आमिर खान ने मारी पलटी , कहा की मैंने कोई देश छोड़ने की बात नहीं कही और न कोई इरादा है,
नाराज लोगों ने कहा था की अपनी बीवी की साथ इराक , सीरिया , सऊदी अरेबिया चले जाओ\, जहाँ तुम शरिया कानून के साथ आराम की जिंदगी जियो ,
क्यूंकि फ़्रांस के लोग तुम्हे घुसने नहीं देंगे , अमरीका में तुम्हारे कपडे उतरवा लेंगे , और रूस वाले दिवाली के पटाखे तुम पर फोड़ेंगे
नाराज लोगों ने कहा था की अपनी बीवी की साथ इराक , सीरिया , सऊदी अरेबिया चले जाओ\, जहाँ तुम शरिया कानून के साथ आराम की जिंदगी जियो ,
क्यूंकि फ़्रांस के लोग तुम्हे घुसने नहीं देंगे , अमरीका में तुम्हारे कपडे उतरवा लेंगे , और रूस वाले दिवाली के पटाखे तुम पर फोड़ेंगे
ना मैं और ना ही मेरी पत्नी ये देश छोड़ेंगे: आमिर खान
नई दिल्ली: देश के माहौल पर फिल्म अभिनेता आमिर खान के बयान को लेकर हंगामा मचा हुआ है. इस पर आमिर खान ने पहली बार सफाई दी है. आमिर ने कहा है कि ना मैं ना ही मेरी पत्नी ये देश छोड़कर जाएंगे.
ये है आमिर खान का पूरा बयान
सबसे पहले मैं एक बात साफ करना चाहूंगा ना मेरा, ना मेरी पत्नी का ये देश छोड़ने का कोई इरादा नहीं है. ना हमारा ऐसा कोई इरादा था, ना है और ना रहेगा. जो कोई भी ऐसी बात फैलाने की कोशिश कर रहा है उसने या तो मेरा इंटरव्यू नहीं देखा, या जानबूझकर गलत फहमी फैलाना चाह रहा है. भारत मेरा देश है, मैं उससे बेइन्तहा प्यार करता हूं और ये मेरी सरज़मीन है.
दसरी बात, इंटरव्यू के दौरान जो भी मैंने कहा है मैं उस पर अटल हूं. जो लोग मुझे देशद्रोही कह रहे हैं. उनसे मैं कहूंगा कि मुझे गर्व है अपने हिन्दुस्तानी होने पर, और इस सच्चाई के लिए मुझे किसी इजाजत की जरूरत नहीं. और ना ही किसी के सर्टिफिकेट की. जो लोग इस वक्त मुझे भद्दी गालियां दे रहे हैं क्योंकि मैंने अपने दिल की बात कही है. उनसे मैं इतना कहना चाहूंगा कि मुझे बड़ा दुख है कि मेरा कहा सच साबित कर रहे हैं.
उन सारे लोगों का मैं शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जो आज इस वक्त मेरे साथ खड़े हैं. हमें हमारे इस खूबसूरत और बेमिसाल देश की खूबसूरत चरित्र को सुरक्षित रखना है. हमें सुरक्षित रखना है इसकी एकता को अखंड़ता को.. इसकी विविधिता को.. इसकी सभ्यता और संस्कृति को.. इसके इतिहास को.. इसके अनेकता वाद के विचार को.. इसके विविध भाषाओं को ..इसके प्यार को.. इसके संवेदनशीलता को.. इसके जज्बाती तख्त को...
अंतिम में, मैं रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक कविता दोहरा चाहूंगा. कविता नहीं बल्कि ये एक प्रार्थना है.
जहां उड़ता फिरे मन बेखौफ
और सर हो शान से उठा हुआ,
जहां ज्ञान हो सबके लिए बेरोकटोक बिना शर्त रखा हुआ,
जहां घर की चौखट सी छोटी सरहदों में ना बंटा हो जहान,
जहां सच की घेराइयों से निकले हर बयान
जहां बाजुएं बिना थके लकीरें कुछ मुक्म्मल तराशें
जहां सही सोच को धुंधला न पाए उदास मुर्दा रवाएतें
जहां दिलों दिमाग तलाशें नए खयाल
और उन्हें अंजाम दे ऐसे आजादी के स्वर्ग में,
ऐ भगवान, मेरे वतन की हो नई सुबह.