इलाहाबाद। हाईकोर्ट ने परिषद्ीय विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था मानक के अनुरूप रख पाने में सरकार की नाकामयाबी पर नाराजगी जताई है।
कहा है कि ऐसा लगता है कि सरकार बच्चों की शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। परिषदीय विद्यालयों और जूनियर हाईस्कूल विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों के लिए भी टीईटी अनिवार्य करने संबंधी अधिसूचना जारी नहीं करने पर कोर्ट ने यह टिप्पणी की। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अरुण टंडन ने राज्य सरकार द्वारा इस मुद्दे पर बार-बार अपना स्टैंड बदलने पर नाराजगी जताई। प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा से अधिसूचना जारी करने में हो रही देरी पर स्पष्टीकरण देने को कहा है। न्यायालय ने कहा कि सरकार के इस रवैये से बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार पूरा नहीं हो पा रहा है। कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या नियमावली में संशोधन किया जाना आवश्यक है। यदि ऐसा है तो इसमें इतना विलंब क्यों हो रहा है।
सरकार ने पूर्व में आश्वासन दिया था कि वह शीघ्र अधिसूचना जारी करने जा रही है। नियमों में कोई संशोधन नहीं होगा। फिर नियमावली में संशोधन के लिए और समय देने की मांग कर डाली। कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जाहिर करते हुए कहा कि निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का कानून केंद्र द्वारा 2009 में पारित किया जा चुका है। राज्य सरकार ने इसके मुताबिक 2011 में नियमावली बना ली। नई नियमावली के अनुसार अब परिषद्ीय विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति के लिए टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। कार्यरत अध्यापकों केलिए भी नियम है कि अधिसूचना जारी होने के पांच वर्ष के भीतर उनको टीईटी उत्तीर्ण करना होगा। फिर सरकार कार्यरत अध्यापकों के लिए अधिसूचना जारी करने में इतनी देरी क्यों कर रही है। अदालत में उपस्थित सचिव बेसिक शिक्षा इन सवालों का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए।
Source : http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20121204a_010122001&ileft=129&itop=357&zoomRatio=130&AN=20121204a_010122001
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Source : http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20121204a_003163010&ileft=129&itop=357&zoomRatio=130&AN=20121204a_003163010
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Recently Supreme Cour also gave directions to fill teachers vacancies in 6 months, Central Govt. gave deadline to fill posts by 31st March 2013 to implement RTE.
Now High court take a strong stand and seek clarification from UP Govt. why they are making delay of issuing circular that - TET is mandatory for reguar / working teachers also.
High court said - UP Govt. is not serious for education of children and calls chief secretary on 7th December in court.
लखनऊ [जाब्यू]। वर्ष 1997 से पहले के मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों को बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की राह तलाशने में जुटी राज्य सरकार विधिक परामर्श प्राप्त होने के बाद मंगलवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दिला सकती है। 1997 से पहले के मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा इन टीचिंग करने वाले अभ्यर्थियों को उर्दू शिक्षक नियुक्त करने के लिए सरकार उन्हें अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) से छूट दिलाने की राह तलाश रही है। वर्तमान में उर्दू शिक्षकों के 2911 पद रिक्त हैं। इस संबंध में सरकार ने हाल ही में विधिक परामर्श हासिल किया था। विधिक परामर्श में कहा गया कि 1997 से पहले के मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से डिप्लोमा इन टीचिंग करने वाले अभ्यर्थियों को उर्दू शिक्षक नियुक्त करने के लिए राज्य सरकार पहले विज्ञापन प्रकाशित करे। विज्ञापन प्रकाशित करने पर यदि टीईटी उत्ताीर्ण मुआल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों के आवेदन समुचित संख्या में प्राप्त हो जाते हैं तो सरकार उन्हें शिक्षक नियुक्त कर दे। यदि समुचित संख्या में टीईटी उत्ताीर्ण मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधि धारक नहीं मिलते हैं तो नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23(2) के तहत सरकार केंद्र से इन अभ्यर्थियों को टीईटी से छूट दिये जाने की मांग कर सकती है। विधिक परामर्श प्राप्त होने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने इस आशय के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति हासिल करने के लिए कैबिनेट को प्रस्ताव भेज दिया है। प्रस्ताव में कैबिनेट से यह भी अनुरोध किया गया है कि उपयुक्त व्यवस्था को अमली जामा पहनाने के लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किये बिना वह मुख्यमंत्री को अपने स्तर से निर्णय लेने के लिए अधिकृत कर दे।
ReplyDeleteलखनऊ [जाब्यू]। वर्ष 1997 से पहले के मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों को बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की राह तलाशने में जुटी राज्य सरकार विधिक परामर्श प्राप्त होने के बाद मंगलवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दिला सकती है। 1997 से पहले के मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा इन टीचिंग करने वाले अभ्यर्थियों को उर्दू शिक्षक नियुक्त करने के लिए सरकार उन्हें अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) से छूट दिलाने की राह तलाश रही है। वर्तमान में उर्दू शिक्षकों के 2911 पद रिक्त हैं। इस संबंध में सरकार ने हाल ही में विधिक परामर्श हासिल किया था। विधिक परामर्श में कहा गया कि 1997 से पहले के मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से डिप्लोमा इन टीचिंग करने वाले अभ्यर्थियों को उर्दू शिक्षक नियुक्त करने के लिए राज्य सरकार पहले विज्ञापन प्रकाशित करे। विज्ञापन प्रकाशित करने पर यदि टीईटी उत्ताीर्ण मुआल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों के आवेदन समुचित संख्या में प्राप्त हो जाते हैं तो सरकार उन्हें शिक्षक नियुक्त कर दे। यदि समुचित संख्या में टीईटी उत्ताीर्ण मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधि धारक नहीं मिलते हैं तो नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23(2) के तहत सरकार केंद्र से इन अभ्यर्थियों को टीईटी से छूट दिये जाने की मांग कर सकती है। विधिक परामर्श प्राप्त होने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने इस आशय के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति हासिल करने के लिए कैबिनेट को प्रस्ताव भेज दिया है। प्रस्ताव में कैबिनेट से यह भी अनुरोध किया गया है कि उपयुक्त व्यवस्था को अमली जामा पहनाने के लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किये बिना वह मुख्यमंत्री को अपने स्तर से निर्णय लेने के लिए अधिकृत कर दे।
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