E COURT SYSTEM 


ऑस्ट्रेलिया की अदालतों में होती है ई हियरिंग / ऑनलाइन सुनवाई ,  लेकिन हमारा देश भारत जो विश्व में  आई टी सेवाओं का परचम लहराता है ,लेकिन ऑनलाइन अदालतों / ऑनलाइन आर टी आई में बहुत  पीछे है 


देखिये ऑस्ट्रेलिया की ऑनलाइन अदालत ->> https://www.ecourtroom.fedcourt.gov.au/ecourtroom/default.aspx

(Australian e-trials and paperless courts just around the corner Federal Court expected to initiate stage one of Electronic Court File) 
हमारा देश भारत  अभी भी बैल गाड़ी के युग में जी रहा है 


अदालतों में बहुत कम फीस लगती है , लेकिन जब वकील को फीस देनी होती है तो वह लाखों में जाती है , जब डॉक्यूमेंटेशन / पेपर वर्क होता है 
सैकड़ों पेज लगते हैं , रेस्पोंडेंट अगर काफी हों तो खूब सारी कॉपियां रिट की बनती हैं 
जब चक्कर लगाने पड़ते हैं तो खून के आंसू रुला देती है । 

अपराध करने वाले को दंड अपराध की तुलना में कम रहता है 

ज्यादातर सरकारी कर्मचारी / अधिकारी /नेताओं की मनमानी के चलते नियम टूट ते हैं , मगर खून के आंसू रोता है बेरोजगार 

देश में हत्या , बलात्कार व अन्य अपराधों का बोल बाला इसलिए है , क्यूंकि अदालतें फैसला देने में देर कर देती हैं , सामान्य अपराधों के मामले में 
लोग अदालत जाने से बचते हैं , क्यूंकि अदालत की डेट पर डेट और उम्र बीत जाने वाले फैसलों के कारण लोग अदालत के पचड़े में फंसने से बचते हैं । 


लेकिन सरकारी सेवाओं में मनमानी के लिए सरकार के पास जनता का पैसा है , सरकारी अधिकारी / कर्मचारी को सरकार के पास इस पैसे से मनमानी की खूब आजादी है , क्यूंकि लड़ना तो सरकार के खर्च पर ही है चाहे जो करें । 


अधिकांश सरकारी सेवाओं के फैसलों पर नजर डालें , तो अदालत ने कभी कोई ऐसी राहत नहीं दी की जिससे सरकारी कर्मचारी / अधिकारी / नेता लोग नियम तोड़ने के प्रति जवाबदेह बने और उनको कानून का उल्लंघन करने का खामियाजा भुगतना पड़े । 

स्वयं अदालत फैसला देने में देरी करे तो वह भी जवाबदेह बने और उसको खामियाजा भुगतना पड़े ,
हाल में मोदी जी ने अच्छा कदम उठाया - सरकारी नौकरियों में आवेदन की आखिरी तिथि से लेकर 6 महीने की समय सीमा के  भीतर अभ्यर्थीयों की नियुक्ति पूरी की जाए । 

उदाहरणार्थ - 72825 शिक्षकों की टेट मेरिट से भर्ती 1 जनवरी 2012 तक करनी थी , लेकिन भर्ती आज भी पूरी नहीं हो पाई है । 
कौन जिम्मेदार ?
बेरोजगार अभ्यर्थीयों का क्या कसूर 
जिनकी नौकरी भी लगी वो भी बहुत देर में लगी , उनकी पिछले सालों की सैलरी, इन्क्रीमेंट , कम्पेन्सेशन का क्या 
न्याय प्रणाली का एक नियम है की अगर कार्य नहीं किया तो कोई सेलरी नहीं ,
लेकिन एक और नियम है , की व्यक्ति काम तो करना चाहता है तो उसको कम्पेन्सेशन / सेलरी मिलनी चाहिए 
72825 शिक्षक भर्ती में चयनित लोग काम करना चाहते हैं , लेकिन जब उनको काम ही नहीं दिया तो उनको मुआवजा तो मिलना चाहिए 

खैर सिर्फ यह एक केस है , हिंदुस्तान में हज़ारों लाखों केसेस में अदालती कार्यवाही बहुत धीमी है , और अगर किसी पर झूठा इल्जाम भी लग जाए तो वह सालों उसको भुगतता है । हर इंसान अपने ऊपर जुल्म के लिए वकील नहीं कर सकता , समय और पैसा भी बहुत लगता है 

डिस्क्रीशनरी /विवेकाधीन पावर को कम से कम करके समय बद्ध तरीके से फैसले निपटाये जाने चाहिए । 
ऑनलाइन अदालतों के माध्यम से फैसलों में तेजी आ सकती है - समय , पैसा की बचत व् पारदर्शिता आएगी , साथ ही पेपर की बहुत बहुत बचत होगी क्यूंकि एक याचिका /रिट में सैकड़ों पेज लगते हैं , रेस्पोंडेंट काफी होने पर खूब सारी रिट की कॉपी बनती हैं और खूब पचड़े होते हैं । 
ई -रिट की कॉपी से घर बैठे एक रिट की ऑनलाइन कॉपी को सुगमता से कई रेस्पोंडेंट को भेजा जा सकता है , आम इंसान आसानी से सस्ता न्याय पा सकता है 






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Monday, October 12, 2015

क्या हमारे देश का कानून बेहद कमजोर नहीं है ???

क्या हमारे देश का कानून बेहद कमजोर नहीं है ???


4  साल से प्रशिक्षु शिक्षक अपनी नियुक्ति के लिए भटक रहे हैं , उनका गुनाह क्या है । 

और जो लोग इनकी मुश्किलों के लिए दोषी हैं , वो आराम से जी रहे हैं । 

शिक्षा मित्र मामले में प्रथम दृष्टया केस था की बगैर टेट शिक्षक कैसे बने , और उस पर डेट पर डेट लग रही थी । 

वो तो सुप्रीम कोर्ट का असर था की सुनवाई जल्द करनी पडी । 

वरना उमर गुजर जाती और हाई कोर्ट डेट पर डेट लगाती रहती । 


बात यह की शिक्षा मित्रों का या टेट पास वालों का कॅरियर बेहतर होना चाहिए , और बच्चों के शिक्षा के अधिकार का अच्छे से पालन होना चाहिए , जिससे आर टी ई अधिनियम का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके । 
शिक्षा मित्रों को व टेट पास जो भी हों सही रास्ते से  गुणवत्ता परक शिक्षक बनाया जाना चाहिए । 

अब कानून की बात करते हैं - देश के कानून में भुगतता बेगुनाह ही है , और आराम कानून तोड़ने वाला उठाता है । 

जब तक कानून दोषियों को सजा नहीं देगा , तब तक कानून तोडा जाता रहेगा । 

जब भी कानून अपना फैसला दे तो साथ में उसके दोषियों के उचित दंड भी दे , चाहे उनकी सैलरी से रिकवरी की जाये या कुछ और । 

यहाँ टेट पास लाखों की संख्या में थे , वरना आम इंसान कहाँ तक कोर्ट में लड़ता और इसका खर्च उठाता । 
अब यह कोर्ट का खर्च किस से मिले , जाहिर से बात है की जो भी दोषी हों उनकी सेलरी से मुआवजा की राशि इन टेट पास वालों को दिलवा दो , इसके बाद 
अपने आप कानून में सुधार आने लगेगा । 

बात सिर्फ टेट पास वालों की नहीं है , हिंदुस्तान में भ्रस्टाचार अपने आप समाप्त होने लगेगा जब कानून तेजी से प्रथम दृष्टया केसों में फैसला देने लगे ,

और अन्य केसेस भी त्वरित गति  निबटाए । 

साथ ही न्याय सस्ता हो और आसान प्रक्रिया बनाई जाए 

आसान प्रक्रिया ऐसी हो सकती है - आप केस ऑनलइन दर्ज कर सकें , और उसके सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट ऑनलाइन अपलोड कर सकें ,
उसके बात प्रथम दृष्टया बातों पर पहले ध्यान दिया जाए । 
दोनों पक्षों की हियरिंग ऑनलाइन चेट के माध्यम से दर्ज की जा सकती है , उसके बाद जैसा जज चाहें उनके लिखित दस्तावेज के प्रिंट आउट को हस्ताक्षर सहित अपने न्यायलय में मंगवा लें । 
उसके बाद केवल ख़ास मुद्दों पर सुनवाई के लिए दोनों पक्षों को पर्सनल हियरिंग के लिए बुलाया जा सकता है ।

हमारे देश के आर टी आई सिस्टम भी गन्दा है , ऑनलाइन आर टी आई का प्रावधान नहीं है , सी आई सी ने ऐसा प्रबंध कर रखा है की वह जो चाहे फैसला दे ओरल आधार पर , बाद में भले ही किसी पक्ष को गलत भी लगे लेकिन वह उसका रिव्य अपील नहीं फाइल कर सकता , यह सब सी आई सी  ने अपनी सुरक्षा के लिये कर रखा है । 
और उसके बाद फिर आदमी को कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे । 

2009 -10 के काल में अन्ना आंदोलन के दौरान आर टी आई मजबूत थी , लेकिन दिनों दिन यह कमजोर होती चली गई और कमजोर होती जा रही है । 
उस दौरान कुछ महत्वपूर्ण फैसले ऐसे थे -
देश का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी अधिकारी की ए सी आर / वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ( जो की प्रमोशन के लिए उपयोग की जाती है ) मांग सकता है ,
इस से पारदर्शिता बढ़ी और प्रमोशन में चापलूसी और हेरा फेरी पर रोक लगने लगी , बड़े अधिकारी और नेताओं के हाथ बंधने लगे । 

नेताओं और अधिकारियों को यह सब पसंद नहीं आ रहा था , तो उन्होंने आर टी आई कानून में बदलाव करके गोपनीयता के नाम पर यह सब बंद करवा दिया । 
सी आई सी अपने फैसलों को रिव्य करती है , मगर सरकारी पक्ष को बचाने के लिए , उसने अपने गलत फैसले आम आदमी के सूचना के अधिकार के पक्ष में कभी रिव्यू  नहीं किये । 

अगर कोई जन सूचना अधिकारी अधिकारी झूठ में यह भी कह दे की उसने मांगी गयी सूचनाएँ मुहैया करा दी , तो आप दोबारा से उस डॉक्यूमेंट को नहीं मांग सकते । 
रिपीटेड इंफोर्मेशन मांगना सूचना के अधिकार में अलाउ नहीं है । 


अंत में यही कहना है , की जब तक देश का कानून व् सिस्टम मजबूत नहीं होगा । 
तब तक देश का आम नागरिक गुलामी की तरह ही जीता रहेगा । 

लोगो को कजरीलाल नाम की गिरगिट से बहुत आशा थी , लेकिन वो सुपर गिरगिट निकला । 

वो वी आई पी कल्चर ख़त्म करने की बात कहता था , लेकिन आज खुद बंगले में रहता है , उसका खुद का जन  लोक पाल भी नहीं आ पाया , और आज तक उसमे भी कोई चूहा नहीं पकड़ा गया । अन्ना का जान लोक पाल भी फुस्स हो गया । 


बाबा राम देव रातों रात काला धन पर कानून बनाने को कोंग्रेस सरकार से कह रहे थे , की सारा काला  धन जो भी देश विदेश में हो उसको राष्ट्रिय संपत्ति घोषित कर दी जाए । 
लेकिन अब उनके कानून बनाने की योजना फुस्स हो चुकी है । 

बड़े बड़े पावर फुल लोगो के हाथ में देश का सिस्टम है , और राजनीती काले धन से ही चलती है ।
तो फिर काले धन पर कानून क्यों और कैसे बनेगा । 


कुल मिलाकर सीधी और सच्ची बात - जब तक देश का सिस्टम अच्छा नहीं बनेगा तब तक देश का आम गरीब इंसान कुचला जाता रहेगा 
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Saturday, June 27, 2015

Why Interview System for Government Jobs in India is Faulty ??

क्यों इस देश में सरकारी नौकरियों में होने वाले साक्षात्कार पर लोगों का भरोसा कम है ?

Why Interview System for Government Jobs in India is Faulty ??

