सीबीएसई क्षेत्रीय कार्यालय इलाहाबाद के सहायक सचिव रणवीर सिंह ने बताया कि 12 वीं का परिणाम 27 मई को 10 बजे घोषित किया जाएगा। रिजल्ट की घोषणा के लिए बोर्ड की ओर से पूरी तैयारी की गई है। परिणाम की घोषणा के लिए सीबीएसई नेशनल इनफारमेटिक्स सेंटर (एनआईसी), डिपार्टमेंट ऑफ इनफारमेशन टेक्नोलॉजी का सहयोग लिया जा रहा है। विद्यार्थी अपना रिजल्ट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट माईरिजल्टप्लस डॉट कॉम, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट अमर उजाला डॉट कॉम,डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट रिजल्ट डॉट एनआईसी डॉट इन, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट सीबीएसईरिजल्ट डॉट एनआईसी डॉट इन, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट सीबीएसई डॉट एनआईसी डॉट इन पर देख सकते हैं।
विद्यार्थी अपने मोबाइल पर एसएमएस भेजकर भी रिजल्ट की जानकारी कर सकेंगे, इसके लिए विद्यार्थी को अपने मोबाइल के मैसेज बाक्स में जाकर सीबीएसई12 और रोलनंबर टाइप करने के बाद सम्बन्धित मोबाइल कम्पनी के लिए तय कोड पर एसएमएस भेजा जाएगा। एमटीएस के उपभोक्ता 543216 , बीएसएनएल के उपभोक्ता 57766 , टाटा इंडीकॉम और डोकोमो के उपभोक्ता 54321, 51234, 5333300, एयरसेल के उपभोक्ता 5800001, एनआईसी के उपभोक्ता 9212357123, वोडाफोन के उपभोक्ता 50000 पर एसमएस करके परिणाम अपने मोबाइल पर देख सकेंगे।
अगर आपको कभी मेरी कोई बात समझ मेँ न आये तो
ReplyDelete.
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तो समझ लेना चाहिये कि बात बडे स्तर की हो रही है ।
संविधान पीठ के नान टेट मामले पर रिजर्व आदेश का इंतजार करते करते हम सब थक गए है । जीत के इतने करीब आने के बाद उसका इंतजार करना निश्चित रूप से कठिन होता है ।उस आदेश मे क्या आना है अप्रत्यक्ष रूप से हम सब जानते है । मगर आदेश का आना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि जब तक यह आदेश नही आ जाता हमारी जीत की घोषणा नही हो सकती । निराश हताश भयभीत या हारने का विकल्प हमारे पास नही है । हमारे पास एक मात्र विकल्प है अपनी निश्चित लेकिन अभी तक अघोषित जीत की घोषणा का इंतजार करना । कोर्ट पर दबाव बनाने का विकल्प जब सरकार के पास ही नही है तो हम सब किस खेत की मूली है । निराशा के वशीभूत होकर हमारे कुछ साथी कोर्ट के घेराव की योजना बनाने की बात कर रहे है । मेरे खयाल से कोर्ट के प्रति इस प्रकार की धारणा बनाना हमे शोभा नही देता । कोर्ट और कचहरी के कामो मे देर लगना स्वाभाविक है यह व्यवस्था की खामि है इसे हम चाहकर भी दूर नही कर सकते । स्टे से पहले के दिन याद कीजिए और चैन की साँस लीजिए । अधीर होने से कुछ भी हासिल अगर होता तो इस लाइन मे मै सभी सदस्यो के साथ सबसे आगे खड़ा होता । कोर्ट पर दबाव का विकल्प किसी के पास नही होता । रही बात सरकार पर आंदोलन के माध्यम से दबाव बनाने की तो इस मामले मे सरकार का एक ही जवाब होगा कि मामला कोर्ट मे है और हम कुछ नही कह सकते । कुछ साथियो को पता नही क्यो सरकार सर्वशक्तिमान लगने लगती है । जबकि सब जानते है कि इसमे सरकार का कोई हस्तक्षेप नही है । आदेश आने मे देरी का एक मात्रकारण माननीय जजो की व्यस्तता है । सरकार को अकेडमिक वालों की नजरो से देखकर अपना BP बढ़ाने के अलावा कुछ हासिल नही होगा । थोड़ा बहुत अधीर तो हम सब है मगर न तो निराश है और न भयभीत । निराश और भयभीत होने का काम अकेडमिकवालों के लिए छोड़ दीजिए ।आप तब तक जून की छुट्टी मे टंडन जी के आयु सीमा पुराने आवेदन को नए विज्ञापन की शर्तो को स्वीकार किए बिना उसमे शामिल करने वाले आदेश हरकौली जी और लखनऊ बेँच का स्टे आदेश का अध्ययन कीजिए
