जनता दरबार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दो टूक जवाब देने वाली टीचर उत्तरा बहुगुणा को निलंबित करके उपशिक्षा अधिकारी कार्यालय नौगांव में भेज दिया गया है. प्रारंभिक जिला शिक्षा अधिकारी केएस चौहान ने निलंबन आदेश में कहा है कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री के जनता दरबार में बिना विभागीय अधिकारी के प्रतिभाग किया और वहां पर अभद्रता की गई है, जो कर्मचारी आचार सेवा के नियम का उल्लंघन है.
लेकिन नियमों के उल्लंघन का उलाहना देने वाले बड़े अधिकारी और खुद मुख्यमंत्री शायद सही बातों से अवगत ही नहीं हैं, अगर ऐसा होता तो शायद 57 वर्ष की एक विधवा टीचर को अपने अधिकारियों को छोड़कर सीधे जनता दरबार में नहीं आना पड़ता. आखिर उसमें इतनी हिम्मत कहां से आई कि वो मुख्यमंत्री से सीधे इस तरह से मुखातिब हो बैठी.
25 साल से सिस्टम से लड़ रही थी टीचर
मुख्यमंत्री जी ने भले ही न सोचा हो, लेकिन आजतक की टीम ने सच्चाई की तह तक जा सही कारणों की पड़ताल की तो पता चला कि यह टीचर पिछले 25 साल से सिस्टम से लड़ रही थी, लेकिन कोई पहुंच न होने के कारण न इसकी किसी ने सुनी और न ही कोई कार्यवाही की. आखिरकार मुख्यमंत्री के दरबार में जब कार्रवाई हुई तो इतनी खतरनाक कार्रवाई हुई कि सबके होश उड़ गए. मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने महिला शिक्षिका को निलंबित करने और गिरफ्तार करने का आदेश दिया. शायद इसे ही मुखिया का जनता दरबार कहते हैं.
ये हैं सच्चाई बताने वाले आंकड़े
उत्तरा पंत बहुगुणा की पहली नियुक्ति 1993 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय भदरासू मोरी उत्तरकाशी के दुर्गम विद्यालय में हुई थी. अगले साल उन्हें उत्तरकाशी में ही चिन्यालीसौड़ के धुनियारा प्राथमिक विद्यालय में ट्रांसफर कर दिया गया. जो सड़क से 5-6 किमी. की खड़ी चढ़ाई पर स्थापित है. वर्ष 1994 से सात-आठ साल तक वह जगडग़ांव दुगुलागाड में तैनात रहीं और वर्ष 2003 से 2015 तक यहां तैनात रहने के बाद उन्हें उत्तरकाशी के नौगांव में जेस्टवाड़ी प्राथमिक विद्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया. वर्ष 2015 में पति की मृत्यु होने के बाद अध्यापिका लगातार बच्चों के साथ देहरादून ट्रांसफर के लिए प्रयास कर रही थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत से लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत तक ने उनकी कुछ नहीं सुनी.



सीएम ने दिया था ट्रांसफर का आश्वासन
हर दरबार में ही नाकाम रहने वाली महिला शिक्षिका इतनी लाचार हो चुकी थी कि अपने आपको त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने रोक नहीं पाई और इतनी बड़ी सज़ा पा बैठी. अध्यापिका कुछ दिन पहले भी त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिली थीं. सीएम रावत ने उन्हें ट्रांसफर करने का आश्वासन भी दिया था लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
आरटीआई से हुआ ये खुलासा
इस मामले में एक सच्चाई और निकलकर सामने आई जिसे आमजन के सामने लाने में एक आरटीआई का बहुत बड़ा योगदान है. आरटीआई में उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत अपनी प्रथम नियुक्ति से लेकर अब तक सुगम में ही तैनात हैं. सुनीता रावत की प्रथम नियुक्ति 24 मार्च 1992 को प्राथमिक विद्यालय कफल्डी स्वीत पौड़ी गढ़वाल में हुई थी. यह एक सुगम विद्यालय है. 16/7/1992 से वह चार साल प्राथमिक विद्यालय मैंदोली पौड़ी गढ़वाल में रहीं और फिर 27/8/1996 को उनका ट्रांसफर प्राथमिक विद्यालय अजबपुर कलां में हुआ तो फिर कभी उन्होंने यहां से बाहर का मुंह नहीं देखा. 24/5/2008 को उनकी पदोन्नति पूर्व माध्यमिक विद्यालय अजबपुर कलां में ही हुई और तब से उनकी पोस्टिंग यही है

दो अध्यापिकाओं के लिए अलग-अलग नियम क्यों?
सूचना के अधिकार में लोक सूचना अधिकारी तथा उपशिक्षा अधिकारी मोनिका बम ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि सुनीता रावत की नियुक्ति पत्र के अलावा अन्य प्रमाण पत्र उनके पास उपलब्ध नहीं हैं. विद्यालय रायपुर ब्लॉक के देहरादून में स्थित है. यदि इन दोनों अध्यापिकाओं की तुलना की जाए तो एक अध्यापिका 1993 से उत्तरकाशी के दुर्गम में है, और वर्ष 2015 में विधवा हो गई थी, जबकि दूसरी अध्यापिका 1992 में अपनी तैनाती के बाद से लगातार सुगम में है और 1996 से देहरादून में एक ही जगह पर तैनात है. आखिर दोनों अध्यापिकाएं जब प्राथमिक स्कूलों की अध्यापिकाएं हैं तो दोनों के लिए दो अलग-अलग नियम क्यों हैं?
महिला टीचर के प्रति सीएम रावत का व्यवहार गलत
जाहिर है कि इसका जवाब मुख्यमंत्री के पास भी नहीं है, लेकिन रिटायरमेंट के नजदीक एक विधवा अध्यापिका के दुख और आक्रोश के प्रति सहानुभूति के दो शब्दों के बजाय यदि मुख्यमंत्री सत्ता के अहंकार में इस तरह से भड़केंगे तो जनता दरबार का औचित्य ही क्या रह जाएगा? अपनी ईमानदार छवि की वजह से त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता की चाबी मिली थी, उनकी सख्ती भी जरूरी है लेकिन एक महिला के ऊपर उनकी सख्ती किसी भी तरह से सही नहीं मानी जा सकती. शब्दों के प्रयोग में महिला शिक्षिका को भी सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की भाषा और व्यवहार को भी सही ठहराना गलत होगा.