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Saturday, October 10, 2015

ताजमहल का नया रहस्य - इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक का दावा, यह ताजमहल नहीं बल्कि तेजोमहालय शिव मंदिर है

ताजमहल का नया रहस्य - इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक का दावा, यह ताजमहल नहीं बल्कि तेजोमहालय शिव मंदिर है

   

     शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।

   यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित अलौकिक सुंदरता की 
तस्वीर 'ताजमहल' न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चुका है। ताजमहल को दुनिया के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है। हालांकि इस बात को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने बनवाया है या फिर किसी और ने।
      भारतीय इतिहास के पन्नो में यह लिखा है कि ताजमहल को शाहजहां 
ने मुमताज के लिए बनवाया था। वह मुमताज से प्यार करता था। दुनिया भर में ताजमहल को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, लेकिन कुछ इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया था।  इसे शाहजहां और मुमताज का मकबरा माना जाता है। उल्लेखनीय है कि ताजमहल के पूरा होने के तुरंत बाद ही शाहजहां को उसके पुत्र औरंगजेब द्वारा अपदस्थ कर आगरा के किले में कैद कर दिया गया था। शाहजहां की मृत्यु के बाद उसे उसकी पत्नी के बराबर में दफना दिया गया। प्रसिद्ध शोधकर्ता और इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी शोधपूर्ण पुस्तक में तथ्‍यों के माध्यम से ताजमहल के रहस्य से पर्दा उठाया है। 

दौलत छुपाने की जगह या मुमताज का मकबरा? 

  कुछ इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि 
शाहजहां ने दरअसल, वहां अपनी लूट की दौलत छुपा रखी थी इसलिए उसे कब्र के रूप में प्रचारित किया गया। यदि शाहजहां चकाचौंध कर देने वाले ताजमहल का वास्तव में निर्माता होता तो इतिहास में ताजमहल में मुमताज को किस दिन बादशाही ठाठ के साथ दफनाया गया, उसका अवश्य उल्लेख होता।
  ओक अनुसार जयपुर राजा से हड़प किए हुए पुराने महल में दफनाए जाने 
के कारण उस दिन का कोई महत्व नहीं? शहंशाह के लिए मुमताज के कोई मायने नहीं थे। क्योंकि जिस जनानखाने में हजारों सुंदर स्त्रियां हों उसमें भला प्रत्येक स्त्री की मृत्यु का हिसाब कैसे रखा जाए। जिस शाहजहां ने जीवित मुमताज के लिए एक भी निवास नहीं बनवाया वह उसके मरने के बाद भव्य महल बनवाएगा?

  आगरा से 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है, जो आज 
भी ज्यों‍ की त्यों है। बाद में उसके नाम से आगरे के ताजमहल में एक और कब्र बनी और वे नकली है। बुरहानपुर से मुमताज का शव आगरे लाने का ढोंग क्यों किया गया? माना जाता है कि मुमताज को दफनाने के बहाने शहजहां ने राजा जयसिंह पर दबाव डालकर उनके महल (ताजमहल) पर कब्जा किया और वहां की संपत्ति हड़पकर उनके द्वारा लूटा गया खजाना छुपाकर सबसे नीचले माला पर रखा था जो आज भी रखा है।

   मुमताज का इंतकाल 1631 को बुरहानपुर के बुलारा महल में हुआ था। 
वहीं उन्हें दफना दिया गया था। लेकिन माना जाता है कि उसके 6 महीने बाद राजकुमार शाह शूजा की निगरानी में उनके शरीर को आगरा लाया गया। आगरा के दक्षिण में उन्हें अस्थाई तौर फिर से दफन किया गया और आखिर में उन्हें अपने मुकाम यानी ताजमहल में दफन कर दिया गया।
     पुरुषोत्तम अनुसार क्योंकि शाहजहां ने मुमताज के लिए दफन स्थान 
बनवाया और वह भी इतना सुंदर तो इतिहासकार मानने लगे कि निश्‍चित ही फिर उनका मुमताज के प्रति प्रेम होना ही चाहिए। तब तथाकथित इतिहासकारों ने इसे प्रेम का प्रतीक लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने उनकी गाथा को लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट जैसा लिखा जिसके चलते फिल्में भी बनीं और दुनियाभर में ताजमहल प्रेम का प्रतीक बन गया।

     मुमताज से विवाह होने से पूर्व शाहजहां के कई अन्य विवाह हुए थे 
अत: मुमताज की मृत्यु पर उसकी कब्र के रूप में एक अनोखा खर्चीला ताजमहल बनवाने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुमताज किसी सुल्तान या बादशाह की बेटी नहीं थी। उसे किसी विशेष प्रकार के भव्य महल में दफनाने का कोई कारण नजर नहीं अता। उसका कोई खास योगदान भी नहीं था। उसका नाम चर्चा में इसलिए आया क्योंकि युद्ध के रास्ते के दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया था और वह मर गई थी।

    शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु 
हो गई थी। इतिहास में मुमताज से शाहजहां के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता है। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। शाहजहां युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह अपने सारे विरोधियों की की हत्या करने के बाद गद्दी पर बैठा था। ब्रिटिश ज्ञानकोष के अनुसार ताजमहल परिसर में ‍अतिथिगृह, पहरेदारों के लिए कक्ष, अश्वशाला इत्यादि भी हैं। मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता?

ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने के सबूत...

    इतिहासकार पुरुषोत्त ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि ताजमहल 
के हिन्दू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं। सबसे पहले यह कि मुख्य गुम्बद के किरीट पर जो कलश वह हिन्दू मंदिरों की तरह है। यह शिखर कलश आरंभिक 1800 ईस्वी तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। आज भी हिन्दू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है। यह हिन्दू मंदिरों के शिखर पर भी पाया जाता है।
    इस कलश पर चंद्रमा बना है। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं 
कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती है, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।

     इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में 
शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना‍ दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।

     दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू 
हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्‍दू शैली का छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है। आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।

     ओक ने लिखा है कि जेए मॉण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष 
पश्चात voyoges and travels into the east indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टॉम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो मॉण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता।

    ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक 
अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं। ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

       ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल 
आकार का पूर्ण कुंभ है। उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था। उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई। उस पर लॉर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया, जो आज भी है।

कब्रगाह या महल...

कब्रगाह को महल क्यों कहा गया? मकबरे को महल क्यों कहा गया? क्या 
किसी ने इस पर कभी सोचा, क्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया। कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया। यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई। उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में 'ताजमहल' शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।

    पुरुषोत्तम लिखते हैं कि 'महल' शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरब, 
ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। यह ‍भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि उनकी बेगम का नाम था मुमता-उल-जमानी। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।


     विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं,
 'बाबर ने सन् 1630 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई। वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितान दूसरा कोई भारत में महल नहीं था।   बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूंनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (Mystic House) के नाम से देती है।


 ताज नहीं पहले था तेजो महालय...

     ओक के अनुसार प्राप्त सबूतों के आधार पर ताजमहल का निर्माण 
राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 अश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को हुआ था। अत: बाद में मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे। हिन्दुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवाया, लेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके।


    पुरषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल पर शोधकार्य करके बताया कि 
ताजमहल को पहले 'तेजो महल' कहते थे। वर्तमन ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है। इसकी मीनारे बहुत बाद के काल में निर्मित की गई। 


   वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 
'तेज-लिंग' का वर्णन आता है। ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम 'तेजोमहालय' पड़ा था। शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम 'तेजोमहालय' से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुए उसके स्थान पर पवित्र मकबरा शब्द का ही प्रयोग किया है।


    ओक के अनुसार अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और 
सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है। इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया।

     'ताजमहल' शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द 'तेजोमहालय' शब्द 
का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिन्दू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।


तेजो महालय होने के सबूत...

     तेजोमहालय उर्फ ताजमहल को नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता 
था, क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। यह मंदिर विशालकाय महल क्षेत्र में था। आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थे, क्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अं‍गिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे। लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया। स्पष्टतः वह 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही हैं, जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।

    इतिहासकार ओक की पुस्तक अनुसार ताजमहल के हिन्दू निर्माण का 
साक्ष्य देने वाला काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय के ऊपर तीसरी मंजिल में रखा हुआ है। यह सन् 1155 का है। उसमें राजा परमर्दिदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा कहा गया है कि 'स्फटिक जैसा शुभ्र इन्दुमौलीश्‍वर (शंकर) का मंदिर बनाया गया। (वह इ‍तना सुंदर था कि) उसमें निवास करने पर शिवजी को कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही। वह मंदिर आश्‍विन शुक्ल पंचमी, रविवार को बनकर तैयार हुआ।

     ताजमहल के उद्यान में काले पत्थरों का एक मंडप था, यह एक 
ऐतिहासिक उल्लेख है। उसी में वह संस्कृत शिलालेख लगा था। उस शिलालेख को कनिंगहम ने जान-बूझकर वटेश्वर शिलालेख कहा है ताकि इतिहासकारों को भ्रम में डाला जा सके और ताजमहल के हिन्दू निर्माण का रहस्य गुप्त रहे। आगरे से 70 मिल दूर बटेश्वर में वह शिलालेख नहीं पाया गया अत: उसे बटेश्वर शिलालेख कहना अंग्रेजी षड्‍यंत्र है।

     शाहजहां ने तेजोमहल में जो तोड़फोड़ और हेराफेरी की, उसका एक सूत्र 
सन् 1874 में प्रकाशित पुरातत्व खाते (आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के वार्षिक वृत्त के चौथे खंड में पृष्ठ 216 से 17 पर अंकित है। उसमें लिखा है कि हाल में आगरे के वास्तु संग्रहालय के आंगन में जो चौखुंटा काले बसस्ट का प्रस्तर स्तंभ खड़ा है वह स्तंभ तथा उसी की जोड़ी का दूसरा स्तंभ उसके शिखर तथा चबूतरे सहित कभी ताजमहल के उद्यान में प्रस्थापित थे। इससे स्पष्ट है कि लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में जो शिलालेख है वह भी काले पत्थर का होने से ताजमहल के उद्यान मंडप में प्रदर्शित था।

