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स्यंभू हिमानी शिवलिंग
उल्लेखनीय है कि अमरनाथ गुफा में प्रतिवर्ष प्राकृतिक रूप से हिमलिंग का निर्माण होता है जिसके दर्शन हेतु श्रद्धालुजनों की भीड़ उमड़ पड़ती है। बताया जाता है कि अमरनाथ गुफा के भीतर प्रतिवर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से प्राकृतिक हिमलिंग का निर्माण होना प्रारम्भ हो जाता है जो कि श्रावण पूर्णिमा के दिन अपना पूर्ण आकार ग्रहण कर लेता है। स्वयमेव निर्माण होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है। हिम से बना यह शिवलिंग वर्षपर्यन्त बने न रह कर कुछ माह में ही पिघल कर समाप्त हो जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग बिल्कुल ठोस होता है जबकि इसके आस-पास जमा हुआ बर्फ कच्चा होता है। यही कारण है कि अमरनाथ गुफा में आकर ईश्वर के प्रति आस्था प्रगाढ़ हो जाती है।
अमरनाथ धाम की कथा (Story of Amarnath Dham)
पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि एक बार देवी पार्वती के मन में अमर होने की कथा जानने की जिज्ञासा हुई तथा उन्होंने भगवान शंकर से इस कथा को सुनाने का अनुरोध किया। चूँकि अमर होने की कथा अत्यन्त गुप्त है और इस कथा को सामान्य प्राणियों को सुनाने का निषेध है, कथा सुनाने के लिए शिव ऐसे स्थान की खोज में लगे जहां कोई जीव-जन्तु न हो। इसके लिए उन्होंन श्रीनगर स्थित अमरनाथ की गुफा को उपयुक्त पाया। पार्वती जी को कथा सुनाने के लिए इस गुफा में लाते समय शिव जी ने एक स्थान पर माथे से चन्दन उतारा इसलिए उस स्थान का नाम चन्दनबाड़ी हो गया। शिव जी अनन्त नाग में नागों को एवं शेषनाग नामक स्थान पर शेषनाग को ठहरने के लिए आदेश देकर पार्वती सहित अमारनाथ की गुफा में प्रवेश कर गये।
गुफा के भीतर पहुँच कर भगवान शिव माता पार्वती को अमर होने की कथा सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को निद्रा देवी ने घेर लिया और वे सो गईं। शिव जी अमर होने की कथा सुनाते रहे, इस समय दो सफेद कबूतर शिव की कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे जिसे शिव जी माता पार्वती की हुँकार समझ रहे थै।. इस प्रकार से दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली।
वास्तविकता ज्ञात होने पर शिव जी कबूतरों पर क्रोधित हुए और उन्हें मारने के लिए तत्पर हुए। इस पर कबूतरों ने शिव जी कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगे। माना जाता है कि आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होता है।
अमरनाथ गुफा की भौगोलिक स्थिति
अमरनाथ धाम श्रीनगर से लगभग 135 किलोमीटर दूर है. यह स्थान समुद्र तल से 13, 600 फुट की ऊँचाई पर है। ध्यान रखें कि इस स्थान पर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
अमरनाथ यात्रा हेतु विशेष सावधानी
पंजीयन केवल अधिकृत स्थान अर्थात् जम्मू एण्ड कश्मीर बैंक की शाखा से करवाएँ। नेट में उपलब्ध साइट्स, जिनमें अनेक ठगी करने वाले भी हो सकते हैं, पर निर्भर न रहें।
अस्वस्थ तथा कमजोर व्यक्ति अमरनाथ यात्रा न करें।
यात्रा के दौरान केवल आवश्यक सामग्री ही साथ रखें, अनावश्यक सामान रखकर अपना बोझा न बढ़ाएँ।
गर्म कपड़ों की पर्याप्त व्यवस्था रखें।
सम्पूर्ण यात्रा के दौरान शालीनता का परिचय दें और जरूरतमन्दों की यथायोग्य सहायता करें