ReplyDeleteआंदोलन की बात करने वाले हमारे अपने भाई बंधु ध्यान दे जहाँ तक मुझे पता है आंदोलन के आधार पर किसी नए मामले को कोर्ट संज्ञान मे ले सकता है लेकिन अपने यहाँ पहले से विचाराधीन मामलों पर आंदोलन करने से यह माना जाएगा कि लोग कानून को हाथ मे ले रहे है और उन्हे भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा या विश्वास नही है जो कि अपराध की श्रेणी मे आता है । कोर्ट के पास 60 दिन तक किसी भी आदेश को सुरक्षित रखने का कानूनन अधिकार है । उससे पहले हमारा कोई कदम हमारे लिए केवल घातक ही हो सकता है ।
ReplyDeleteपूर्व मे जब प्राथमिक शिक्षको की नियुक्तिया होती रही है तब विज्ञान वर्ग और कला वर्ग के पद 50_50 प्रतिशत होते थे तो आखिर गणित और विज्ञान के शिक्षको की कमी ही कैसे हो गयी , जबकि जूनियर मे प्रमोशन करते समय विज्ञान और गणित के शिक्षको को प्राथमिकता दी जाती रही है, आज अगर जूनियर मे शिक्षको की कमी है तो विज्ञान और कला दोनो वर्गो के अध्यापको की कमी है,फिर भी सरकार एक पक्ष के साथ भेदभाव क्यो कर रही है,केवल हमारी यूनिटी को खंडित करने के लिए, सरकार पूर्व मे भी एकेडमिक और टेट मेरिट का कार्ड खेलकर हमारी एकता को तार तार कर चुकी है,यह आप निश्चित मानिये कि ये जूनियर की भर्तिया सरकार खुद कभी पूरी नही होने देगी ,कही न कही जानबूझकर फँसा देगी, इसलिये आपलोगो से निवेदन है कि सब लोग 72825 पर ध्यान दे।
ReplyDeleteभाई मै कोर्ट का पक्ष नही ले रहा पर 60 दिन तक किसी भी आदेश को रिजर्व रखने का अधिकार कोर्ट के पास है उससे पहले तो किसी को इस संबंध मे विधिक रूप से कुछ भी कहने का अधिकार नही है । आंदोलन की बात करना अपने आप मे अज्ञानता की निशानी है
ReplyDeleteजहाँ तक मुझे पता है नए मामले पर कोर्ट संज्ञान ले लेता है लेकिन अपने यहाँ पहले से विचाराधीन मामलों पर आंदोलन करने से यह माना जाता है कि लोग कानून को हाथ मे ले रहे है और उन्हे भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा या विश्वास नही है जो कि अपराध की श्रेणी मे आता है ।
ReplyDeleteकोर्ट पर दबाव का विकल्प किसी के पास नही होता ।रही बात सरकार पर दबाव की तो उसका एक ही जवाब है मामला कोर्ट मे है और हम कुछ नही कह सकते । हमारे पास एक ही विकल्प है अपनी अघोषित जीत की घोषणा का इंतजार करना
ReplyDeleteSanta --- mere pass gaddi h, bangala h, naukar h........................... Tere pass kya h?
ReplyDeleteBanta :------- mere pass UPTET11 ka Certificate h...........
Santa --- mere pass gaddi h, bangala h, naukar h........................... Tere pass kya h?
ReplyDeleteBanta :------- mere pass TET ka Certificate h...........
कुछ अनकहे नियम-
ReplyDelete1.लाइन का नियम-जिस लाइन को आप छोड़ देते हैं
वो आपकी अभी वाली लाइन से तेज़ चलती है.
2.यांत्रिकी का नियम-जब आपके हाथों में ग्रीस
इत्यादि लगा होता है तभी नाक में खुजली होती है.