      हिन्दू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाए जाते हैं। ताज भी 
यमुना नदी के तट पर बना है, जो कि शिव मंदिर के लिए एक उपयुक्त स्थान है। शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिन्दुओं में रिवाज था, जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है।

     जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग 
में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊंची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं। ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है।

     ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं, जो कि हिन्दू 
भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। हिन्दू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है। बौद्धकाल में इसी तरह के शिव मंदिरों का अधिक निर्माण हुआ था। ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। आज हजारों ऐसे हिन्दू मंदिर हैं, जो कि कमल की आकृति से अलंकृत हैं।  ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। ताजमहल की चारों ‍मीनारें बाद में बनाई गईं।


 ताजमहल का गुप्त स्थान...

   इतिहासकार ओक के अनुसार ताज एक सात मंजिला भवन है। शहजादे 
औरंगजेब के शाहजहां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन की चार मंजिलें संगमरमर पत्थरों से बनी हैं जिनमें चबूतरा, चबूतरे के ऊपर विशाल वृत्तीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर की इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बनी दो और मंजिलें हैं, जो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिए, क्योंकि सभी प्राचीन हिन्दू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है।


नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 
कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहजहां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को, जिन्हें कि शाहजहां ने अतिगोपनीय बना दिया है, भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिन्दू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों।

     स्पष्टत: मूल रूप से शाहजहां द्वारा चुनवाए गए इन दरवाजों को कई 
बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाए हुए दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झांककर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहां के दृश्य को‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ देखकर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत-सा हो गया। वहां बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारी मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ताजमहल हिन्दू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन-कौन-से साक्ष्य छुपे हुए हैं, उसकी सातों मंजिलों को खोलकर साफ-सफाई कराने की नितांत आवश्यकता है।


फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में 
गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता, परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएं थीं और शाहजहां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिए वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे।  नदी के पिछवाड़े में हिन्दू बस्तियां, बहुत से हिन्दू प्राचीन घाट और प्राचीन हिन्दू शवदाह गृह हैं। यदि शाहजहां ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता।


राजा जयसिंह से छीना था यह महल...

  पुरुषोत्तम ओक के अनुसार बादशाहनामा, जो कि शाहजहां के दरबार के 
लेखा-जोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्बज) लिया गया, जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था।


    जयपुर के पूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को 
जारी किए गए शाहजहां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फरमानों (नए क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिए घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया।


    ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुए शिलालेख में वर्णित है 
कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल को दफनाने के लिए एक विशाल इमारत बनवाई जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है।


     ओक लिखते हैं कि शहजादा औरंगजेब द्वारा अपने पिता को लिखी 
गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृत्तांतों में दर्ज किया गया है जिनके नाम 'आदाब-ए-आलमगिरी', 'यादगारनामा' और 'मुरुक्का-ए-अकबराबादी' (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगजेब ने खुद लिखा है कि मुमताज के सात मंजिला लोकप्रिय दफन स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगजेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिए फरमान जारी किया और बादशाह से सिफारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाए। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहजहां के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी।


     शाहजहां के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने 
'बादशाहनामा' में मुगल शासक बादशाह का संपूर्ण वृत्तांत 1000 से ज्यादा पृष्ठों में लिखा है जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहां की बेगम मुमताज-उल-मानी जिसे मृत्यु के बाद बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद तारीख 15 मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार को अकबराबाद आगरा लाया गया फिर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया।


     लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आलीशान 
मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव में वे इसे देने के लिए तैयार हो गए थे। इस बात की पुष्टि के लिए यहां यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनों आदेश अभी तक रखे हुए हैं, जो शाहजहां द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे










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ताज महल , आगरा (TAJ MAHAL , AGRA )



ताज महल , आगरा (TAJ MAHAL , AGRA )



प्रस्तुतकर्ता – हरेन्द्र धर्रा (Blog - http://yaadsafarki.blogspot.in/2015/03/taj-mahal-agra_6.html

