रामसेतु मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिया समय
पौराणिक रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के फैसले के लिए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को और समय दे दिया है। दरअसल, केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने या न देने के मुद्दे पर फैसले के लिए उसे और वक्त की जरुरत है।
न्यायमूर्ति एच एल दत्तु की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने पेश होकर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) हरेन रावल ने कहा कि इस मुद्दे पर सक्षम अधिकारी के साथ मशविरे की जरुरत है। उन्होंने इस मामले में हलफनामा दायर करने के लिए और वक्त दिए जाने की मांग की।
इस पर केंद्र सरकार को दो हफ्ते की मोहलत देते हुए पीठ ने कहा ऐसा करना है या नहीं इस पर फैसला करें। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल को करने का फैसला किया है।
पीठ जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किए जाने को लेकर न्यायालय के निर्देश की मांग की गई है।
इससे पहले पीठ ने 27 मार्च को सरकार को निर्देश दिया था कि वह अपने फैसले की बाबत दो दिन के भीतर हलफनामा दायर करे। पीठ ने कहा यदि आप कहते हैं कि आप जवाबी हलफनामा दायर नहीं करना चाहते तो हम मामले में बहस शुरू करा सकते हैं।
गौरतलब है कि रामसेतु से जुड़ा मामला उस वक्त न्यायिक निगरानी के दायरे में आया जब उच्चतम न्यायालय में इससे जुड़ी कई याचिकाएं दायर की गई। याचिकाओं में महत्वाकांक्षी सेतुसमुद्रम परियोजना को चुनौती दी गई थी। इस परियोजना के बारे में आरोप लगाए गए कि इससे पौराणिक रामसेतु को नुकसान हो सकता है।
News : Live Hindustan (30.03.12)
muskan mem plz publish todays news of Firozabad edition of hindustan newspaper
ReplyDeleteAj ki meating me kya hua pls koi batay.
ReplyDeleteGood morning all the tet pass condidate.....kya rat bhar nid nahi aai....do'nt worry we happy jald hi meating ki news milegi...
ReplyDeleteMukhya sachiv ki meeting me kya hua.
ReplyDeleteDAINIK JAGRAN's NEWS ON TET MEETING
ReplyDeleteअब टीईटी होगी अर्हताकारी परीक्षा!
लखनऊ, 18 अप्रैल (जाब्यू) : टीईटी को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिलाने पर सहमति बनी है। शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेरिट के आधार पर न करके पूर्व में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट व स्नातक स्तर पर प्राप्त किये गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जाएगा।
विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में इस पर सहमति बनी है। समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त करने की संभावना भी है। उच्च स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य किये गए टीईटी को लेकर एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई जिसमें टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए अन्य राज्यों ने भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का ही दर्जा दिया है। समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए टीईटी के परिणाम में जिस तरह से धांधली उजागर हुई है उससे अदालत या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि इस अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाने का फैसला किया गया यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित था।
http://epaper.jagran.com/story.aspx?id=35642&boxid=771296336&ed_date=2012-04-19&ed_code=11&ed_page=1
अब टीईटी होगी अर्हताकारी परीक्षा!