3.सिक्के का नियम-जब भी कोई सिक्का गिरता है तो वो सबसे
कोने वाली असंभव जगह में जाता है.
4.टकराने का नियम-किसी जान-पहचान के आदमी के मिलने
की संभावना तब अधिक रहती है जब आप किसी ऐसे शख्स के
साथ होते हैं जिसके साथ आपको नहीं होना चाहिए.
5.टेलीफोन का नियम-जब भी रॉंग नंबर लगाइए
वो कभी बिजी नहीं जाता है.
6.एग्जाम का नियम-एग्जाम के वक़्त दीवार भी खुबसूरत और
इंटरेस्टिंग लगने लगती ह !!
Garmi se bachne ka aasan tarika
ReplyDelete.
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Agar pata lag jaye to muje b batana
kasam se aaj bahot garmi lag rahi hai
संविधान पीठ का आदेश कल भी नहीं आया,,,अभी उसे
ReplyDeleteआना भी नहीं था,,,आखिर संविधान पीठ की जरूरत
ही क्यों पड़ी थी? न्यायमूर्ति भूषण के VBTC
की भर्ती में नॉन टेट वालों को Allow करने वाले
आदेश को उस हिस्से को शून्य करने के लिए ही ना ?
जब उसे अंततः शून्य ही हो जाना था तो आखिरकार
वो आया ही क्यों था?जल्द से जल्द भर्ती होने
की धुन में मस्त आप लोगों के मन में ये सवाल भले
ही ना आता रहा हो लेकिन मेरा दिमाग तो दो दिन
पहले तक उसी सवाल पर अटका हुआ था,,,क्योंकि एक
बात तो पक्की है कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च
न्यायालय में जो कुछ भी हुआ है बिना किसी ठोस
वजह के नहीं हुआ है ,,फिर यह तो दो-तीन महीने
आरक्षित रहने के बाद न्यामूर्ति भूषण जैसे सुलझे हुए
जज द्वारा डबल बेंच में बैठकर बहुत शांत दिमाग
से,बहुत सोचसमझकर ठीक उसी दिन दिया हुआ
फैसला था जिस दिन पूर्व विज्ञापन को रद्द किये
जाने को चुनौती देने वाली हमारी याचिकाएं खारिज
हुयी थीं और आयु-सीमा पर दिए आदेश में पूर्व
विज्ञापन की शर्तों को नए विज्ञापन पर
लादा गया था,,,,, मुझे ऐसा लगता है कि अब मैंने इस
गुत्थी को सुलझा लिया है,,,, जजों के दिमाग तक
पहुँचने में कुछ समय तो लगता ही है,,,, मेरे ख्याल से
ग्रीष्म कालीन अवकाश के लिए कोर्ट बंद होने से ठीक
पहले संविधान पीठ का फैसला आ जाना चाहिए,,,,लेकिन
अगर ऐसा ना हुआ तो भी ना तो आश्चर्य
कीजियेगा और ना ही घबराइएगा,,,
आम तौर से मैं हर बात
ReplyDeleteसाफ़-साफ़ लिखता रहा हूँ,,लेकिन इस बार टेट मेरिट के
हितों को मद्देनजर रखते हुए संविधान पीठ के आदेश
में हुयी देरी के सम्बन्ध में मुझे मौन रहना पड़
रहा है,,,,सही वक्त आने पर इसकी वजह
भी बता दूंगा ,,फिलहाल बस इतना समझ लें
कि जो कुछ भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अब
अटक हुआ है ,,और जो आज-कल हो रहा है वो सब
शुद्ध टेट मेरिट के हितों को सुरक्षित रखने के लिए
ही हो रहा है,,,, बस विश्वास रखिये कि जून में कुछ
ऐसा होगा जिसकी आपने कल्पना तक
ना की हो,,,बशर्ते कि ऊपर वाला हमारे धैर्य की और
परीक्षा लेने के मूड में ना हो,,,,,
हमारे जिन साथियों ने इससे पूर्व संविधान पीठ
ReplyDeleteका फैसला आने की सूचना दी थी उन्हें फैसला ना आने के लिए दोष मत दीजियेगा,,,फैसला लाना उनके
हाथ में नहीं था,,, उन्हें अपने सूत्रों से खबर
मिली और अच्छी खबर होने की वजह से उत्साह में
आकर आपके साथ उन्होंने वो खबर शेयर कर
ली,,,मेरी नजर में तो ऐसा करना कोई अपराध है
नहीं,,,अच्छी ख़बरें अगर गलत भी निकल जाती हैं
तो इसका कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पडता है!