काफी दिन से या यूँ कहिये कि कई वर्षों से इच्छा थी कि एक बार , पूरी दुनिया में भारत को एक अलग पहचान देने वाले , अद्भुत प्रेम की निशानी , दुनिया के सात अजूबों में से एक , बेहतरीन कारीगरी की मिसाल , बेहतरीन वास्तुकला के उदाहरण ताजमहल को प्रत्यक्ष आँखों से देख कर आए | डिस्कवरी या नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर जब कोई प्रोग्राम आता या कोई अपने आगरा के अनुभव बताता या फिर कहीं ताज की तस्वीर दिख जाती तो इच्छा और प्रबल हो जाती | वैसे कई बार योजना बन चुकी थी , लेकिन सिरे कोई नहीं चढ़ पाई थी | वैसे भी हम सलमान खान तो है नहीं के एक बार जो कमेन्टमेंट कर दी फिर अपने आप की भी न सुनु ? सबकी सुननी पड़ती है वो भी कान खोल कर |
                         अबकी बार इच्छा ने पूरा जोर मारा पूरी एडी से चोटी तक , तो फरवरी में जाने की बात हुई | कहीं ये भी योजना ही न रह जाये इसलिए हम ने आरक्षण करा लिया | जाने का भी , आने का भी , ताज की टिकट भी ऑनलाइन करा ली थी | अब तो कैंसिल होने से रहा  प्रोग्राम | मैं और नितीश जाने वाले थे लेकिन नितीश का एक दोस्त भी चलने को तैयार हो गया था | तो तीन लोगो की टिकट हो चुकी थी | हमारी योजना थी कि २१ को शाम को निकलेंगे २२ को सुबह तीन चार बजे पहुँच जाएँगे  ताज देखकर दोपहर साढ़े तीन की ट्रेन है उससे वापस आ जाएँगे | २३ को मैं ट्रेक्टर चला पाउँगा और वो दोनों ऑफिस चले जाएँगे |
                              जाने से कई दिन पहले मेरे भाई का फोन आया की गो आइबिबो वाले एक हजार का कूपन दे रहें हैं साइन अप करने पर | झट से आईडी बनाइ और आगरा में होटल देखा | एक होटल में रूम था एक हजार रुपए में , कर दिया बुक | होटल मुश्किल से 50 मीटर दूर था ताज महल से | वैसे तो हजार रुपए बहुत होते हैं लेकिन हमारी क्या जेब से निकाल रहे थे ? तो अब इन्तजार था २१ तारीख का | हमारी ट्रेन रात को 11 बजे निजामुद्दीन से थी | नितीश और राहुल का ऑफिस पीरागढ़ी था और निजामुद्दीन वाली ट्रेन शकूर बस्ती से शाम को जाती है | तो मैं अपना ट्रेक्टर का काम पूरा करके शाम को शकूर बस्ती पहुँच गया और उधर से वो दोनों ऑफिस से थोडा जल्दी छुट्टी लेकर आ गए | समय से पहले हम निजामुद्दीन पहुँच गए थे | इधर उधर घूम कर ,पुराने किस्से याद करके हमने समय काट लिया |
                                     निरधारित समय पर गाड़ी आ गयी | एक लड़का कोई पंद्रह सोलह साल का पैरों को घसीटता हुआ नीचे फर्श पर आ रहा था और पैसे मांग रहा था , मेरे पास आया तो मैंने मना कर दिया | मैं क्यों की लास्ट वाली सीट पे बैठा था और आगे कोई सीट नहीं थी ,वो खड़ा हुआ , जी हाँ ! वो लड़का जो पैरो से लाचार था खड़ा हुआ और जाकर बहार निकाल गया | बड़ा अच्छा एक्टर था | कुछ रहम दिल वालों को ठग के ले गया था वो | मेरी और नितीश की सीट एक बर्थ में थी और राहुल की दुसरे में | नितीश के पास वाली सीट पर जो लड़का बैठा था हमने उससे कहा की हमारी एक सीट दुसरे डिब्बे में है तो हमारा दोस्त यहाँ बैठ जायेगा आप वहां चले जाइये | उसने कहा की ये मेरी सीट नहीं है | कोई बात नहीं , वहां एक और भी बैठा था हमने उससे भी यही बात की तो बोला के ठीक है | पर थोड़ी देर बाद एक जना और आया और तब पता चला के सीट का असली मालिक तो ये है | हमने उससे बात नहीं की | दो तीन घंटे की तो बात थी | राहुल नितीश एक सीट पर ही बैठ गए | निर्धारित समय पर हम आगरा पहुँच गए |
                                    बाहर आकर ऑटो किया और होटल की तरफ चल पड़े | होटल के पास जाकर ऑटो वाला बोला की आपका रूम बुक है तो ही जाना नहीं तो न तो अभी रूम मिलेगा और बाहर घूमोगे तो पुलिस वाले तंग करेंगे | हमने पूछा की क्यों तो बोला की ताजमहल के बिलकुल पास में रात को किसी को घूमने नहीं देते और आपका होटल बिल्कुल पास में है ताज के | हमने कहा के हमारा रूम बुक है | वो बोला के तब तो ठीक है l हम तीन बजे होटल के बाहर थे | दरवाजा खटखटाया तो एक लड़का बाहर आया | हमने कहा की हमारा कमरा है ,तो उसने कहा की भाई कमरा खाली नहीं है | हमने कहा की नहीं भाई हमने तो पहले से बुक करवा रखा है | तो वो बोला भाई कुछ भी हो रूम नहीं है | काफी देर तक राहुल उससे भिड़ा रहा | लेकिन कोई वो कहता रहा की दस बजे से पहले कोई रूम नहीं है बुक कर रखा है तो जहाँ से किया था वहां जाओ | कोई फायदा नहीं हुआ तो उसने कहा चाहो तो गार्डन में बैठ जाओ | गार्डन में एक छोटा सा रेस्टोरेंट था | कुर्सियां सीधी की और बैठे कर ही मेज पर सो गए l राहुल बार बार हमें दुत्कार रहा था | लेकिन हमारे मन में तो ये था की कम से कम बैठने को तो जगह मिल गयी | फिर जब कुछ रौशनी सी हुई तो एक कपल एक रूम खाली कर के गया | हमने उस लड़के से जो हमें चोकीदार लग रहा था | हमने कहा की भाई अब तो रूम खाली हो गया अब तो दे | उसने कहा की नहीं अभी नहीं दस बजे | लेकिन थोड़ी देर बाद उसने साफ़ करके और चादर बदल कर हमें रूम दे दिया | वैसे भी उनका चेक इन का समय १० बजे था पर उसने हमें ५ बजे रूम दे दिया | मैं सोया नहीं बल्कि फ्रेश होकर बहार निकल गया |
