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Sunday, April 22, 2012

युपीटीईटी-न उगलते बने,न निगलते बने


युपीटीईटी-न उगलते बने,न निगलते बने
 ( Another Articles of Sh. Manoj Kumar Singh 'Mayank')
Taken from - bhadas.blogspot.in
युपीटीईटी-न उगलते बने,न निगलते बने

महाभारत में एक श्लोक है –
यस्म यस्म विषये राज्ञः,स्नातकं सीदति क्षुधा|
अवृद्धिमेतितद्दराष्ट्रं,विन्दते सहराजकम्||

अर्थात, हे राजन!जिन जिन राज्यों में स्नातक क्षुधा से पीड़ित होता है,उन उन राज्यों की वृद्धि रुक जाती है और वहाँ अराजकता फ़ैल जाती है|

बुभुक्षितं किं न करोति पापं की तर्ज पर महाभारतकार ने राजा को चेतावनी देते हुए स्पष्ट रूप से यह निर्देशित किया है की योग्यतम को उसकी आजीविका से विरत करना,अराजकता को आमंत्रित करना है|

यह तब की बात है,जब गिने चुने मेधावी छात्र ही स्नातक हो पाते थे और जब इस देश में प्रजा के व्यापक हित में अपने स्वार्थ की तिलांजलि देने वाले कर्मठ,नीतिनिपुण और धर्मग्य राजा हुआ करते थे|

आज परिस्थितियां परिवर्तित हो चुकी हैं| किसी भी परीक्षा में ३२ प्रतिशत अंक पाने वाला विद्यार्थी अनुत्तीर्ण होता है और २९ प्रतिशत मत पाने वाला उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनता है|

१ अरब जनता की आँखों के सामने पागलों की तरह गोलियाँ बरसाने वाला जेल में भी फाइव स्टार स्तर तक की सुविधाओं का लाभ उठाता है और जिसने अपने पूरे जीवन में एक चींटी भी नहीं मारी,वह नारी होने के वावजूद दुस्सह यंत्रणा भोगने को विवश है,क्योंकि वोट की राजनीति ने उसके माथे पर आतंकवादी होने का कलंक लगा दिया है|स्थितियां दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही हैं और हम कानून व्यवस्था के नाम पर निर्दोषों को दण्डित करने तथा दोषियों को बचाने के मिशन में तन्मयता के साथ जुटे हुए हैं|नक्सली आकाश से नहीं टपकते,जब राज्य के हाथों में स्थित दंड निरंकुश हो जाता है, तब मासूम भी अपने हांथो में आग उगलने वाली बन्दूक थामने को विवश हो जाता है|

बात युपीटीईटी के सन्दर्भ में हो रही है
|विगत १८ अप्रैल को, जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में टीईटी के सन्दर्भ में गठित हाई पावर कमेटी ने अपनी संस्तुति मुख्यमंत्री को प्रेषित कर दिया है|समाचार पत्रों के आलोक में यह तथ्य सामने आया है की युपीटीईटी परीक्षा की शुचिता पर कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं उठाया जा सकता अतः युपीटीईटी को भंग न करते हुए इसे अर्हताकारी परीक्षा के स्थान पर, पात्रताकारी परीक्षा बना दिया जाय|

ध्यान देने योग्य बात है की अगले ही सत्र में यदि सहायक अध्यापकों की रिक्तियां तत्काल प्रभाव से नहीं भरी जाती हैं तो उत्तर प्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान पूरी तरह से विफल होने के कगार पर खडा होगा|अतः पूर्व विज्ञापित नियम में संशोधन करना न सिर्फ इस प्रक्रिया को उलझा देना है वरन प्रदेश ही नहीं,देश को भी शिक्षा के मद में मिलने वाले आर्थिक सहायता पर संकट के बादल मडराने के प्रबल आसार है|

हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा की इस देश को शिक्षित बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं अपना अमूल्य योगदान देती हैं और यदि उत्तर प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा विभाग में विज्ञापित नियुक्तियों के संदर्भ में वैधानिक खींचातानी और राजनैतिक हीलाहवाली का कोई भी मामला इन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के संज्ञान में आता है तो देश को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में मिलने वाली आर्थिक मदद रोकी जा सकती है|
अभी भी इस देश में शिक्षा के मद में सकल घरेलु उत्पाद का महज ४.१ फीसदी ही व्यय किया जाता है और प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में तो यह १ प्रतिशत से भी कम होगा|ऐसी स्थिति में पूर्व विज्ञापित प्रक्रिया में छेड़छाड़ अभ्यर्थियों के मन में रोष का संचार करेगा और पूरे प्रदेश को अराजकता की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है|

युपीटीईटी के संदर्भ में प्रक्रिया में छेड़छाड़ करने के पीछे न तो कोई विधिक शक्ति है और न ही कोई नैतिक आधार,ऐसे में,अगर विज्ञप्ति निरस्त होती है तो इसका एकमात्र कारण राजनैतिक विद्वेष की भावना ही होनी चाहिए|
यह कहना की अन्य राज्यों ने भी टीईटी को मात्र एक पात्रता परीक्षा ही रखा है और इसे अर्ह्ताकारी नहीं बनाया है तर्कशास्त्र के नियमों की घनघोर अवहेलना है|

क्या माननीय जावेद उस्मानी जी यह बताने का कष्ट करेंगे की अन्य राज्यों में अथवा केन्द्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा में सकल रिक्तियों के सापेक्ष कितने प्रतिशत अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए हैं और उत्तर प्रदेश में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों का संख्या बल कितना है?यह हास्यस्पद ही है की इतना बड़ा प्रशासनिक अधिकारी इतने छोटे तथ्य की उपेक्षा करता है और जिसने इतने छोटे तथ्य की उपेक्षा की हो उसे इतना महत्वपूर्ण दायित्व किस आधार पर प्रदान किया गया है?

शायद अब अभ्यर्थियों को भी इस तथ्य का ज्ञान होने लगा है की सरकार हमारे पक्ष में नहीं है बल्कि यह कहना ज्यादा उचित रहेगा की सरकार प्राथमिक शिक्षा के ही पक्ष में नहीं है अन्यथा हमारे साईकिल वाले बाबा,पगड़ी वाले बाबा से प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों की नियुक्ति हेतु २०१५ तक का समय न मांगते|


हद हो गयी है,अभ्यर्थी परीक्षा दे चुके हैं,अपने अंकपत्र सह प्रमाणपत्र ले चुके हैं, बैंक ड्राफ्ट बनवा चुके हैं,लंबी लम्बी पंक्तियों मंग लग कर अपने आवेदन भी जमा कर चुके हैं,प्रत्येक अभ्यर्थी के लगभग १० हजार रूपये खर्च हो चुके हैं और श्रीमान जी का कहना है की हम प्रक्रिया में बदलाव लायेंगे क्योंकि इससे पहले लोग हांथी पर चढते थे और आज हमने साईकिल का आविष्कार कर लिया है|

संख्या में अति न्यून अकादमिक समर्थक भी सरकार के कंधे पर बन्दूक रखकर निशानेबाजी से नहीं चूक रहे है|

भाई, कहा भी गया है – जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का?
मुलायम आते ही नकल विरोधी अध्यादेश को रद्द कर देते हैं तो उनका पुत्तर आते ही टीईटी को रद्द क्यों न कर दे?
वैसे भी अखिलेश ने अपने चुनावों में इस तरह की उद्घोषणा पहले ही कर चुकी है और परीक्षा में असफल अभ्यर्थी अखिलेश भैया के पाँव पूज ही रहे हैं, लिहाजा टीईटी को निरस्त होना ही चाहिए|

