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Saturday, November 16, 2013

जगदगुरु कृपालु महाराज का 91 साल की उम्र में निधन / Kripalu Maharaj Died at the age of 91 Years


जगदगुरु कृपालु महाराज का 91 साल की उम्र में निधन / Kripalu Maharaj Died at the age of 91 Years
आश्रम की छत से गिरकर घायल हुए कृपालु महाराज कोमा में चले गए थे





जगदगुरु कृपालु महाराज
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ आश्रम की छत से गिरकर जख्मी हुए कृपालु महाराज का निधन हो गया है. आश्रम की छत से गिरकर घायल हुए कृपालु महाराज कोमा में चले गए थे.
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार कृपालु महाराज को सोमवार की रात को अस्पताल में लाया गया था. छत से गिरने की वजह से उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया था. विशेषज्ञों की एक टीम 24 घंटे उनकी निगरानी कर रही थी.

देर शाम उनका पार्थिव शरीर प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) स्थित उनके मूल निवास मनगढ़ धाम में ले जाया गया। 18 नवंबर को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। निधन की खबर सुनते ही 91 वर्षीय कृपालु महाराज के परिजनों और अनुयायियों में शोक की लहर दौड़ गई।

जगदगुरु कृपालु महाराज वर्तमान काल में मूल जगदगुरु थे. भारत के इतिहास में इनके पहले लगभग तीन हजार साल में चार और मौलिक जगदगुरु हो चुके हैं. लेकिन कृपालु महाराज के जगदगुरु होने में एक अनूठी विशेषता यह थी कि उन्हें ‘जगदगुरुत्तम’ (समस्त जगदगुरुओं में उत्तम) की उपाधि से विभूषित किया गया था. 14 जनवरी सन 1957 को सिर्फ 35 साल की उम्र में ही कृपालु महाराज को जगदगुरूत्तम की उपाधि से विभूषित किया गया था.

कृपालु महाराज का जन्म सन 1922 ई. में शरद पूर्णिमा की आधी रात को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में मनगढ़ ग्राम के ब्राह्मण कुल में हुआ था.

कृपालु महाराज की प्रमुख विशेषताएं...

1. पहले जगदगुरु थे, जिनका कोई गुरु नहीं था और वे स्वयं ‘जगदगुरुत्तम’ थे.
2. वह पहले जगदगुरु थे, जिन्होंने एक भी शिष्य नहीं बनाया. लेकिन उनके लाखों अनुयायी हैं.
3. उन्‍होंने अपने जीवन काल में ही ‘जगदगुरुत्तम’ उपाधि की 50वीं वर्षगांठ मनाई.
4. वह ऐसे जगदगुरु थे, जिन्होंने ज्ञान एवं भक्ति दोनों में सर्वोच्चता प्राप्त की व दोनों का खूब दान किया.
5. वह पहले जगदगुरु थे जिन्होंने पूरे विश्व में श्री राधाकृष्ण की माधुर्य भक्ति का धुआंधार प्रचार किया व सुमधुर राधा नाम को विश्वव्यापी बना दिया.
6. सभी महान संतों ने मन से इश्वर भक्ति की बात बताई है, जिसे ध्यान, सुमिरन, स्मरण या मेडिटेशन आदि नामों से बताया गया है. कृपालु महाराज ने पहली बार इस ध्यान को ‘रूप ध्यान’ नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी है जब हम भगवान के किसी मनोवांछित रूप का चयन करके उस रूप पर ही मन को टिकाए रहें.
7. वह पहले जगदगुरु थे, जिन्‍होंने विदेशों में प्रचार के लिए समुद्र पार किया.




कृपालु महाराज जगदगुरु कृपालु परिषद के संस्थापक संरक्षक हैं। उन्होंने हिंदू धर्म की शिक्षा और योग के लिए भारत में चार और अमेरिका में एक केंद्र की स्थापना कर चुके हैं। वाराणसी की काशी विद्धत परिषद ने कृपालु महाराज को 34 साल की उम्र में मकर संक्रांति के मौके पर 14 जनवरी 1957 को जगदगुरु की उपाधि प्रदान की थी

कृपालु महाराज की कुल संपत्ति करीब दस हजार करोड़ रुपये तक है। भारत के अलावा अमेरिका, सिंगापुर और नेपाल में भी उनके भव्य आश्रम हैं।