हिंदुस्तान में इंटरव्यू सिस्टम पर लोगो का भरोसा बहुत कम है 

हो भी कैसे हर पोलिटिकल पार्टी के बॉसेस अपने अपने आदमी को सिस्टम में उच्च पदों पर बैठा देते हैं ।
हर जाति , धर्म वाला आदमी सिर्फ अपने आदमी की भलाई के बारे में सोचता है ,  अगर इंटरव्यू में इसके सगे सम्बन्धी , परिचित , जाति , धर्म
का आदमी आता है तो वे उसे कैसे भी चयनित कर डालते हैं ।
इंटरव्यू में पैसा चलने की बात भी आती है ।

इंटरव्यू में धांधली  बाजी हिंदुस्तान की रीड ( जो भी नेता आता है वो  सारे सिस्टम अपने लोगो को भर देता है ) में बस चुकी है ,
जो भी पार्टी सत्ता में आती है , वह बस अपने लोगो को सरकारी सिस्टम में भर देती है , और फिर सिलसिला अनवरत चालू हो जाता है ,


बेहतर होगा की हिदुस्तान में नौकरियों में साक्षात्कार की प्रणाली बदली जाए और एक पारदर्शी व्यवस्था स्थापित की जाये
२-३ चरणो की लिखित परीक्षा प्रणाली बेहद उत्तम है , लेकिन अगर इंटरवियु बेहद जरूरी है तो फिर पारदर्शी व्यवस्था बेहद  जरूरी है ।
पूरे देश में एक चयन बोर्ड हो , जिसका कार्य सिर्फ चयन करने का हो ,
वह इंटरव्यू में वीडियो ग्राफी की प्रणाली रखे

कोशिश की जानी चाहिए की सभी उम्मीदवारों से एक ही तरह का प्रश्न पुछा जाए , और जो उस प्रश्न का सबसे बेहतर जवाब दे उसको चयन में मौका मिले
( मिस यूनिवर्स के कम्पटीशन में सभी फ़ाइनल राउंड के उम्मीदवार से एक ही प्रश्न एक एक करके पुछा जाता है )
और भी अच्छे विकल्प अपनाये जा सकते हैं

अगर इंटरवियु के लिए अच्छे प्रणालियां विकसित होंगी तो युवाओं में जोश भी आएगा , मनोबल  बढ़ेगा और उनका चयन व्यवस्था पर भरोसा बढ़ेगा

ये लिखने की जरूरत क्यों पडी -
अभी हाल में सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति ने बोला की आरक्षण जरूरी है , क्यूंकि उच्च पदों पर ऊंची कास्ट वाले लोग बैठे है , और वह नीची कास्ट वालों को ऊपर नहीं आने देते ,
इन सबके अलावा हमारे देश में पैसे आदि के दम  पर सरकार के उच्च पद भी खरीदे जाते हैं ( रेलवे का बहु चर्चित घोटाला याद ही होगा जिसमे रेल मंत्री पवन कुमार बंसल को अपनी  गंवानी पड़ी थी क्यूंकि महेश कुमार को रिश्वत  के दम पर रेलवे में मेंबर इलेक्ट्रिकल बोर्ड बनाना था , इंटरविउ फिक्स था )

देश में सबका साथ सबका विकास करना है तो एक बेहतर पारदर्शी व्यवस्था बनाये जाने के जरूरत है ।

कुछ साल पहले मायावती ने उत्तर प्रदेश में टीईटी परीक्षा के माध्यम से भर्ती करने की जो व्यवस्था की थी , वह बेहतरीन चयन व्यवस्थाओं में से एक थी ।
क्यों बेहतरीन थी -
1. परीक्षा में बॉल पॉइंट पेन से सबको ओ एम आर शीट में उत्तर भरने थे , और एक बार बाल पॉइंट पेन से भरने के बाद इसको फर्जीवाङा एजेंसी वाले लोग बदल नहीं सकते थे

2. पेपर ज्यादा कठिन नहीं था और समय ठीक था । अब पेपर सरल है तो जाहिर सी बात है , कैंडिडेट उसको सॉल्व करके ओ एम आर भरेगा ही , मतलब ओ एम आर खाली नहीं छोड़ेगा और इस प्रकार फर्जीवाङा एजेंसी वाले लोग बाद में सही आन्सवर पर गोला निशान नहीं लगा सकते ।

३. ओ एम आर की तीन कार्बन कॉपियां बनी , जिसमे एक कॉपी कैंडिडेट को दी , एक कॉपी जांच एजेंसी को दी गयी और एक बोर्ड के पास सुरक्षित रखने के लिये दी गयी

4. आन्सवर की वेब साईट पर ऑनलाइन कर दी गयी  , और सभी परीक्षार्थियों को आपत्ति दर्ज करने का पूरा मौका दिया गया

5. कुछेक गलत प्रश्नो पर लोग कोर्ट भी गए , और कोर्ट ने उन प्रश्नो पर सभी को बोनस मार्क्स देने का ऑर्डर भी दिया

6 . किसी भी केंद्र पर या कोई भी अभ्यर्थी के किसी भी प्रकार के धांधली में लिप्त होने के बात की पुष्टि हुई


कुल मिलाकर इतने बड़े पैमाने पर यह परीक्षा एक आदर्श परीक्षा साबित हुई , ऐसी चयन प्रणाली सम्पूर्ण देश के लिए एक उदहारण है


Facebook Par Kisee Ne Yeh Likha Thaa -
Lekin Log In Sabko Hal karne Ke Leeye Aarakshan Ki Baat Likhe Hain,
Chot Per Mein Ho To Gala Kaat Do Yeh Sahee nahin hai.
Chot Ka Ilaaj Kiya Jana Chahiye.
Agar Selection Process Faulty hai to Use Sudhara Jaana Chahiye.
Naye Hal Nikaale Jaane Chahiye, Jis se Aapsee Vemanasya na Ho.

Sadeeyon se System Par Kuch Logo Ka Kabjaa Raha Ye Baat Sahee Hai

करिया मुंडा रिपोर्ट - 2000
18 राज्यों की हाईकोर्ट में OBC SC ST जजों की संख्या
1) दिल्ली - कुल जज 27 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-27 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
2) पटना - कुल जज 32 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-32 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
3) इलाहाबाद - कुल जज 49 ( (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-47 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
4) आंध्रप्रदेश - कुल जज 31 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-25 जज ,ओबीसी - 4 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
5)गुवाहाटी - कुल जज 15 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-12 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
६) गुजरात -कुल जज 33 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-30 जज ,ओबीसी - 2 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
7)केरल -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 13 जज ,ओबीसी - 9 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
8) चेन्नई -कुल जज 36 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 17 जज ,ओबीसी -16 जज SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
9) जम्मू कश्मीर -कुल जज 12 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 11 जज ,ओबीसी - जज SC- जज ,ST- 1 जज )
10) कर्णाटक -कुल जज 34 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- जज 32 ,ओबीसी - जज SC- 2 जज ,ST- जज )
11) ओरिसा कुल -13 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 12 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
12) पंजाब- हरियाणा -कुल 26 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
13)कलकत्ता - कुल जज 37 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 37 जज ,ओबीसी -0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
१४) हिमांचल प्रदेश -कुल जज 6 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 6 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
15)राजस्थान -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
16)मध्यप्रदेश -कुल जज 30 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 30 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
17)सिक्किम -कुल जज 2 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 2 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
18)मुंबई -कुल जज 50 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 45 जज ,ओबीसी - 3 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
कुल TOTAL= 481 जज में से ,विदेशी ब्राह्मण-बनिया 426 जज , ओबीसी जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज





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Saturday, May 9, 2015

महाराणा प्रताप की जयंती पर शत शत नमन एवम शुभकामनायें

महाराणा प्रताप की जयंती पर शत शत नमन एवम शुभकामनायें

महाराणा प्रताप का जन्म संवत 1597 में हुआ था।
 महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ


हल्दीघाटी का युद्ध
मुख्य लेख : हल्दीघाटी का युद्ध.

यह युद्ध १८ जून १५७६ ईस्वी में मेवाड तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम खाँ सूरी।

इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की।

महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात जब प्रतापसिंह गद्दी पर बैठे, भारत के बड़े भूभाग पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली थी। वीरों की भूमि राजस्थान के अनेक राजाओं ने न केवल मुगल बादशाह की दासता स्वीकार की अपनी बहू बेटियोें की डोली भी समर्पित कर दी थी। महाराणा प्रताप इसके प्रबल विरोधी थे। उन्होंने मेवाड़ की पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रयास जारी रखा और मुगल सम्राट के सामने झुकना कभी स्वीकार नहीं किया। अनेक बार अकबर ने उनके पास सन्धि के लिए प्रस्ताव भेजे और इच्छा व्यक्त की कि महाराणा प्रताप केवल एक बार उसे बादशाह मान ले लेकिन स्वाभिमानी प्रताप ने हर प्रस्ताव को ठुकरा दिया


यह थी कहानी -

अकबर के महासेनापति राजा मानसिंह, शोलापुर विजय करके लौट रहे थे। उदय सागर पर महाराणा ने उनके स्वागत का प्रबन्ध किया। हिन्दू नरेश के यहाँ भला अतिथि का सत्कार न होता, किंतु महाराणा प्रताप ऐसे राजपूत के साथ बैठकर भोजन कैसे कर सकते थे, जिसकी बुआ मुग़ल अन्त:पुर में हो। मानसिंह को बात समझने में कठिनाई नहीं हुई। अपमान से जले वे दिल्ली पहुँचे। उन्होंने सैन्य सज्जित करके चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया।

प्रताप और जहाँगीर का संघर्ष

हल्दीघाटी के इस प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ प्रताप शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और राजपूतों के शत्रु मानसिंह को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर 'सलीम' (जहाँगीर) अपने हाथी पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो अकबर अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है।[4] महावत के मारे जाने पर घायल हाथी सलीम सहित युद्ध भूमि से भाग खड़ा हुआ।


राजपूतों का बलिदान - झाला सरदार

इस समय युद्ध अत्यन्त भयानक हो उठा था। सलीम पर प्रताप के आक्रमण को देखकर असंख्य मुग़ल सैनिक उसी तरफ़ बढ़े और प्रताप को घेरकर चारों तरफ़ से प्रहार करने लगे। प्रताप के सिर पर मेवाड़ का राजमुकुट लगा हुआ था। इसलिए मुग़ल सैनिक उसी को निशाना बनाकर वार कर रहे थे। राजपूत सैनिक भी उसे बचाने के लिए प्राण हथेली पर रखकर संघर्ष कर रहे थे। परन्तु धीरे-धीरे प्रताप संकट में फँसता जा रहे थे। स्थिति की गम्भीरता को परखकर 'झाला सरदार' ने स्वामिभक्ति का एक अपूर्व आदर्श प्रस्तुत करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। झाला सरदार 'मन्नाजी' तेज़ी के साथ आगे बढ़ा और प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर रख लिया और तेज़ी के साथ कुछ दूरी पर जाकर घमासान युद्ध करने लगा। मुग़ल सैनिक उसे ही प्रताप समझकर उस पर टूट पड़े और प्रताप को युद्ध भूमि से दूर निकल जाने का अवसर मिल गया। उसका सारा शरीर अगणित घावों से लहूलुहान हो चुका था। युद्धभूमि से जाते-जाते प्रताप ने मन्नाजी को मरते देखा। राजपूतों ने बहादुरी के साथ मुग़लों का मुक़ाबला किया, परन्तु मैदानी तोपों तथा बन्दूकधारियों से सुसज्जित शत्रु की विशाल सेना के सामने समूचा पराक्रम निष्फल रहा। युद्धभूमि पर उपस्थित बाईस हज़ार राजपूत सैनिकों में से केवल आठ हज़ार जीवित सैनिक युद्धभूमि से किसी प्रकार बचकर निकल पाये।

 वनवास

महाराणा प्रताप चित्तौड़ छोड़कर वनवासी हो गए। महाराणी, सुकुमार राजकुमारी और कुमार घास की रोटियों और निर्झर के जल पर ही किसी प्रकार जीवन व्यतीत करने को बाध्य हुए। अरावली की गुफ़ाएँ ही अब उनका आवास थीं और शिला ही शैय्या थी। दिल्ली का सम्राट सादर सेनापतित्व देने को प्रस्तुत था। उससे भी अधिक वह केवल यह चाहता था कि प्रताप मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर लें और उसका दम्भ सफल हो जाय। हिंदुत्व पर 'दीन-ए-इलाही' स्वयं विजयी हो जाता। प्रताप राजपूत की आन का वह सम्राट, हिंदुत्व का वह गौरव-सूर्य इस संकट, त्याग, तप में अम्लान रहा, अडिंग रहा। धर्म के लिये, आन के लिये यह तपस्या अकल्पित है। कहते हैं महाराणा ने अकबर को एक बार सन्धि-पत्र भेजा था, पर इतिहासकार इसे सत्य नहीं मानते। यह अबुल फ़ज़ल की मात्र एक गढ़ी हुई कहानी भर है। अकल्पित सहायता मिली, मेवाड़ के गौरव भामाशाह ने महाराणा के चरणों में अपनी समस्त सम्पत्ति रख दी। महाराणा इस प्रचुर सम्पत्ति से पुन: सैन्य-संगठन में लग गये। चित्तौड़ को छोड़कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों का शत्रु से उद्धार कर लिया। उदयपुर उनकी राजधानी बना। अपने 24 वर्षों के शासन काल में उन्होंने मेवाड़ की केसरिया पताका सदा ऊँची रखी


