महारानी पद्मिनी के चरित्र को दागदार करने पर संजय लीला भंसाली का विरोध
अगर अहिंसा करना गलत है तो किसी महारानी के चरित्र पर दाग़ लगाने की कोशिश करना भी एक शर्मनाक गुनाह है। और वह महारानी ओर कोई नहीं, वो पद्मनी है जिसने अपनी मान मर्यादा की ख़ातिर ज़ोहर में आग की चादर ओढ़ ली थी, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है।
गर्व की बात होती है कि TV या Cinema के ज़रिये अपने इतिहास का बखान किया जाये। छोटे पर्दे पर रामायण, महाभारत, पृथ्वीराज चौहान, रानी लक्ष्मी बाई जैसी कहानियों को खूब सराहना मिली और यही नहीं कुछ साल पहले Sony TV पर चित्तौड़ की रानी पद्मिनी जा ज़ोहर नामक serial भी आया था, जिसका कोई विरोध नहीं किया गया था, क्योंकि उसकी पठकथा वास्तविकता पर आधारित थी।
मनोरंजन के माध्यम से ज्ञान मिलता है, क्योंकि बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने महाभारत या रामायण पढ़ी होगी। सभी को TV से ही जानकारी मिली। ख़ास कर युवा पीढ़ी को इतिहास पढ़ने का शोक तो नहीं, लेकिन छोटे बड़े पर्दे पर ये कहानियां उन्हें लुभाती तो है ही साथ ही साथ उन्हें इसी बहाने ज्ञान भी मिल जाता है।
ऐसे में एक लेखक एवं निर्माता पर इतिहास को संजोय रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और यदि आप इस तरह की ओछी हरकत करते है तो ये आपकी स्वतंत्रता पर हमला नहीं, बल्कि आपकी छोटी सोच का परिचय है।
Freedom of Speech और Freedom of Expression का जिस तरह से गलत फायदा उठाया जा रहा है, ये निंदनीय है
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गर्व की बात होती है कि TV या Cinema के ज़रिये अपने इतिहास का बखान किया जाये। छोटे पर्दे पर रामायण, महाभारत, पृथ्वीराज चौहान, रानी लक्ष्मी बाई जैसी कहानियों को खूब सराहना मिली और यही नहीं कुछ साल पहले Sony TV पर चित्तौड़ की रानी पद्मिनी जा ज़ोहर नामक serial भी आया था, जिसका कोई विरोध नहीं किया गया था, क्योंकि उसकी पठकथा वास्तविकता पर आधारित थी।
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