और धांधली सुधार योग्य न होने पर एक परीक्षा दोबारा से कराई जा सकती है ।
टी ई टी (प्राइमरी) परीक्षा एन सी टी ई के निर्धारित मानकों के अनुरूप एक विशेष परीक्षा थी जो की प्राइमरी शिक्षकों को चुनने के लिए बनी थी और एन सी टी ई ने साफ़ साफ़ शब्दों में इसकी वेटेज लेने को लिखा था न कि किसी अकादमिक परीक्षा के अंको को ।
नोट - अकादमिक परीक्षा के अंकों को भी भर्ती में उपयोग मैं लिया जा सकता है परन्तु एन सी टी ई गाइड लाइन मैं इसके वेटेज का कोई उल्लेख नहीं है
इसके अंको को भी चयन मैं इस्तेमाल किया जा सकता है परन्तु भर्ती का आधार तय होने का बाद , और परीक्षा आदि होने का बाद , जिसने मेहनत से टी ई टी परीक्षा मैं अंक पाए उसका क्या दोष क्योंकि उसको तो नोकरी इन्ही अंको के आधार पर मिलने जा रही थी
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यहाँ प्राइमरी शिक्षकों का चुनाव होना है न की किसी साइंटिस्ट /इंजिनियर /विषय विशेषज्ञ का और टी ई टी (प्राइमरी) परीक्षा प्राइमरी शिक्षकों को चुनने के लिए योग्यता मापन थी ।
जिस प्रकार बैंक क्लर्क के लिए क्लेरिकल एप्टीत्युड परीक्षा होती है , आफिसर्स के लिये अलग एप्टीत्युड परीक्षा होती है उसी प्रकार टी ई टी (प्राइमरी) परीक्षा प्राइमरी शिक्षकों को चुनने के लिए एप्टीत्युड परीक्षा है
मुझे लगता है कि अगर ये मामला देश की सर्वोच्च अदालत में जाता है -
तो उसका मत तो यही होगा कि अगर परीक्षा में धांधली है तो धांधली वालों को बाहर किया जाये
और अगर धांधली हटाई नहीं जा सकती तो परीक्षा उन्ही अभ्यर्थीयों की दोबारा से आयोजित की जाये ।
आखिर धांधली मैं ईमानदार अभ्यर्थी (जिसने मेहनत से मार्क्स प्राप्त किये) का क्या दोष ??
अब इस भर्ती मेँ एक नया मोड़ आ गया है। कोर्ट ने बिना टीईटी वालो को भी शामिल करने को कहा है।
ReplyDeleteअवनीश कुमार
ReplyDeleteपंचायत का निर्णय ♥: * Pls must read*
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !
भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबहहम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुकेथे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है।
हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।
पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था।
सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा,कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया,अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहेहो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है !
उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी।
पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ?
लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।
हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई -
ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी !
लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है !
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है ।
यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !
शायद ६५ साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है।
इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं,------हम ही बिना सोचे समझे जाति,धर्म के नाम पर वोट दे देते हैं,जिस सरकार को हमने पूर्ण बहुमत दिया है वही हमें खून के आंसू रुला रही है,दो-दो बार हम बेरोजगारों से फॉर्म भरवा लिए गए,एक साल से अधिक को गया सिर्फ तारिक पे तारिक मिल रही हैं,इस लड़ाई में हमारे कितने साथी शहीद हो गये,उनकी कमी कोन पूरी करेगा,जिस माँ ने अपना बेटा,खो दिया हो उसके दिल पर क्या बीतती होगी,जिस पिता ने अपने हाथों से बेटे की चिता को अग्नि दी उसका हिसाब कोन देगा, कहते हैं जो भी होता है, उससे कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है,अगर हम इतना कुछ सहने के बाद भी सबक ले लें,तो हम आने वाली पीड़ी को सुनहरा भविष्य दे सकते हैं,अगर कुछ बदलाब करना है तो सुरुबात हमें अपने आप से करनी होगी.....
aap ka comment is kahani ke dwara jis prakar hum par katachh karti hai uski jitani prasansa ki jay kum hai
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteArey bhai UPTET mein dhandli hui hai yeh to sach hai,or ye masla suljhe ga bhi nahi.UP mein TET kabhi fair ho bhi nahi sakta it's definite.ek hi raasta-UP govt TET karane ka vichar chod de aur puri tarah &keval CTET ko manyata de de tabhi UP mein vacancy fill ho sakti haiaur quality teachers bhi milenge....what do you think.
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