साथ ही बलात्कार पीडिता को नौकरी देने संबंधी बयान पर भी तो अमल करना है|वैसे भी, समाजवादियों की सरकार बनने से पहले ही,शपथ ग्रहण से भी पहले उत्तर प्रदेश की जनता ने चुनाव परिणामों की घोषणा के महज एक सप्ताह के अंदर जिस तरह की अराजकता झेली है उसे देखकर यही लगता है की आने वाले समय में यह अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार होगी और कहीं ऐसा न हो की हिन्दुस्तान के राजनैतिक इतिहास में अखिलेश का शासन एक काले अध्याय के रूप में जाना जाय, फिलहाल संभावना तो यही है और उसके संकेत भी मिलने लगे हैं|

अब अपने मूल विषय पर लौट चलते हैं,हमारे देश में बेसिक शिक्षा की प्रवृत्ति कैसी रही है और समय समय पर इस क्षेत्र में हमारे देश में किस प्रकार के परिवर्तन हुए है इन सब बातों का जानना बहुत ही जरूरी है|

मुसलमानों के आने से पहले हमारे देश में बालक की प्राथमिक शिक्षा का प्रारम्भ माँ की गोद में होता था|
यह वह समय था जब बालक को अक्षरारंभ के समय ग से गदहा नहीं, ग से गणेश पढाया जाता था|कहना न होगा की हमारे जीवन मूल्य आधुनिक मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं से इस कदर मेल खाते थे की उनमें विरोध की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी|हम पहले ही इस तथ्य से परिचित थे की शिक्षा का मूल उद्देश्य बालक के पूर्व ज्ञान में वृद्धि कर क्रमिक ढंग से बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है|स्पष्ट है ग से गदहा वाला पूर्वज्ञान बालक को गदहा ही बना सकता है,सर्वशास्त्र विशारद गणेश कदापि नहीं|

जब इस देश में मुसलमानों का आगमन हुआ तब सबसे अधिक चोट हमारे प्राथमिक शिक्षा पर ही पड़ी|मदरसों में दी जाने वाली दीनी तालीम बालक को आत्मकेंद्रित बनाती थी,यह उसके व्यक्तित्व में सहिष्णुता के स्थान पर धर्मान्धता का संचार करती थी|मुग़ल काल में दारा शिकोह के सत्प्रयासों से मकतबों में दीनी तालीम के साथ साथ बुनियादी तालीम देने की भी व्यवस्था की गयी, किन्तु यह व्यवस्था बहुत दिनों तक नहीं चली और अंग्रजों के आगमन के साथ हमारी शिक्षा व्यवस्था का जो बंटाधार हुआ, वह आज तक बदस्तूर जारी है|

मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आलोक में यह बात जग जाहिर है की व्यक्ति के व्यक्तित्व में उसकी शैशवावस्था और उसका बाल्यकाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|व्यवहारवाद कहता है की एक शिशु को एक कुशल चिकित्सक, एक कुशल अभियंता,एक कुशल अभिनेता,एक कुशल दार्शनिक इत्यादि किसी भी कौशल के लिए प्रारम्भ से ही प्रशिक्षित किया जा सकता है और उसके अंदर बचपन में डाले गए संस्कार इतने दृढ होते हैं की वे पचपन क्या,पचासी क्या, आजीवन पीछा नहीं छोड़ते|ठीक यही बात कुसंस्कारों के संदर्भ में भी सत्य है|यहाँ पर संस्कार देने वाले शिक्षकों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और अध्यापक शिक्षा की महत्ता का पता चलता है

|२२ और २३ अक्टूबर १९३७ में वर्धा नामक स्थान पर डॉ जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में तत्कालीन भारतीय राजनीती में अपनी प्रभुता स्थापित कर चुके गांधी ने भारतीय विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा का एक बेहतरीन माडल तैयार किया|आमतौर से इसे भारत में प्राथमिक शिक्षा की वर्धा योजना अथवा बुनियादी तालीम के नाम से जाना जाता है|आज भी इसे शिक्षा जगत में बालक केंद्रित शिक्षा का बेमिसाल उदाहरण समझा जाता है|

