सारी कवायदें फेल, अहमद पटेल को नहीं रोक पाए अमित शाह, JDU और NCP का एक वोट ने कोंग्रेस को जिताने में निर्णायक भूमिका निभाई
कुल 44 वोट कोंग्रेस के पास रह गए थे, और अहमद पटेल की जीत के लिए 45 वोट चाहिये थे
गुजरात विधानसभा चुनाव की एक सीट के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच जो टक्कर देखने को मिली और जिस तरह से अंतिम समय तक सस्पेंस का माहौल बना रहा उसने कांटे की टक्कर वाले क्रिकेट मैचों के रोमांच को भी पीछे छोड़ दिया. हालांकि अपनी जिंदगी के सबसे कठिन चुनाव में जिस तरह अहमद पटेल ने जीत हासिल की, उसने बीजेपी खासकर अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्य नीति को बड़ा झटका दिया है.
गुजरात में राज्यसभा चुनाव की तीन सीटों के लिए चुनाव होने थे. विधानसभा में जो संख्या बल है उसके हिसाब से दो सीटें बीजेपी तो एक सीट कांग्रेस के खाते में जानी तय थी. बीजेपी ने इन दो सीटों पर अमित शाह और स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और गांधी परिवार के बाद पार्टी के सबसे कद्दावर चेहरे अहमद पटेल को उतारा गया. इन प्रत्याशियों की जीत तय मानी जा रही थी लेकिन गेम तब बदला जब शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद पार्टी के छह विधायक बागी होकर बीजेपी में चले गए. कांग्रेस ने संकट भांप लिया कि ये अहमद पटेल को दोबारा राज्यसभा न जाने देने की साजिश है वो आनन फानन में अपने 44 विधायकों को लेकर कर्नाटक चली गई.
मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब कर्नाटक के जिस रिसॉर्ट में ये विधायक रुके हुए थे, उसपर आयकर विभाग ने छापा मार दिया. इस छापे की गूंज संसद तक में सुनाई दी. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी अहमद पटेल को हराने के लिए हर दांव चल रही है. पहले उसके विधायकों को खरीदा गया और अब आयकर छापों से उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है. यही नहीं कर्नाटक में कांग्रेस के केवल 44 विधायक पहुंचे यानी पार्टी के 7 और विधायक बागी हो गए. कांग्रेस को जीत के लिए अब भी एक और विधायक की दरकार थी क्योंकि जीत का आंकड़ा 45 विधायकों का था. हालांकि दो बागी कांग्रेसियों के वोट रद्द होने से अहमद पटेल की जीत के लिए 44 वोट ही पर्याप्त थे
इन सबके बीच एक और बड़ी उठापटक बिहार में भी हुई. वहां महागठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार लालू यादव का साथ छोड़कर बीजेपी के साथी बन गए. बीजेपी को इसका फायदा गुजरात में भी दिखा क्योंकि गुजरात में जेडीयू से भी एक विधायक छोटू बसावा हैं. बीजेपी आश्वस्त थी कि छोटू बसावा का वोट उसे ही मिलेगा. पार्टी ने भी उसे आश्वस्त किया था लेकिन छोटू बसावा ने कहा कि उन्होंने अहमद पटेल को वोट दिया है.
यही नहीं, गुजरात की विधानसभा में एनसीपी के भी दो वोट हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही इन वोटों पर नजर थी. दोनों में से जिसके खाते में ये वोट जाते उसकी जीत तकरीबन तय थी लेकिन एनसीपी के दोनों विधायकों ने अलग-अलग पार्टियों को वोट दिया. यानी एनसीपी का एक वोट कांग्रेस को और दूसरा वोट बीजेपी को मिला. यानी यहां बीजेपी एनसीपी को दोनों वोट पाने में विफल रही और अहमद पटेल की जीत तय हो गई.
गुजरात में महज बीजेपी-कांग्रेस नहीं था मुकाबला
गुजरात के इन राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने जो बिसात बिछाई उससे साफ हो गया था कि ये मुकाबला महज दो पार्टियों का मुकाबला नहीं होने जा रहा बल्कि इसके पीछे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस नेता अहमद पटेल की व्यक्तिगत अदावत भी है. पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देखा जाए तो ये साफ है कि अहमद पटेल को हराने के लिए बीजेपी ने हर संभव कोशिश की. यहां तक कि अंतिम समय में जब मामला चुनाव आयोग पहुंचा तो बीजेपी ने अपने छह-छह केंद्रीय मंत्री आयोग भेज दिए. वो भी एक बार नहीं बल्कि तीन घंटे में तीन बार. लेकिन इसके बावजूद फैसला पटेल के पक्ष में गया और अमित शाह को अपने हाल के दिनों की सबसे बड़ी सियासी शिकस्त अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से खानी पड़ी.
