Last date 18.04.2013
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हिन्दू ऋषि -मनीषियों द्वारा काल की गणना कितने सूक्षम स्तर पर की है आईये जाने अपने गौराव्पुरण इतिहास की अनमोल धरोहर को -
ReplyDeleteसमय की छोटी इकाईयों में -
1 पूर्ण दिन (दिन व रात्री) = 60 घटी = 24 होरा
1 घटी = 60 पल = 24 मिनिट
1 पल = 60 विपल = 24 सेकेंड
1 विपल = 60 वलिप्त
1 वलिप्त = 60 पर
1 पर = 60 तत्पर
समय की दैनिक इकाईयां-
7 दिन = 1 सप्ताह
15 दिन = 1 पक्ष /कृष्णपक्ष /शुक्लपक्ष
2 पक्ष = 1 माह
2 माह = 1 ऋतु
6 ऋतु = 1 वर्ष
2 आयन = 1 वर्ष /
100 वर्ष = 1 शताब्दी
समय की बडी इकाईयों में -
सतयुग = 17,28,000 वर्ष , त्रेतायुग= 12,96,000 वर्ष
द्वापरयुग= 8,64,000 वर्ष, कलयुग= 4,32,000 वर्ष
इन चारों युगों के जोड को महायुग कहा जाता है।
महायुग =43,20,000वर्ष, 71 महायुग = 1 मनवंतर
14 मनवंतर व संधिकाल = 1000
1000महायुग = 1 कल्प
1000 महायुग = 1 कल्प = 432 करोड वर्ष
1 ब्रह्मदिवस = 2 कल्प (1 कल्पदिन व 1 कल्परात)
= 864 करोड वर्ष
360 बह्म दिवसों (720 कल्प) का एक ब्रह्म वर्ष
1000 ब्रह्म वर्षों, ब्रम्हा की आयु मानी जाती है।
कुल मिलाकर ब्रह्माण्ड और उसमें व्याप्त उर्जा अनंत है, न तो उसका प्रारम्भ ज्ञात हो सकता न अंत हो सकता। यह सतत व निरंतर है, मगर वर्तमान ब्रह्माण्ड संदर्भ में जो पूर्वजों द्वारा खोजी गई आयु और अंत की वैज्ञानिक खोज है, उसी का नाम संवत्सर की कालगणना है।
सर्व प्रथम नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं आज से नवरात्रि का शुभारम्भ हो रहा है, अत: माँ दुर्गा अपने हर रुप मेँ आकर हमेँ सर्वथा आह्लादित रहने के लिये आशिर्वाद प्रदान करेँ ।
ReplyDeleteअब जैसा कि पिछले डेढ़ वर्ष से हम तनाव मेँ रहते हुये अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैँ, किँतु इस तनाव भरे जीवन का परित्याग करके हमे सकारात्मक सोच के साथ अग्रसर होना चाहिये ।
जीवन जीने के लिये अन्य विकल्प भी रखना चाहिये अन्यथा हमारा अवसाद हीँ हमेँ पीछे धकेलता जाएगा, परिणामत: जीवन सिर्फ मजबूरी वश जीने के लिये रह जाएगा ।
आशा है आप हमारी भावनाओँ को समझते हुये अग्रसर होते रहने के लिये सर्वदा प्रयासरत रहेँगे।
हिन्दू नव वर्ष के वैज्ञानिक तथ्य:
ReplyDelete१ चैत्र माह मतलब हिन्दू नव वर्ष के शुरू होते ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते है..
२ पेड़ों पर नवीन पत्तियों और कोपलों का आगमन होता है..पतझड़ ख़तम होता है और बसंत की शुरुवात होती है..
३ प्रकृति में हर जगह हरियाली छाई होती है प्रकृति का नवश्रृंगार होता है..
४ धर्म को मानने वाले लोग पूजा पाठ करते है मंदिर जातें है नदी स्नान करतें है..
५ भास्कराचार्य ने इसी दिन को आधार रखते हुए गड़ना कर पंचांग की रचना की.