वर्धा योजना में बालक की शिक्षा को लेकर जिन उच्च आदर्शों की कल्पना की गयी थी, उनकी प्राप्ति बुनियादी तालीम के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों के अभाव में संभव ही नहीं थी|अतः शिक्षकों को बुनियादी तालीम के लिए प्रशिक्षित करने हेतु १ वर्षीय अल्पकालीन और २ वर्षीय दीर्घकालीन पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गयी|उस समय जबकि उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति गिने चुने ही मिलते थे, इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश की योग्यता हाई-स्कूल निर्धारित की गयी थी|


चूँकि उस समय तक भारत स्वतंत्र नहीं हो पाया था, अतः यह योजना असफल रही और स्वतंत्रता के पश्चात विकास के मुद्दों पर लालफीताशाही,नौकरशाही हावी हो गयी, लिहाजा सर्व शिक्षा के उद्देश्यों को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया|

तब से अब तक प्राथमिक शिक्षा को लेकर एक से एक बेहतरीन माडल प्रस्तुत किये जाते रहें और कभी नौकरशाही तो कभी हमारे देश का माननीय वर्ग उन सभी माडलों को नकारता रहा|

शिक्षा को लेकर न तो कभी केन्द्र सरकार गंभीर रही और न ही किसी राज्य ने ही इस संदर्भ में अपनी सक्रिय रूचि प्रदर्शित की|
सभी ने तालीम को एक निहायत ही गैर जरूरी चीज समझा और अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जानबूझ कर जनता को अशिक्षित रखा|
शिक्षकों के चयन में कभी भी पारदर्शिता नहीं बरती गयी यहाँ तक की प्रोफेसर साहब का कुत्ता भी डाक्टरेट की डीग्री लेकर सड़कों पर खुलेआम घूमने लगा और जब अति हो गयी तब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा और शोध के क्षेत्र में भी पात्रता का निर्धारण करना पड़ा|


यहाँ भी संपन्न वर्ग की ही सुनी गयी|
पात्रता के निर्धारण में न्यूनतम ५० प्रतिशत (आरक्षित वर्ग हेतु) तथा ५५ प्रतिशत (सामान्य वर्ग हेतु) की बाध्यता के साथ अकादमिक उपलब्धियों को सर्वोपरी माना गया|


समझ में नहीं आता की जब मनोविज्ञान पृथक पृथक कार्यों के लिए पृथक पृथक अभिरुचियों की बात करता है, तो प्रत्येक पदों के लिए पृथक पृथक चयन परीक्षाएं क्यों नहीं आयोजित की जाती?और जब इस तरह का कोई नवाचार हमारे सामने है तो कुत्सित राजनीति द्वारा राह को कंटकाकीर्ण करना किस तरह से जायज है?


हमारे देश का संविधान पद और अवसर के समता की बात करती है और राजनीति वर्ग विशेष का तुष्टिकरण करती है|जब इससे आजिज आकर हमारे देश का कोई प्रतिभाशाली युवक आजीविका की खोज में दूसरे देशों का आश्रय ग्रहण करता है तो इसे प्रतिभा पलायन कहा जाता है|स्वतंत्रता के बाद से आज तक हम खोते ही आ रहे है और अगर यही नीति रही तो हम आगे भी खोते रहेंगे –

निजामे मयकदा साकी बदलने की जरूरत है|
हजारों हैं सफे ऐसी,न मय आई,न जाम आया||


28 comments:

  1. MAYANK MISHRA JI K IS BLOG KO NEWS PAPER PAR PUBLISH KARAO DAINIK JAGRAN AUR AMAR UJALA K SAMPADKIY MEN.

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  2. Dosto ab kisi k sahare baithe rahane se kuch nahi hoga...ye aise hi sirf meeting baji hogi aur mang mangi jayegi...ab ye TET sangharsh morcha se vishwas uthne laga hai.inki koi ran niti samjjh me nahi arhi hai...
    Mai na koi adhyaksh hun na koi sangathan hai mere paas mai yaha blog se apki help mang rha hun kya aise 50 ladko ki bas jarurat hai jo mere sath amaran anshan par baith sake...hamare sidha elan rahega ya hame zahar dekar yahi maar dalo ya hamare sath nyay karo....bas ham ab nyay k ladayi ladenge...CM se puchhenge ki hamari kya galti hai kis baat ki saja ham 5months se bhugat rahe hai...hame kaun nyay dega...
    Bas dosto kisi ka muh matdekhiye...agar ap khud aage asakte hai toh mere sath aayi..hame koi taam jhaam nahi karna bas ham naukari lekar ayenge yaa jaan dekar ayenge...
    Agar itni kisi k andar ladne ki ichchha shakti hai toh wo mere sath aaye...darpok aur kayar logo ki koi jarurat nahi...jinhe anyay sahane ki adat ho wo ghar baithe...
    28 aprill ko ham amaran anshan par baithenge bas ham ekjut ho jaye iss baar...aar paar ki ladayi ladne ko kamar kas liya hai maine ab mera sath jo desakta hai aage aaye...ab faltu ki baat karne ka koi samay nahi bacha hai...
    Mera No 7275691995 hai mai varanasi se hun...

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    Replies
    1. @Srivastav ji, bro.. I'm with U! Mai bhi aana chahta hu! Mera no. 9897769893 h. Mere sath 5-10 log aa sakte hain.. 28 april k liye ready rahenge.. Touch me rahiyega..

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  3. Kisi ka muh mat dekhiye kisi ka intezar mat kijiye ye apki naukari hai apko khud leni hogi...bas 50 log ka sahyog mujhe chahiye jyda ho jaye toh aur behatar...aise 50 jo 28 april ko amaran anshan me mera sath de sake...yakin mainye naukari hame jarur milegi..
    Ashish srivastava

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  4. likh likh kar apna samay waste kyo karte ho? Hoga na khhuch is se/ kyo nahi samjhte ho?? Sab hai niraash sab hai hataash/ kitne dukh na jaane kitne hai bhog rahe?? Aao ab sahi ye mauka hai kuchh unke liye kare..aandolan bas aandolan hi ab bachta hai/ jo hame hamaare hak ko dila sakta hai/to chalo sabhi mil jaaye aur lucknow chale/ye sahi samay hai karne ka/aao aandolan kare..chalo lucknow chale 26 ya 27 april ko..jay sangharsh..

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  5. ham apna comment kisi tarah har tet aur government tak pahunca pate to bahut asar kart

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  6. अद्भुत एवं तार्किक सत्य॥ मयंक जी आप मुख्यमंत्री से मिले होते तो प्रकिया यथाशीघ्र प्रारँभ हो जाती।

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  7. सरकार द्वारा चयन प्रकिया मेँ किसी भी तरह का परिवर्तन करना अशोभनीय होगा॥ इसका परिणाम विस्फोटक हो सकता है॥

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  8. mayank ji aapne jo likha hai theek hai, history ke knowledge hogi kintu mudde ke sirf baat likhe to aur theek hai, hamara mamla sirf sarkar se nahi hai, subse bada masla court ka hai ek taraf s.c. Kehta hai ke mamlo ko jaldi se jaldi niptaye aur dusri darf sahi baat ko maanne me saalo lag jaate hai, agar mayawati ke sarkar hoti to meri garunti hai lucknow to dur apne dist. Ke me bhi hum pardharshan nahi kar pate, to thoda humko bhi jo likh rahe hai sayam bartana chahiye aur jis samay ke aap baat kar rahe ke maa ke pet se vidya chalu hoti the usi samaye kuch jaatyo ko mantra sunne par dund bhi diya jata tha, aapse anurodh hai ke sirf to the point ke baat post kare..thanx

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  9. mayank ji to the point baat likhna zyada achha hai,

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  10. Ashish ji apka prayas ati sarahniya hai aap jaise logo ki hamare grp ko sakt jaroorat hai.

