See news -
टीईटी में अनियमितता के मामले में उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने जानकारी तलब की है। पीठ ने सरकार सहित अन्य संबंधित पक्षकारों से कहा है कि वह याचिका में कही गई कथित अनियमितताओं के बारे में पीठ को अवगत कराएं। मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होगी। यह आदेश गीता देवी यादव द्वारा दायर याचिका पर दिए हैं। याचिका में कहा गया कि याची गत 13 नवंबर को टीईटी परीक्षा में सम्मिलित हुई। प्राथमिक स्तर की परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों को उच्च प्राथमिक स्तर की ओएमआर शीट दे दी गई तथा उच्च प्राथमिक स्तर की परीक्षा के दौरान प्राथमिक स्तर की। जब परीक्षार्थियों ने विरोध किया तो आश्र्वासन दिया गया कि बाद में सही कर दिया जाएगा। कुछ प्रमुख संशोधन 4 7 सितंबर : पहला शासनादेश। 4 17 सितंबर : पहला संशोधित शासनादेश। इसमें स्नातक में न्यूनतम योग्यता को 50 की जगह 45 प्रतिशत कर दिया गया। 4 19 सितंबर : दूसरा संशोधित शासनादेश जारी हुआ। दूसरे संशोधित शासनादेश के जरिए वर्ष 1997 से पहले के मोअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डिप्लोमा इन टीचिंग उपाधिधारकों को भी टीईटी में शामिल होने की छूट दे दी गई। 4 21 सितंबर : टीईटी के आयोजन के सिलसिले में एक और शासनादेश जारी हुआ, जिसमें परीक्षा का विस्तृत कार्यक्रम तय कर दिया गया। 4 4 अक्टूबर : बीएड, बीटीसी एपीयरिंग को भी अनुमति दी गई। 4 9 अक्टूबर : ओबीसी, भूतपूर्व सैनिक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रितों को पांच प्रतिशत की छूट। 4 8 नवंबर : टीईटी को केवल पात्रता परीक्षा की जगह चयन का आधार बना दिया गया। अमरीश शुक्ल, इलाहाबाद शिक्षक पात्रता परीक्षा पर माध्यमिक शिक्षा परिषद की फजीहत अब किसी से छिपी नहीं है। टीईटी पास करने वाले अभ्यर्थियों की प्राथमिक स्कूलों में 72 हजार शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति होनी है, फिर भी यूपी बोर्ड ने हर स्तर पर जल्दबाजी दिखाई और गलती की। विज्ञप्ति आने से लेकर परीक्षा परिणाम घोषित किए जाने तक संशोधनों का सिलसिला जारी है। यह सिलसिला कब थमेगा यह तो परिषद के अधिकारी ही बता सकते हैं, पर इतना तो तह है कि इस परीक्षा से यूपी बोर्ड ने अपने नाम गलतियों का कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। याद नहीं आता कि किसी बोर्ड, आयोग ने किसी भी परीक्षा में इतनी गलतियां और संशोधन किए होंगे। पहला शासनादेश सात सितंबर को जारी हुआ। इस शासनादेश के मुताबिक वे अभ्यर्थी टीईटी में शामिल हो सकते थे, जिन्होंने न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ बीए/ बीएससी/ बीकॉम करने के साथ ही साथ बीएड भी किया हो। यह शासनादेश ठीक 10 दिन बाद 17 सितंबर को संशोधित कर दिया गया। बीए/बीएससी/बीकॉम को स्नातक कर दिया गया व न्यूनतम अर्हता को 50 की बजाय 45 प्रतिशत कर दिया गया। यूपी बोर्ड ने बनाया गलतियों का कीर्तिमान शासनादेश व आंसर की में चार से अधिक बार संशोधन के बावजूद भ्रम बरकरार
आठ नवंबर को हुआ सबसे बड़ा संशोधन
वरिष्ठ संवाददाता, इलाहाबाद : शिक्षक पात्रता परीक्षा में सबसे बड़ा संशोधन 8 नवंबर को हुआ। विज्ञप्ति में पहले टीईटी को पात्रता परीक्षा घोषित किया गया था। इस संशोधन में टीईटी की मेरिट को चयन का आधार बना दिया गया। कैबिनेट ने बेसिक शिक्षा अध्यापक नियमावली 1981 के नियम 8, 14, 27 व 29 में संशोधन कर दिया। इससे हाईस्कूल, इंटर, स्नातक और परास्नातक परीक्षा में अच्छे अंक हासिल करने वाले अभ्यर्थियों को झटका लगा। यह संशोधन भी परीक्षा एक महज चार दिन पहले किया गया। इससे पूर्व मोअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों को भी शामिल कर लिया गया। इसी संशोधन में बीएड व बीटीसी एपीयरिंग अभ्यर्थियों को भी परीक्षा देने की अनुमति दे दी गई। अन्य पिछड़ा वर्ग को भी पांच प्रतिशत की छूट दी गई। इसके बाद बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों में 72,825 शिक्षकों के चयन के लिए पहले अधिकतम आयुसीमा 35 रखी गई थी, जिसे बाद में 40 वर्ष कर दिया गया। इतने संशोधन करने के बाद भी अभी परिणाम में तमाम खामियां हैं। अभी भी उर्दू के गलत प्रश्न व विकल्प नहीं संशोधित किए गए हैं। सबसे खास बात यह है कि शुरू से ही अभ्यर्थियों में इस परीक्षा को लेकर भ्रम की स्थिति रही है।
News : Jagran -इलाहाबाद(2.12.11)
********************************************************
कथित अनियमितता पर राज्य सरकार से हफ्ते भर में जवाब मांगा लखनऊ (एसएनबी)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में बरती गयी कथित अनियमितताओं के मामले में दायर याचिका पर राज्य सरकार सहित अन्य संबंधित विभाग से एक सप्ताह में जानकारी मांगी है। पीठ ने कहा है कि बतायेंंकि परीक्षा में गड़बड़ी हुइ अथवा नहीं। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकल पीठ ने याची गीता देवी यादव की ओर से अधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका पर दिए हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि गत 13 नवम्बर को टीईटी परीक्षा आयोजित की गयी। इसमें याची सहित अन्य अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया। कहा गया कि परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों को जो ओएमआर सीट दी गयी वह प्राथमिक स्तर की थी। यह भी कहा गया कि इससे परीक्षार्थियों में भ्रम की स्थिति रही तथा वह सभी परीक्षा नहीं दे पाये। परीक्षा के दौरान जब परीक्षार्थियों ने विरोध किया तो वहां के शिक्षकों ने आासन दिया कि बाद में सभी गड़बड़ियों को ठीक कर दिया जाएगा। याची ने कहा कि इसी के चलते उसे इस परीक्षा में सफलता नहीं मिली। कोर्ट ने अगली सुनवाई अगले सप्ताह नियत की है।
News : Rastriya Sahara ( 2.12.11)
*********************************************
Are yar Amit ji kahi ye court ji ke chakkar me aur na sanshodhan hojay aur december beet jay. Dekho kya hota hai.......