पराक्रमी चेतक


महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा 'चेतक' था। हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पडे‌। उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक फुर्ती से उसे लाँघ गया, परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये। चेतक, नाला तो लाँघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी, "हो, नीला घोड़ा रा असवार।" प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उसका भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को यमलोक पहुँचाने के लिए।

शक्तिसिंह द्वारा राणा प्रताप की सुरक्षा

जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले। इस बीच चेतक ज़मीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहा था, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है, जहाँ पर चेतक मरा था। प्रताप को विदा करके शक्तिसिंह खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर वापस लौट आया। सलीम को उस पर कुछ सन्देह पैदा हुआ। जब शक्तिसिंह ने कहा कि प्रताप ने न केवल पीछा करने वाले दोनों मुग़ल सैनिकों को मार डाला अपितु मेरा घोड़ा भी छीन लिया। इसलिए मुझे खुरासानी सैनिक के घोड़े पर सवार होकर आना पड़ा। सलीम ने वचन दिया कि अगर तुम सत्य बात कह दोगे तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा। तब शक्तिसिंह ने कहा, "मेरे भाई के कन्धों पर मेवाड़ राज्य का बोझा है। इस संकट के समय उसकी सहायता किए बिना मैं कैसे रह सकता था।" सलीम ने अपना वचन निभाया, परन्तु शक्तिसिंह को अपनी सेवा से हटा दिया। राणा प्रताप की सेवा में पहुँचकर उसे अच्छी नज़र भेंट की जा सके, इस ध्येय से उसने भिनसोर नामक दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। उदयपुर पहुँचकर उस दुर्ग को भेंट में देते हुए शक्तिसिंह ने प्रताप का अभिवादन किया। प्रताप ने प्रसन्न होकर वह दुर्ग शक्तिसिंह को पुरस्कार में दे दिया। यह दुर्ग लम्बे समय तक उसके वंशजों के अधिकार में बना रहा।[5] संवत 1632 (जुलाई, 1576 ई.) के सावन मास की सप्तमी का दिन मेवाड़ के इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा। उस दिन मेवाड़ के अच्छे रुधिर ने हल्दीघाटी को सींचा था। प्रताप के अत्यन्त निकटवर्ती पाँच सौ कुटुम्बी और सम्बन्धी, ग्वालियर का भूतपूर्व राजा रामशाह और साढ़े तीन सौ तोमर वीरों के साथ रामशाह का बेटा खाण्डेराव मारा गया। स्वामिभक्त झाला मन्नाजी अपने डेढ़ सौ सरदारों सहित मारा गया और मेवाड़ के प्रत्येक घर ने बलिदान किया


महाराणा की प्रतिज्ञा

प्रताप को अभूतपूर्व समर्थन मिला। यद्यपि धन और उज्ज्वल भविष्य ने उसके सरदारों को काफ़ी प्रलोभन दिया, परन्तु किसी ने भी उसका साथ नहीं छोड़ा। जयमल के पुत्रों ने उसके कार्य के लिये अपना रक्त बहाया। पत्ता के वंशधरों ने भी ऐसा ही किया और सलूम्बर के कुल वालों ने भी चूण्डा की स्वामिभक्ति को जीवित रखा। इनकी वीरता और स्वार्थ-त्याग का वृत्तान्त मेवाड़ के इतिहास में अत्यन्त गौरवमय समझा जाता है। उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह 'माता के पवित्र दूध को कभी कलंकित नहीं करेगा।' इस प्रतिज्ञा का पालन उसने पूरी तरह से किया। कभी मैदानी प्रदेशों पर धावा मारकर जन-स्थानों को उजाड़ना तो कभी एक पर्वत से दूसरे पर्वत पर भागना और इस विपत्ति काल में अपने परिवार का पर्वतीय कन्दमूल-फल द्वारा भरण-पोषण करना और अपने पुत्र 'अमर' का जंगली जानवरों और जंगली लोगों के मध्य पालन करना, अत्यन्त कष्टप्राय कार्य था। इन सबके पीछे मूल मंत्र यही था कि बप्पा रावल का वंशज किसी शत्रु अथवा देशद्रोही के सम्मुख शीश झुकाये, यह असम्भव बात थी। क़ायरों के योग्य इस पापमय विचार से ही प्रताप का हृदय टुकड़े-टुकड़े हो जाता था। तातार वालों को अपनी बहन-बेटी समर्पण कर अनुग्रह प्राप्त करना, प्रताप को किसी भी दशा में स्वीकार्य न था। 'चित्तौड़ के उद्धार से पूर्व पात्र में भोजन, शैय्या पर शयन दोनों मेरे लिये वर्जित रहेंगे।' महाराणा की प्रतिज्ञा अक्षुण्ण रही और जब वे (विक्रम संवत 1653 माघ शुक्ल 11) तारीख़ 29 जनवरी सन 1597 ई. में परमधाम की यात्रा करने लगे, उनके परिजनों और सामन्तों ने वही प्रतिज्ञा करके उन्हें आश्वस्त किया। अरावली के कण-कण में महाराणा का जीवन-चरित्र अंकित है। शताब्दियों तक पतितों, पराधीनों और उत्पीड़ितों के लिये वह प्रकाश का काम देगा। चित्तौड़ की उस पवित्र भूमि में युगों तक मानव स्वराज्य एवं स्वधर्म का अमर सन्देश झंकृत होता रहेगा।

माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओधकै, जाण सिराणै साप॥

कठोर जीवन निर्वाह

चित्तौड़ के विध्वंस और उसकी दीन दशा को देखकर भट्ट कवियों ने उसको आभूषण रहित विधवा स्त्री की उपमा दी है। प्रताप ने अपनी जन्मभूमि की इस दशा को देखकर सब प्रकार के भोग-विलास को त्याग दिया। भोजन-पान के समय काम में लिये जाने वाले सोने-चाँदी के बर्तनों को त्यागकर वृक्षों के पत्तों को काम में लिया जाने लगा। कोमल शय्या को छोड़ तृण शय्या का उपयोग किया जाने लगा। उसने अकेले ही इस कठिन मार्ग को अपनाया ही नहीं अपितु अपने वंश वालों के लिये भी इस कठोर नियम का पालन करने के लिये आज्ञा दी थी कि "जब तक चित्तौड़ का उद्धार न हो, तब तक सिसोदिया राजपूतों को सभी सुख त्याग देने चाहिए।" चित्तौड़ की मौजूदा दुर्दशा सभी लोगों के हृदय में अंकित हो जाय, इस दृष्टि से उसने यह आदेश भी दिया कि युद्ध के लिये प्रस्थान करते समय जो नगाड़े सेना के आगे-आगे बजाये जाते थे, वे अब सेना के पीछे बजाये जायें। इस आदेश का पालन आज तक किया जा रहा है और युद्ध के नगाड़े सेना के पिछले भाग के साथ ही चलते हैं।

राणा प्रताप और अकबर

अजमेर को अपना केन्द्र बनाकर अकबर ने प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियान शुरू कर दिया। मारवाड़ का मालदेव, जिसने शेरशाह का प्रबल विरोध किया था, मेड़ता और जोधपुर में असफल प्रतिरोध के बाद आमेर के भगवान दास के समान ही अकबर की शरण में चला गया।[6] उसने अपने पुत्र उदयसिंह को अकबर की सेवा में भेजा। अकबर ने अजमेर की तरफ़ जाते हुए नागौर में उससे मुलाक़ात की और इस अवसर पर मंडौर के राव को 'राजा' की उपाधि प्रदान की।[7]उसका उत्तराधिकारी उदयसिंह स्थूल शरीर का था, अतः आगे चलकर वह राजस्थान के इतिहास में मोटा राजा के नाम से विख्यात हुआ। इस समय से कन्नौज के वंशज मुग़ल बादशाह के 'दाहिने हाथ' पर स्थान पाने लगे। परन्तु अपनी कुल मर्यादा की बलि देकर मारवाड़ नरेश ने जिस सम्मान को प्राप्त किया था, वह सम्मान क्या मारवाड़ के राजा के सन्तान की ऊँचे सम्मान की बराबरी कर सकता है।
[सम्पादन] उदयसिंह द्वारा मुग़लों से विवाह सम्बन्ध

मोटा राजा उदयसिंह पहला व्यक्ति था, जिसने अपनी कुल की पहली कन्या का विवाह तातार से किया था।[8] इस सम्बन्ध के लिए जो घूस ली गई वह महत्त्वपूर्ण थी। उसे चार समृद्ध परगने प्राप्त हुए। इनकी सालाना आमदनी बीस लाख रुपये थी। इन परगनों के प्राप्त हो जाने से मारवाड़ राज्य की आय दुगुनी हो गई। आमेर और मारवाड़ जैसे उदाहरणों की मौजूदगी में और प्रलोभन का विरोध करने की शक्ति की कमी के कारण, राजस्थान के छोटे राजा लोग अपने असंख्य पराक्रमी सरदारों के साथ दिल्ली के सामंतों में परिवर्तित हो गए और इस परिवर्तन के कारण उनमें से बहुत से लोगों का महत्त्व भी बढ़ गया। मुग़ल इतिहासकारों ने सत्य ही लिखा है कि वे 'सिंहासन के स्तम्भ और अलंकार के स्वरूप थे।' परन्तु उपर्युक्त सभी बातें प्रताप के विरुद्ध भयजनक थीं। उसके देशवासियों के शस्त्र अब उसी के विरुद्ध उठ रहे थे। अपनी मान-मर्यादा बेचने वाले राजाओं से यह बात सही नहीं जा रही थी कि प्रताप गौरव के ऊँचे आसमान पर विराजमान रहे। इस बात का विचार करके ही उनके हृदय में डाह की प्रबल आग जलने लगी। प्रताप ने उन समस्त राजाओं (बूँदी के अलावा) से अपना सम्बन्ध छोड़ दिया, जो मुसलमानों से मिल गए थे।
[सम्पादन] वैवाहिक संबंधों पर रोक

