हाईकोर्ट ने जानकारी मांगी - टीईटी में अनियमितता
( Highcourt sought information regarding irregularities in UPTET 2011 exam)
See news -
टीईटी में अनियमितता के मामले में उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने जानकारी तलब की है। पीठ ने सरकार सहित अन्य संबंधित पक्षकारों से कहा है कि वह याचिका में कही गई कथित अनियमितताओं के बारे में पीठ को अवगत कराएं। मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होगी। यह आदेश गीता देवी यादव द्वारा दायर याचिका पर दिए हैं। याचिका में कहा गया कि याची गत 13 नवंबर को टीईटी परीक्षा में सम्मिलित हुई। प्राथमिक स्तर की परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों को उच्च प्राथमिक स्तर की ओएमआर शीट दे दी गई तथा उच्च प्राथमिक स्तर की परीक्षा के दौरान प्राथमिक स्तर की। जब परीक्षार्थियों ने विरोध किया तो आश्र्वासन दिया गया कि बाद में सही कर दिया जाएगा। कुछ प्रमुख संशोधन 4 7 सितंबर : पहला शासनादेश। 4 17 सितंबर : पहला संशोधित शासनादेश। इसमें स्नातक में न्यूनतम योग्यता को 50 की जगह 45 प्रतिशत कर दिया गया। 4 19 सितंबर : दूसरा संशोधित शासनादेश जारी हुआ। दूसरे संशोधित शासनादेश के जरिए वर्ष 1997 से पहले के मोअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डिप्लोमा इन टीचिंग उपाधिधारकों को भी टीईटी में शामिल होने की छूट दे दी गई। 4 21 सितंबर : टीईटी के आयोजन के सिलसिले में एक और शासनादेश जारी हुआ, जिसमें परीक्षा का विस्तृत कार्यक्रम तय कर दिया गया। 4 4 अक्टूबर : बीएड, बीटीसी एपीयरिंग को भी अनुमति दी गई। 4 9 अक्टूबर : ओबीसी, भूतपूर्व सैनिक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रितों को पांच प्रतिशत की छूट। 4 8 नवंबर : टीईटी को केवल पात्रता परीक्षा की जगह चयन का आधार बना दिया गया। अमरीश शुक्ल, इलाहाबाद शिक्षक पात्रता परीक्षा पर माध्यमिक शिक्षा परिषद की फजीहत अब किसी से छिपी नहीं है। टीईटी पास करने वाले अभ्यर्थियों की प्राथमिक स्कूलों में 72 हजार शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति होनी है, फिर भी यूपी बोर्ड ने हर स्तर पर जल्दबाजी दिखाई और गलती की। विज्ञप्ति आने से लेकर परीक्षा परिणाम घोषित किए जाने तक संशोधनों का सिलसिला जारी है। यह सिलसिला कब थमेगा यह तो परिषद के अधिकारी ही बता सकते हैं, पर इतना तो तह है कि इस परीक्षा से यूपी बोर्ड ने अपने नाम गलतियों का कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। याद नहीं आता कि किसी बोर्ड, आयोग ने किसी भी परीक्षा में इतनी गलतियां और संशोधन किए होंगे। पहला शासनादेश सात सितंबर को जारी हुआ। इस शासनादेश के मुताबिक वे अभ्यर्थी टीईटी में शामिल हो सकते थे, जिन्होंने न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ बीए/ बीएससी/ बीकॉम करने के साथ ही साथ बीएड भी किया हो। यह शासनादेश ठीक 10 दिन बाद 17 सितंबर को संशोधित कर दिया गया। बीए/बीएससी/बीकॉम को स्नातक कर दिया गया व न्यूनतम अर्हता को 50 की बजाय 45 प्रतिशत कर दिया गया। यूपी बोर्ड ने बनाया गलतियों का कीर्तिमान शासनादेश व आंसर की में चार से अधिक बार संशोधन के बावजूद भ्रम बरकरार
आठ नवंबर को हुआ सबसे बड़ा संशोधन
वरिष्ठ संवाददाता, इलाहाबाद : शिक्षक पात्रता परीक्षा में सबसे बड़ा संशोधन 8 नवंबर को हुआ। विज्ञप्ति में पहले टीईटी को पात्रता परीक्षा घोषित किया गया था। इस संशोधन में टीईटी की मेरिट को चयन का आधार बना दिया गया। कैबिनेट ने बेसिक शिक्षा अध्यापक नियमावली 1981 के नियम 8, 14, 27 व 29 में संशोधन कर दिया। इससे हाईस्कूल, इंटर, स्नातक और परास्नातक परीक्षा में अच्छे अंक हासिल करने वाले अभ्यर्थियों को झटका लगा। यह संशोधन भी परीक्षा एक महज चार दिन पहले किया गया। इससे पूर्व मोअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों को भी शामिल कर लिया गया। इसी संशोधन में बीएड व बीटीसी एपीयरिंग अभ्यर्थियों को भी परीक्षा देने की अनुमति दे दी गई। अन्य पिछड़ा वर्ग को भी पांच प्रतिशत की छूट दी गई। इसके बाद बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों में 72,825 शिक्षकों के चयन के लिए पहले अधिकतम आयुसीमा 35 रखी गई थी, जिसे बाद में 40 वर्ष कर दिया गया। इतने संशोधन करने के बाद भी अभी परिणाम में तमाम खामियां हैं। अभी भी उर्दू के गलत प्रश्न व विकल्प नहीं संशोधित किए गए हैं। सबसे खास बात यह है कि शुरू से ही अभ्यर्थियों में इस परीक्षा को लेकर भ्रम की स्थिति रही है।
