अखिलेश की पसंद राजा भैया पर लगे हैं कई संगीन आरोप
लखनऊ. यूपी के नए युवराज अखिलेश यादव ने आज शपथ ली तो उनकी कैबिनेट में बाहुबली राजा भैया का नाम सुनते ही राजनीतिक विश्लेषक हैरान से हो गए। इसकी वजह भी है क्योंकि अखिलेश ने विधानसभा चुनाव से पहले डी पी यादव जैसे तमाम बाहुबली नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने से साफ इनकार कर दिया था। नई सरकार के 19 कबीना मंत्री में से सात मंत्री ऐसे हैं, जिन पर किसी न किसी प्रकार के आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि रामगोविंद को छोड़कर सभी मंत्री करोड़पति हैं।
आतंकवाद निरोधी गतिविधि कानून (पोटा) और गैंगस्टर एक्ट सहित कई संगीन मामलों में आरोपी रहे कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया मुलायम सिंह की सरकार में पहले भी (2005 में) मंत्री रह चुके हैं। शपथ ग्रहण के बाद बतौर सीएम अखिलेश की पहली प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों ने जब राजा भैया पर सवाल किए तो नए सीएम ने कहा कि राजा भैया के खिलाफ सभी मुकदमे राजनीतिक साजिश के तहत दर्ज किए गए हैं।
आपराधिक रिकार्ड
राजा भैया के खिलाफ 45 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं हालांकि पोटा के आरोपों से वो बरी हो गए हैं। दिसंबर 2010 में एक स्थानीय नेता ने निकाय चुनावों के दौरान राजा भैया और एक सांसद, एक विधायक और एक विधान परिषद सदस्य समेत 13 लोगों के खिलाफ जान से मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में राजा भैया को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। इससे पहले साल 2002 में भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उन पर अपहरण करने का आरोप लगाया।
...एक और विवाद
उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को मंत्री बना कर नया विवाद छेड़ दिया है। यह विवाद राजा भैया की आपराधिक छवि को लेकर है। लेकिन इस मामले में एक अलग विवाद भी है। यह विवाद राजा भैया की उम्र को लेकर है।
साल 2012 में चुनाव लड़ने के लिए राजा भैया ने जो हलफनामा दाखिल किया था, उसमें उनकी उम्र 38 साल दर्ज है। दूसरी ओर, एक तथ्य यह भी है कि राजा भैया 1993 से लगातार प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से निर्दलीय चुनाव जीत रहे हैं। अगर 2012 में राजा भैया 38 साल के हैं तो 1993 में उनकी उम्र 19 साल रही होगी। जबकि भारतीय संविधान के मुताबिक 25 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति लोकसभा और विधानसभा सीट के लिए चुनाव नहीं लड़ सकता।
संविधान के अनुच्छेद 84 (बी) में कहा गया है कि 25 वर्ष या इससे अधिक उम्र का भारतीय नागरिक ही विधानसभा और लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़ सकता है।
लेकिन रिकार्ड मतों से जीते
2012 के विधानसभा चुनावों में राजा भैया ने प्रदेश में सबसे बड़ी जीत दर्ज की। रघुराज को 1,11,392 वोट मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के शिव प्रकाश मिश्रा सेनानी को 23, 137 वोट मिले वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार को 14341 वोट ही मिल सके।
कुंडा विधानसभा सीट पर राजा भैया की निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर यह लगातार पांचवी जीत है। वह अपने क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज चलाते हैं जिससे स्थानीय लोगों में उनकी पैठ मजबूत हो गई है। यहां के राजपूतों के अलावा यादव और अन्य पिछड़ा जातियों का भी राजा भैया को खुला समर्थन रहता है। इस बार भी समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था।
'कुंडा का गुंडा'
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया सूबे के प्रतापगढ़ से ताल्लुक रखते हैं, जहां उनके नाम का डंका बजता है। कुंडा रियासत के भदरी घराने से आने वाले राजा भैया जेल में रहकर सजा भी काट चुके हैं। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से कुंडा की राजनीति में कदम रखने वाले राजा भैया को उनकी सीट पर अभी तक कोई हरा नहीं सका है। राजा भैया की छवि एक ऐसे शख्स के रूप में है जो तत्काल न्याय दिलाता है। उनके गांव में एक तालाब है जिसमें कई मगरमच्छ हैं। इस तालाब की तलाशी में कई साल पहले इंसानी और जानवरों की हड्डियां भी मिलने की बात सामने आई थी।
गलती करने वाले अपने लोगों को भी अपने ही दरबार में राजा भैया द्वारा सरेआम पीटे जाने की खबरें भी कई बार आई हैं। राजा भैया के घर पर एक बार छापा मारने वाले पुलिस अधिकारी की कुछ ही दिनों के बाद सड़क हादसे में मौत हो गई थी। मामले की जांच सीबीआई कर रही है। बसपा मुखिया मायावती ने एक बार उन्हें ‘कुंडा का गुंडा’ कहते हुए मुलायम सरकार की आलोचना भी की थी।
