गोवर्धन पूजा व् अन्नकूट पूजा /
Annakut | Govardhan Puja | Vishwakarma Divas
अन्न कूट की पूजा का तो हमारे यहाँ दिवाली से भी ज्यादा क्रेज होता है ,
पूजा कुछ भी हो , लेकिन आज के दिन आस पड़ोस में सब लोगों में अधिक से अधिक सब्जियां खरीदने की होड़ रहती है ,
अड़ोसी पड़ोसी सब्जियां एक्सचेंज भी करते हैं , अधिक से अधिक वेरायटी दार सब्जी बनाने की होड़ रहती है ,
सब्जियों के साथ फल , मेवे भी डाले जातें हैं ,लेकिन हरी सब्जी की भरमार अधिक रहती है जिस से सब्जी जायकेदार व् सेहत के लिए लाभदायक होती हैं
अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है
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गोवर्धन पर्व प्रत्येक वर्ष दिपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह् पर्व 14 नवम्बर, कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जायेगा. गोवर्धन पूजा के दिन ही अन्नकूट पर्व भी मनाया जाता है. दोनों पर्व एक दिन ही मनाये जाते है, और दोनों का अपना- अपना महत्व है. गो वर्धन पूजा विशेष रुप से श्री कृ्ष्ण की जन्म भूमि या भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे हुए स्थलों में विशेष रुप से मनाया जाता है.
इसमें मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन आदि में मनाया जाता है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. श्री कृ्ष्ण की जन्म स्थली बृ्ज भूमि में गोवर्धन पर्व को मानवाकार रुप में मनाया जाता है. यहां पर गोवर्धन पर्वत उठाये हुए, भगवान श्री कृ्ष्ण के साथ साथ उसके गाय, बछडे, गोपिया, ग्वाले आदि भी बनाये जाते है. और इन सबको मोर पंखों से सजाया जाता है.
और गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृ्थ्वी को धारण करने वाले हे भगवन आप गोकुल के रक्षक है, भगवान श्री कृ्ष्ण ने आपको अपनी भुजाओं में उठाया था, आप मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है. जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है.
गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते है.
मथुरा-वृंन्दावन में यह उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.
गोवर्धन पूजा कथा
Story of Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. बात उस समय की है, जब भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ गायं चराते थे. गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण जब गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बडे उत्साह से नाच-गा रही थी. पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिये किया जा रहा है. देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर हमारे गांव में वर्षा करेगें. जिससे अन्न पैदा होगा. इस पर भगवान श्री कृ्ष्ण ने समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.
ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. इन्द्र गुस्से में आयें, और उन्होने ने मेघों को आज्ञा दीकी वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जायें.
अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गयें. ओर दौड कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा. जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गयें. ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ. और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगें. सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.
अन्नकूट पर्व
Annakut Festival
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन 56 प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक भोजन तैयार किया जाता है, जिसे 56 भोग की संज्ञा दी जाती है. यह पर्व विशेष रुप से प्रकृ्ति को उसकी कृ्पा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृ्पा सदैव बनी रहती है.
अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन है. इसमें पूरे परिवार, वंश व समाज के लोग एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पन करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है. काशी के लगभग सभी देवालयों में कार्तिक मास में अन्नकूट करने कि परम्परा है. काशी के विश्वनाथ मंदिर में लड्डूओं से बनाये गये शिवालय की भव्य झांकी के साथ विविध पकवान बनाये जाते है.
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गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। शुक्रवार को गोवर्धन पूजा की जाएगी। यह पूजा भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति प्रदर्शित करने का एक जरिया है।
भोपाल। ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार यह उत्सव कृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है। भारत के लोकजीवन में इस त्यौहार का महत्व प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। यह पर्व जीवन के हर क्षेत्र में प्रेम व समर्पण का भाव दर्शााता है।
गोवर्धन पूजन
गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की छवि बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं। उसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी।
गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की छवि बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं। उसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आह्वान किया था। इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है। इस दिन अग्नि देव, वरुण, इन्द्र, इत्यादि देवताओं की पूजा का भी विधान है। इस दिन गाय की पूजा की जाती है फूल माला, धूप, चंदन आदि से इनका पूजन किया जाता है।
प्रकृति की उपासना है गोवर्धन पूजा
ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार यह पर्व विशेष रूप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद करने का दिन है। गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ करके कृष्ण ने लोगों को प्रकृत्ति की सुरक्षा व उसके महत्व को समझाया।
ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार यह पर्व विशेष रूप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिए धन्यवाद करने का दिन है। गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ करके कृष्ण ने लोगों को प्रकृत्ति की सुरक्षा व उसके महत्व को समझाया।
गोवर्धन पूजा का महत्व
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे, क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशीर्वाद देते। इससे अन्न पैदा होता। किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत हैं, जो हमारी गायों को भोजन देते हैं। ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग उनकी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं, तो उनके अंहकार को ठेस पहुंची।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे, क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशीर्वाद देते। इससे अन्न पैदा होता। किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत हैं, जो हमारी गायों को भोजन देते हैं। ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग उनकी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं, तो उनके अंहकार को ठेस पहुंची।
क्रोधित होकर उन्होंने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया। आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगे। ऐसी बारिश देखकर सभी भयभीत हो गए तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे। श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे, तो भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगुली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गए। ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व मनाया जाता है।
पूजन से होते हैं धन्य-धान्य
ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है। इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है। गोवर्धन देव से प्रार्थना की जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले भगवन आप हमारे रक्षक हैं। मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें। यह दिन गौ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है। इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है। गोवर्धन देव से प्रार्थना की जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले भगवन आप हमारे रक्षक हैं। मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें। यह दिन गौ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है।
जिन क्षेत्रों में गाय होती हैं, वहां गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है। गोवर्धन पर्व पर विशेष रूप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है। गोबर से बने श्री गोवर्धन पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढ़ाये जाते हैं तथा सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग चढ़ाया जाता है।
अन्नकूट पर्व
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबंधित है। इस दिन भगवान विष्णु जी को 56 भोग लगाए जाते हैं। इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है। उस पर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन होता है। इस दिन परिवार के सदस्य एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।
अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबंधित है। इस दिन भगवान विष्णु जी को 56 भोग लगाए जाते हैं। इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है। उस पर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन होता है। इस दिन परिवार के सदस्य एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।