News : सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वह ट्रेन का सफर जिसमें फर्श पर सोए थे मोदी
दिल्ली: साल 1990 में गर्मियों के दिन थे.
भारतीय रेल (ट्रैफिक) सेवा की ट्रेनिंग के दौरान मैं और मेरी दोस्त ट्रेन से दिल्ली से लखनऊ जा रहे थे. ट्रेन में हमारी ही बोगी में दो सांसद भी यात्रा कर रहे थे. मंत्रियों का वहां होना तो ठीक था पर उनके साथ 12 लोग बिना रिज़र्वेशन के सफर कर रहे थे और उनकी हरकतें डरावनी थीं. उन्होंने हमें हमारी बर्थ से जबर्दस्ती उतारकर हमारे सामान पर बैठने को मजबूर कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने हम पर भद्दी फब्तियां भी कसीं. हम डर और गुस्से से भरे पड़े थे. ये एक बेहद खौफनाक रात थी. हमारे अलावा बाकी के यात्री गायब हो गए थे. यहां तक की टीटीई तक वहां नहीं था.
सुबह हम दिल्ली सही-सलामत तो पहुंच गए थे पर हमें गहरा सदमा लगा था. मेरी मित्र तो इतने सदमें में थीं कि उन्होंने अहमदाबाद में होने वाली आगे की ट्रेंनिग छोड़कर दिल्ली में रहने का फैसला किया. एक और ट्रेनी मेरे साथ आने को तैयार थीं सो मैंने अपनी ट्रेनिंग जारी रखने का फैसला किया (वो ट्रेनी उत्पलपर्णा हज़ारिका थी. वो अब रेलवे बोर्ड की एक्जिक्यूटिव चेयरमैन हैं). हमने अहमदाबाद की रात की ट्रेन ली. इस बार हमारे पास रिजर्वेशन लेने का समय नहीं था इसलिए हम बिना रिजर्वेशन के ही चल दिए.
हम फर्स्ट क्लास के टीटीई से मिले और बताया कि हमें अहमदाबाद तक जाना है. टीटीई ने बड़ी विनम्रता से हमें फर्स्ट क्लास में ले जाकर बिठा दिया. हम भड़क गए, क्योंकि इस बार भी हमारे किस्मत में नेता ही थे. उस बॉगी में दो नेता बैठे थे, यह हम उन्हें सफेद कपड़ों में देखकर समझ गए. पर टीटीई ने हमें शांत कराया और बताया कि वो दोनों अच्छे लोग हैं और इस रूट पर आते-जाते रहते हैं. टीटीई ने कहा कि हमें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है. उनमें से एक की उम्र चालीस और दूसरे की तीस के करीब थी. उन्होंने तुरंत हमारे लिए जगह बनाई और खुद को लगभग एक कोने में समेट लिया.
उन्होंने अपना परिचय दिया: उन दोनों ने खुद को गुजरात बीजेपी का नेता बताया. उन्होंने अपना नाम बताया पर हम जल्द ही उनके नाम भूल गए क्योंकि फिलहाल साथ में सफर कर रहे इन दो नेताओं का नाम हमारे लिए बहुत महत्व का नहीं था. हमने भी अपना परिचय करवाया. फिर बात राजनीति और इतिहास पर होने लगी. मेरी दोस्त दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक थी सो उसे इसमें मज़ा आने लगा. मैंने भी बातचीत में हिस्सा लिया. बात हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की स्थापना पर हो रही थी.
जो उम्र में बड़े थे वो गर्मजोशी से बातचीत कर रहे थे. जो कम उम्र वाले थे वो ज्यादा बोल तो नहीं रहे थे पर उनके हाव-भाव से लगा रहा था कि उनका पूरा ध्यान हमारी बातचीत की ओर ही है. तभी मैंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम लिया और पूछा कि अभी भी उनकी मौत को एक रहस्य क्यूं माना जाता है. कम उम्र वाले जो कब से चुप बैठे थे अचानक से पूछ बैठे कि मैं श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कैसे जानती हूं? मैंने उन्हें बताया कि जब मेरे पिताजी कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई कर रहे थे तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी के वाइल-चांसलर थे और उन्होंने ही मेरे पिता जी जो असम से थे, उनके लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था की थी. मेरे पिता जी इस बात को अक्सर याद कर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय देहान्त पर दुखी हो जाया करते थे.