ReplyDeleteलखनऊ, 18 अप्रैल (जाब्यू) : टीईटी को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिलाने पर सहमति बनी है। शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेरिट के आधार पर न करके पूर्व में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभ्यर्थियों केहाईस्कूल, इंटरमीडिएट व स्नातक स्तर पर प्राप्त किये गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जाएगा। विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में इस पर सहमति बनी है। समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त करने की संभावना भी है। उच्च स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य किये गए टीईटी को लेकर एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई जिसमें टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए अन्य राज्यों ने भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का हीदर्जा दिया है। समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए टीईटी के परिणाम में जिस तरह से धांधली उजागर हुई है उससे अदालत या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि इस अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाने का फैसला किया गया यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित था।
Javed usmani ne tet ko radd kar bina tet ke hi pahle ki tarha prt bharti karne ki sehmati banae h..-hindustan
ReplyDelete! लखनऊ, जागरण ब्यूरो : अध्यापक
ReplyDeleteपात्रता परीक्षा (टीईटी)
को राष्ट्रीय अध्यापक
शिक्षा परिषद (एनसीटीई)
की मंशा के अनुरूप
शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिल
ाने पर सहमति बनी है।
शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेर
िट के आधार पर न करके पूर्व में
निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार
अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक स्तर पर
प्राप्त किए गए अंकों के प्रतिशत के
आधार पर की जाएगी। इसके लिए
उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक)
सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन
किया जाएगा। विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के
बाद मुख्य सचिव जावेद
उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च
स्तरीय समिति की बुधवार को हुई
बैठक में इस पर सहमति बनी है।
समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन
परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त
करने की संभावना भी है। हालांकि,
समिति की रिपोर्ट पर अंतिम
फैसला मुख्यमंत्री को करना है। उच्च
स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य
किए गए टीईटी को लेकर एनसीटीई
के 11 फरवरी 2011
को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई,
जिसमें टीईटी को सिर्फ
अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य
का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई
के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए
अन्य राज्यों ने
भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति
के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का ही दर्जा
दिया है। टीईटी की मेरिट के आधार
पर
शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला करने
वाला उप्र एकमात्र राज्य है।
समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए
टीईटी के परिणाम में जिस तरह से
धांधली उजागर हुई है, उससे अदालत
या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष
निकालना स्वाभाविक है कि इस
अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट
को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार
बनाने का फैसला किया गया,
यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित
था। लिहाजा समिति इस बात पर
सहमत हुई कि टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा होना चाहिए
। बैठक के सिलसिले में बेसिक
शिक्षा विभाग ने माध्यमिक
शिक्षा विभाग से टीईटी के आयोजन
से संबंधित कई बिंदुओं पर
जानकारी मांगी थी। माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा उपलब्ध
करायी गई
जानकारियों को भी समिति के समक्ष
प्रस्तुत किया गया। गौरतलब है
परिषदीय स्कूलों में 72,825
शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बेसिक शिक्षा विभाग
की विज्ञप्ति को उच्च न्यायालय में
चुनौती दी जा चुकी है।
याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत
ने शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक
AMAR UJALA's NEWS ON TET MEETING
ReplyDeleteटीईटी पर मुख्यमंत्री करेंगे अंतिम निर्णय
•अमर उजाला ब्यूरो
लखनऊ। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित हाई पावर कमेटी ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के मामले की पूरी पड़ताल कर ली है। रमाबाई नगर की पुलिस व विभागीय अधिकारियों से मिली रिपोर्ट से पता चला है कि टीईटी में सभी अभ्यर्थी धांधली से पास नहीं हुए हैं। अंक बढ़ाने के लिए धांधली जरूर की गई है। इसकी वास्तविक जानकारी के लिए रिजल्ट तैयार करने वाली कंप्यूटर कंपनी के सॉफ्टवेयर की जांच स्टेट फोरेंसिक लैब से कराई जा रही है। मुख्य सचिव शीघ्र ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी रिपोर्ट दे देंगे। मुख्यमंत्री इस पर अंतिम निर्णय करेंगे। पर जानकारों को मानना है कि अब तक की हुई जांच से टीईटी 2011 के रद्द होने की संभावना कम है।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बुधवार को हुई हाईपावर कमेटी की बैठक में टीईटी से जुड़े सभी पहलुओं पर चर्चा की गई। इसमें रमाबाई नगर पुलिस द्वारा की गई अब तक की जांच रिपोर्ट को भी रखा गया। सूत्रों का कहना है कि पूरी परीक्षा में धांधली के साक्ष्य नहीं मिले हैं। इसमें कुछ अभ्यर्थियों के अंक बढ़ाने के जरूर सुबूत मिले हैं। बताया जाता है कि ऐसे अभ्यर्थियों को चिह्नित करके उन्हें टीईटी से अलग करने पर विचार चल रहा है। इसके अलावा बेसिक शिक्षा विभाग से जानकारी मांगी गई है कि टीईटी अर्हता को पात्रता करने के लिए नियमावली में संशोधन की अनुमति किसने दी थी। इन सभी तथ्यों के आधार पर मुख्यमंत्री को शीघ्र ही रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
यूपी में 72 हजार 825 शिक्षकों की भर्ती के लिए नवंबर 2011 में टीईटी आयोजित की गई थी। माध्यमिक शिक्षा परिषद को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। टीईटी में 6 लाख से अधिक परीक्षार्थी शामिल हुए। परिणाम आने के बाद अंक बढ़ाने के नाम पर हुई धांधली के चलते तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा निदेशक को रमाबाई नगर की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इसके चलते टीईटी निरस्त करने की चर्चाएं शुरू हो गई थीं। इस संबंध में टीईटी पास अभ्यर्थियों का एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री से मिला था। इसके बाद पूरे मामले की जांच के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 5 अप्रैल को हाई पावर कमेटी बना दी गई। कमेटी को 29 अप्रैल तक रिपोर्ट देनी है।
•पूरी परीक्षा में धांधली के नहीं मिले साक्ष्य
•मुख्य सचिव जल्द सौंपेगे सीएम को रिपोर्ट
http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20120419a_003163009&ileft=-5&itop=528&zoomRatio=130&AN=20120419a_003163009
कल मीटिँग मे यह तय हुआ कि सरकार उच्च न्ययालय के आदेश का अनुपालन करेगी। source Etv u.p news at 5.45 am on 19.4.2012
ReplyDeleteअब टीईटी होगी अर्हताकारी परीक्षा!