५ हमारे हिन्दुस्थान में सभी वित्तीय संस्थानों का नव वर्ष अप्रैल से प्रारम्भ होता है .
आप ही सोचे क्या जनवरी के माह में ये नवीनता होती है नहीं तो फिर नव वर्ष कैसा..शायद किसी और देश में जनवरी में बसंत आता हो तो वो जनवरी में नव वर्ष हम क्यूँ मनाये???
जब आपको इलाहाबाद उच्च न्यायालय से हमारी जीत की खबर मिलेगी तो सबसे पहले आप क्या करेंगे ??? उस दिन का शेष वक्त आप किस तरह बिताना चाहेंगे ,,,,,,उसके बाद के एक हफ्ते का क्या प्रोग्राम रहेगा ?क्या हम फेसबुक की दुनिया से बाहर निकलकर कभी एक दूसरे से रूबरू होना चाहेंगे ?क्या आप चाहेंगे कि जो इतिहास हम रचने जा रहे हैं उसे वक्त की धूल में खो जाने से बचाने के लिए लिपिबद्द किया जाए ?
ReplyDeleteशिक्षा की बुरी स्थिति !!!
ReplyDeleteमुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार लागू
हुए तीन साल बीत गए हैं, किंतु अभी तक
शिक्षा न तो मुफ्त हो पाई है और न
ही अनिवार्य। हम कितने ही बच्चों को देख
सकते हैं जो दुकानों पर काम करते हैं, रेलवे के
डिब्बों में झाड़ू लगाने अथवा करतब दिखाने आते
हैं, घरों में काम करते हैं या फिर उन
कारखानों में काम करते हैं जहां काफी खतरा है।
कानूनन बाल श्रम प्रतिबंधित है, पर इन
दोनों कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई
जा रही हैं। कारण साफ है कि इससे शासक वर्ग
सीधे प्रभावित नहीं होता। भारत ने सभी जी-8
देशों की तरह समान
शिक्षा प्रणाली नहीं अपनाई है, जिसकी वजह
से हमारे यहां दो किस्म की शिक्षा व्यवस्थाएं
हैं-एक पैसे वालों के बच्चों के लिए
निजी विद्यालयों की तथा दूसरी गरीब
लोगों के लिए सरकारी विद्यालयों की। भारत
में कक्षा आठ तक पहुंचते-पहुंचते आधे बच्चे
विद्यालय से बाहर हो जाते हैं। सिर्फ 10
प्रतिशत बच्चे ही विद्यालय की दहलीज पार
कर महाविद्यालय में प्रवेश पाते हैं। अभी तक
हम सभी बच्चों के लिए एक
अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध
नहीं करा पाए हैं। साक्षरता दर बढ़ाने के लिए
सरकार ने विद्यालय स्तर पर
बच्चों को अनुत्तीर्ण न करने की नीति अपनाई
हुई है। उत्तर प्रदेश में बोर्ड परीक्षा में
अक्सर यह सुनने को मिलता है कि प्रश्नों के
उत्तर सार्वजनिक रूप से बोल-बोल कर लिखाए
जा रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ
कि परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले हमारे ज्यादातर
बच्चे काबिल ही नहीं होंगे।
यह बहुत शर्म की बात है कि हाई स्कूल
या इंटरमीडिएट किए हुए बच्चे हिंदी का एक
वाक्य भी ठीक से नहीं लिख सकते। इन्हें कोई
नौकरी पर रखना ही नहीं चाहता। अत:
बेरोजगारों, जिनके लिए अखिलेश यादव
की सरकार प्रति माह एक हजार रुपये
बेरोजगारी भत्ता देने की योजना चला रही है,
को नौकरी न मिल पाने के पीछे एक बड़ा कारण
यह है कि वे किसी लायक ही नहीं। यहां ध्यान
देने योग्य बात है कि उत्तर प्रदेश सरकार
की बेरोजगारी भत्ते की योजना सिर्फ पढ़े-लिखे
बेरोजगारों के लिए ही है। अनपढ़ के लिए
तो महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार
गारंटी योजना है। इस योजना में
भी बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान है, किंतु