ReplyDeleteapplication forms do size ke envelope mein kyon mil rahe hain?pls. koi bataao...
ReplyDeleteये वही छात्र बार बार कोर्ट जाने की बात कह रहेँ हैँ जिनके कम अँक आये हैँ। और जो हाईस्कूल ,इण्टर ,स्नातक ,बिएड के नम्बर जोडने की बात कह रहेँ हैँ सब नकलची हैँ। और हाई मेरिट वाले हैँ। हाँला कि होगा कुछ नही।
ReplyDeleteउत्तर प्रदेश प्रशासनिक व्यवस्था बिलकुल ही सड़क छाप हो चली है| सरकार के अफसर जनता के लिए नहीं बल्कि सत्ताधारी दल के लिए काम करते करते अपनी जिम्मेदारिओं को भूल चुके हैं| केवल सत्ताधारी दल की सरकार की इज्जत बचाने की खातिर उत्तर प्रदेश के अफसर आम जनता की सुविधा और कानून की परवाह किये बिना सब कुछ सफ़ेद स्याह करने पर तुले हैं| ताजे मामले में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् के अधिकारिओ और बाबुओं ने ये कारनामा कर दिखाया है| उत्तर प्रदेश में अध्यापक पात्रता परीक्षा 2011 में लापरवाही और जल्दबाजी के चक्कर में जबरदस्त गलतियाँ हुई और अब नाकामी छुपाने के लिए सरकारी वेबसाईट से वो सभी जानकारी ही हटा दी गयी जिससे जनता नयी शिकायत ही न कर सके| उत्तर प्रदेश में अध्यापक पात्रता परीक्षा 2011 कराने के लिए uptet2011.com वेबसाईट बनायीं गयी| UPTET सम्पन्न कराने का काम उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् इलाहाबाद को सौपा गया या यूं कहें की इस काम में बड़ी धनराशी के आय व्यय की सम्भावना के चलते माध्यमिक शिक्षा परिषद् के कारिंदों ने इस काम को लपक लिया| वेबसाईट भी प्राइवेट हाथो में सौप दी गयी जबकि NIC इस काम को कर सकता था| पोर्टल के लिए .कॉम चुना गया जबकि सरकारी काम के नाते .gov.in भी मुफ्त में मिल सकती थी| खैर ये तो छोटी मोटी अनियमितताएं थी| मगर परीक्षा का पूरा काम एक प्राइवेट कम्पनी को सौपा गया जिसने अपनी वेबसाईट की हिटिंग बढ़ाने के लिए जानबूझ कर गलतियाँ की ताकि अधिक से अधिक बार परीक्षार्थी वेबसाईट पर आये और वेबसाईट की हित्तिंग बढ़ सके| वेबसाईट से answar sheet हटा दी गयी| मगर इन सब के बीच माध्यमिक शिक्षा परिषद् की मुसीबते बढ़ने लगी| माध्यमिक शिक्षा परिषद् की वेबसाईट upmsp.nic.in पर उपलब्ध अधिकारिओ के नाम पते और फोन नंबर को खोज कर परीक्षार्थियो ने घंटी बजाना शुरू किया तो माध्यमिक शिक्षा परिषद् के सचिव से लेकर बाबू तक की जानकारी हटा दी गयी| अब इस वेबसाईट से वो अब जानकारी हटा दी गयी जिससे आम आदमी उत्तर प्रदेश के इस सबसे नाकाम और चोर टाइप विभाग से सम्पर्क न कर सके
ReplyDeletemy friends 10 se bed tak merit banane ka faisla govt ne kiya tha aur ab yadi govt apna decision change karke uptet se merit banati hai to problem kya hai while everyone has got the equal opportunity to get sellected if some one fails or inable to get a job then he itself is responsible govt should not be blamed as far as irregularties are concern govt should have done little better. lekin main fir kahunga merit tet k hisab se hi banani chahiye kyonki hame ye nahi bhoolna chahiye ki age 18 se 40 hai aur jinhone pahle padhai ki hai unke saath nainsafi hogi
ReplyDelete