                                            टिकट तो हमारे पास थे ताज के लेकिन ऑनलाइन टिकट में सिर्फ तीन घंटे का समय होता है | हमारा नो से बारह तक था | जबकि काउंटर से ख़रीदे टिकट का समय पूरे दिन का होता है | मैं चाहता था की सूर्योदय हम ताज परिसर में ही देखें  मैं साढ़े पांच बजे जाकर लाइन में लग गया | टिकट मिलने का समय था साढ़े छे बजे का | साढ़े पांच बजे भी मुझसे आगे कई लोग थे | खैर साढ़े छे बजे काउंटर खुला और मेरा नम्बर आया तो मैंने सौ का नोट दिया उसने फेंक कर वापस कर दिया की खुल्ले लाओ | यार जब हैं ही नहीं तो कहाँ से लाऊं खुल्ले ? मैंने कहा चालीस रुपए तू रख पर मुझे टिकट दे | साथ वाली लाइन में जो लड़का था वो हंस पड़ा और सारा मामला गलत करा दिया | वो और भड़क गया शायद बेइज्जती महसूस कर गया जबकि मेरा ऐसा इरादा नहीं था | मुझे मेरा एक घंटा पानी में जाता लग रहा था की एक लड़का साइड से आया और बोला भाई दो टिकट मेरी भी ले दो ना | अब मुझे पांच टिकट मिल गयी | दो उस भाई को दी और उसने मेरा धन्यवाद किया और मैंने उसका |
                                 फिर मैं भाग के होटल गया और नितीश को जगाया | राहुल ने कहा की वो नहा के आएगा | तब तक रिसेप्सन पे वोही लड़का जो हमें चौकीदार लग रहा था नहा धो के बैठा था | असल में वो मनेजर का लड़का था | उसने फार्म भरवाया आईडी प्रूफ की कॉपी लगा के साईन वगरह करवाए | फिर हम दोनों ताजमहल की तरफ चल पड़े | काफी लम्बी लाइन थी | देशी से अधिक विदेशी पर्यटक थे |  लेकिन उनकी लाइन अलग थी | मन में काफी उत्सुकता थी | उस बेहतरीन ईमारत को देखने की जो मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी तीसरी पत्नी अर्जुमंद बानो जिसका दूसरा नाम मुमजाज अधिक प्रचलित है , की याद में बनवाई थी | अजीब बात है प्रेम की मिसाल माने जाने वाली इस जोड़ी का अजीब सत्य ये भी है की मुमताज शाहजहाँ की तीसरी पत्नी थी परन्तु आखिरी नहीं | क्योंकि मुमताज के बाद भी उसने छे विवाह और भी किये थे | मुमताज शाहजहाँ की सोतेली माँ नूरजहाँ के भाई की लड़की थी | हुई तो एक तरीके से मामा की लड़की ही न | पर छोड़िये हमको उनकी रिश्तेदारी में घुसकर क्या करना है ? चिड़िया की आँख पर फोकस करते है | मुमताज हर लड़ाई में या दौरे पर शाहजहाँ के साथ जाती थी | सन १६३१ में जब शाहजहाँ दक्कन के विद्रोह को दबाने के अभियान पर था | तो रस्ते में बुरहान पुर में अपनी चोहदवीं संतान को जन्म देते समय मुमताज की मृत्यु हो गयी |  उस समय उसे वहीँ दफना दिया गया था बाद में उसके अवशेषों को ताज महल में लाया गया था  | अपनी सबसे प्रिय रानी की याद में दुनिया का सबसे शानदार मकबरा बनाने की चाहत ने ही दुनिया को ये नायाब तोहफा दिया |  सन १६३२ में ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ और बीस वर्षों में बीस हजार लोगो की मेहनत ने इस सपने को मूर्त रूप दिया | सन १६५२ में ये बन कर तैयार हुआ था | जब ताज को बनाया गया तो उस समय इसमें चार करोड़ रुपए लगे थे जब सोने का मूल्य पंद्रह रुपए तौला था | तो विचार कर के देखिये की जनता पर टैक्स का कितना बोझ बढ़ा होगा | कहते है शाहजहाँ ने उन सब कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे ताकि वे दूसरा ताज न बना सके | मुझे थोडा संदेह है इस बात पर |
                                खैर जो भी हो एक दो घंटे हम पूरा परिसर घूमने और थोड़ी बहुत वाहवाही करने के बाद हम वापस होटल में गए और खाना खाकर वर्ल्ड कप का भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका का मैच देखने लगे | मैच ख़तम करके हम निकल पड़े ताज नेचर वाक् की तरफ | काफी बढ़िया जगह है | पेड़ों के बीच से ताज को देखना काफी अच्छा लगा | शाम को हम आगरा छावनी रेलवे स्टेशन पर थे | हमारी ट्रेन का समय तो दोपहर तीन का था पर हमें पता था की वो रोज चार पांच घंटे लेट होती है तो कोई जल्दी नहीं थी हमें | लेकिन आज तो ट्रेन को जैसे हमसे दुश्मनी हो गयी थी |  छे घंटे लेट , आठ घंटे लेट , दस घंटे लेट | राहुल फिर शुरू हो चुका था की यही ट्रेन मिली थी अगेरा वगेरा | मैं तो जा रहा हूँ | जा भाई ! तेरी यात्रा मंगलमय हो | वो दूसरी ट्रेन में चला गया | भगवान कसम इतनी ख़ुशी मुझे ताज देख कर नहीं हुई थी जितनी राहुल के जाने से हुई |
                             ट्रेन को देखा तो एक एक घंटा करके बारह घंटे लेट आई | चलो आ तो गयी | हमारी मंजिल तक पहुँचते पहुँचते ट्रेन सोलह घंटे लेट हो चुकी थी | मैं तो संकल्प कर चुका था की तूफ़ान एक्सप्रेस में कभी नहीं चढूँगा | अगला दिन ट्रेन की भेंट चढ़ चुका था | न मैं काम कर पाया और ना नितीश ऑफिस जा पाया |

