मैंने निम्नवत संशोधन कर उसे मार्ग में मिलने वाले प्रत्येक जिम्मेदार व्यक्ति कों देने का संकल्प लिया है|
सेवा में, दिनांक
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महोदय,
हमारे देश को स्वतंत्र हुए ६५ वर्ष से अधिक होने को आये है किन्तु आज तक हमारे देश की कोई विशेष उन्नति नहीं हो सकी है|
क्या आप जानते है की इसका मूल कारण क्या है ?
इसका मूल कारण न तो हमारा संविधान है और न ही हमारा लोकतंत्र |वास्तव में हमें लोकतंत्र के लिए कभी प्रशिक्षित किया ही नहीं गया |
हमारी ३५ प्रतिशत जनता आज भी निरक्षर है|
ऐसे में शिक्षा की बात ही करना बेमानी है|ऐसा नहीं है की कुछ किया नहीं जा रहा है | हमारे समाज में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिये प्रदेश सरकार केन्द्र सरकार व कई अन्य स्वंयसेवी संस्थाओं द्वारा लगातार कई वर्षों से प्रयास किये जा रहे हैं फ़िर भी हम आशा के अनुरूप लक्ष्य को प्राप्त नही कर पाये हैं।कारण सरकार के विभिन्न अंगों (कार्यपालिका,व्यवस्थापिका और न्यायपालिका) के मध्य आपसी समन्वय का अभाव है और गुणवत्तापरक शिक्षा वोट बैंक की राजनीति का ग्रास बन चुकी है|इसी दिशा में चल रहे प्रयासों ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की दूरगामी सोच के अंतर्गत शिक्षक पात्रता परीक्षा को जन्म दिया।आज हमारे समाज में योग्य व निष्ठावान शिक्षकों का पूर्ण अभाव है इससे अध्यापकों की भर्ती में एकरूपता आयेगी व शिक्षा के क्षेत्र में सुधार देखने को मिलेगा।राईट टु एजूकेशन के अन्तर्गत १४ वर्ष तक के बालकों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करनी है और शिक्षा गुणवत्ता परक होनी चाहिये लेकिन राज्य सरकार द्वारा की जा रही मनमानी से यह लागू ही नही हो पा रहा है । उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालायों में सहायक अध्यापकों की संख्या निम्नतम हो गयी है जिसकी कमी को पूरा करके ही हम शैक्षिक स्तर में सुधार ला सकते है परन्तु यहाँ आयोजित शिक्षक पात्रता परीक्षा सरकार के लिये महज एक राजनीतिक खेल बन कर रह गयी है ।
राजनीतिक द्वेष की भावना अब हमारे प्रदेश के नौनिहालों को प्रभावित करने लगी है।अध्यापक पात्रता परीक्षा एक संपूर्ण और तर्कसंगत प्रक्रिया होने के बावजूद सरकार टेट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का चयन ना कर नाना प्रकार के आरोप और प्रत्यारोप लगा कर अपनी राजनीतिक द्वेष की क्षुधा को शांत कर रही है और हमारे समाज में शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे निजीकरण,बाजारीकरण,अपराधीकरण और शिक्षक चयन में भाई-भतीजावाद के प्रति आंखे फेर कर अपने लोक कल्यान्यान्कारी राष्ट्र की स्थापना के दायित्व को भूल चुकी है।टीईटी को मात्र एक पात्रता परीक्षा मान कर अभ्यर्थियों के चयन का अधार शैक्षिक परिलब्धियों को बनाना निःसंदेह शिक्षा माफ़ियाओं के हाथों को मजबूत करना है|राज्य सरकार शिक्षा का अपराधीकरण करना चाहती है और अपने तुच्छ राजनैतिक हितों के लिए समाज को एक अन्धे कुयें में ढकेलना चाहती है जो कि एक निहायत ही घटिया कृत्य है।हमारी यह दृढ मान्यता है की सरस्वती के विद्या मंदिरों में इंद्र की कुत्सित राजनीति का प्रवेश नहीं होना चाहिए|