कुल 44 वोट कोंग्रेस के पास रह गए थे, और अहमद पटेल की जीत के लिए 45 वोट चाहिये थे
गुजरात विधानसभा चुनाव की एक सीट के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच जो टक्कर देखने को मिली और जिस तरह से अंतिम समय तक सस्पेंस का माहौल बना रहा उसने कांटे की टक्कर वाले क्रिकेट मैचों के रोमांच को भी पीछे छोड़ दिया. हालांकि अपनी जिंदगी के सबसे कठिन चुनाव में जिस तरह अहमद पटेल ने जीत हासिल की, उसने बीजेपी खासकर अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्य नीति को बड़ा झटका दिया है.
गुजरात में राज्यसभा चुनाव की तीन सीटों के लिए चुनाव होने थे. विधानसभा में जो संख्या बल है उसके हिसाब से दो सीटें बीजेपी तो एक सीट कांग्रेस के खाते में जानी तय थी. बीजेपी ने इन दो सीटों पर अमित शाह और स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया और कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और गांधी परिवार के बाद पार्टी के सबसे कद्दावर चेहरे अहमद पटेल को उतारा गया. इन प्रत्याशियों की जीत तय मानी जा रही थी लेकिन गेम तब बदला जब शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद पार्टी के छह विधायक बागी होकर बीजेपी में चले गए. कांग्रेस ने संकट भांप लिया कि ये अहमद पटेल को दोबारा राज्यसभा न जाने देने की साजिश है वो आनन फानन में अपने 44 विधायकों को लेकर कर्नाटक चली गई.
मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब कर्नाटक के जिस रिसॉर्ट में ये विधायक रुके हुए थे, उसपर आयकर विभाग ने छापा मार दिया. इस छापे की गूंज संसद तक में सुनाई दी. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी अहमद पटेल को हराने के लिए हर दांव चल रही है. पहले उसके विधायकों को खरीदा गया और अब आयकर छापों से उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है. यही नहीं कर्नाटक में कांग्रेस के केवल 44 विधायक पहुंचे यानी पार्टी के 7 और विधायक बागी हो गए. कांग्रेस को जीत के लिए अब भी एक और विधायक की दरकार थी क्योंकि जीत का आंकड़ा 45 विधायकों का था. हालांकि दो बागी कांग्रेसियों के वोट रद्द होने से अहमद पटेल की जीत के लिए 44 वोट ही पर्याप्त थे
इन सबके बीच एक और बड़ी उठापटक बिहार में भी हुई. वहां महागठबंधन टूट गया और नीतीश कुमार लालू यादव का साथ छोड़कर बीजेपी के साथी बन गए. बीजेपी को इसका फायदा गुजरात में भी दिखा क्योंकि गुजरात में जेडीयू से भी एक विधायक छोटू बसावा हैं. बीजेपी आश्वस्त थी कि छोटू बसावा का वोट उसे ही मिलेगा. पार्टी ने भी उसे आश्वस्त किया था लेकिन छोटू बसावा ने कहा कि उन्होंने अहमद पटेल को वोट दिया है.
यही नहीं, गुजरात की विधानसभा में एनसीपी के भी दो वोट हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही इन वोटों पर नजर थी. दोनों में से जिसके खाते में ये वोट जाते उसकी जीत तकरीबन तय थी लेकिन एनसीपी के दोनों विधायकों ने अलग-अलग पार्टियों को वोट दिया. यानी एनसीपी का एक वोट कांग्रेस को और दूसरा वोट बीजेपी को मिला. यानी यहां बीजेपी एनसीपी को दोनों वोट पाने में विफल रही और अहमद पटेल की जीत तय हो गई.
गुजरात में महज बीजेपी-कांग्रेस नहीं था मुकाबला
गुजरात के इन राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने जो बिसात बिछाई उससे साफ हो गया था कि ये मुकाबला महज दो पार्टियों का मुकाबला नहीं होने जा रहा बल्कि इसके पीछे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस नेता अहमद पटेल की व्यक्तिगत अदावत भी है. पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देखा जाए तो ये साफ है कि अहमद पटेल को हराने के लिए बीजेपी ने हर संभव कोशिश की. यहां तक कि अंतिम समय में जब मामला चुनाव आयोग पहुंचा तो बीजेपी ने अपने छह-छह केंद्रीय मंत्री आयोग भेज दिए. वो भी एक बार नहीं बल्कि तीन घंटे में तीन बार. लेकिन इसके बावजूद फैसला पटेल के पक्ष में गया और अमित शाह को अपने हाल के दिनों की सबसे बड़ी सियासी शिकस्त अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से खानी पड़ी.