कुंडा से जीता पहला चुनाव
लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट रघुराज प्रताप सिंह ने पहली बार कुंडा सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव जीता। 1999 के आम चुनावों में रघुराज प्रताप सिंह ने अपने भाई अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी को चुनाव लड़ाया। मुकाबला परिवार से ही जुड़ी रतना सिंह से था जो कांग्रेस से चुनाव लड़ रहीं थीं। लेकिन चुनाव में राजा भैया को ही जनता का समर्थन मिला।
साल 2002 में भाजपा के विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने अपहरण और धमकाने का आरोप लगाते हुए राजा भैय्या के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर राजा भैया को 2 नवंबर की रात तीन बजे उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा लगाया।
साल 2003 में फिर से सूबे में मुलायम सिंह की सरकार आई और सरकार आने के 25 मिनट के भीतर ही राजा भैया से पोटा संबंधी आरोप हटा दिए गए हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में सरकार को पोटा हटाने से रोक दिया।
हालांकि 2004 में राजा भैया पर से पोटा आखिरकार हटा लिया गया। मुलायम सरकार में मंत्री बनने पर और उन्हें जेड प्लस सुरक्षा प्रदान कर दी गई।
2007 के विधानसभा चुनावों में भी राजा भैय्या ने भारी मतों से जीत दर्ज की। राजा भैय्या ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें समाजवादी पार्टी का खुला समर्थन था और भाजपा ने उसके सामने उम्मीदवार ही नहीं उतारा था।
कौन हैं डी पी यादव
राजा भैया को मंत्री बनाए जाने के बाद अखिलेश ने सफाई दी कि उनके खिलाफ दर्ज मामले 'राजनीतिक साजिश' का नतीजा हैं। लेकिन चुनाव से पहले जिस डीपी यादव को उन्होंने सपा में लेने का विरोध किया था, तब उन्होंने यह तर्क दिया था कि उनकी पार्टी में आपराधिक छवि वाले किसी व्यक्ति के लिए जगह नहीं है। डीपी यादव के नाम से मशहूर धरम पाल यादव की गिनती भी सूबे के बाहुबली नेताओं में होती है। उन्हें ‘पश्चिमी यूपी का डॉन’ तक कहा जाता है। डीपी यादव विकास यादव के पिता हैं जो बहुचर्चित नितीश कटारा हत्याकांड में जेल की सजा काट रहा है। डीपी यादव दो बार विधायक और एक बार संसद सदस्य रह चुके हैं।
News : Bhaskar (15-03-12)
लखनऊ. यूपी के नए युवराज अखिलेश यादव ने आज शपथ ली तो उनकी कैबिनेट में बाहुबली राजा भैया का नाम सुनते ही राजनीतिक विश्लेषक हैरान से हो गए। इसकी वजह भी है क्योंकि अखिलेश ने विधानसभा चुनाव से पहले डी पी यादव जैसे तमाम बाहुबली नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने से साफ इनकार कर दिया था। नई सरकार के 19 कबीना मंत्री में से सात मंत्री ऐसे हैं, जिन पर किसी न किसी प्रकार के आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि रामगोविंद को छोड़कर सभी मंत्री करोड़पति हैं।
आतंकवाद निरोधी गतिविधि कानून (पोटा) और गैंगस्टर एक्ट सहित कई संगीन मामलों में आरोपी रहे कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया मुलायम सिंह की सरकार में पहले भी (2005 में) मंत्री रह चुके हैं। शपथ ग्रहण के बाद बतौर सीएम अखिलेश की पहली प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों ने जब राजा भैया पर सवाल किए तो नए सीएम ने कहा कि राजा भैया के खिलाफ सभी मुकदमे राजनीतिक साजिश के तहत दर्ज किए गए हैं।
आपराधिक रिकार्ड
राजा भैया के खिलाफ 45 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं हालांकि पोटा के आरोपों से वो बरी हो गए हैं। दिसंबर 2010 में एक स्थानीय नेता ने निकाय चुनावों के दौरान राजा भैया और एक सांसद, एक विधायक और एक विधान परिषद सदस्य समेत 13 लोगों के खिलाफ जान से मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में राजा भैया को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। इससे पहले साल 2002 में भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उन पर अपहरण करने का आरोप लगाया।
...एक और विवाद
उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को मंत्री बना कर नया विवाद छेड़ दिया है। यह विवाद राजा भैया की आपराधिक छवि को लेकर है। लेकिन इस मामले में एक अलग विवाद भी है। यह विवाद राजा भैया की उम्र को लेकर है।
साल 2012 में चुनाव लड़ने के लिए राजा भैया ने जो हलफनामा दाखिल किया था, उसमें उनकी उम्र 38 साल दर्ज है। दूसरी ओर, एक तथ्य यह भी है कि राजा भैया 1993 से लगातार प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से निर्दलीय चुनाव जीत रहे हैं। अगर 2012 में राजा भैया 38 साल के हैं तो 1993 में उनकी उम्र 19 साल रही होगी। जबकि भारतीय संविधान के मुताबिक 25 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति लोकसभा और विधानसभा सीट के लिए चुनाव नहीं लड़ सकता।