हम अपने समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से यह आशा करते है कि इस अत्याचार को रोकने मं आगे आयेंगे और हमारे हांथों को मजबूत करेंगे| यदि हमने ऐसा नहीं किया और समय रहते हम नहीं चेते तो हम अपनी भावी पीढी को क्या जवाब देगें?क्या हम उनसे नज़रे मिला सकेगें क्योकि उनके शैक्षिक और नैतिक पतन का जिम्मेदार आज का समाज होगा|अभी समय रहते कुछ ना किया गया तो शायद कुछ भी हासिल नहीं हो सकेगा क्योकि ये वोट की राजनीति करने वाले भारत माता के सपूतों को निगल चुके होगें और हम फ़िर कभी गर्व से नही कह सकेगें कि भारत विश्व का गुरू है|
हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है की आप हमारे हांथों को मजबूत करेंगे और मात्र अपने कुनबे ही नहीं बल्कि देश के शैक्षिक परिदृश्य में अमूल चूल परिवर्तन लाने की मंशा के साथ कृत संकल्पित होकर किये जा रहे इस महाभियान (वाराणसी से दिल्ली पदयात्रा) में हमें अपना नैतिक समर्थन प्रदान करेंगे|
प्रार्थी
मनोज कुमार सिंह “मयंक”
मनीष अग्रहरी और समस्त टीईटी उत्तीर्ण छात्र|
मोबाईल – ०९८०७१२२५६९,०८५४२९९९३६१,
०८८५८३२३७७८
आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
ReplyDeleteउठता तो है घटा-सा बरसता नहीं धुआँ
चूल्हे नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ
आँखों के पोंछने से लगा आँच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ
आदतन तुम ने कर दिये वादे
ReplyDeleteआदतन हम ने ऐतबार किया
तेरी राहों में हर बार रुक कर
हम ने अपना ही इन्तज़ार किया
अब ना माँगेंगे जिन्दगी या रब
ये गुनाह हम ने एक बार किया
मोड़ पे देखा है वो बूढ़ा-सा इक आम का पेड़ कभी?
ReplyDeleteमेरा वाकिफ़ है बहुत सालों से, मैं जानता हूँ
जब मैं छोटा था तो इक आम चुराने के लिए
परली दीवार से कंधों पे चढ़ा था उसके
जाने दुखती हुई किस शाख से मेरा पाँव लगा
धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने
मैंने खुन्नस में बहुत फेंके थे पत्थर उस पर
मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें देकर
मेरी वेदी का हवन गरम किया था उसने
और जब हामला थी बीबा, तो दोपहर में हर दिन
मेरी बीवी की तरफ़ कैरियाँ फेंकी थी उसी ने
वक़्त के साथ सभी फूल, सभी पत्ते गए
तब भी लजाता था जब मुन्ने से कहती बीबा
'हाँ उसी पेड़ से आया है तू, पेड़ का फल है।'
अब भी लजाता हूँ, जब मोड़ से गुज़रता हूँ
खाँस कर कहता है,"क्यूँ, सर के सभी बाल गए?"
सुबह से काट रहे हैं वो कमेटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको!
मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता
ReplyDeleteवो कमरे बंद हैं कबसे
जो 24 सीढियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती
मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता
वहाँ कमरों में, इतना याद है मुझको
खिलौने एक पुरानी टोकरी में भर के रखे थे
बहुत से तो उठाने, फेंकने, रखने में चूरा हो गए
वहाँ एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता था.