अनुभव से पता चलता है कि यह
बेरोजगारी भत्ता प्राप्त करना बड़ा मुश्किल
है। नकल करने-कराने
वालों का बड़ा दबदबा है। कोई इनका विरोध
नहीं कर सकता।
जब एक छात्र आदित्य अस्थाना ने हरदोई जिले
के विकास खंड कछौना में स्थित एमएएन इंटर
कॉलेज के प्रबंधक को छह हजार रुपये देने से
मना कर दिया तो उसकी पिटाई हो गई।
जिला विद्यालय निरीक्षक, जिलाधिकारी,
सचिव, बेसिक शिक्षा से शिकायत का अभी तक
कोई परिणाम नहीं निकला है। जब कछौना के
ही पत्रकार ने अपने मोबाइल से हरदोई में
जिला विद्यालय निरीक्षक के नियंत्रण कक्ष
को नकल के विषय में शिकायत की तो कुछ देर
में उनके मोबाइल पर निजी कॉलेजों के
प्रबंधकों के फोन आने लगे, जिससे यह स्पष्ट
है कि नकल कराने में निजी विद्यालयों के
प्रबंधकों तथा शिक्षा विभाग के
कर्मचारियों की साठगांठ रहती है। इसी तरह
जब एक उड़नदस्ते ने फैजाबाद विश्वविद्यालय
से संबद्ध एक कॉलेज में नकल पर रोक लगाई
तो प्रबंधकों ने उच्च अधिकारियों से शिकायत
की और नकल करने-कराने वालों के बजाए
उड़नदस्ते के खिलाफ ही कार्रवाई हो गई।
नियम तो यह है कि जिस विषय
की परीक्षा हो रही है उस विषय का अध्यापक
परीक्षा सदन में नहीं रहना चहिए, लेकिन
शिक्षक अपनी ड्यूटी लगवा लेते हैं। इसके
अलावा यदि कोई छात्र पढ़ाई में अच्छा है
तो यह उसके लिए अभिशाप बन सकता है।
हो सकता है कि उसी से जबरदस्ती नकल कराने
को कहा जाए। नकल की सामग्री बड़ी सफाई
से विद्यालय परिसर के अंदर निर्माण
सामग्री जैसे बालू के ढेर में छुपा कर
रखी जाती है। निजी कोचिंग चलाने वाले
कॉलेजों में दाखिला दिलवाने से लेकर
परीक्षा पास करवा अंक पत्र दिलवाने तक
का ठेका लेते हैं। हरेक चीज की एक कीमत
होती है। जौनपुर जिले में यदि कोई
किसी निजी विद्यालय में बिना कक्षा में
उपस्थित हुए हाईस्कूल या इंटर
की परीक्षा पास करना चाहता है तो उसे पांच
हजार रुपये देने होंगे। यदि कोई
बिना परीक्षा दिए प्रथम श्रेणी से पास
होना चाहता है तो उसे 25 हजार रुपये देने
होंगे। इतने रुपयों में परीक्षार्थी की जगह
किसी अन्य व्यक्ति को बिठा कर
परीक्षा दिलवाने की व्यवस्था की जाती है।
सरकार द्वारा संचालित
विद्यालयों तथा वित्तपोषित
ReplyDeleteनिजी विद्यालयों की स्थिति वित्तविहीन
निजी विद्यालयों से थोड़ी बेहतर होती है।
परीक्षा के लिए ऐसे केंद्रों पर
परीक्षार्थियों की संख्या कम होती है
जहां नकल की गुंजाइश कम रहती है। जो केंद्र
नकल के लिए बदनाम हैं वहां पर अन्य
जिलों और यहां तक कि नेपाल से लोग आकर
परीक्षा देते हैं। अब तो कई निजी विद्यालय
खोले ही इसलिए जा रहे हैं, क्योंकि परीक्षा के
दौरान मोटी कमाई हो जाती है।
चूंकि सरकारी विद्यालय या वित्तपोषित
निजी विद्यालय भी पीछे नहीं रहना चाहते अत:
वे भी अपने यहां छात्रों को आकर्षित करने के
लिए नकल कराने का वायदा करते हैं और उसके
बदले में कुछ सुविधा शुल्क भी लेते हैं।
अन्यथा उनके यहां कोई पढ़ने ही नहीं आएगा।
बलिया के एक शिक्षक ने चुभने वाली बात
कही कि अभी शिक्षक इतने तो काबिल हैं
कि नकल कराने के लिए किस प्रश्न का उत्तर
पुस्तक में कहां मिलेगा खोज कर निकाल सकते
हैं, किंतु
शिक्षकों की जो अगली पीढ़ी आएगी वह नकल
कराने के काबिल भी नहीं होगी, क्योंकि उसने