उन ख़बरों से मिलने वाली खुशी से प्राप्त आनंद
सच्चा ही होता है,, अपने इलाहाबाद के
साथियों से कहना चाहूंगा कि इस तथ्य को ध्यान में
रखते हुए पूर्व में दी सूचनाओं के सही ना निकलने से
हतोत्साहित होकर अच्छी ख़बरों की पुष्टि में
अनावश्यक वक्त बर्बाद करने की कोई जरूरत
नहीं है,,,,,इतनी भीषण गरमी में
ठंडी हवा का हल्का सा झोंका भी अपना फर्ज
तो निभा ही जाता है,,ठीक उसी तरह जिस तरह
शुक्रवार को संविधान पीठ का फैसला आने की खबर ने
कुछ समय के लिए ही सही, फैसले में हुयी देरी से
उत्पन्न तनाव को भुलाने में सहयोग किया था,,,,,,
आपका पता नहीं,,मैं तो उस खबर के लिए इलाहाबाद
के अपने सभी साथियों का तहेदिल से शुक्रगुजार
हूँ,,,,,,,मुझे उस खबर के गलत निकलने से तो कोई
कष्ट हुआ नहीं था,,,लेकिन खबर आने पर
खुशी अवश्य हुयी थी,,,बावजूद इसके कि मैं
जानता था कि फैसला शुक्रवार को नहीं आने
वाला ,,,,,,जाहिर है मैं इस मामले में फायदे में ही रहा,,,
आप भी नुकसान में नहीं रहे होंगे,,
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.जरा ठीक से सोचकर देखिये तो,,,,,,,,
अपने लक्ष्य पर आखें जमाये रखना बहुत अच्छी बात है, पर यही सारी बात नहीं है। लक्ष्य पर आँखे जमाये रखना अच्छा है, पर परिस्थितियों का आंकलन और तदनुसार कार्य भी अपरिहार्य होते हैं। धुन के साथ खुली आँखें हों तो वह धुन है, जो आपको विजय दिलाती है, पर आँखें बंद करके कोई धुन पर लगा रहे तो वह घुन बन जाती है जो कब अन्दर ही अन्दर खा जाती है, आभास भी नहीं होता
ReplyDeleteमैं नहीं जानता कि नॉन-टेट वाले मामले 12908/2013 में बृहद पीठ का निर्णय कब आयेगा। मैं नहीं जानता कि एक हफ्ते में अपेक्षित निर्णय एक महीने में भी क्यूँ नहीं आया। न ही कोई कयास लगाना ठीक समझता हूँ। खंडपीठ से हमारे मामले यानि 150/2013 और कनेक्टेड अपीलों पर क्या निर्णय आनेवाला है, इसकी बानगी 4 फ़रवरी से लेकर इस मामले की हर सुनवाई के दौरान मिलती रही है, अतः वह भी चिंता का विषय नहीं है। आनेवाला ग्रीष्मावकाश, जस्टिस हरकौली की सेवानिवृत्ति की तिथि, नियमित रूप से उच्च न्यायालय की पीठों में होने वाला परिवर्तन, ये सब कहीं न कहीं एक निश्चित लग रही जीत की प्रतीक्षा में व्यग्रता का अंश जोड़ रहे हैं। पर यह भी साफ़ है कि खंडपीठ द्वारा दिए गए 4 फ़रवरी और उसके बाद के आदेश अब कानूनी मजबूती और और तार्किक आधार वाले पुष्ट न्यायिक अभिलेख बन चुके हैं, जिनके नतीजे विलंबित हो सकते हैं, पर निलंबित नहीं। किसी भी पक्ष का समर्थन करने वाले इस सत्य से भली-भांति अवगत हैं।