News : Jagran -इलाहाबाद(2.12.11)
********************************************************
कथित अनियमितता पर राज्य सरकार से हफ्ते भर में जवाब मांगा लखनऊ (एसएनबी)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में बरती गयी कथित अनियमितताओं के मामले में दायर याचिका पर राज्य सरकार सहित अन्य संबंधित विभाग से एक सप्ताह में जानकारी मांगी है। पीठ ने कहा है कि बतायेंंकि परीक्षा में गड़बड़ी हुइ अथवा नहीं। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकल पीठ ने याची गीता देवी यादव की ओर से अधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका पर दिए हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि गत 13 नवम्बर को टीईटी परीक्षा आयोजित की गयी। इसमें याची सहित अन्य अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया। कहा गया कि परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों को जो ओएमआर सीट दी गयी वह प्राथमिक स्तर की थी। यह भी कहा गया कि इससे परीक्षार्थियों में भ्रम की स्थिति रही तथा वह सभी परीक्षा नहीं दे पाये। परीक्षा के दौरान जब परीक्षार्थियों ने विरोध किया तो वहां के शिक्षकों ने आासन दिया कि बाद में सभी गड़बड़ियों को ठीक कर दिया जाएगा। याची ने कहा कि इसी के चलते उसे इस परीक्षा में सफलता नहीं मिली। कोर्ट ने अगली सुनवाई अगले सप्ताह नियत की है।
News : Rastriya Sahara ( 2.12.11)
*********************************************
टीईटी में धांधली पर जानकारी तलब
लखनऊ, 1 दिसंबर (विसं): अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में बरती गई अनियमितता के मामले में दायर याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ ने जानकारी तलब की है। पीठ ने सरकार सहित अन्य संबंधित पक्षकारों से कहा है कि वह याचिका में कही गई कथित अनियमितताओं के बारे में पीठ को अवगत कराएं। मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकल पीठ ने याची गीता देवी यादव के अधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका पर दिए हैं। याचिका में कहा गया कि याची गत 13 नवंबर को टीईटी परीक्षा में सम्मिलित हुई। प्राथमिक स्तर की परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों को उच्च प्राथमिक स्तर की ओएमआर शीट दे दी गईं। यह भी कहा गया कि उच्च प्राथमिक स्तर की परीक्षा के दौरान प्राथमिक स्तर की शीटें दी गईं। कहा गया कि जब परीक्षार्थियों ने विरोध किया तो आश्र्वासन दिया गया कि बाद में सही कर दिया जाएगा। यह भी कहा गया कि ओएमआर शीटों के आवंटन में गड़बड़ी करने पर याची अनुत्तीर्ण हो गई। छात्र संघ चुनाव कराने की याचिका लखनऊ विश्वविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष के छात्र शिवार्थ पांडेय ने छात्र संघ बहाली के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इसकी पहली सुनवाई गुरुवार को हुई लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर से कोई न्यायालय में कोई उपस्थित नहीं हुआ। इसकी अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होनी है। कोर्ट ने कुलसचिव को उपस्थित होने को कहा है। साथ ही अभी तक चुनाव क्यों नहीं कराए गए इस पर स्पष्टीकरण मांगा है। शिवार्थ का कहना है कि लखनऊ विश्वविद्यालय वर्ष 2006 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय की अवहेलना कर रहा है। लविवि प्रशासन का तर्क है कि विवि का माहौल खराब होगा लेकिन ऐसा होता तो दिल्ली विवि, जेएनयू समेत अन्य विवि में छात्र नेता अपराधी बन जाते।