तो कभी पुस्तक पढ़ी ही नहीं होगी।
आप व आप के परिवार को नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् 2070, युगाब्द 5115,शक संवत् 1935 तदनुसार 11 अप्रैल 2013 , धरती मां की 1955885114 वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ, भगवान राम का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर संवत की शुरुवात, विक्रमादित्य का दिग्विजय, वासंतिक नवरात्र प्रारंभ, शिवाजी की राज्य स्थापना, डॉ. केशव हेडगेवार का जन्मदिन की मंगल सैणचा परिवार की और से ढेर सारी शुभकामनायें... ईश्वर हम सबको ऐसी इच्छा शक्ति प्रदान करे जिससे हम अखंड भारतमाता को जगदम्बा का स्वरुप भारतमाता को जगदम्बा का स्वरुप प्रदान कर उसके जन, जल, जमीन, जंगल, जानवर के साथ एकात्म भाव स्थापित कर सके तथा धरती मां पर छाये वैश्विक ताप रुपी दानव को परास्त कर दे.....और विश्व का मंगलमय कल्याण हो...
ReplyDeleteShalabh Tiwari
ReplyDeleteक्या आप जानते हैं कि ईश्वर कभी-कभी हमें इतना ज्यादा दुःख क्यों देता है जितना टेट मामले में दिया है,,,दुःख से उबरने की कला सिखाने के लिए ,,,,और जब हम उससे उबर जाते हैं तो जो शेष रह जाता है वो सुख है,,एक विशेष प्रकार का सुख जिसे आप अध्यात्मिक आनंद कह सकते हैं,,,,दो साल पहले मैं अमरनाथ गया था,,,, गुफा में प्रविष्ट होने पर जो एहसास हुआ उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता,,,बावजूद इसके कि मूर्ति पूजा में मेरी आस्था ना के बराबर है,,,,,क्या वही एहसास हेलीकाप्टर से वहां जाने वालों को भी होता होगा,,शायद नहीं,,, इसी प्रकार एक साल से अधिक के तनाव-दबाव-संघर्ष के बाद प्राथमिक शिक्षक बनने पर जो खुशी आपको हासिल होगी उसकी तुलना उस खुशी से नहीं की जा सकती जो 1 जनवरी 2012 को नियुक्ति पत्र मिलने पर होती,,,,,,,,ज्ञान तो दुःख के क्षणों में ही हासिल होता है वरना बुद्द और जैन को राजगद्दी छोड़ने की क्या जरूरत थी ,,, जीतने के बाद आराम से सोचना कि इन डेढ़ सालों में क्या खोया और क्या पाया ,,,फायदा ही फायदा नजर आएगा ,,,, टेट मामले से जुड़े सक्रिय लोगों की जिंदगी में सैकड़ों नए मित्र आये हैं,,कुछ से मुलाक़ात हो चुकी है,,,बाक़ी सब से से भविष्य में होने का यकीन है ,,,,टेट संघर्ष मोर्चा ना होता तो ये कहाँ से मिलते ,,कुछ लोगों से तो इतने प्रगाण समबन्ध हो गये हैं जैसे बचपन से एक दूसरे के साथी रहे हों,,जबकि उनमें से कई से तो अभी मिलना भी नहीं हुआ है ,,,उनकी अमूल्य दोस्ती की तुलना में दो-चार लाख तनख्वाह बहुत कम प्रतीत होती है,,,,,जो हुआ अच्छा ही हुआ,,जो होगा वो भी अच्छा ही होगा ,,,, गम किसी और को हो तो हो,,लेकिन मैं अपने आपको इस संघर्ष का हिस्सा बनाने के लिए ईश्वर का आभारी महसूस करता हूँ ,,,,,,,कुछ लोगों के प्रति अभी तक मेरे मन में शत्रु भाव अवश्य था लेकिन अब दृष्टि सम्यक हो गयी है,,,दूसरों के नजरिये को समझना सीख लिया है मैंने,,,अब तो अखिलेश यादव और कपिल यादव के लिए भी मन में कोई दुर्भावना नहीं रही,,,इस बीच मेरे रवैये की वजह से बहुत से लोगों को काफी कष्ट पहुंचा है इसका मुझे खेद है,,,, लेकिन मैं क्या करता,,मैं वो देख रहा था जो दूसरे नहीं देख पा रहे थे,,,मुझे गलत बातों का मूक समर्थन करने की आदत नहीं रही कभी,जब तक ऐसा करना व्यापक हित में ना हो ,,,,
