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Friday, September 13, 2013

UP TGT PGT आखिर किस दरवाजे को खटखटाएं ये शिक्षक नौकरी तो मिली लेकिन न मिल सकी नियुक्ति, सरकार को चिंता नहीं और चयन बोर्ड उदासीन

UP TGT PGT आखिर किस दरवाजे को खटखटाएं ये शिक्षक

नौकरी तो मिली लेकिन न मिल सकी नियुक्ति, सरकार को चिंता नहीं और चयन बोर्ड उदासीन


 इलाहाबाद बसपा शासनकाल में टीजीटी और पीजीटी परीक्षा चयनित करीब आठ सौ शिक्षकों को नियुक्ति की राह ही नहीं मिल रही है। उनके लिए न सरकार के दरवाजे खुल रहे हैं और न ही चयन बोर्ड इस समस्या के बारे में कोई रुचि ले रहा है। हताश शिक्षकों ने अब आंदोलन का रास्ता अपनाया है लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह ही गूंज रही है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक सेवा चयन बोर्ड के समक्ष खड़े अजीत कहते हैं-‘इससे तो अच्छा होता कि नौकरी मिली ही न होती। कम से कम उम्मीदों का दिया तो न जला होता।’

खाली का जगह मिली भरी कुर्सी : पूरा मामला यह है कि 2000 और 2010 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने क्रमश: छह हजार और पांच हजार शिक्षकों की भर्ती की। 1इनमें अधिकांश को तो विद्यालयों में नियुक्ति मिल गई लेकिन बोर्ड की गलती से लगभग आठ सौ चयनित अभ्यर्थियों को ऐसे विद्यालयों में भेज दिया गया, जहां पह ही नहीं रिक्त थे। ऐसे में उन्हें मायूस लौटना पड़ा। उन्होंने जिला विद्यालय निरीक्षकों से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि इसमें वे कुछ नहीं कर सकते। हां, यह लिखकर बोर्ड जरूर भेजवा दिया कि चूंकि पद रिक्त नहीं है, इसलिए इन शिक्षकों की नियुक्ति नहीं दी जा सकती। परीक्षा के तमाम तामझाम से गुजरकर नौकरी की सफलता में झूम रहे ये अभ्यर्थी अब सड़क पर थे। 1क्यों नहीं थे पद रिक्त : नियम यह है कि विद्यालयों के द्वारा भेजे गए अधियाचन के आधार पर ही परीक्षा कराई जाती है। फिर पद क्यों नहीं रिक्त थे? इस सवाल की पड़ताल में सामने आया इसके कई कारण थे। अधिकांश में चयनित पदों के सापेक्ष किसी मृतक आश्रित की नियुक्ति की जा चुकी थी या फिर न्यायालय के आदेश पर किसी का समायोजन हो चुका था। कुछ पदों पर शासन की ओर से प्रमोशन हो चुका था और कुछ में जनशक्ति निर्धारण के तहत पद खत्म किया जा चुका था।

एक दो विद्यालय तो अल्पसंख्यक होने का दर्ज पा चुके थे, इस वजह से नियुक्ति नहीं हो पाई। एक प्रमुख कारण अधिकारियों और प्रबंधकों की जुगलबंदी थी जिसकी वजह से मनचाहे लोगों को पदों पर रख लिया गया। 1बोर्ड उदासीन : कारण कई थे लेकिन चयनित अभ्यर्थियों पर इनकी गाज गिरी और उन्होंने एक बार फिर चयन बोर्ड का दरवाजा खटखटाना शुरू किया। अब हाल यह है कि चयन बोर्ड की पूरी तस्वीर ही बदली हुई है। इसके लिए जिम्मेदार बसपा शासन के अध्यक्ष और सदस्य लगभग गायब हैं और उनकी जगह नए निजाम के पसंदीदा लोगों ने ले रखी है। इसलिए भी इन चयनित अभ्यर्थियों की सुनवाई नहीं हो रही है। वे बोर्ड कार्यालय के समक्ष डेरा डाले हुए हैं लेकिन कुछ भी जवाब नहीं मिल पा रहा। 1हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद 1बसपा शासनकाल में टीजीटी और पीजीटी परीक्षा चयनित करीब आठ सौ शिक्षकों को नियुक्ति की राह ही नहीं मिल रही है। उनके लिए न सरकार के दरवाजे खुल रहे हैं और न ही चयन बोर्ड इस समस्या के बारे में कोई रुचि ले रहा है। हताश शिक्षकों ने अब आंदोलन का रास्ता अपनाया है लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह ही गूंज रही है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक सेवा चयन बोर्ड के समक्ष खड़े अजीत कहते हैं-‘इससे तो अच्छा होता कि नौकरी मिली ही न होती। कम से कम उम्मीदों का दिया तो न जला होता।’