 समाप्त : अब कुछ चित्र देखिये  





Taj Mehal Entrance - ताज परिसर का दरवाजा 



ताज परिसर में सूर्योदय 



ताज के चबूतरे से चारबाग का नजारा 




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UPTET SARKARI NAUKRI News - - 15 हजार शिक्षकों की भर्ती के लिए काउंसलिंग 26 से

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15 हजार शिक्षकों की भर्ती के लिए काउंसलिंग 26 से


इलाहाबाद (ब्यूरो)। प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में 15 हजार सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए सचिव बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से प्रथम चक्र की काउंसलिंग 26 अक्तूबर से होगी। सचिव की ओर जारी कार्यक्रम में 14 अक्तूबर से 19 अक्तूबर के बीच जिला स्तर पर जांच सूची तैयार करके जिला चयन समिति की ओर से अनुमोदन कराया जाएगा।
20 अक्तूबर को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की ओर से जिले में अभ्यर्थियों को काउंसलिंग की सूचना के लिए विज्ञप्ति प्रकाशित की जाएगी। काउंसलिंग में जिले के डायट से बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त एवं डीएड अभ्यर्थियों को वरीयता दी जाएगी।
सचिव बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से जारी सूचना में कहा गया है कि प्रथम काउंसलिंग का आयोजन 26 अक्तूबर को किया जाएगा। काउंसलिंग में जिले के डायट से बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त करनेवाले तथा डीएड प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को चयन में वरीयता दी जाएगी। जिला समिति की ओर से अनुमोदन के बाद 30 अक्तूबर को अंतिम सूची जारी की जाएगी।
सचिव ने दो नवंबर तक श्रेणीवार खाली सीटों का विवरण उपलब्ध कराया जाएगा।
प्रथम चक्र की काउंसलिंग पूरी होने के बाद सचिव ने दूसरी काउंसलिंग छह नवंबर से कराने का फैसला किया है।
10 नवंबर तक जिला चयन समिति अंतिम सूची तैयार करके अनुमोदन पूरा करेगी।
सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने प्राथमिक विद्यालयों में बीटीसी- डीएड प्रशिक्षितों की भर्ती के लिए जारी किया कार्यक्रम ।
# इसमें 45 हजार अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है।
पहले खाई लाठी, अब मनाएंगे दशहरा-दिवाली
भर्ती की मांग पर तीन दिन पहले लाठी खाने वाले बेरोजगार अब पूरे उत्साह से दशहरा और दिवाली मनाएंगे।
काउंसिलिंग की तारीख घोषित करने के लिए अभ्यर्थियों ने 5 अक्तूबर को शिक्षा निदेशालय का घेराव किया।
6 अक्तूबर को सचिव बेसिक शिक्षा परिषद कार्यालय पर तालाबंदी करने पर छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया गया था


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UPTET SARKARI NAUKRI News - - मौलिक नियुक्ति की मांग पर टीईटी मोर्चा डटा

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मौलिक नियुक्ति की मांग पर टीईटी मोर्चा डटा