उम्मीद है आप सभी साथी जीत के क़दमों की आहट महसूस कर रहे होंगे ,,,,,,, 22 मई कोग्रीश्कालीन अवकाश के लिए कोर्ट बंद हो रहा है,,,, इसे ही हमारी जीत की अंतिम तिथि समझिए ,, हो सकता है इससे काफी पहले हो जाए,,समय का क्या भरोसा,,कब बदल जाए,,बिना किसी पूर्व सूचना के,,,ईश्वर ने चाहा तो जुलाई में ज्वाइनिंग शरू हो जायेगी,,,,,,
हर प्रदेश में एक ऐसा स्कूल होना चाहिए जहां सेना,अर्द्ध सैनिक बलों के साथ-साथ पुलिस की ड्यूटी करते हुए शहीद हुए लोगों के बच्चों को केद्रीय विद्यालयों की तर्जपर उच्च स्तरीय मुफ्त आवासीय शिक्षा का प्रबंध हो,,,,,,,
ReplyDeleteजब भगवान् हमारी प्रार्थना को सुन लेता है तो वो हमारे विश्वास को बढाता है
ReplyDeleteअगर थोड़ी देर करता है तो हमारे धैर्य को बढाता है
और अगर वो हमारी प्रार्थना का कोई जबाब नहीं देता है तो इसका मतलब है की
उसके पास हमारे लिए कोई बहुत अच्छी चीज़ है
इसलिए चिंता न करे
धोखा ! धोखा !! धोखा !!! ........ या फिर लोलीपॉप ???
ReplyDeleteइस लड़के ने फिर साबित किया है कि ये वही है, जो हम इसे समझते है.
1. कोर्ट में इसकी सरकार UPTET-2011 को धांधली के आरोपों को साबित करने में मरी जा रही है, न कर पाने पर लताड़ी जा रही है, और यह यहाँ घोषित कर रहा है कि UPTET-2011 उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को यह नए तरीके की TET उत्तीर्ण करने की जरुरत नहीं।
2. NCTE ने अपने 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना में स्पष्ट किया कि अध्यापक बनने के लिए आवश्यक TET केवल NCTE द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार होगी, यह अपने दिशा-निर्देश जारी कर रहा है।
3. NCTE ने 11 फ़रवरी 2011 को जारी दिशा-निर्देशों में TET के लिए आवश्यक ढांचा और विषय-वस्तु का ब्यौरा देते हुए दोहराया की परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्था को इन सबका सख्त अनुपालन करना होगा, और यह ढांचा ही ढहा देने पर आमादा है।
यह शायद एक ऐसी परीक्षा कराने वाला है, जिसका प्रमाणपत्र सिर्फ "धारक के ठगे जाने का प्रमाणपत्र" होगा।
ये अविवेकशील मूर्ख मुख्यमंत्री अच्छी तरह जानता है कि ये टेट के स्वरूप और उसकी विषय वस्तु मे बदलाव का अधिकार नहीं रखता है लेकिन फिर भी निम्नतम दर्जे के राजनीतिज्ञ अपने पिता श्री के छदम सेकुलरवाद के झंडे को बुलंद करने के लिए अनपढ़ों वाली हरकतें कर रहा है,,,,,,,,, सरकार बनने से लेकर अब तक कई बार मुँह की खाकर थूंक के चाटना इस सरकार की पहिचान बन गई है,,,,,इस मुद्दे पर भी यही होगा बस फर्क इतना होगा कि अबकी बार कोर्ट मजबूर करेगा|
ReplyDeleteYe bachcha(c.m) abhi ye bhi nahi janta ki ek hi parikha ko kisi jati ya dharm vishesh ke liye karane ko hamara samvidhan anumati nahi deta lekin iski mansha ye ho sakti hai ki ye pariksha karane ka niranay leker apne vote bank ko dikhana chata ho ki hamne to prayash kiya lekin court ne permission nahi di jaisa ki ye 72825 pado ko radd ker acd se bharti nikal ker ker chuka hai!