सिसोदिया वंश के किसी शासक ने अपनी कन्या मुग़लों को नहीं दी। इतना ही नहीं, उन्होंने लम्बे समय तक उन राजवंशों को भी अपनी कन्याएँ नहीं दीं, जिन्होंने मुग़लों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध क़ायम किये थे। इससे उन राजाओं को काफ़ी आघात पहुँचा। इसकी पुष्टि मारवाड़ और आमेर के राजाओं, बख़्त सिंह और जयसिंह के पुत्रों से होती है। दोनों ही शासकों ने मेवाड़ के सिसोदिया वंश के साथ वैवाहिक सम्बन्धों को पुनः स्थापित करने का अनुरोध किया था। लगभग एक शताब्दी के बाद उनका अनुरोध स्वीकार किया गया और वह भी इस शर्त के साथ कि मेवाड़ की राजकन्या के गर्भ से उत्पन्न होने वाला पुत्र ही सम्बन्धित राजा का उत्तराधिकारी होगा। सिसोदिया घराने ने अपने रक्त की पवित्रता को बनाये रखने के लिए जो क़दम उठाये गए, उनमें से एक का उल्लेख करना आवश्यक है, क्योंकि उस घटना ने आने वाली घटनाओं को काफ़ी प्रभावित किया है। आमेर का राजा मानसिंह अपने वंश का अत्यधिक प्रसिद्ध राजा था और उसके समय से ही उसके राज्य की उन्नति आरम्भ हुई थी। अकबर उसका फूफ़ा था। वैसे मानसिंह एक साहसी, चतुर और रणविशारद् सेनानायक था और अकबर की सफलताओं में आधा योगदान भी रहा था, परन्तु पारिवारिक सम्बन्ध तथा अकबर की विशेष कृपा से वह मुग़ल साम्राज्य का महत्त्वपूर्ण सेनापित बन गया था। कच्छवाह भट्टकवियों ने उसके शौर्य तथा उसकी उपलब्धियों का तेजस्विनी भाषा में उल्लेख किया है।
[सम्पादन] हल्दीघाटी युद्ध
Main.jpg मुख्य लेख : हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को हुआ। इससे पूर्व अकबर ने 1541 ई. में मेवाड़ पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया था, किंतु राणा उदयसिंह ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी। उदयसिंह प्राचीन आधाटपुर के पास उदयपुर नामक अपनी राजधानी बसाकर वहाँ चला गया। उनके बाद महाराणा प्रताप ने भी अकबर से युद्ध जारी रखा। उनका 'हल्दीघाटी का युद्ध' इतिहास प्रसिद्ध है। अकबर ने मेवाड़ को पूर्णरूप से जीतने के लिए अप्रैल, 1576 ई. में आमेर के राजा मानसिंह एवं आसफ ख़ाँ के नेतृत्व में मुग़ल सेना को आक्रमण के लिए भेजा। दोनों सेनाओं के मध्य गोगुडा के निकट अरावली पर्वत की 'हल्दीघाटी' शाखा के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा प्रताप पराजित हुए। लड़ाई के दौरान अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से भी महाराणा प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये। इस पर भी राणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। बाद के कुछ वर्षों में जब अकबर का ध्यान दूसरे कामों में लगा गया, तब प्रताप ने अपने स्थानों पर फिर अधिकार कर लिया था। सन् 1597 में चावंड में उनकी मृत्यु हो गई थी।
[सम्पादन] राणा प्रताप की मानसिंह से भेंट
चित्तौड़गढ़ का क़िला
Fort Of Chittorgarh

शोलापुर की विजय के बाद मानसिंह वापस हिन्दुस्तान लौट रहा था तो उसने राणा प्रताप से, जो इन दिनों कमलमीर में था, मिलने की इच्छा प्रकट की। प्रताप उसका स्वागत करने के लिए उदयसागर तक आया। इस झील के सामने वाले टीले पर आमेर के राजा के लिए दावत की व्यवस्था की गई थी। भोजन तैयार हो जाने पर मानसिंह को बुलावा भेजा गया। राजकुमार अमरसिंह को अतिथि की सेवा के लिए नियुक्त किया गया था। राणा प्रताप अनुपस्थित थे। मानसिंह के पूछने पर अमरसिंह ने बताया कि राणा को सिरदर्द है, वे नहीं आ पायेंगे। आप भोजन करके विश्राम करें। मानसिंह ने गर्व के साथ सम्मानित स्वर में कहा कि "राणा जी से कहो कि उनके सिर दर्द का यथार्थ कारण समझ गया हूँ। जो कुछ होना था, वह तो हो गया और उसको सुधारने का कोई उपाय नहीं है, फिर भी यदि वे मुझे खाना नहीं परोसेंगे तो और कौन परोसेगा।" मानसिंह ने राणा के बिना भोजन स्वीकार नहीं किया। तब प्रताप ने उसे कहला भेजा कि "जिस राजपूत ने अपनी बहन तुर्क को दी हो, उसके साथ कौन राजपूत भोजन करेगा।"

राजा मानसिंह ने इस अपमान को आहूत करने में बुद्धिमता नहीं दिखाई थी। यदि प्रताप की तरफ़ से उसे निमंत्रित किया गया होता, तब तो उसका विचार उचित माना जा सकता था, परन्तु इसके लिए प्रताप को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। मानसिंह ने भोजन को छुआ तक नहीं, केवल चावल के कुछ कणों को जो अन्न देवता को अर्पण किए थे, उन्हें अपनी पगड़ी में रखकर वहाँ से चला गया। जाते समय उसने कहा, "आपकी ही मान-मर्यादा बचाने के लिए हमने अपनी मर्यादा को खोकर मुग़लों को अपनी बहिन-बेटियाँ दीं। इस पर भी जब आप में और हम में विषमता रही, तो आपकी स्थिति में भी कमी आयेगी। यदि आपकी इच्छा सदा ही विपत्ति में रहने की है, तो यह अभिप्राय शीघ्र ही पूरा होगा। यह देश हृदय से आपको धारण नहीं करेगा।" अपने घोड़े पर सवार होकर मानसिंह ने राणा प्रताप, जो इस समय आ पहुँचे थे, को कठोर दृष्टि से निहारते हुए कहा, "यदि मैं तुम्हारा यह मान चूर्ण न कर दूँ तो मेरा नाम मानसिंह नहीं।"

प्रताप ने उत्तर दिया कि "आपसे मिलकर मुझे खुशी होगी।" वहाँ पर उपस्थित किसी व्यक्ति ने अभद्र भाषा में कह दिया कि "अपने साथ फूफ़ा को लाना मत भूलना।" जिस स्थान पर मानसिंह के लिए भोजन सजाया गया था, उसे अपवित्र हुआ मानकर खोद दिया गया और फिर वहाँ गंगा का जल छिड़का गया और जिन सरदारों एवं राजपूतों ने अपमान का यह दृश्य देखा था, उन सभी ने अपने को मानसिंह का दर्शन करने से पतित समझकर स्नान किया तथा वस्त्रादि बदले।[9]मुग़ल सम्राट को सम्पूर्ण वृत्तान्त की सूचना दी गई। उसने मानसिंह के अपमान को अपना अपमान समझा। अकबर ने समझा था कि राजपूत अपने पुराने संस्कारों को छोड़ बैठे होंगे, परन्तु यह उसकी भूल थी। इस अपमान का बदला लेने के लिए युद्ध की तैयारी की गई और इन युद्धों ने प्रताप का नाम अमर कर दिया। पहला युद्ध हल्दीघाटी के नाम से प्रसिद्ध है। जब तक मेवाड़ पर किसी सिसोदिया का अधिकार रहेगा अथवा कोई भट्टकवि जीवित रहेगा, तब तक हल्दीघाटी का नाम कोई भुला नहीं सकेगा।
मान सिंह पर हमला करते हुए महाराणा प्रताप और चेतक
[सम्पादन] कमलमीर का युद्ध

विजय से प्रसन्न सलीम पहाड़ियों से लौट गया, क्योंकि वर्षा ऋतु के आगमन से आगे बढ़ना सम्भव न था। इससे प्रताप को कुछ राहत मिली। परन्तु कुछ समय बाद शत्रु पुनः चढ़ आया और प्रताप को एक बार पुनः पराजित होना पड़ा। तब प्रताप ने कमलमीर को अपना केन्द्र बनाया। मुग़ल सेनानायकों कोका और शाहबाज ख़ाँ ने इस स्थान को भी घेर लिया। प्रताप ने जमकर मुक़ाबला किया और तब तक इस स्थान को नहीं छोड़ा, जब तक पानी के विशाल स्रोत नोगन के कुँए का पानी विषाक्त नहीं कर दिया गया। ऐसे घृणित विश्वासघात का श्रेय आबू के देवड़ा सरदार को जाता है, जो इस समय अकबर के साथ मिला हुआ था। कमलमीर से प्रताप चावंड चला गया और सोनगरे सरदार भान ने अपनी मृत्यु तक कमलमीर की रक्षा की। कमलमीर के पतन के बाद राजा मानसिंह ने धरमेती और गोगुन्दा के दुर्गों पर भी अधिकार कर लिया। इसी अवधि में मोहब्बत ख़ाँ ने उदयपुर पर अधिकार कर लिया और अमीशाह नामक एक मुग़ल शाहज़ादा ने चावंड और अगुणा पानोर के मध्यवर्ती क्षेत्र में पड़ाव डाल कर यहाँ के भीलों से प्रताप को मिलने वाली सहायता रोक दी। फ़रीद ख़ाँ नामक एक अन्य मुग़ल सेनापति ने छप्पन पर आक्रमण किया और दक्षिण की तरफ़ से चावंड को घेर लिया। इस प्रकार प्रताप चारों तरफ़ से शत्रुओं से घिर गया और बचने की कोई उम्मीद न थी। वह रोज़ाना एक स्थान से दूसरे स्थान, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी के गुप्त स्थानों में छिपता रहता और अवसर मिलने पर शत्रु पर आक्रमण करने से भी न चूकता। फ़रीद ने प्रताप को पकड़ने के लिए चारों तरफ़ अपने सैनिकों का जाल बिछा दिया, परन्तु प्रताप की छापामार पद्धति ने असंख्य मुग़ल सैनिकों को मौत के घाट पहुँचा दिया। वर्षा ऋतु ने पहाड़ी नदियों और नालों को पानी से भर दिया, जिसकी वजह से आने जाने के मार्ग अवरुद्ध हो गए। परिणामस्वरूप मुग़लों के आक्रमण स्थगित हो गए।
[सम्पादन] परिवार की सुरक्षा

इस प्रकार समय गुज़रता गया और प्रताप की कठिनाइयाँ भयंकर बनती गईं। पर्वत के जितने भी स्थान प्रताप और उसके परिवार को आश्रय प्रदान कर सकते थे, उन सभी पर बादशाह का आधिकार हो गया। राणा को अपनी चिन्ता न थी, चिन्ता थी तो बस अपने परिवार की ओर से छोटे-छोटे बच्चों की। वह किसी भी दिन शत्रु के हाथ में पड़ सकते थे। एक दिन तो उसका परिवार शत्रुओं के पँन्जे में पहुँच गया था, परन्तु कावा के स्वामीभक्त भीलों ने उसे बचा लिया। भील लोग राणा के बच्चों को टोकरों में छिपाकर जावरा की खानों में ले गये और कई दिनों तक वहीं पर उनका पालन-पोषण किया। भील लोग स्वयं भूखे रहकर भी राणा और परिवार के लिए खाने की सामग्री जुटाते रहते थे। जावरा और चावंड के घने जंगल के वृक्षों पर लोहे के बड़े-बड़े कीले अब तक गड़े हुए मिलते हैं। इन कीलों में बेतों के बड़े-बड़े टोकरे टाँग कर उनमें राणा के बच्चों को छिपाकर वे भील राणा की सहायता करते थे। इससे बच्चे पहाड़ों के जंगली जानवरों से भी सुरक्षित रहते थे। इस प्रकार की विषम परिस्थिति में भी प्रताप का विश्वास नहीं डिगा।
[सम्पादन] अकबर द्वारा प्रशंसा

अकबर ने भी इन समाचारों को सुना और पता लगाने के लिए अपना एक गुप्तचर भेजा। वह किसी तरक़ीब से उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ राणा और उसके सरदार एक घने जंगल के मध्य एक वृक्ष के नीचे घास पर बैठे भोजन कर रहे थे। खाने में जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं। परन्तु सभी लोग उस खाने को उसी उत्साह के साथ खा रहे थे, जिस प्रकार कोई राजभवन में बने भोजन को प्रसन्नता और उमंग के साथ खाता हो। गुप्तचर ने किसी चेहरे पर उदासी और चिन्ता नहीं देखी। उसने वापस आकर अकबर को पूरा वृत्तान्त सुनाया। सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और प्रताप के प्रति उसमें मानवीय भावना जागृत हुई। उसने अपने दरबार के अनेक सरदारों से प्रताप के तप, त्याग और बलिदान की प्रशंसा की। अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी। उसने अपनी भाषा में लिखा, "इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परन्तु महान व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्तों ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परन्तु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।"

परन्तु कभी-कभी ऐसे अवसर आ उपस्थित होते, जब अपने प्राणों से भी प्यारे लोगों को भयानक आवाज़ से ग्रस्त देखकर वह भयभीत हो उठता। उसकी पत्नी किसी पहाड़ी या गुफ़ा में भी असुरक्षित थी और उसके उत्तराधिकारी, जिन्हें हर प्रकार की सुविधाओं का अधिकार था, भूख से बिलखते उसके पास आकर रोने लगते। मुग़ल सैनिक इस प्रकार उसके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर न मिलता था और सुरक्षा के लिए भोजन छोड़कर भागना पड़ता था। एक दिन तो पाँच बार भोजन पकाया गया और हर बार भोजन को छोड़कर भागना पड़ा। एक अवसर पर प्रताप की पत्नी और उसकी पुत्र-वधु ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियाँ बनाई। उनमें से आधी रोटियाँ बच्चों को दे दी गई और बची हुई आधी रोटियाँ दूसरे दिन के लिए रख दी गईं। इसी समय प्रताप को अपनी लड़की की चिल्लाहट सुनाई दी। एक जंगली बिल्ली लड़की के हाथ से उसके हिस्से की रोटी को छीनकर भाग गई और भूख से व्याकुल लड़की के आँसू टपक आये।[10] जीवन की इस दुरावस्था को देखकर राणा का हृदय एक बार विचलित हो उठा। अधीर होकर उसने ऐसे राज्याधिकार को धिक्कारा, जिसकी वज़ह से जीवन में ऐसे करुण दृश्य देखने पड़े और उसी अवस्था में अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए उसने एक पत्र के द्वारा अकबर से मिलने की माँग की।
[सम्पादन] पृथ्वीराज द्वारा प्रताप का स्वाभिमान जाग्रत करना