मेरा एक दोस्त था, तोता, वो रोज़ आता था
उसको एक हरी मिर्ची खिलाता था
उसी के सामने एक छत थी, जहाँ पर
एक मोर बैठा आसमां पर रात भर
मीठे सितारे चुगता रहता था
मेरे बच्चों ने वो देखा नहीं,
वो नीचे की मंजिल पे रहते हैं
जहाँ पर पियानो रखा है, पुराने पारसी स्टाइल का
फ्रेज़र से ख़रीदा था, मगर कुछ बेसुरी आवाजें करता है
के उसकी रीड्स सारी हिल गयी हैं, सुरों के ऊपर दूसरे सुर चढ़ गए हैं
उसी मंज़िल पे एक पुश्तैनी बैठक थी
जहाँ पुरखों की तसवीरें लटकती थी
मैं सीधा करता रहता था, हवा फिर टेढा कर जाती
बहू को मूछों वाले सारे पुरखे क्लीशे [Cliche] लगते थे
मेरे बच्चों ने आखिर उनको कीलों से उतारा, पुराने न्यूज़ पेपर में
उन्हें महफूज़ कर के रख दिया था
मेरा भांजा ले जाता है फिल्मो में
कभी सेट पर लगाता है, किराया मिलता है उनसे
मेरी मंज़िल पे मेरे सामने
मेहमानखाना है, मेरे पोते कभी
अमरीका से आये तो रुकते हैं
अलग साइज़ में आते हैं वो जितनी बार आते
हैं, ख़ुदा जाने वही आते हैं या
हर बार कोई दूसरा आता है
वो एक कमरा जो पीछे की तरफ बंद
है, जहाँ बत्ती नहीं जलती, वहाँ एक
रोज़री रखी है, वो उससे महकता है,
वहां वो दाई रहती थी कि जिसने
तीनों बच्चों को बड़ा करने में
अपनी उम्र दे दी थी, मरी तो मैंने
दफनाया नहीं, महफूज़ करके रख दिया उसको.
और उसके बाद एक दो सीढिया हैं,
नीचे तहखाने में जाती हैं,
जहाँ ख़ामोशी रोशन है, सुकून
सोया हुआ है, बस इतनी सी पहलू में
जगह रख कर, के जब मैं सीढियों
से नीचे आऊँ तो उसी के पहलू
में बाज़ू पे सर रख कर सो जाऊँ
मकान की ऊपरी मंज़िल पर कोई नहीं रहता..
Ye pad yatra sicha ki kranti ki pahli aur etihasik yatra hogi. Is tarah u.p. Hi nahi poora india jagrook hoga. Ham aap ke is asadharan karya ke liye tan man se support karte hain.
ReplyDeleteYe pad yatra sicha ki kranti ki pahli aur etihasik yatra hogi. Is tarah u.p. Hi nahi poora india jagrook hoga. Ham aap ke is asadharan karya ke liye tan man se support karte hain.
ReplyDeleteMayank ji, Agrahari ji aur respected team members,
ReplyDeleteAap logon ke tyag, samarpan aur sewabhav ki jitni taarif ki jaaye kam hai.
Aap log apne swasthya par bhi achchhi tarah dhyan dijiyega.
Aap logon ka prayas shiksha ke punarutthan mein meel ka patthar sabit hon aur ek krantikari parivartan laaye.
1 january 2012 tak b.ed.+tet pass kar chuke candidate ke liye no time limit - rajasthan high court
ReplyDeleteफिर जगी टीईटी पास युवाओं की आशा
ReplyDelete•अमर उजाला ब्यूरो
नोएडा। टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास कर चुके युवाओं की बेसिक स्कूलों में नियुक्ति पर सरकार के सकारात्मक रवैये ने एक बार फिर आशा की किरण जगा दी है। जिले के टीईटी उत्तीर्ण युवाओं की आंखों में एक बार फिर सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने का सपना जाग उठा है।
टीईटी परीक्षा गत वर्ष आयोजित की गई थी। जिसमें देश भर के लाखों युवाओं ने हिस्सा लिया था। जनपद से भी करीब 18 हजार लोग परीक्षा का हिस्सा बने थे, जिनमें 90 फीसदी लोगों ने सफलता हासिल की थी। टैट परीक्षा में बड़ी संख्या में प्राइवेट स्कूल में कार्यरत शिक्षक शामिल हुए थे।
परीक्षा का रिजल्ट घोषित होने के बाद से ही यह परीक्षा विवादों के घेरे में आ गई, जिसका खामियाजा पास हो चुके अभ्यर्थियों को झेलना पड़ा। लेकिन अब नई सरकार ने एक बार फिर टीईटी परीक्षार्थियों को सरकारी स्कूलों में नियुक्ति देने पर विचार किया है।
प्राइवेट स्कूल में कार्यरत टैट पास कर चुकी एक शिक्षिका का कहना है सरकार शीघ्र पॉजिटिव रिजल्ट दे तो चिंता खत्म हो, नहीं तो सरकारी प्रक्रि या से लोगों का भरोसा उठ जाएगा।sss