ReplyDeletebahut se aise tet paas ladke hain
ReplyDeletejinka b.ed aur b.a me urdu ke saath tet
second bhasa me bhi urdu tha aur agar
govt.sirf moallime urdu vaalon ke liye
vaccancy nikalti hai to kya sarkar ke khilaf
court jaane ka inka koi thos javaz banta hai jabki sarkar mooaalime urdu vaalon ko
btc ke barabar maan rahi hai aur usme
1997 ke pehle paass hone ki shart bhi
rakhkhi hai
mai aaj pahali baar academic walo ki madad karane ke liye kuch kuch kahane jarha hun.
ReplyDeleteacademic wale mitro ek rasta hai jisase ye bharti academic merit se ho sakati hai...
aap bas C.B. yadav se ye kah do ki court ki kisi tarah mayawati ki sarkar ko asanvadhanik sarkar sabit karwa de.agar court me kisi se saath gath ho toh ye sabit karwa le ki mayawati ki sarkar ek chuni huyi sarakar na ho kar asanvadhanik sarakar thi.mayawati ki sarakar ne kabhi bhartiya sanvidhan se nahi balki pakistani sanvidhan se saare niyam banaye...
agar academic wale court me itna sabit kar le toh mai unhe vishwas dilaata hun ki ye bharti academic merit se hi hogi...akhilesh sarakar jis niyam se chahe wus niyam se wo ye bharti kar sakegi..
agar court me ye sabit nahi ho saka toh ye bharti academic merit se hona asambhav ho jayega.agar academic wale chahe toh iske liye wo abhishek manu singhavi ya kapil sibbal ko apna advocate bana le...kapil sibbbal shayad maya sarkar tamilnadu ki sarakar sabit kar de.agar dosto aisa ho gaya toh aap logo ki balle balle ho jayegi.
mai ye baat majak me nahi kah rha sach kah rha hun aap ke hi baato ko sunane ke baad mujhe ye rasta sujha hai aap sabhi ye toh manate hi ho ki bharti ke chayan ka niyam banane ka adhikar sarkar ke paas hota hai...court ne ye baat apne bahut se nirnay me bata diya hai..abhi haal hi me new add me mahila arakshan wale mamale me court ne ek baar fir se kaha ki chayan ke niyam ka adhikar gov ke paas hota hai...toh 72825 pado ka chayan TET merit se karane ka nirnay tatkalin sarkar ki cabinet ne liya tha aur prakriya shuru bhi ho gayi thi...chalti huyi prakriya ko bich me niyam badal kar radd karne ka adhikar abhi tak toh iss desh ke sanvidhan ne kisi sarkar ko nahi diya hai...chahe wo kitani bhi shaktishali sarkar kyu na ho...
toh academic wale dosto ab idhar udhar ki sochna band karo maine ap logo ko brhamastra thana diya hai kara lo academic merit se bharti.