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  11. ashish g ye 28 ki meeting kiske dwara prastawit hai.

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  12. Ese lekh logo UPTET jagrukata abhiyan tahat lakar sabhi ko news paper ke tahat pahuchaye jaye .

    Very good lekh likah gaya hai
    esko sabh uptet visitor apane email id ke jariye ya social site se logo tak pahuchaye.

    @Thanks@

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  16. special advice- aise condidates ki list banaye jo ki mayavati sarkar ke vigyapan ka form bharte samay age limit me the aur ab 6 month bad naye vigyapan ke liye over age ho jayenge. iss se coart casse me sahayta mil sakt hai.

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  17. bhaiyo hum sab jante hai ki kuch bhi ho last decision coart ka hi hoga isliye highcoart ka decision ane se pahle hi apne ko supreme coart ke liye taiyar ho jana chahiye....
    aur kuch bahut hi acche aur important
    proof against tet cancilation ekathe kar lene chahiye jisse hum SC me strong situation me pahuch sake....
    jaise kuch logo ki age limit khatam ho rahi hai....

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  18. bhaiyo hum sab jante hai ki kuch bhi ho last decision coart ka hi hoga isliye highcoart ka decision ane se pahle hi apne ko supreme coart ke liye taiyar ho jana chahiye....
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  19. intjaar kar kar ke kuchh nahi paoge/ab na kiya aandolan to pachhtaoge/kuchh na karoge to nahi ab kuchh hoga/aise hi ham sabse bas dhokha hoga/sashan apna nirnay yu hi sunaayega/mitti me zindgi hamaari milaaye ga/ kyu baithe rahe maun ab tum hi kaho/aandolan ke liye kyu na lucknow chalo/ chalo lucknow chalo..sangharsh zindabaad.tet zindabaad..

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  20. yaad rahe ki ye mishal banani hai ki log kahenge ki ek baar 72825 teacher ki vacancy ayi thi aur uspar coart stay ho gaya tha lekin kuch junun tha un tetians me jo unhone apna haq aur apne do bhaiyo ki maut ka badla le kar hi dam liya tha...
    bhaiyo hum piche nahi hatenge aage bhadhenge aur jitenge...

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  21. Bhai bahut sahi likhe hai. U.P. govt ko achhi tarah se dhone ke liye thanks.

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  22. Bhai, bahut sahi likhe hai. U.P. govt ko achhi tarah se dhone ke liye thanks.

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  23. hume sirf tet merit ke liye hi andolan karna hai jabse visith b.t.c. start hua hai tub se sirrf cbse board ko teacher banaya gaya hai sabhi jante hai b.ed ke practical me sirf paise de ker no liye jate yadi bharti tet merit se ho to walo ki andhadhund paise ki vasuli band ho jayegi tub jo ministro ko B.Ed college se milne wala paisa band ho jayega bhrastachar bana rahe isliye acd ki baat ho rahi hai mera dawa hai ki yadi entrence exam se bharti hogi to barastachar band hoga or baache up board ke qualified teacher milenge.or AAJ HI H.C NE PRACHARYO KI BHARTI RUD KI HAI KYONKEE USME ENTRENCE KI JAGAH ACD MERIT KE AADHAR PER NIYUKTI HUI THI ATAH HIGH COURT NE NIYUKTI AAJ HI RUD KI HAI AAJ BADLOW KE IS DOUR ME EK TET MERIT KE LIYE BADA ANDOLUN JAROORI HAI ATH 28 KO LUKNOW CHALO LUKNOW CHALO LUKNOW CHALO LUKNOW CHALO

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  24. bharti tet merit se hi ho

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