दातागंज। प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके चयनित प्रशिक्षु शिक्षकों ने बीईओ को जल्द से जल्द मौलिक नियुक्ति देने, द्वितीय बैच की परीक्षा कराने तथा मानदेय देने की मांग की।
इस मौके पर प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा के नाम ज्ञापन सौंपा।
बीआरसी समरेर पर शुक्रवार को प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके प्रशिक्षु शिक्षकों ने ये सांकेतिक धरना दिया। इस अवसर पर टीईटी मोर्चा के ब्लॉक अध्यक्ष सुरजीत बाबू गुप्ता ने कहा कि विगत 24 व 25 अगस्त को छह माह का प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके प्रशिक्षु शिक्षकों की परीक्षा करा कर उनका परिणाम 21 सितंबर को घोषित कर दिया गया है, लेकिन अभी तक मौलिक नियुक्ति नहीं की गई। जिससे प्रशिक्षु शिक्षक आर्थिक संकट झेल रहे हैं। उन्होंने चेताया कि जब तक मौलिक नियुक्ति की कार्यवाही शुरू नहीं होती और द्वितीय चरण की परीक्षा तिथि घोषित नहीं हो जाती, तब तक शिक्षण कार्य का बहिष्कार किया जाएगा।
इस अवसर पर सुधा, कुमकुम, अनामिका, योगिता, सुभाष शर्मा, राम सिंह, मुहम्मद आफाक, नवल किशोर, वसीम अहमद, तेजेश शर्मा, नरेश अग्रवाल, लक्ष्येन्द्र मिश्रा, भोले सिंह प्रजापति, मोहित गुप्ता आदि प्रशिक्षु उपस्थित रहे 


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UPTET SARKARI NAUKRI News - - मौलिक नियुक्ति देने की मांग और तेज

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मौलिक नियुक्ति देने की मांग और तेज



प्रशिक्षु शिक्षकों ने बकाया भुगतान की मांग भी प्रमुखता से उठाई
अमर उजाला ब्यूरो
लखीमपुर खीरी। प्रशिक्षु शिक्षकों ने बीआरसी छाउछ में बैठक कर बकाया वेतन भुगतान और मौलिक नियुक्ति पर चर्चा की।
शिक्षकों ने शीघ्र ही मौलिक नियुक्ति और बकाया मानदेय भुगतान कराने की मांग की है।
प्रशिक्षु शिक्षकों ने बीआरसी पर बैठक करने के बाद बीएसए को ज्ञापन भिजवाया।
ज्ञापन में मांग की है कि सफलता पूर्वक प्रशिक्षण पूरा कर चुके अभ्यर्थियों को मौलिक नियुक्ति दी जाए, द्वितीय चरण की परीक्षा का आयोजन शीघ्र किया जाए।
इसके अलावा अवशेष वेतन शीघ्र उपलब्ध कराने की मांग की है।
प्रशिक्षु शिक्षकों ने 13 अक्तूबर तक मांगे पूरी न होने पर 14 अक्तूबर को आंदोलन करने का एलान किया है


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UPTET SARKARI NAUKRI News - - नए सिरे से ग्राम पंचायतों का आरक्षण वैध : हाईकोर्ट

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नए सिरे से ग्राम पंचायतों का आरक्षण वैध : हाईकोर्ट

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों के आरक्षण को चक्रानुक्रम (रोटेशन) से न कर शून्य से प्रारम्भ करने के सरकार के निर्णय को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में बढ़ी हुई जनसंख्या, ग्रामों के परिसीमन आदि को देखते हुए पुन: नये सिरे से गांवों में आरक्षण का निर्णय वैध है और इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है। हालांकि प्रदेश सरकार तथा चुनाव आयोग की इस आपत्ति को खारिज कर दिया गया है जिसमें कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243 (ओ) के अन्तर्गत परिसीमन आदि मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चन्द्रचूड व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने संत कबीर नगर के संतराम शर्मा व कई अन्य की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है। याचिकाओं में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 243-डी के अन्तर्गत ग्र्राम पंचायतों में रोटेशन से आरक्षण की व्यवस्था है। परन्तु सरकार ने पंचायतराज एक्ट 1947 के अन्तर्गत बनी नियमावली में 16 सितम्बर को संशोधन कर पुन: नये सिरे से ग्राम पंचायतों के आरक्षण का फैसला किया है, जो गलत है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों कृपाशंकर सिंह, राकेश पाण्डे व वीके दूबे का कहना था कि सरकार ने ग्राम पंचायतों में नये सिरे से आरक्षण कर असंवैधानिक काम किया है।
मुख्य न्यायाधीश ने दो दिन की बहस के बाद शुक्रवार को पूरे दिन फैसला लिखाया तथा कहा कि इतने युद्घ स्तर पर काम करने में अगर छोटे-मोटी त्रुटि भी हो जाती है तो इस आधार पर आरक्षण की इस नयी नीति को गलत नहीं कहा जा सकता।
इस फैसले से प्रदेश सरकार व इसके पंचायती विभाग को बड़ी राहत मिली है।
चुनाव में हस्तक्षेप के अधिकार पर सुनवाई जारी
चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद क्या हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने का अधिकार है? यदि चुनाव प्रक्रिया संविधान की मंशा एवं कानून के खिलाफ चल रही हो तो पीडि़त हाईकोर्ट की शरण ले सकता है? ऐसे ही कई मुद्दों पर पूर्णपीठ में सुनवाई जारी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति बीके मिश्रा की पूर्णपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सोमवार 12 अक्टूबर को भी सुनवाई होगी


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UPTET SARKARI NAUKRI News - - प्रशिक्षु शिक्षकों ने सौंपा ज्ञापन, मौलिक नियुक्ति की मांग, 14 से दी कार्य बहिष्कार करने की चेतावनी