Kuch bhai kah rahe hain ki agar TET merit ka order a jata he (jo ki nishchit aana he) tab kya gunank wale court nahi jayenge toh wo khud sochein ki accd wale bechare jab court mein party hi nahi hain aur ab shayad wo log party ban bhi nahi sakte hamara aadesh D.B. Se aana he wo log D.B. Ke aadesh ko fir single bench mein kaise chalange kar sakte hain haan govt kar sakti he lekin usmein itni himmat kahan se ayegi jab bechari ne single bench tatha D.B. ke kisi aadesh ko chalange nahi kiya toh iss aadesh ke khilaaf na baba na
ReplyDeleteशिक्षा की विफल व्यवस्था
ReplyDeleteमुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार लागू हुए तीन साल बीत गए हैं, किंतु अभी तक शिक्षा न तो मुफ्त हो पाई है और न ही अनिवार्य। हम कितने ही बच्चों को देख सकते हैं जो दुकानों पर काम करते हैं, रेलवे के डिब्बों में झाड़ू लगाने अथवा करतब दिखाने आते हैं, घरों में काम करते हैं या फिर उन कारखानों में काम करते हैं जहां काफी खतरा है। कानूनन बाल श्रम प्रतिबंधित है, पर इन दोनों कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कारण साफ है कि इससे शासक वर्ग सीधे प्रभावित नहीं होता। भारत ने सभी जी-8 देशों की तरह समान शिक्षा प्रणाली नहीं अपनाई है, जिसकी वजह से हमारे यहां दो किस्म की शिक्षा व्यवस्थाएं हैं-एक पैसे वालों के बच्चों के लिए निजी विद्यालयों की तथा दूसरी गरीब लोगों के लिए सरकारी विद्यालयों की। भारत में कक्षा आठ तक पहुंचते-पहुंचते आधे बच्चे विद्यालय से बाहर हो जाते हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत बच्चे ही विद्यालय की दहलीज पार कर महाविद्यालय में प्रवेश पाते हैं। अभी तक हम सभी बच्चों के लिए एक अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। साक्षरता दर बढ़ाने के लिए सरकार ने विद्यालय स्तर पर बच्चों को अनुत्ताीर्ण न करने की नीति अपनाई हुई है। उत्तार प्रदेश में बोर्ड परीक्षा में अक्सर यह सुनने को मिलता है कि प्रश्नों के उत्तार सार्वजनिक रूप से बोल-बोल कर लिखाए जा रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि परीक्षा उत्ताीर्ण करने वाले हमारे च्यादातर बच्चे काबिल ही नहीं होंगे।
यह बहुत शर्म की बात है कि हाई स्कूल या इंटरमीडिएट किए हुए बच्चे हिंदी का एक वाक्य भी ठीक से नहीं लिख सकते। इन्हें कोई नौकरी पर रखना ही नहीं चाहता। अत: बेरोजगारों, जिनके लिए अखिलेश यादव की सरकार प्रति माह एक हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता देने की योजना चला रही है, को नौकरी न मिल पाने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि वे किसी लायक ही नहीं। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि उत्तार प्रदेश सरकार की बेरोजगारी भत्तो की योजना सिर्फ पढ़े-लिखे बेरोजगारों के लिए ही है। अनपढ़ के लिए तो महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना है। इस योजना में भी बेरोजगारी भत्तो का प्रावधान है, किंतु अनुभव से पता चलता है कि यह बेरोजगारी भत्ता प्राप्त करना बड़ा मुश्किल है। नकल करने-कराने वालों का बड़ा दबदबा है। कोई इनका विरोध नहीं कर सकता।