ReplyDeleteलखनऊ, 18 अप्रैल (जाब्यू) : टीईटी को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिलाने पर सहमति बनी है। शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेरिट के आधार पर न करके पूर्व में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट व स्नातक स्तर पर प्राप्त किये गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जाएगा। विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में इस पर सहमति बनी है। समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त करने की संभावना भी है। उच्च स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य किये गए टीईटी को लेकर एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई जिसमें टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए अन्य राज्यों ने भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का ही दर्जा दिया है। समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए टीईटी के परिणाम में जिस तरह से धांधली उजागर हुई है उससे अदालत या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि इस अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाने का फैसला किया गया यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित था।
AAJ KA DAINK JAGRAN LUCKNOW DEKHO.
ReplyDeletedainik jagran lucknow dekho.
ReplyDeleteलखनऊ, 18 अप्रैल (जाब्यू) : टीईटी को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा दिलाने पर सहमति बनी है। शिक्षकों की नियुक्ति टीईटी की मेरिट के आधार पर न करके पूर्व में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट व स्नातक स्तर पर प्राप्त किये गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर की जाएगी। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जाएगा। विवादों में घिरे टीईटी के पहलुओं पर विचार करने के बाद मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बुधवार को हुई बैठक में इस पर सहमति बनी है। समिति रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजेगी। इन परिस्थितियों में टीईटी को निरस्त करने की संभावना भी है। उच्च स्तरीय समिति की बैठक में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अनिवार्य किये गए टीईटी को लेकर एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 को जारी निर्देशों पर चर्चा हुई जिसमें टीईटी को सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा घोषित किया गया है। समिति ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए अन्य राज्यों ने भी टीईटी को शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सिर्फ अर्हताकारी परीक्षा का ही दर्जा दिया है। समिति ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि बीती 13 नवंबर को हुए टीईटी के परिणाम में जिस तरह से धांधली उजागर हुई है उससे अदालत या किसी अन्य के लिए यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि इस अनियमितता को अंजाम देने के लिए ही टीईटी की मेरिट को शिक्षकों की नियुक्ति का आधार बनाने का फैसला किया गया यानी यह गोरखधंधा पूर्व नियोजित था।
ReplyDeleteNahi ho sakti tet merit se bharti kal ki meeting ka faisla hai dainik jagran lucknow front page
ReplyDeleteसर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में शिक्षा के अधिकार कानून की वैधानिकता बरकरार रखते हुए देश के हर गरीब बच्चे की उम्मीदें जगाई हैं। शिक्षा के अधिकार को पूरी तरह से कामयाब बनाने के लिए अगले पांच वर्षों में करीब दो लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे, जिसमें से 65 प्रतिशत केंद्र और 35 प्रतिशत राज्य सरकारें वहन करेंगी। जिस देश में छह से चौदह वर्ष तक की उम्र के 80 लाख बच्चे शिक्षा से वंचित हैं, जहां हर चार में से एक बच्चा पांचवीं कक्षा में आने से पहले ही स्कूल छोड़ देता है, जहां चार में से दो या दो से ज्यादा बच्चे आठवीं से पहले ही पढ़ाई से मुंह मोड़ लेते हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा है, उस देश में यह सब पढ़ना-सुनना बेहद सुखद लगता है। लेकिन महंगे स्कूलों में गरीब बच्चों का शिक्षा पाना क्या इतना आसान है, जितना सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद लगता है?