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प्रशिक्षु शिक्षकों ने सौंपा ज्ञापन,
मौलिक नियुक्ति की मांग,
14 से दी कार्य बहिष्कार करने की चेतावनी


पीलीभीत। प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके ललौरीखेड़ा ब्लाक के प्रशिक्षु शिक्षकों ने मौलिक नियुक्ति कराने समेत विभिन्न मांगों को लेकर खंड शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपा।
टीईटी उत्तीर्ण प्राथमिक शिक्षक के ब्लाक अध्यक्ष प्रफुल्ल दीक्षित के नेतृत्व में शुक्रवार को प्रशिक्षु शिक्षकों ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को संबोधित ज्ञापन खंड शिक्षा अधिकारी को सौंपा। सौंपे गए ज्ञापन में कहा कि जिले में प्रथम व द्वितीय काउंसलिंग में चयनित प्रशिक्षु छह माह की जगह नौ का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।
इसके बाद हुई परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुके हैं, लेकिन अभी तक नियुक्ति को लेकर शासन स्तर से कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।
ज्ञापन में मौलिक नियुक्ति का शासनादेश जारी कराने, तीसरी, चौथी व पांचवीं काउंसलिंग में चयनित प्रशिक्षुओं की परीक्षा की तिथि घोषित कराने, जुलाई, अगस्त व सितंबर माह का वेतन निर्गत कराने आदि की मांग की गई।
ज्ञापन में 13 अक्तूबर तक शासन द्वारा कोई आदेश प्राप्त न होने पर 14 अक्तूबर से कार्य बहिष्कार करने की चेतावनी दी गई।
ज्ञापन सौंपने वालों में ऊषारानी, मीरारानी, सुषमा देवी, सुरेश कुमार, रेनू शुक्ला, निधि सिन्हा, योगितारानी, दीप्ति गुप्ता, विनीत कुमार, धर्मेंद्र कुमार, आदि रहे


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UPTET SARKARI NAUKRI News - - माध्यमिक के बाद अब बेसिक में भी मिलेगा सत्र लाभ

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माध्यमिक के बाद अब बेसिक में भी मिलेगा सत्र लाभ
लखनऊ (ब्यूरो)। माध्यमिक शिक्षा विभाग के बाद अब बेसिक शिक्षा विभाग में तैनात शिक्षकों कोभी सत्र लाभ सुविधा मिलेगी।
अब एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 के बीच रिटायर होने वाले बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षक 31 मार्च तक काम करते रहेंगे।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बेसिक शिक्षा की प्रमुख सचिव डिंपल वर्मा ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।
शिक्षकों को अभी तक सत्रांत का लाभ मिलता था।
इस साल जुलाई के बजाय शैक्षिक सत्र की शुरुआत एक अप्रैल से हो गई।
ऐसे में अप्रैल के बार रिटायर होने वाले शिक्षकों की मांग थी कि उन्हेंसत्र का लाभ सत्र के आखिर यानि 31 मार्च 2016 तक दिया जाए।
शिक्षामित्रों के समायोजन के चक्कर में विभाग ने इनकी मांग को अनसुना करते हुए पहले की तरह 30 जून को ही शिक्षकों को सेवानिवृत्त कर दिया। इस पर शिक्षकों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जहां से उन्हें राहत मिल गई। ऐसे में विभाग ने शुक्रवार को इस सत्र लाभ देने संबंधी आदेश जारी कर दिया।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने जारी किया आदेश ।


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UPTET SARKARI NAUKRI News - - निजी कॉलेजों में बीटीसी की 60 फीसदी सीटें खाली

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निजी कॉलेजों में बीटीसी की 60 फीसदी सीटें खाली
इलाहाबाद (ब्यूरो)। प्रदेश के सरकारी एवं निजी कॉलेजों में चल रहे बीटीसी प्रवेश में निजी बीटीसी कॉलेजों की 60 फीसदी खाली रह गई हैं।
सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी के निर्देशनमें चल रहे बीटीसी प्रवेश में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) में तो लगभग सभी सीटें भर गईं परंतु निजी बीटीसी कॉलेजों को ढूढ़े प्रवेशार्थी नहीं मिल रहे हैं।
पता चला है कि कुछ निजी बीटीसी कॉलेजों में गिनती के चार-छह सीटें ही भर पाई हैं।
प्रदेश के जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों की ओर से अब तक तीन बार काउंसलिंग के लिए मेरिट गिराकर सीटें भरने की कोशिश की गई परंतु कुछ नामी कॉलेजों को छोड़कर शेष निजी बीटीसी कॉलेजों में प्रवेश के लिए अभ्यर्थी नहीं पहुंच रहे हैं।
तीसरी काउंसलिंग केबाद भी अभ्यर्थियों के नहीं पहुंचने के बाद सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने डायट प्राचार्य को चौथी काउंसलिंग के लिए तिथि जारी कर दी गई है।
अकेले इलाहाबाद जिले में ही 19 निजी बीटीसी कॉलेजों में लगभग 400 सीटें ही भर पाई हैं।
इस प्रकार 550 सीटें अभी खाली हैं



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