जब एक छात्र आदित्य अस्थाना ने हरदोई जिले के विकास खंड कछौना में स्थित एमएएन इंटर कॉलेज के प्रबंधक को छह हजार रुपये देने से मना कर दिया तो उसकी पिटाई हो गई। जिला विद्यालय निरीक्षक, जिलाधिकारी, सचिव, बेसिक शिक्षा से शिकायत का अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है। जब कछौना के ही पत्रकार ने अपने मोबाइल से हरदोई में जिला विद्यालय निरीक्षक के नियंत्रण कक्ष को नकल के विषय में शिकायत की तो कुछ देर में उनके मोबाइल पर निजी कॉलेजों के प्रबंधकों के फोन आने लगे, जिससे यह स्पष्ट है कि नकल कराने में निजी विद्यालयों के प्रबंधकों तथा शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की साठगांठ रहती है। इसी तरह जब एक उड़नदस्ते ने फैजाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध एक कॉलेज में नकल पर रोक लगाई तो प्रबंधकों ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की और नकल करने-कराने वालों के बजाए उड़नदस्ते के खिलाफ ही कार्रवाई हो गई।
नियम तो यह है कि जिस विषय की परीक्षा हो रही है उस विषय का अध्यापक परीक्षा सदन में नहीं रहना चहिए, लेकिन शिक्षक अपनी ड्यूटी लगवा लेते हैं। इसके अलावा यदि कोई छात्र पढ़ाई में अच्छा है तो यह उसके लिए अभिशाप बन सकता है। हो सकता है कि उसी से जबरदस्ती नकल कराने को कहा जाए। नकल की सामग्री बड़ी सफाई से विद्यालय परिसर के अंदर निर्माण सामग्री जैसे बालू के ढेर में छुपा कर रखी जाती है। निजी कोचिंग चलाने वाले कॉलेजों में दाखिला दिलवाने से लेकर परीक्षा पास करवा अंक पत्र दिलवाने तक का ठेका लेते हैं। हरेक चीज की एक कीमत होती है। जौनपुर जिले में यदि कोई किसी निजी विद्यालय में बिना कक्षा में उपस्थित हुए हाईस्कूल या इंटर की परीक्षा पास करना चाहता है तो उसे पांच हजार रुपये देने होंगे। यदि कोई बिना परीक्षा दिए प्रथम श्रेणी से पास होना चाहता है तो उसे 25 हजार रुपये देने होंगे। इतने रुपयों में परीक्षार्थी की जगह किसी अन्य व्यक्ति को बिठा कर परीक्षा दिलवाने की व्यवस्था की जाती है।
सरकार द्वारा संचालित विद्यालयों तथा वित्तापोषित निजी विद्यालयों की स्थिति वित्ताविहीन निजी विद्यालयों से थोड़ी बेहतर होती है। परीक्षा के लिए ऐसे केंद्रों पर परीक्षार्थियों की संख्या कम होती है जहां नकल की गुंजाइश कम रहती है। जो केंद्र नकल के लिए बदनाम हैं वहां पर अन्य जिलों और यहां तक कि नेपाल से लोग आकर परीक्षा देते हैं। अब तो कई निजी विद्यालय खोले ही इसलिए जा रहे हैं, क्योंकि परीक्षा के दौरान मोटी कमाई हो जाती है। चूंकि सरकारी विद्यालय या वित्तापोषित निजी विद्यालय भी पीछे नहीं रहना चाहते अत: वे भी अपने यहां छात्रों को आकर्षित करने के लिए नकल कराने का वायदा करते हैं और उसके बदले में कुछ सुविधा शुल्क भी लेते हैं। अन्यथा उनके यहां कोई पढ़ने ही नहीं आएगा। बलिया के एक शिक्षक ने चुभने वाली बात कही कि अभी शिक्षक इतने तो काबिल हैं कि नकल कराने के लिए किस प्रश्न का उत्तार पुस्तक में कहां मिलेगा खोज कर निकाल सकते हैं, किंतु शिक्षकों की जो अगली पीढ़ी आएगी वह नकल कराने के काबिल भी नहीं होगी, क्योंकि उसने तो कभी पुस्तक पढ़ी ही नहीं होगी।
ReplyDeleteWaise suna hai tet sangharsh morcha ne kafi paise ikattha kiye sayad koi 25-30 lakh. Waise ye hare ya jite inke padadhikari jarur jitenge, kyoki kyoki faisale ke baad to sare paise ye apas me bant lenge agar ye padadhikari 5-6 bhi huye 5-6 lakh ek ke hisse me ayega, itna to inke baap me saya puri jindagi me nahi kamaya hoga.
ReplyDelete