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Saturday, January 9, 2016

एफसीआई के मजदूरों की तनख्वाह राष्ट्रपति से भी ज्यादा FCI Labour has more salary than President of India, Labour salary 4.5 Lakh Rs Per Month

एफसीआई के मजदूरों की तनख्वाह राष्ट्रपति से भी ज्यादा
FCI Labour has more salary than President of India, Labour salary 4.5 Lakh Rs Per Month







 दिल्‍ली, भारतीय खाद्य निगम(एफसीआई) के मजदूर की तनख्वाह साढ़े चार लाख रुपये प्रति महीने। सुनने में भले ही आश्चर्यजनक लगता हो लेकिन यह हकीकत है। यह चौंकाने वाली बात शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो वह भी हैरान हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफसीआई के मजदूरों जितना वेतन तो राष्ट्रपति तक को नहीं मिलता।

सुप्रीम कोर्ट को अंदाजा नहीं था कि अनाज के बोरे ढोने वाले की तनख्वाह महीने का साढ़े चार लाख रुपये होगी। मजदूरों पर यह मेहरबानी केंद्र सरकार की उस नीति के कारण हो रही है जिसके तहत एफसीआई ठेके पर बाहर से मजदूर को नहीं रख सकता। इस कारण एफसीआई को अपने मजदूर (कर्मचारी) को इतना वेतन देना पड़ रहा है। सरकार को एफसीआई में अनाज प्रबंधन के लिए 18000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

एफसीआई केमजदूरों का वेतन सुन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस तरह का दस्तूर वास्तव में एफसीआई की हत्या करने केसमान है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अब ऐसा नहीं चलेगा। अदालत ने कहा कि अनाज केसंग्रह के लिए सालाना करीब 18 हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं।

पीठ ने कहा कि इसकेलिए सरकार जिम्मेदार है। पीठ ने यह भी कहा कि पर्याप्त मात्रा में अनाज भंडार है। लेकिन सरकार गरीब लोगों को मुफ्त में अनाज वितरित नहीं कर रही है। बड़े पैमाने पर हानि होने केबावजूद सरकार गंभीर नहीं है।
370 मजदूर जिनका मासिक वेतन चार लाख रुपये से अधिक

शीर्ष अदालत ने सरकार को 10 दिनों के भीतर यह बताने के लिए कहा है कि आम लोगों के हितों को ताक पर रखकर इस तरह की जा रही उदारता को कैसे रोका जाए। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि एफसीआई ने मजूदरों की मनमानी रोकने और घाटे से बचने केलिए ठेके पर मजदूर रखने केलिए जो आग्रह किया था, उस पर संबंधित अथॉरिटी ने क्या निर्णय लिया।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से पूछा है कि पूर्व केंद्रीय खाद्य मंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों पर सरकार अमल करना चाहती है या नहीं। सॉलिसिटर जनरल को इस संबंध में सरकार की ओर से निर्देश लाने के लिए कहा गया है।

पीठ ने पाया कि रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त 2014 में एफसीआई के 370 मजदूर ऐसे हैं, जिनका मासिक वेतन चार लाख रुपये से अधिक है। जबकि करीब 400 मजदूर ऐसे हैं जिनका वेतन दो से ढाई लाख रुपये के बीच है। पीठ ने कहा कि क्या एक मजदूर प्रति महीने साढ़े लाख रुपये कमा सकता है।

आखिर यह कैसे संभव है। इतना तो राष्ट्रपति का वेतन नहीं है। गौरतलब है राष्ट्रपति का वेतन डेढ़ लाख रुपये महीना है। यही कारण है कि सरकार को सालाना करीब 18 हजार करोड़ रुपये का भारी-भरकम बोझ उठाना पड़ रहा है। पीठ ने कहा कि हम इस तरह अनियमितता को कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि यह बेहद गंभीर बात है।

'अनाज खुले में पड़ा रहता है और बर्बाद हो जाता'
मामले की सुनवाई केदौरान अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार को पीठ ने इस मामले में मदद करने के लिए कहा है। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि उच्च स्तरीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी है। इसकेअलावा बांबे हाईकोर्ट ने गत 20 नवंबर को सरकार को एक महीने में एफसीआई के आग्रह पर निर्णय लेने के लिए कहा था।

पीठ ने कहा कि आखिर सरकार क्या कर रही है। अगर आप अपने द्वारा गठित कमेटी की बात नहीं मानेंगे तो हमें इस मामले में उच्च स्तरीय कमेटी का गठन करना होगा। पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि एफसीआई पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह अनाज का सही तरीके से भंडार नहीं कर पा रहा है।

अनाज खुले में पड़ा रहता है और बर्बाद हो जाता है। अदालत ने एक बार यह भी कहा था कि अनाज को मुफ्त में गरीब लोगों में वितरित कर दिया जाए लेकिन सरकार ऐसा करने को तैयार नहीं है। पीठ ने केंद्र सरकार को 18 जनवरी तक जवाब दाखिल करने केलिए कहा है।


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समान काम के लिए समान मजदूरी न मिलने को लेकर एफसीआई के 27 हजार से अधिक मजदूरों ने नेशनल इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है। खाद्य मंत्रालय ने भी पत्र लिखकर श्रम मंत्रालय से तीन दशक पहले जारी अधिसूचना को वापस लेने का आग्र्रह किया है। इस अधिसूचना के चलते एफसीआई को सालाना कई सौ करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के 464 में से 162 डिपो में ठेका मजदूरों से काम लेने पर कानूनी पाबंदी है। यह प्रतिबंध श्रम मंत्रालय ने कई दशक पहले कांट्रैक्ट लेबर (रेग्यूलेशन एंड एबोलिशन) एक्ट-1970 के तहत लगा हुआ है। ये डिपो खाद्यान्न उत्पादक राज्य पंजाब और हरियाणा में स्थित हैं। यहां काम करने वाले मजदूरों की औसत मजदूरी 64 हजार रुपये मासिक है, जिसमें ओवरटाइम और अन्य भत्ते भी शामिल हैं। इनकी संख्या तकरीबन 17 हजार है। इन मजदूरों को श्रम मंत्रालय के कानूनी प्रतिबंध का फायदा मिल रहा है जिसके मुताबिक ठेका मजदूरों की सेवाएं नहीं ली जा सकती हैं।

दूसरी ओर, देश के अन्य हिस्सों में स्थित एफसीआई के डिपो में 27 हजार से अधिक ऐसे मजदूर काम करते हैं, जिनकी औसत मजदूरी साढ़े 15 हजार रुपये प्रति माह है। इन मजदूरों ने ही भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद की है। अगर इनकी मांगें मानी गईं तो सरकार पर एक हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। खाद्य मंत्रालय ने इसी बोझ से बचने के लिए श्रम मंत्रालय को पत्र लिखकर ठेका श्रमिकों की नियुक्ति पर लगी रोक हटाने की मांग की है। इससे जहां वेतन में होने वाला भेदभाव खत्म हो जाएगा, वहीं खजाने पर अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ेगा।