तब उस नेता ने दूसरी तरफ देखकर खुद से कहा कि बढ़िया है इन्हें बड़ी सारी बातें पता है. जो चालीस के करीब वाले नेता थे उन्होंने हमें अचनाक से गुजरात बीजेपी में शामिल होने का न्यौता दे डाला. हमने इसे हंस कर टालने की कोशिश की और कहा कि हम गुजरात से नहीं हैं तभी जो युवा नेता थे उन्होंने जोर देकर कहा कि तो क्या हुआ? हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है. हम हुनर का अपने राज्य में खुले दिल से स्वागत करते हैं.
तभी खाना आया, चार शाकाहारी थालियां. हमने चुपचाप खाना खत्म किया. पेंट्री वाला जब पैसे लेने आया तो उस युवा नेता ने हम चारों के खाने के पैसे दे दिए. मैंने बड़े धीर से थैंक-यू कहने की कोशिश कि पर उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया. मैंने उस समय उनकी आंखों में गजब का तेज देखा. वो बहुत कम बोलते थे पर बड़े ध्यान से सुनते थे. तभी टीटीई आया और हमें बताया कि ट्रेन पूरी तरह से भरे होने के कारण वो हमारे लिए बर्थ की व्यवस्था नहीं कर पाया है. तभी दोनों नेताओं ने कहा कि कोई बात नहीं, हम काम चला लेंगे. दोनों ने जल्दी से नीचे कपड़ा बिछाया और सोने चले गए और हमारे लिए पूरा बर्थ खाली छोड़ दिया गया. हम उपर सो गए.
क्या गजब का विरोधाभास था! पिछली बार सफर में जब हमें कुछ नेता मिले तो हम कितना असुरक्षित महसूस कर रहे थे और यहां हम दो नेताओं के साथ फर्स्ट क्लास कोच में बिना किसी डर के सफर कर रहे थे. अगली सुबह जब हम अहमदाबाद पहुंचने वाले थे तो उन्होंने हमसे पूछा कि हम कहां ठहरे हैं? उम्र में बड़े नेता ने कहा कि अगर हमें ठहरने में कोई दिक्कत हो तो उनके घर के दरवाजे हमारे लिए खुले हैं. उम्र में छोटे नेता ने कहा कि मेरा अपना तो कोई ठिकाना नहीं है पर आप उनके अनुरोध पर विचार कर सकती हैं. हमने उनका शुक्रिया अदा किया और बताया कि हमें ठहरने में कोई दिक्कत नहीं है.
ट्रेन रुकने के पहले मैंने अपनी डायरी निकाली और फिर से उनका नाम पूछा. मैं उनका नाम नहीं भूलना चाहती थी क्योंकि नेताओं को लेकर जो छवि मेरे मन में थी उसे उन्होंने बदल दिया था और मुझे दोबोरा सोचने पर मजबूर कर दिया. ट्रेन रुकने ही वाली थी इससे पहले मैंने तेजी से उनका नाम लिख लिया. पहले का नाम शंकर सिंह बघेला था और दूसरे का नाम था नरेंद्र मोदी. मैंने इनके बारी में असम के एक अखबार में लिखा. ये उन दो गुजराती नेताओं के लिए सम्मान जाहिर करने के लिए था जिन्होंने हमारे लिये अपने आराम की परवाह नहीं की. पर जब मैंने इनके बारे में लिखा तब मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि ये दोनों नेता इतना लंबा सफर तय करने वाले हैं.
1996 में जब शंकर सिहं बाघेला गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब मुझे बहुत खुशी हुई. जब मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो मुझे और खुशी हुई. (कुछ महीने बाद असम के एक अखबार ने मेरी स्टोरी फिर से छापी). और अब मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं. जब कभी मैं उन्हें टीवी पर देखती हूं तो मुझे उस सफर की सारी बातें याद आती हैं.
(लेखिका भारतीय रेल के जानकारी विभाग की केंद्र की जनरल मैनेजर हैं)
News Sabhaar : abpnews.in
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Is Story Mein Baat To Badee Kee Gayee Hai ki Neta Log Fabtiyan Kas Rahe The,
Lekin Ek Baat Mujhe Badee Ajeeb Lagee,
Ki IRTS Railyway Traine Officer (Ye Ek Class 1 Service Hai) ko Training ke Doran First Class Ka Pass Mila Tha Kya,
(Kyunki Jab Koee Training Pooree Kar Leta Hai, Usko Benefit Uske Baad De Milne Shuru Hote Hain,)
Jo TTE ne Unhe 1st Class Mein Betha Diya,