ReplyDeleteसर्वोच्च न्यायालय ने ठीक ही कहा कि शिक्षा के अधिकार को बच्चों के नजरिये से देखा जाना चाहिए, स्कूल संचालकों के नजरिये से नहीं। लेकिन सरकार के शिक्षा का अधिकार कानून में कई कमजोरियां भी हैं, जिनके जवाब अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार से ले पाता, तो ज्यादा ठीक रहता। सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि इसमें शिक्षा से वंचित बच्चों की परिभाषा तो दी गई है, लेकिन इसके लिए कोई आर्थिक पैमाना न होने से भ्रम फैलेगा। कानून के मुताबिक, अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के बच्चे 25 फीसदी के कोटे में आएंगे। हैरानी की बात है कि क्रीमी लेयर को इससे अलग नहीं रखा गया है। इसके अलावा अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा तय की गई आर्थिक रूप से कमजोर की सीमा को माना जाएगा। यह सीमा पचास हजार रुपये सालाना से लेकर दो-तीन लाख रुपये तक की है। इससे ऐसा भी हो सकता है कि सरकारी नौकरी या निजी क्षेत्र में काम करने वाले क्लर्क का बेटा तो शायद इस पैमाने से बाहर हो जाए, लेकिन निजी व्यवसाय करने वाले का बच्चा कोई भी आय प्रमाणपत्र दिखाकर दाखिले का हकदार बन जाए। आखिर किस आधार पर निजी स्कूल किसी बच्चे को दाखिले लायक समझेंगे या स्कूल आय प्रमाणपत्र की जांच कैसे कर पाएंगे, इसे कानून में स्पष्ट नहीं किया गया है।
इस कानून में छह से 14 वर्ष के बच्चों की चिंता तो की गई है, लेकिन तीन से छह वर्ष तक के बच्चों के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है, जिसकी संख्या अभी करीब 19 करोड़ है। ऐसे बच्चों की बुनियादी शिक्षा की सदिच्छा जरूर जाहिर की गई है। अगर सरकार को गरीब बच्चों की इतनी ही चिंता थी, तो वह इन बच्चों को भी कानून के दायरे में लाती, ताकि वे बच्चे जब पहली कक्षा में किसी बड़े स्कूल में पढ़ने जाते, तो किसी तरह कमजोर साबित नहीं होते। इसके अलावा आठवीं के बाद की पढ़ाई के बारे में कानून में कोई व्यवस्था नहीं है। क्या गरीब बच्चों के घरवाले तब तक इतने संपन्न हो जाएंगे कि आगे वे उसी महंगे निजी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ा सकें। अगर नहीं, तो आजादी के बाद एक ऐतिहासिक कानून बनाते समय सरकार को ध्यान रखना चाहिए था कि चौदह की उम्र सीमा को बढ़ाकर अठारह कर दिया जाए।
सरकार का कहना है कि नियमों के विरुद्ध जाने वाले स्कूलों की मान्यता रद्द की जा सकती है, लेकिन अपने देश में किस तरह मान्यता दी जाती है और किस तरह नियमों का उल्लंघन किया जाता है, यह हर कोई जानता है। ऐसे में अगर कानून का तोड़ निजी स्कूलों ने तलाश लिया, तो सरकार उसका कुछ बिगाड़ पाएगी, ऐसा संभव नहीं दिखता। कानून में बताया गया है कि प्रशिक्षित शिक्षकों की योग्यता का निर्धारण एक अकादमिक प्राधिकरण करेगा और कानून लागू होने के पांच वर्ष बाद तक अप्रशिक्षित शिक्षकों का इस्तेमाल होता रहेगा। इसमें अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति में नियमों को लचीला बनाए रखने की व्यवस्था की गई है। इसी से पता चलता है कि सरकार प्राथमिक शिक्षा को लेकर कितनी गंभीर है और इस कानून से क्या हासिल होगा। ऐसे में शिक्षाविद् अनिल सद्गोपाल की यह टिप्पणी सटीक लगती है कि यह कानून न तो मुफ्त में शिक्षा की व्यवस्था करता है और न ही उसे अनिवार्य बनाता है।
शिक्षा-व्यवस्था
विजय विद्रोही
वरिष्ठ पत्रकार
samajh nahi aa kya sahi news hai oar ko galat
ReplyDeleteAj
ReplyDelete