खाली का जगह मिली भरी कुर्सी : पूरा मामला यह है कि 2000 और 2010 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने क्रमश: छह हजार और पांच हजार शिक्षकों की भर्ती की। 

इनमें अधिकांश को तो विद्यालयों में नियुक्ति मिल गई लेकिन बोर्ड की गलती से लगभग आठ सौ चयनित अभ्यर्थियों को ऐसे विद्यालयों में भेज दिया गया, जहां पह ही नहीं रिक्त थे। ऐसे में उन्हें मायूस लौटना पड़ा। उन्होंने जिला विद्यालय निरीक्षकों से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि इसमें वे कुछ नहीं कर सकते। हां, यह लिखकर बोर्ड जरूर भेजवा दिया कि चूंकि पद रिक्त नहीं है, इसलिए इन शिक्षकों की नियुक्ति नहीं दी जा सकती। परीक्षा के तमाम तामझाम से गुजरकर नौकरी की सफलता में झूम रहे ये अभ्यर्थी अब सड़क पर थे।

क्यों नहीं थे पद रिक्त : नियम यह है कि विद्यालयों के द्वारा भेजे गए अधियाचन के आधार पर ही परीक्षा कराई जाती है। फिर पद क्यों नहीं रिक्त थे? इस सवाल की पड़ताल में सामने आया इसके कई कारण थे। अधिकांश में चयनित पदों के सापेक्ष किसी मृतक आश्रित की नियुक्ति की जा चुकी थी या फिर न्यायालय के आदेश पर किसी का समायोजन हो चुका था। कुछ पदों पर शासन की ओर से प्रमोशन हो चुका था और कुछ में जनशक्ति निर्धारण के तहत पद खत्म किया जा चुका था। 

एक दो विद्यालय तो अल्पसंख्यक होने का दर्ज पा चुके थे, इस वजह से नियुक्ति नहीं हो पाई। एक प्रमुख कारण अधिकारियों और प्रबंधकों की जुगलबंदी थी जिसकी वजह से मनचाहे लोगों को पदों पर रख लिया गया। 

बोर्ड उदासीन : कारण कई थे लेकिन चयनित अभ्यर्थियों पर इनकी गाज गिरी और उन्होंने एक बार फिर चयन बोर्ड का दरवाजा खटखटाना शुरू किया। अब हाल यह है कि चयन बोर्ड की पूरी तस्वीर ही बदली हुई है। इसके लिए जिम्मेदार बसपा शासन के अध्यक्ष और सदस्य लगभग गायब हैं और उनकी जगह नए निजाम के पसंदीदा लोगों ने ले रखी है। इसलिए भी इन चयनित अभ्यर्थियों की सुनवाई नहीं हो रही है। वे बोर्ड कार्यालय के समक्ष डेरा डाले हुए हैं लेकिन कुछ भी जवाब नहीं मिल पा रहा।

जिन पदों के सापेक्ष अभ्यर्थियों को भेजा गया है, डीआईओएस की जिम्मेदारी है कि ज्वाइन कराएं। बोर्ड के हाथ तो बंधे हैं। नियमानुसार एक विज्ञापन के चयनित अभ्यर्थियों को दूसरे विज्ञापन में समायोजित नहीं किया जा सकता।
वंश गोपाल मौर्य
सचिव, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड



News Sabhaar : Jagran (12.9.13)