प्रताप के पत्र को पाकर अकबर की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने इसका अर्थ प्रताप का आत्मसमर्पण समझा और उसने कई प्रकार के सार्वजनिक उत्सव किए। अकबर ने उस पत्र को पृथ्वीराज नामक एक श्रेष्ठ एवं स्वाभीमानी राजपूत को दिखलाया। पृथ्वीराज बीकानेर के नरेश का छोटा भाई था। बीकानेर नरेश ने मुग़ल सत्ता के सामने शीश झुका दिया था। पृथ्वीराज केवल वीर ही नहीं अपितु एक योग्य कवि भी था। वह अपनी कविता से मनुष्य के हृदय को उन्मादित कर देता था। वह सदा से प्रताप की आराधना करता आया था। प्रताप के पत्र को पढ़कर उसका मस्तक चकराने लगा। उसके हृदय में भीषण पीड़ा की अनुभूति हुई। फिर भी अपने मनोभावों पर अंकुश रखते हुए उसने अकबर से कहा कि "यह पत्र प्रताप का नहीं है। किसी शत्रु ने प्रताप के यश के साथ यह जालसाज़ की है। आपको भी धोखा दिया है। आपके ताज़ के बदले में भी वह आपकी आधीनता स्वीकार नहीं करेगा।" सच्चाई को जानने के लिए उसने अकबर से अनुरोध किया कि वह उसका पत्र प्रताप तक पहुँचा दे। अकबर ने उसकी बात मान ली और पृथ्वीराज ने राजस्थानी शैली में प्रताप को एक पत्र लिख भेजा। अकबर ने सोचा कि इस पत्र से असलियत का पता चल जायेगा और पत्र था भी ऐसा ही। परन्तु पृथ्वीराज ने उस पत्र के द्वारा प्रताप को उस स्वाभीमान का स्मरण कराया, जिसकी खातिर उसने अब तक इतनी विपत्तियों को सहन किया था और अपूर्व त्याग व बलिदान के द्वारा अपना मस्तक ऊँचा रखा था। पत्र में इस बात का भी उल्लेख था कि हमारे घरों की स्त्रियों की मर्यादा छिन्न-भिन्न हो गई है और बाज़ार में वह मर्यादा बेची जा रही है। उसका ख़रीददार केवल अकबर है। उसने सिसोदिया वंश के एक स्वाभिमानी पुत्र को छोड़कर सबको ख़रीद लिया है, परन्तु प्रताप को नहीं ख़रीद पाया है। वह ऐसा राजपूत नहीं, जो नौरोजा के लिए अपनी मर्यादा का परित्याग कर सकता है। क्या अब चित्तौड़ का स्वाभिमान भी इस बाज़ार में बिक़ेगा।[11]
[सम्पादन] खुशरोज़ त्योहार

राठौर पृथ्वीराज के ओजस्वी पत्र ने प्रताप के मन की निराशा को दूर कर दिया और उसे लगा जैसे दस हज़ार राजपूतों की शक्ति उसके शरीर में समा गई हो। उसने अपने स्वाभिमान को क़ायम रखने का दृढ़संकल्प कर लिया। पृथ्वीराज के पत्र में "नौरोजा के लिए मर्यादा का सौदा" करने की बात कही गई। इसका स्पष्टीकरण देना आवश्यक है। 'नौरोजा' का अर्थ "वर्ष का नया दिन" होता है और पूर्व के मुसलमानों का यह धार्मिक त्योहार है। अकबर ने स्वयं इसकी प्रतिष्ठा की और इसका नाम रखा "खुशरोज़" अर्थात् 'खुशी का दिन' और इसकी शुरुआत अकबर ने ही की थी। इस अवसर पर सभी लोग उत्सव मनाते और राजदरबार में भी कई प्रकार के आयोजन किए जाते थे। इस प्रकार के आयोजनों में एक प्रमुख आयोजन स्त्रियों का मेला था। एक बड़े स्थान पर मेले का आयोजन किया जाता था, जिसमें केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती थीं। वे ही दुकानें लगाती थीं और वे ही ख़रीददारी करती थीं। पुरुषों का प्रवेश निषिद्ध था। राजपूत स्त्रियाँ भी दुकानें लगाती थीं। अकबर छद्म वेष में बाज़ार में जाता था और कहा जाता है कि कई सुन्दर बालाएँ उसकी कामवासना का शिकार हो अपनी मर्यादा लुटा बैठतीं। एक बार राठौर पृथ्वीराज की स्त्री भी इस मेले में शामिल हुई थी और उसने बड़े साहस तथा शौर्य के साथ अपने सतीत्व की रक्षा की थी। वह शाक्तावत वंश की लड़की थी। उस मेले में घूमते हुए अकबर की नज़र उस पर पड़ी और उसकी सुन्दरता से प्रभावित होकर अकबर की नियत बिगड़ गई और उसने किसी उपाय से उसे मेले से अलग कर दिया। पृथ्वीराज की स्त्री ने जब क़ामुक अकबर को अपने सम्मुख पाया तो उसने अपने वस्त्रों में छिपी कटार को निकालकर कहा, "ख़बरदार, अगर इस प्रकार की तूने हिम्मत की। सौगन्ध खा कि आज से कभी किसी स्त्री के साथ में ऐसा व्यवहार न करेगा।" अकबर के क्षमा माँगने के बाद पृथ्वीराज की स्त्री मेले से चली गई। अबुल फ़ज़ल ने इस मेले के बारे में अलग बात लिखी है। उनके अनुसार बादशाह अकबर वेष बदलकर मेले में इसलिए जाता था कि उसे वस्तुओं के भाव-ताव मालूम हो सकें।
[सम्पादन] भामाशाह द्वारा प्रताप की शक्तियाँ जाग्रत होना
Main.jpg मुख्य लेख : भामाशाह

पृथ्वीराज का पत्र पढ़ने के बाद राणा प्रताप ने अपने स्वाभिमान की रक्षा करने का निर्णय कर लिया। परन्तु मौजूदा परिस्थितियों में पर्वतीय स्थानों में रहते हुए मुग़लों का प्रतिरोध करना सम्भव न था। अतः उसने रक्तरंजित चित्तौड़ और मेवाड़ को छोड़कर किसी दूरवर्ती स्थान पर जाने का विचार किया। उसने तैयारियाँ शुरू कीं। सभी सरदार भी उसके साथ चलने को तैयार हो गए। चित्तौड़ के उद्धार की आशा अब उनके हृदय से जाती रही थी। अतः प्रताप ने सिंध नदी के किनारे पर स्थित सोगदी राज्य की तरफ़ बढ़ने की योजना बनाई ताकि बीच का मरुस्थल उसके शत्रु को उससे दूर रखे। अरावली को पार कर जब प्रताप मरुस्थल के किनारे पहुँचा ही था कि एक आश्चर्यजनक घटना ने उसे पुनः वापस लौटने के लिए विवश कर दिया। मेवाड़ के वृद्ध मंत्री भामाशाह ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुआ और उससे मेवाड़ के उद्धार की याचना की। यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था।[12] भामाशाह का नाम मेवाड़ के उद्धारकर्ताओं के रूप में आज भी सुरक्षित है। भामाशाह के इस अपूर्व त्याग से प्रताप की शक्तियाँ फिर से जागृत हो उठीं।
[सम्पादन] दुर्गों पर अधिकार
युद्धभूमि पर महाराणा प्रताप के चेतक (घोड़े) की मौत

महाराणा प्रताप ने वापस आकर राजपूतों की एक अच्छी सेना बना ली, जबकि उसके शत्रुओं को इसकी भनक भी नहीं मिल पाई। ऐसे में प्रताप ने मुग़ल सेनापति शाहबाज़ ख़ाँ को देवीर नामक स्थान पर अचानक आ घेरा। मुग़लों ने जमकर सामना किया, परन्तु वे परास्त हुए। बहुत से मुग़ल मारे गए और बाक़ी पास की छावनी की ओर भागे। राजपूतों ने आमेर तक उनका पीछा किया और उस मुग़ल छावनी के अधिकांश सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसी समय कमलमीर पर आक्रमण किया गया और वहाँ का सेनानायक अब्दुल्ला मारा गया और दुर्ग पर प्रताप का अधिकार हो गया। थोड़े ही दिनों में एक के बाद एक करके बत्तीस दुर्गों पर अधिकार कर लिया गया और दुर्गों में नियुक्त मुग़ल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। संवत 1586 (1530 ई.) में चित्तौड़, अजमेर और मांडलगढ़ को छोड़कर सम्पूर्ण मेवाड़ पर प्रताप ने अपना पुनः अधिकार जमा लिया।[13] राजा मानसिंह को उसके देशद्रोह का बदला देने के लिए प्रताप ने आमेर राज्य के समृद्ध नगर मालपुरा को लूटकर नष्ट कर दिया। उसके बाद प्रताप उदयपुर की तरफ़ बढ़ा। मुग़ल सेना बिना युद्ध लड़े ही वहाँ से चली गई और उदयपुर पर प्रताप का अधिकार हो गया। अकबर ने थोड़े समय के लिए युद्ध बन्द कर दिया।

सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और भयानक कठिनाइयों का सामना करके प्रताप ने जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया, उसकी प्रशंसा इस संसार से मिट न सकेगी। परन्तु इन सबके परिणामस्वरूप प्रताप में समय से पहले ही बुढ़ापा आ गया। उसने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे अन्त तक निभाया। राजमहलों को छोड़कर प्रताप ने पिछोला तालाब के निकट अपने लिए कुछ झोपड़ियाँ बनवाई थीं ताकि वर्षा में आश्रय लिया जा सके। इन्हीं झोपड़ियों में प्रताप ने सपरिवार सहित अपना जीवन व्यतीत किया। अब जीवन का अन्तिम समय आ पहुँचा था। प्रताप ने चित्तौड़ के उद्धार की प्रतिज्ञा की थी, परन्तु उसमें सफलता न मिली। फिर भी, उसने अपनी थोड़ी सी सेना की सहायता से मुग़लों की विशाल सेना को इतना अधिक परेशान किया कि अन्त में अकबर को युद्ध बन्द कर देना पड़ा।
[सम्पादन] वीरता के परिचायक

महाराणा प्रताप ने एक प्रतिष्ठित कुल के मान-सम्मान और उसकी उपाधि को प्राप्त किया। परन्तु उसके पास न तो राजधानी थी और न ही वित्तीय साधन। बार-बार की पराजयों ने उसके स्व-बन्धुओं और जाति के लोगों को निरुत्साहित कर दिया था। फिर भी उसके पास अपना जातीय स्वाभिमान था। उसने सत्तारूढ़ होते ही चित्तौड़ के उद्धार, कुल के सम्मान की पुनर्स्थापना तथा उसकी शक्ति को प्रतिष्ठित करने की तरफ़ अपना ध्यान केन्द्रित किया। इस ध्येय से प्रेरित होकर वह अपने प्रबल शत्रु के विरुद्ध जुट सका। उसने इस बात की चिन्ता नहीं की कि परिस्थितियाँ उसके कितने प्रतिकूल हैं। उसका चतुर विरोधी एक सुनिश्चित नीति के द्वारा उसके ध्येय का परास्त करने में लगा हुआ था। मुग़ल प्रताप के धर्म और रक्त बंधुओं को ही उसके विरोध में खड़ा करने में जुटा था। मारवाड़, आमेर, बीकानेर और बूँदी के राजा लोग अकबर की सार्वभौम सत्ता के सामने मस्तक झुका चुके थे। इतना ही नहीं, प्रताप का सगा भाई 'सागर'[14] भी उसका साथ छोड़कर शत्रु पक्ष से जा मिला और अपने इस विश्वासघात की क़ीमत उसे अपने कुल की राजधानी और उपाधि के रूप में प्राप्त हुई।
[सम्पादन] कुशल प्रशासक
महाराणा प्रताप का डाक टिकट
Maharana Pratap Stamp

महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले थे। एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा उसकी विजय व्यर्थ है। चित्तौड़ भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और ग्राम के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ है। अकबर के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे हिन्दू ही और प्रत्येक स्थिति में विजय इस्लाम की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे।
[सम्पादन] मृत्यु

अकबर के युद्ध बन्द कर देने से प्रताप को महा दुःख हुआ। कठोर उद्यम और परिश्रम सहन कर उसने हज़ारों कष्ट उठाये थे, परन्तु शत्रुओं से चित्तौड़ का उद्धार न कर सके। वह एकाग्रचित्त से चित्तौड़ के उस ऊँचे परकोटे और जयस्तम्भों को निहारा करते थे और अनेक विचार उठकर हृदय को डाँवाडोल कर देते थे। ऐसे में ही एक दिन प्रताप एक साधारण कुटी में लेटे हुए काल की कठोर आज्ञा की प्रतीज्ञा कर रहे थे। उनके चारों तरफ़ उनके विश्वासी सरदार बैठे हुए थे। तभी प्रताप ने एक लम्बी साँस ली। सलूम्बर के सामंन्त ने कातर होकर पूछा, "महाराज! ऐसे कौन से दारुण दुःख ने आपको दुःखित कर रखा है और अन्तिम समय में आपकी शान्ति को भंग कर रहा है।" प्रताप का उत्तर था "सरदार जी! अभी तक प्राण अटके हुए हैं, केवल एक ही आश्वासन की वाणी सुनकर यह अभी सुखपूर्वक देह को छोड़ जायेगा। यह वाणी आप ही के पास है।"

"आप सब लोग मेरे सम्मुख प्रतिज्ञा करें कि जीवित रहते अपनी मातृभूमि किसी भी भाँति तुर्कों के हाथों में नहीं सौंपेंगे। पुत्र राणा अमर सिंह हमारे पूर्वजों के गौरव की रक्षा नहीं कर सकेगा। वह मुग़लों के ग्रास से मातृभूमि को नहीं बचा सकेगा। वह विलासी है, वह कष्ट नहीं झेल सकेगा।" इसके बाद राणा ने अमरसिंह को बातें सुनाते हुए कहा, "एक दिन उस नीचि कुटिया में प्रवेश करते समय अमरसिंह अपने सिर से पगड़ी उतारना भूल गया था। द्वार के एक बाँस से टकराकर उसकी पगड़ी नीचे गिर गई। दूसरे दिन उसने मुझसे कहा कि यहाँ पर बड़े-बड़े महल बनवा दीजिए।" कुछ क्षण चुप रहकर प्रताप ने कहा, "इन कुटियों के स्थान पर बड़े-बड़े रमणीक महल बनेंगे, मेवाड़ की दुरवस्था भूलकर अमरसिंह यहाँ पर अनेक प्रकार के भोग-विलास करेगा। अमर के विलासी होने पर मातृभूमि की वह स्वाधीनता जाती रहेगी, जिसके लिए मैंने बराबर पच्चीस वर्ष तक कष्ट उठाए, सभी भाँति की सुख-सुविधाओं को छोड़ा। वह इस गौरव की रक्षा न कर सकेगा और तुम लोग-तुम सब उसके अनर्थकारी उदाहरण का अनुसरण करके मेवाड़ के पवित्र यश में कलंक लगा लोगे।" प्रताप का वाक्य पूरा होते ही समस्त सरदारों ने उससे कहा, "महाराज! हम लोग बप्पा रावल के पवित्र सिंहासन की शपथ करते हैं कि जब तक हम में से एक भी जीवित रहेगा, उस दिन तक कोई तुर्क मेवाड़ भूमि पर अधिकार न कर सकेगा। जब तक मेवाड़ भूमि की पूर्व-स्वाधीनता का पूरी तरह उद्धार हो नहीं पायेगा, तब तक हम लोग इन्हीं कुटियों में निवास करेंगे।" इस संतोषजनक वाणी को सुनते ही प्रताप के प्राण निकल गए।[15]

इस प्रकार एक ऐसे राजपूत के जीवन का अवसान हो गया, जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक सिसोदिया को प्रेरित कर रही है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा, उतने ही दिन तक प्रताप की वीरता, माहात्म्य और गौरव संसार के नेत्रों के सामने अचल भाव से विराजमान रहेगा। उतने दिन तक वह 'हल्दीघाट मेवाड़ की थर्मोपोली' और उसके अंतर्गत देवीर क्षेत्र 'मेवाड़ का मैराथन' नाम से पुकारा जाया करेगा।



पंडित नरेन्द्र मिश्र की कविता इस प्रकार है-
राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था।
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।।
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई।
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई।
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।।
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया।
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।।
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ।
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।






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Tuesday, April 28, 2015

ब्लॉग की अपील : पाठकों नेपाल की सहायता के लिए आगे आएं

ब्लॉग  की अपील :  पाठकों नेपाल की सहायता के लिए आगे आएं



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नेपाल राहत: मुलायम की अपील पर सभी सांसद एक महीने का वेतन देंगे -
दोपहर 12 बजे संसद में भूकंप को लेकर चर्चा शुरू हुई। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों द्वारा भूकंप के बाद जल्द से जल्द राहत और बचाव का काम शुरू करने के लिए सराहना करते हुए उनकी प्रशंसा की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नेपाल का दर्द हमारा दर्द है। हम नेपाल की हर संभव मदद करेंगे।

इस दौरान नेपाल को मदद को लेकर पूरी संसद एक नजर आई। सांसद मुलायम सिंह यादव ने चर्चा के दौरान अपनी एक माह की तनख्वाह नेपाल राहत कार्य में देने की घोषणा की। इसके साथ ही अपील की कि सभी सांसद अपने एक दिन की तनख्वाह इस मद में दें। इस पर सभी सांसद मदद के लिए तैयार हो गए। सभी सांसद अपने एक महीने का वेतन नेपाल में भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए देंगे।

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हुत सारे शिक्षक गण भी फेस बुक पर चर्चा कर रहे हैं की सभी शिक्षकों' को अपनी  सेलरी नेपाल में भूकम्प राहत में देनी चाहिए 

नेपाल की मुश्किलों में हम लोगो को सहयोग करना चाहिए

पाठकों नेपाल की सहायता मतलब हमारे देश की सहायता है , नेपाल एक बफर स्टेट है जो चीन और भारत के बीच की सीमा पर है , मजबूत नेपाल मतलब भारत की सीमाओं की मजबूती है


नेपाल के भारत के साथ सदियों पुराने सम्बन्ध हैं दोनों की सांस्कृतिक भूमि एक ही है। यह सम्बन्ध उसी प्रकार के हैं जिस प्रकार के सम्बन्ध भारत के तिब्बत के साथ रहे हैं। तिब्बत और नेपाल ऐसे दो पड़ोसी देश हैं जो भारत को आत्मीय ही नहीं बल्कि सहोदर मानते हैं। एक जैसी सांस्कृतिक धारा और मूल्यों का प्रसार इस सम्पूर्ण क्षेत्र में है। इसका उदगम स्थान हिमालय को ही मानना चाहिए |


 माओवादी नेपाल में जातिय घृणा और क्षेत्रिय अलगाव को हवा दे रहे हैं। नेपाल में सरकार चाहे कोई भी हो चाहे वैचारिक आधार पर वह चीन के समर्थन में हो या उसके विरोध में, वह चीन को नाराज करने की स्थिति में नहीं हैं। नेपाल जानता है कि चीन नेपाल को अपना उपनिवेश बनाना चाहता है, लेकिन आखिर नेपाल चीन को आंखें किस के बलबूते पर दिखाए?


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Tuesday, February 24, 2015

VICHAAR

VICHAAR


MERE KO NA KEJRIWAL SE MATLAB HAI NA NARENDRA MODI SE, NA AMEER KO GAREEB YA GAREEB KO AMEEE KARNE SE.

MERA KEHNA HAI KI SYSTEM ACHHA HOGA TO LOGO KO KHUD BA KHUD ACHHA BANNA PADEGAAA WARNA SYSTEM KHUD USKO NIKAAL KAR FENK DEGAAA



MERA KEHNA HAI KI SYSTEM ACHHA HOGA TO LOGO KO KHUD BA KHUD ACHHA BANNA PADEGAAA WARNA SYSTEM KHUD USKO NIKAAL KAR FENK DEGAAA

LOGO KO SARKARI NAUKRI KYUN CHAHIYE

ARE SYSTEM ITNA ACHHA AUR POWERFUL BANAO KI LOG SIRF MEHNAT AUR IMANDAAREE SE HEE ITNAA KAMA SAKEN KI SARKARI NOKRI KI ITNEE CHAHAT KI JAROORAT HEE NA PADE.

AAJ NETAON KI TIJORIYAN BHAREE PADEE HAIN, YE JANSEWAK HAIN YA BUSINESSMAN.
AGAR BLACK MONEY KE LIYE DESH MEIN BADEE MACHLEEYON PAR HEE TARGET KIYAA JAAYE TO HEE DESH MEIN ATHAH DHAN AA JAYEGAA.
AGAR HAMAARE DESH KE NETA VAASTAV MEIN JANSEWAK HAIN TO APNEEE SEKDON KARODON KI SAMPATTI KI AADHEE / CHOTHAYEE JANTA KE KALYAN HETU DAAN KAR DEN. YAHEE EK SACHHEE JANSEWA HOGEEE


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Sunday, August 24, 2014

हिंदुस्तान में सारे दोषों / भ्रस्टाचार की जड़ इस देश के न्यायलय हैं

हिंदुस्तान में सारे दोषों / भ्रस्टाचार की जड़ इस देश के न्यायलय हैं

हिंदुस्तान में सारे दोषों / भ्रस्टाचार की जड़ इस देश के न्यायलय हैं ,
लोगों न्याय पाने के लिए सालों एड़ी रगड़ते रहते हैं लेकिन न्याय समय से नहीं मिल पाता
सबसे ज्यादा न्याय के लिए लड़ने वाला ही भुगतता है

72825 भर्ती मामला देख कर बहुत दुःख होता है ,
ये तो संख्या इतनी ज्यादा है और आपस में मिलकर लोग सुप्रीम कोर्ट तक  लड़ लिए , आम इंसान का क्या हाल होगा

शिक्षा मित्र ट्रेनिंग मामले पर भी जजमेंट 2 साल पहले रिसर्व हुआ था , और आज तक निर्णय नहीं आया

अभी हाल में खबर  पडी थी की सलमान खान की जांच के दस्तावेज खो गए और जज सुनवाई नहीं कर पा रहे ,
पुलिस को नोटिस दे कर उपलब्ध कराने को बोला है , वो मामला भी 15 -16 सालों से चल रहा है

ज्यादातर केसेस में दबंग ही जीतते हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं

देश में भ्रस्टाचार स्वत : समाप्त हो जायेगा अगर देश की न्यायलय सुधर जाएँ तो

न्यायलय में केस की सुनवाई की सी सी टी वी फुटेज / वीडियो रिकॉर्डिंग जरूर होनी चाहिए ,
अपने आप सही और अच्छे न्याय मिलने लग जायेंगे

ऐसे ही नौकरी के साक्षात्कार के लिए सी सी टी वी फुटेज / वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए ,
जब से अंग्रेजों ने शासन  छोड़ा , तब से भ्रष्ट नेताओं /  नौकर शाहों ने अपने को बचाये रखने के लिए सिस्टम में सुधार को ध्यान ही नहीं दिया

अंग्रेजों की व्यवस्था में जवाब देही ब्रिटिश राज घराने की तरफ थी लेकिन अब तो देश के शासन की जवाब देही के प्रति है

आर टी आई एक बहुत बड़ी शक्ति के हाथ में जनता को मिला , लेकिन इसमें भी सिर्फ सूचना मिलती है , न्याय कहाँ मिलता है

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सलमान खान हिट एंड रन केस: ऑरिजिनल दस्तावेज और केस डायरी गायब

 मुंबई सेशन कोर्ट में गुरुवार को सलमान खान के हिट एंड रन मामले ने नया मोड़ ले लिया है। केस से जुड़े ऑरिजिनल दस्तावेज गायब होने पर कोर्ट ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने इस मामले के पहले जांच अधिकारी को कोर्ट मे पेश होने का आदेश सुनाया है। साथ ही एफिडेविट भी फाइल करने का आदेश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी।
 