ReplyDeleteलखनऊ वाले मामले के शुरूआती दौर में ही सरकारी वकील ने इसे इलाहाबाद बेंच में विचाराधीन मामले के सामान बताते हुए न्यायालय से इस मामले को भी जस्टिस टंडन की अदालत में चल रही याचिकाओं में जोड़ दिए जाने की दलील दी थी पर याची के वकील ने पुराने विज्ञापन के अनुसार होने वाली भर्ती की खूबियाँ और नए विज्ञापन के अनुसार होनेवाली भर्तियों में तमाम खामियाँ दिखाते हुए, इस मामले के स्वरुप को उस मामले से अलग बताया था, परिणामस्वरूप इसकी सुनवाई लखनऊ में होती रही। इस याचिका की सुनवाई के दौरान आज नए विज्ञापन पर जिस आधार पर स्थगनादेश जारी हुआ है, बिना उन मुद्दों पर न्यायालय को संतुष्ट किये प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। खंडपीठ द्वारा जिन आधारों पर स्थगनादेश दिया गया था, उनपर सरकार के स्पष्टीकरण से खंडपीठ आज तक संतुष्ट नहीं, नतीजतन स्थगनादेश आज भी लागू है. सिंगल बेंच के पास स्थगनादेश के लिए अपने कारण हैं, खंडपीठ के पास स्थगनादेश देने लिए अपने कारण हैं, सरकार जिस पीठ की आपत्तियां संतोषजनक रूप से दूर कर देगी, वह पीठ अपने स्थगनादेश को वापस ले लेगी, पर अन्य पीठ द्वारा दिए गए स्थगनादेश को नहीं। हाँ, यदि स्थगनादेश पाने वाले याचिकाकर्ता खंडपीठ में कैवियेट दाखिल कर दें तो सरकार द्वारा गुपचुप तरीके से एकल पीठ द्वारा जारी स्थगनादेश को विशेष अपील के जरिये खंडपीठ से ख़ारिज कराये जाने की संभावना पर भी विराम लग जाएगा।
ReplyDeleteचिंता का मुख्य विषय निर्णय में आनेवाली देरी, दिन पर दिन अभ्यर्थियों में बढ़ती अधीरता, सरकार द्वारा नित नए बेतुके निर्णय, उनपर पैदा होते विवाद, नतीज़तन हर मामले में ठहराव और अंततः इन सबके प्रति सरकार की बेपरवाही है।
ReplyDeleteइस सबका नतीज़ा कुछ साथियों और उनके परिजनों पर हमारी सोच से भी कहीं ज्यादा पड़ा है, समाजवाद का मुलम्मा चढ़े सामंतवाद के पैरोकारों को न योग्य अभ्यर्थियों की चिंता है न प्रदेश में शिक्षा के स्तर की। ऐसे लोगों को न सिर्फ नकारना होगा, बल्कि इन्हें नाकारा भी सिद्ध करना होगा ताकि आज इन्हें आप नकारें, कल इन्हें बहुमत नकार दे। और जिसने इनके कारण खून के आंसू बहाए हों, यह काम भला उनसे बेहतर और कौन कर पायेगा? गलत न समझें, यहाँ मगरमच्छी टसुवे बहाने वालों की बात नहीं हो रही है।
ऐसे में सरकार के जबड़े में फँसी 72825 की भर्ती को छुड़वाने का एक तरीका है कि इसकी वैकल्पिक व्यवस्था वाली पूँछ पर पाँव रख दिया जाये, ऐसे में इसका मुँह खुलेगा और भर्ती मुक्त होगी। प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की ओर से ये तबतक निगाहें फेरे रहेगी, जब तक इनके पास शिक्षामित्र-रुपी बैक-अप प्लान, अनुदेशक-प्रेरक जुगाड़ रहेंगे। जैसे ही इसे आभास होगा कि जिस तुक्के को यह तीर बताते-मानते हुए आराम से बैठी है, उसकी असलियत खुलने वाली है, उसका तथाकथित बैक-अप प्लान हवा होने वाला है, तब इसे प्राथमिक विद्यालयों में योग्य-नियमित शिक्षकों की कमी पूरी करने में ही भलाई नज़र आएगी। और यदि समय रहते ऐसा हो पाया तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार मानक छात्र-शिक्षक अनुपात के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए न्यायालय 31 मार्च 2014 के पूर्व सरकार को बी०एड० धारकों के लिए एक और बम्पर भर्ती का दरवाजा खोलने को विवश कर दे।
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