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Sunday, May 13, 2012

UPTET : शामली में दुसरे दिन भी धरना जारी

UPTET : शामली में दुसरे दिन भी धरना जारी


प्रेषक: aftab saif <saif.aftab.aftab817@gmail.com>
दिनांक: 12 मई 2012 6:24 pm
विषय: dharna
प्रति: Muskan Bharat <muskan24by7@gmail.com>

प्रबुद्ध्नगर ;शामली में दुसरे दिन भी धरना  जारी  है ! कल धरने का तीसरा दिन है !कल हमारी संख्या एक हज़ार होने की उम्मीद है 

7 comments:

  1. Cm abhi chhota hai bat manne me hat kar rha hai.

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  2. cm ne youa ke dilo ko chot pahuchai hai ye bhool gay hai ki 2014 me election me haath jodkar bheekh mangana paraga

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  3. kisi ko ghar mila hisse men ya koee dukan aayi
    main ghar men sabase chhota tha mere hisse men man aayi ...


    labon par uske kabhi bad'dua nahi hoti,
    bas ek maaN hai jo kabhi khafa nahi hoti...


    is tarah mere gunahon ko wo dho deti hai,
    maaN bahut gusee mein hoti hai to ro deti hai...


    maine rote hue poonchhe thhe kisi din aansu
    muddaton maaN ne nahi dhoya dupatta apna..


    abhi zinda hai maaN meri mujhe kuchh bhi nahi hoga,
    main jab ghar se nikalta hoon dua bhi saath chalti hai...


    jab bhi kashti meri sailab mein aa jaati hai
    maaN dua karti hui khwaab mein aa jaati hai


    aye andhere dekh le munh tera kaala ho gaya,
    maaN ne aankhein khol di ghar mein ujaala ho gaya


    meri khwahish hai ki main phir se farishta ho jaun
    maaN se is tarah liptun ki bachcha ho jaun


    'munawwar' maaN ke aage yun kabhi khulkar nahi rona
    jahan buniyaad ho itni nami achchhi nahi hoti


    lipat jaata hoon maaN se aur mausi muskurati hai,
    main udru mein ghazal kehta hoon hindi muskurati hai

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  4. वोह जो हम में तुम में करार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
    वही यानी वादा निबाह का, तुम्हें याद हो कि न याद हो

    वोह जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर, वो करम कि था मेरे हाल पर
    मुझे सब है याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो कि न याद हो

    वोह नए गिले, वोह शिकायतें, वह मज़े मज़े की हिकायतें
    वोह हर एक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो कि न याद हो

    कभी बैठे सबमें जो रूबरू तो इशारतों में ही गुफ्तगू
    वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो

    जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफा
    मैं वही हूँ मोमिन-इ-मुब्तिला, तुम्हें याद हो कि न याद हो

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  5. मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए हैं
    तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

    हँसी आती है अपनी अदाकारी पे खुद हमको
    कि बने फिरते हैं यूसुफ़ और ज़ुलेख़ा छोड़ आए हैं

    जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती थी
    वहीं हसरत* के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं
    [Hasrat Mohani, the legendary poet and freedom fighter]

    वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है
    कि हम उजलत में जमना का किनारा छोड़ आए हैं
    [wazu=ablutions before namaz,]
    उतार आए मुरव्वत और रवादारी का हर चोला
    जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं

    ख़याल आता है अक्सर धूप में बाहर निकलते ही
    हम अपने गाँव में पीपल का साया छोड़ आए हैं

    ज़मीं-ए-नानक-ओ-चिश्ती, ज़बान-ए-ग़ालिब-ओ-तुलसी
    ये सब कुछ था पास अपने, ये सारा छोड़ आए हैं

    दुआ के फूल पंडित जी जहां तकसीम करते थे
    गली के मोड़ पे हम वो शिवाला छोड़ आए हैं

    बुरे लगते हैं शायद इसलिए ये सुरमई बादल
    किसी कि ज़ुल्फ़ को शानों पे बिखरा छोड़ आए हैं

    अब अपनी जल्दबाजी पर बोहत अफ़सोस होता है
    कि एक खोली की खातिर राजवाड़ा छोड़ आए हैं

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