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Sunday, August 10, 2014

रक्षा बंधन पर्व पर सभी को ढेरों शुभकामनाएं

रक्षा बंधन पर्व पर सभी को ढेरों शुभकामनाएं 





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Wednesday, July 30, 2014

देश की न्यायपालिकाएँ / INDIAN JUDICIARY SYSTEM

देश की न्यायपालिकाएँ / INDIAN JUDICIARY SYSTEM

अगर हमारे देश में त्वरित और अच्छे न्याय मिलने लगें तो भ्रस्टाचारियों पर तेजी से लगाम लगेगी ।

जो भी गलत काम करे , शासन के कार्यों में लापरवाही बरते उसको कुछ दंड अवश्य मिले , इस से स्वत : ही भृष्टाचार कम होने लगेगा ,और अच्छा व्यवस्था परिवर्तन आएगा ।


दुखद स्थति तब होती है , जब न्याय पाने के लिए सालों लग जाते हैं ऐसे में न्याय का महत्व कम हो जाता है , और अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं
 

 न्यायपालिकाओं में भी हम जैसे इंसान ही काम करते हैं और न्यायाधीश हम इंसानो के बीच से ही चुन कर आते हैं , उनसे भगवान / न्याय के देवता जैसी कल्पना तो नहीं की जा सकती

लेकिन देश की व्यवस्था में कुछ ऐसा होना चाहिए , जिस से न्याय देने की समय सीमा तय हो और यह केस के समय ही बता दिया जाये ,
यदि विशेष परिस्थतियों में समय बढ़ाया जाये तो उसका कारण भी बताया जाये ।

अगर न्याय पालिकाओं की जवाब देही तय हो जाये तो शायद त्वरित और अच्छे न्याय समय के साथ मिलने लगें |

निचली अदालतों में फैसले त्वरित हों , उसके बाद तो ऊपरी अदालतें भी हैं , इस से याची को फोरी राहत तो मिल सकती है |
यह  देश में व्यवस्था परिवर्तन के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है



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Wednesday, June 25, 2014

इथेनॉल पेट्रोल का उम्दा विकल्प और पर्यावरण के लिए बेहतर

इथेनॉल पेट्रोल का उम्दा विकल्प और पर्यावरण के लिए बेहतर
Ethanol a Good Petrol Alternative
इथेनॉल गन्ने के अतिरिक्त उत्पाद शीरा से बनता है और इसको बनाने की लागत महज 2 रूपए प्रति लीटर तक आती है ,शीरा 30 पैसे प्रति लीटर पड़ता है और चार लीटर शीरे से 1 लीटर इथेनॉल बनता है ,

इथेनॉल एक तरह का अल्कोहल है जिसे पेट्रोल में मिलाकर मोटर वाहनों में ईंधन की तरह उपयोग में लाया जा सकता है. इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से गन्ने से किया जाता है जिसकी हमारे देश में प्रचुरता है. भारत सरकार ने 2002 में गजट अधिसूचना जारी करके देश के नौ राज्यों और चार केन्द्र शासित क्षेत्रों में एक जनवरी 2003 से पांच प्रतिशत इथेनॉल मिला पेट्रोल बेचने की मंजूरी दे दी थी. इसे धीरे-धीरे बढ़ाते हुए पूरे देश में दस प्रतिशत के स्तर तक ले जाना था परन्तु अनेक नीतिगत और आर्थिक समस्याओं के कारण यह लक्ष्य अब तक पूरा नहीं हो पाया है


इथेनॉल को गन्ने के अलावा शर्करा वाली अन्य फसलों से भी तैयार किया जा सकता है जिससे कृषि और पर्यावरण दोनों को लाभ होगा. गौरतलब है कि इथेनॉल को ऊर्जा का अक्षय स्रेत माना जाता है, क्योंकि गन्ने की फसल अनंत और अपार है

ब्राजील में लगभग 40 प्रतिशत कारें सौ प्रतिशत इथेनॉल पर दौड़ रही हैं और बाकी मोटर वाहन 24 प्रतिशत इथेनॉल मिला पेट्रोल इस्तेमाल करते हैं. हमारे देश की तरह ब्राजील में भी इथेनॉल बनाने के लिए मुख्य रूप से गन्ने का उपयोग किया जाता है.
स्वीडन ने इथेनॉल इस्तेमाल करने की शुरुआत 1980 में की थी और आज इसने इसी बलबूते पर कच्चे तेल के आयात में लगभग 25 प्रतिशत की कटौती कर ली है. कनाडा के कई राज्यों में इथेनॉल के इस्तेमाल पर सब्सिडी भी प्रदान की जाती है. जाहिर है, इसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जिसकी फिलहाल हमारे देश में कमी दिखाई दे रही है
इथेनॉल जैसा ही एक अन्य कारगर विकल्प है बायोडीजल. दरअसल कुछ पौधों के बीजों में ऐसा तेल पाया जाता है जिसे भोजन के उपयोग में तो नहीं लाया जा सकता परन्तु इसे मोटर वाहनों में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
सामूहिक रूप से ऐसे तेलों को बायोडीजल का नाम दिया गया है क्योंकि इसे पेट्रो-डीजल में आसानी से मिलाया जा सकता है या डीजल इंजन में अकेले भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यूं तो हमारे देश के अनेक पौधों में बायोडीजल की संभावना मौजूद है परन्तु इनमें रतनजोत या जोजोबा, करंज, नागचंपा और रबर प्रमुख हैं
 



ब्राजील जैसे देशों में 40  प्रतिशत वाहन शुद्ध इथेनॉल से चलते है और बाकि 60 % वाहनो में भी इथेनॉल का उपयोग होता है ,
अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया में भी पर्यावरण की दृष्टि से 10 % इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाया जाता है , इस से पेट्रोल की खपत भी कम होती है
और पर्यावरण को भी कम नुक्सान पहुँचता है ।
अमेरिका में इथेनॉल को मक्के से बनाया जाता है , और ब्राजील से खरीदा जाता है ,
हमारे देश भारत में और ब्राजील में इथेनॉल को गन्ने के अतिरिक्त उत्पाद / अवशेष शीरा /खोई से बनाया जाता है



ब्राजील , स्वीडन जैसे देशों ने पेट्रोल , डीज़ल से निजात पाने और आत्म निर्भर बनने के लिए अस्सी के दशक से ही वैकल्पिक विकल्पों पर रिसर्च करनी शुरू कर दी थी ।
और आज कल ब्राजील ने पेट्रोल डीसल आयत को काफी कम कर दिया है और इथेनॉल आदि उत्पादों से ईंधन उत्पादन में  आत्म निर्भर होने के कगार पर हो चला है ।
हमारा देश के प्रतिनिधि तकनीकी हस्तांतरण / जानकारी के लिए समय समय  ब्राजील जाते  रहे है पूर्व पेट्रोलियम मंत्री राम नाइक के काल में भी प्रतिनिधी मंडल ब्राजील



इथेनॉल पर रिसर्च द्वितीय विश्व युद्ध  के समय ही शुरू हो गयी थी जब बहुत से देशों को तेल न मिल पाने जैसे हालातों से सामना करना पड़ा था ,
अब हमारा देश ब्राजील आदि देशों के साथ मिलकर एथनॉल रिसर्च पर जोर दे रहा है ,
इथनॉल के साथ एक मुश्किल है की यह कोरिसिव नेचर का होता है , और इंजन की घिसाई व रगड़ पिट्टी ज्यादा रहती है , जिस से इंजन की आयु काम हो जाती है इसलिए इसे पेट्रोल में 5 -10 प्रतिशत मिलाने की शुरुआती योजना बनी ,
और इंजन की नयी तकनीकी / रिसर्च की जरूरत पड़ने लगी जिस से एथेनॉल को अधिक से अधिक उपयोग में लाया जा सके ।



 




रिलायंस कम्पनी ने ब्राज़ील में जमीन खरीदी है और वह इसको इथेनॉल उत्पादन में प्रयोग में लाने जा रही है


ब्राजील में इथेनॉल का उत्पादन करेगी रिलायंस
ब्रासीलिया : रिलायंस इंडस्ट्रीज ब्राजील में बहुत बड़े पैमाने पर इथेनॉल प्रॉडक्शन की तैयारी कर रही है। कंपनी इस इथेनॉल को दुनिया के बाजारों में बेचेगी। ब्राजील में होने वाले कंपनी के विस्तार का काम आईपीसीएल के पूर्व अधिकारी आर. सी. शर्मा देख रहे हैं। उनका कहना है कि अभी यह शुरुआती दौर में है, Source : Click here )

 



अगर पेट्रोल में 5 % इथेनॉल मिलाया जाता है तो इस ईंधन को E5 कहते हैं , अगर पेट्रोल में 10 % इथेनॉल मिलाया जाता है तो इस ईंधन को E10 कहते हैं ,
और अगर बगैर पेट्रोल के सिर्फ इथेनॉल का उपयोग किया जाता है तो इसे E100 कहते है

ब्राजील इस रिसर्च में काफी आगे है और इसके 40 % वाहन शुद्ध इथेनॉल  (E100 ) पर चलने लगे हैं

हमारे देश में इथेनॉल को इस समय 27 रूपए प्रति लीटर पर सरकार किसानों / विक्रेताओं से खरीदती है , और इसका समर्थन मूल्य 42 रूपए प्रति लीटर
तक होने जा रहा है ,
इथेनॉल उत्पादन में महाराष्ट्र काफी आगे है , और इसमें नितिन गडकरी जी की कंपनी पूर्ती ग्रुप की महत्वपूर्ण भूमिका है जो की भारी मात्र में
इथेनॉल उत्पादन करती है ,

हाल ही में गडकरी जी ने यू पी में कहा की महाराष्ट्र  में गन्ना उत्पादन प्रति हेक्टेयर यू पी से चार गुना  ज्यादा है और हम यू पी में इसकी तकनीक बढ़ाने पर जोर देंगे  (Source : click here
Gadkari said -  गन्ने के जरिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन और गरीबी को दूर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादकता औसत केवल 25 टन प्रति एकड़ है, जबकि महाराष्ट्र कई क्षेत्रों में यह औसत सौ से सवा सौ टन प्रति एकड़ हैं। इसे चौगुना बढ़ाया जा सकता है। जिससे प्रदेश के किसानों की आय प्रतिवर्ष आठ हजार से दस हजार करोड़ रुपए तक बढ़ सकती है,


गडकरी ने नागपुर के आसपास के क्षेत्रों में बंद पड़ी चीनी मिलें खरीदी हैं। ये चीनी मीलें पूर्ति समूह ने खरीदी हैं, जिसके सर्वेसर्वा गडकरी हैं

गडकरी कहते हैं कि चीनी में नुकसान है, पर गन्ने की खोई से बिजली बनाने में फायदा भी है। विदर्भ में बिजली संकट का रास्ता भी हम इसी से ढूंढ रहे हैं। चीनी का कारोबार उत्तर प्रदेश और किसानों के विकास की तस्वीर बदल सकता है।

उन्होंने कहा कि गन्ने के जरिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन और गरीबी को दूर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादकता औसत केवल 25 टन प्रति एकड़ है, जबकि महाराष्ट्र कई क्षेत्रों में यह औसत सौ से सवा सौ टन प्रति एकड़ हैं। इसे चौगुना बढ़ाया जा सकता है। जिससे प्रदेश के किसानों की आय प्रतिवर्ष आठ हजार से दस हजार करोड़ रुपए तक बढ़ सकती है।

गन्ना मिलों में तैयार होने वाली मोलासेस से इथेनॉल उत्पादन की नीति बनाई जाएगी। इथेनॉल पेट्रोल में मिलाया जाएगा, जैसा ब्राजील में हो रहा है। गन्ने को लेकर गडकरी की भाजपा ने उत्तरप्रदेश में करीब एक दर्जन सुझाव किसानों के सामने रखे हैं।  )



देश में और भी वैकल्पिक / प्राकृतिक ईंधन मौजूद है , जैसे की रतन जोत / जोजोबा पौधा जो की डीज़ल का बेहतरीन विकल्प है और बंजर स्थानो पर कम
पानी में भरपूर मात्र में आसानी से लग जाता है ।