संविधान के अनुच्छेद 84 (बी) में कहा गया है कि 25 वर्ष या इससे अधिक उम्र का भारतीय नागरिक ही विधानसभा और लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़ सकता है।
लेकिन रिकार्ड मतों से जीते
2012 के विधानसभा चुनावों में राजा भैया ने प्रदेश में सबसे बड़ी जीत दर्ज की। रघुराज को 1,11,392 वोट मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के शिव प्रकाश मिश्रा सेनानी को 23, 137 वोट मिले वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार को 14341 वोट ही मिल सके।
कुंडा विधानसभा सीट पर राजा भैया की निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर यह लगातार पांचवी जीत है। वह अपने क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज चलाते हैं जिससे स्थानीय लोगों में उनकी पैठ मजबूत हो गई है। यहां के राजपूतों के अलावा यादव और अन्य पिछड़ा जातियों का भी राजा भैया को खुला समर्थन रहता है। इस बार भी समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था।
'कुंडा का गुंडा'
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया सूबे के प्रतापगढ़ से ताल्लुक रखते हैं, जहां उनके नाम का डंका बजता है। कुंडा रियासत के भदरी घराने से आने वाले राजा भैया जेल में रहकर सजा भी काट चुके हैं। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से कुंडा की राजनीति में कदम रखने वाले राजा भैया को उनकी सीट पर अभी तक कोई हरा नहीं सका है। राजा भैया की छवि एक ऐसे शख्स के रूप में है जो तत्काल न्याय दिलाता है। उनके गांव में एक तालाब है जिसमें कई मगरमच्छ हैं। इस तालाब की तलाशी में कई साल पहले इंसानी और जानवरों की हड्डियां भी मिलने की बात सामने आई थी।
गलती करने वाले अपने लोगों को भी अपने ही दरबार में राजा भैया द्वारा सरेआम पीटे जाने की खबरें भी कई बार आई हैं। राजा भैया के घर पर एक बार छापा मारने वाले पुलिस अधिकारी की कुछ ही दिनों के बाद सड़क हादसे में मौत हो गई थी। मामले की जांच सीबीआई कर रही है। बसपा मुखिया मायावती ने एक बार उन्हें ‘कुंडा का गुंडा’ कहते हुए मुलायम सरकार की आलोचना भी की थी।
कुंडा से जीता पहला चुनाव
लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट रघुराज प्रताप सिंह ने पहली बार कुंडा सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव जीता। 1999 के आम चुनावों में रघुराज प्रताप सिंह ने अपने भाई अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी को चुनाव लड़ाया। मुकाबला परिवार से ही जुड़ी रतना सिंह से था जो कांग्रेस से चुनाव लड़ रहीं थीं। लेकिन चुनाव में राजा भैया को ही जनता का समर्थन मिला।
साल 2002 में भाजपा के विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने अपहरण और धमकाने का आरोप लगाते हुए राजा भैय्या के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर राजा भैया को 2 नवंबर की रात तीन बजे उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा लगाया।
साल 2003 में फिर से सूबे में मुलायम सिंह की सरकार आई और सरकार आने के 25 मिनट के भीतर ही राजा भैया से पोटा संबंधी आरोप हटा दिए गए हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में सरकार को पोटा हटाने से रोक दिया।
हालांकि 2004 में राजा भैया पर से पोटा आखिरकार हटा लिया गया। मुलायम सरकार में मंत्री बनने पर और उन्हें जेड प्लस सुरक्षा प्रदान कर दी गई।
2007 के विधानसभा चुनावों में भी राजा भैय्या ने भारी मतों से जीत दर्ज की। राजा भैय्या ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें समाजवादी पार्टी का खुला समर्थन था और भाजपा ने उसके सामने उम्मीदवार ही नहीं उतारा था।
कौन हैं डी पी यादव
राजा भैया को मंत्री बनाए जाने के बाद अखिलेश ने सफाई दी कि उनके खिलाफ दर्ज मामले 'राजनीतिक साजिश' का नतीजा हैं। लेकिन चुनाव से पहले जिस डीपी यादव को उन्होंने सपा में लेने का विरोध किया था, तब उन्होंने यह तर्क दिया था कि उनकी पार्टी में आपराधिक छवि वाले किसी व्यक्ति के लिए जगह नहीं है। डीपी यादव के नाम से मशहूर धरम पाल यादव की गिनती भी सूबे के बाहुबली नेताओं में होती है। उन्हें ‘पश्चिमी यूपी का डॉन’ तक कहा जाता है। डीपी यादव विकास यादव के पिता हैं जो बहुचर्चित नितीश कटारा हत्याकांड में जेल की सजा काट रहा है। डीपी यादव दो बार विधायक और एक बार संसद सदस्य रह चुके हैं।
News : Bhaskar (15-03-12)