हमारे देश में हिन्द महासागर के तटीय इलाकों में तेल निकलने की अपार संभावनाएं बताई गयी हैं , और अन्य ऊर्जा स्रोत - थोरियम ( थोरियम  के भण्डार में विश्व में भारत  प्रथम स्थान पर है )


हमें भरोसा है की हमारा देश भारत अगले दस सालों में वैकल्पिक ईंधन ( एथेनॉल , बायो डीज़ल - रतन जोत , सोर ऊर्जा , पवन चक्की , जल ऊर्जा आदि  )
 द्वारा आत्म निर्भरता प्राप्त कर लेगा और पेट्रोल डीज़ल  आयात कम कर देगा



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Sunday, June 22, 2014

आज के सिस्टम पर प्रहार करता बेहतरीन लेख

आज के सिस्टम पर प्रहार करता बेहतरीन लेख

अनजान लेखक ने गांव में दी जाने वाली शिक्षा पर एक बेहतरीन व्यंग्य लेख लिखा है 

आज विद्यालय में बहुत चहल पहल है । सब कुछ साफ - सुथरा , एक दम सलीके से ।सुना है निरीक्षण को कोई साहब आने वाले हैं । पूरा विद्यालय चकाचक ।
नियत समय पर साहब विद्यालय पहुंचे । ठिगना कद , रौबदार चेहरा , और आँखें तो जैसे जीते जी पोस्टमार्टम कर दें ।
पूरे परिसर के निरीक्षण के बाद उनहोंने कक्षाओं का रुख किया ।
कक्षा पांच के एक विद्यार्थी को उठा कर पूछा , बताओ देश का प्रधान मंत्री कौन है ?
बच्चा बोला -जी राम लाल ।
साहब बोले -बेटा प्रधान मंत्री ?
बच्चा - रामलाल ।
अब साहब गुस्साए - अबे तुझे पांच में किसने पहुंचाया ? पता है मैं तेरा नाम काट सकता हूँ ।
बच्चा - कैसे काटोगे ? मेरा तो नाम ही नहीं लिखा है । मैं तो बाहर बकरी चरा रहा था । इस मास्टर ने कहा कक्षा में बैठ जा दस रूपये मिलेंगे । तू तो ये बता रूपये तू देगा या मास्टर ?
साहब भुनभुनाते हुवे मास्टर जी के पास गए , कडक आवाज में पूछा - क्या मजाक बना रखा है । फर्जी बच्चे बैठा रखे हैं । पता है मैं तुम्हे नौकरी से बर्खास्त कर सकता हूँ ।
 

गुरूजी - कर दे भाई । मैं कौन सा यहाँ का मास्टर हूँ । मास्टर तो मेरा पड़ोसी दुकानदार है । वो दुकान का सामान लेने शहर गया है । कह रहा था एक खूसट साहब आएगा , झेल लेना ।
 

अब तो साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर । पैर पटकते हुए प्रधानाध्यापक के सामने जा पहुंचे । चिल्लाकर बोले , " क्या अंधेरगर्दी है , शरम नहीं आती । क्या इसी के लिए तुम्हारे स्कूल को सरकारी इमदाद मिलती है । 
पता है ,मैं तुम्हारे स्कूल की मान्यता समाप्त कर सकता हूँ ।
जवाब दो प्रिंसिपल साहब ।
 

प्रिंसिपल ने दराज से एक सौ की गड्डी निकाल कर मेज पर रखी और बोला - मैं कौन सा प्रिंसिपल हूँ । प्रिंसिपल तो मेरे चाचा हैं । प्रॉपर्टी डीलिंग भी करते हैं । आज एक सौदे का बयाना लेने शहर गए हैं । कह रहे थे , एक कमबख्त निरीक्षण को आएगा , उसके मुंह पे ये गड्डी मारना और दफा करना ।
 

साहब ने मुस्कराते हुए गड्डी जेब के हवाले की और बोले - आज बच गये तुम सब । अगर आज मामाजी को सड़क के ठेके के चक्कर में शहर ना जाना होता , और अपनी जगह वो मुझे ना भेजते तो तुम में से एक की भी नौकरी ना बचती


Tags : News, Vichhar, information, RTE, Teacher Eligibility Test (TET), Teacher Eligibility Test Exam Paper, NCTE,
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Friday, May 30, 2014

News : स्मृति ने तोड़ी चुप्पी, बोलीं काम से हो मेरा आकलन

News : स्मृति ने तोड़ी चुप्पी, बोलीं काम से हो मेरा आकलन

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Vichar :
 लगता है देश में अब शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं

क्या अब लोगो को अब पहले जॉब दी जाएगी , और बाद में काम देखा जायेगा

क्या अब अशिक्षित और शिक्षित में कोई फर्क  रह जायेगा ।
लोग पहले भी सोनिया गांधी , राबड़ी देवी और  गोलमा देवी की शिक्षा पर बहुत सवाल उठा चुके हैं
 

 Mere Khyaal se -
कुछ पदों की मर्यादा को देखते हुए उचित शैक्षणिक योग्यता बहुत जरूरी है

साथ ही कोई लीडर एलिजिबिलिटी टेस्ट आदि करना बहुत जरूरी है


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See News Circulated in Media :
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर हो रही आलोचनाओं पर पहली बार चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि मंत्री के रूप में उनका मूल्यांकन उनके काम के आधार पर किया जाना चाहिए।
मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के साथ ही उनके ग्रेजुएट नहीं होने के आधार पर शुरू हुई आलोचना से स्मृति व्यथित नजर आ रही हैं। लेकिन वे इन आलोचनाओं को चुनौती के रूप में ले रही हैं। मंत्री के रूप में पहले ही दिन बुधवार को स्मृति सुबह नौ बजे से रात दस बजे तक अफसरों के साथ बैठकें कर मंत्रालय के कामकाज को समझती रहीं। बृहस्पतिवार को भी वह सुबह नौ बजे शास्त्री भवन स्थित अपने दफ्तर पहुंच गईं। देर शाम तक वे मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं पर चर्चा के लिए अफसरों के साथ आधा दर्जन बैठकें कर चुकी थीं।
शैक्षणिक योग्यता को लेकर आलोचनाओं को चुनौती के रूप में ले रहीं मानव संसाधन विकास मंत्री

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Wednesday, May 28, 2014

Qualification of Narendra Modi ji's Ministers

Qualification of Narendra Modi ji's Ministers

As per some sources/ and circulated on social media,
We got this info :



News mein suna hai ki Sri Prkash Jaiswal , Former Coal Minister bhee 12th Pass the,
Golma Devi Asikshit thee,
Rabri Devi bhee bahut illiterate thee

Sharad Pawar 10th Pass the aur Krishi Mantree Bane the
. Dinsha Patel 11 pass the,
Seesh Ram Ola 10th Pass The

Sushil Kumar Shinde Peon the aur baad mein Desh Ke Greh Mantree Bane

Gyani Jel Singh kabhee School gaye hee nahin halanki kuch log batate hain kee vhe 5th tak pade likhe the,
K Kamraj ne bhee shiksha nahin payee thee

TV ke 2 Charchit Congresse Pravakta - Abhishek Manu Singhvi, aur Digvijay Singh



Kuch Galtee ho to Kripya Comment ke madhyam Se Update Karen
If any mistake happens in info then please correct it through comments.

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Saturday, May 24, 2014

Vichhar : आम आदमी पार्टी के लालची लोगों का हाल

Vichhar : आम आदमी पार्टी के लालची लोगों का हाल


आम आदमी पार्टी में कई लालची लोग घुस गए थे ,
सोच रहे थे की जनता को मूर्ख बना सत्ता की चाबी हासिल कर लेंगे
अब ये लोग 5 साल , आम आदमी की तरह गुजर बसर करें और अपने चुनाव क्षेत्र की जनता की सेवा करें ,
सिर्फ एक दो दिन नाटक कर लेने से सत्ता के लालची लोगो को जनता ऐसे ही फेंकती रहेगी



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See News : शाजिया इल्मी और जी आर गोपीनाथ का आम आदमी पार्टी से इस्तीफा


आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल का जादू खत्म होता जा रहा है। एक समय था इस पार्टी में शामिल होने के लिए लोगों की लाइन लग गई थी। दिल्ली विधान सभा चुनाव से लोकसभा चुनाव समाप्त होते होते इस पार्टी को बाय बाय कहने वालों की कतार लग गई है। इस कतार में AAP की संस्थापक सदस्य शाजिया इल्मी और जी आर गोपीनाथ भी शामिल हो गए हैं।

शाजिया इल्मी ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। शाजिया के अलावा भारत में सस्ती विमान सेवा की शुरुआत करने वाले जी आर गोपीनाथ ने भी आज आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दिया।

शाजिया ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफे के बाद शाजिया ने मीडिया से कहा कि पार्टी में लोकतंत्र नहीं है। उन्होंने कहा, मैं दूखी मन से पार्टी छोड़ी रही हूं और काफी सोचने के बाद पार्टी से इस्तीफा दिया। पार्टी में कई गलतियां हैं और पार्टी गलत दिशा में जा रही हैं। केजरीवाल स्वराज का पालन नहीं कर रहे हैं। केजरीवाल खुद स्वराज की नीति नहीं मान रहे हैं। केजरीवाल करीबियों से जकड़े हैं। अरविंद पार्टी में लोकतंत्र लागू नहीं कर पा रहे हैं।

शाजिया ने कहा कि पार्टी में मुझे जानबूझकर दरकिनार किया गया है। मैंने अलग आवाज उठाई, इसलिए मुझे किनारा किया। शाजिया ने केजरीवाल पर उंगली उठाते हुए कहा कि जेल के तमाशे से कुछ नहीं होगा। केजरीवाल को बेल बॉन्ड भरना चाहिए था। शाजिया ने पार्टी की रणनीति पर भी सवाल उठाया, उन्होंने कहा कि सनसनी के लिए धरना देना गलत है। शाजिया ने कहा कि केजरीवाल को कार्यकर्ताओं से बात करनी चाहिए लेकिन वे कुछ लोगों से घिरे हुए हैं। उन्होंने कहा, गाजियाबाद से चुनाव लड़ने से नराजगी की बात अफवाह है।

गाजियाबाद लोकसभा सीट से चुनाव में उतरी थीं। वह इस सीट से हार गयीं थी। वह आप से उसकी स्थापना के समय से ही जुड़ी रही हैं। लोकप्रिय अल्पसंख्यक चेहरा समझी जाने वाली शाजिया आर के पुरम से दिल्ली विधानसभा चुनाव भी हार गई थीं।

भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जीआर गोपीनाथ पार्टी नेतृत्व में बढ़ते मतभेद का हवाला देते हुए आज आम आदमी पार्टी छोड़ दी और अरविंद केजरीवाल की कार्यप्रणाली की आलोचना की।

आप के कर्नाटक के संयोजक पृथ्वी रेड्डी को भेजे संदेश में उन्होंने कहा, मैं पार्टी नेतृत्व के साथ बढ़ते मतभेदों तथा इसके रास्ते से भटकने के कारण तत्काल प्रभाव से आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहूंगा। इस साल जनवरी में आप में शामिल हुए गोपीनाथ ने कहा कि उन्होंने मीडिया में भी अपने ज्यादातर नजरिए रखे हैं और पार्टी को भविष्य के कार्यों के लिए अच्छा करने की शुभकामनाएं दीं।

संपर्क किए जाने पर गोपीनाथ ने फ्रांस के तुलूस से फोन पर इस गतिविधि की पुष्टि की। तुलूस में ही विमानन कंपनी एयरबस का मुख्यालय है।

News Source / Sabhaar : zeenews. india.com/hindi/news/india/shazia-ilmi-may-resign-from-aam-aadmi-party/210292
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जब शाजिया के कम्युनल वाली नौटंकी से कुछ नहीं हुआ तो केजरीवाल के जेल वाले आंदोलन को नौटंकी ठहराना उनकी अपनी  सोच है ,
सही बात  तो यह है की शाजिया और जी आर गोपीनाथ जरा कुछ दिन आम आदमी की तरह लें , सड़क पर सोएं ,
झुग्गी झोपड़ियों में कुछ दिन काम करें
और विशेषकर 5 साल अपने चुनाव क्षेत्र के लोगो की सेवा करें तब कुछ समझ आएगा की आम आदमी पार्टी के नुमाइन्दे हैं की नहीं

बस मीडिया में आ कर 2 -4  ड्रामे करके , सत्ता हासिल करने वाले लालची लोगों को भी जनता देख रही है



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