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Tuesday, April 17, 2012

UPTET : टीईटी : छूट का प्रावधान, फिर क्यों फरियाद? - नूरा कुश्ती


UPTET : टीईटी : छूट का प्रावधान, फिर क्यों फरियाद? -  नूरा कुश्ती 

सहारनपुर: कई राज्यों में टीईटी प्रक्रिया परवान नहीं चढ़ सकी है। केवल उत्तर प्रदेश ने केंद्र सरकार से मार्च 2015 तक बीएड डिग्रीधारकों के लिए समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध किया है, जबकि टीईटी एक्ट में नियमों को शिथिल कर भ‌र्त्ती का अधिकार राज्य सरकार के पास है। नियमों के उलटफेर में उलझी प्रक्रिया के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह् लग रहा है।

प्राथमिक व जूनियर स्कूलों में शिक्षकों की भ‌र्त्ती के मानक तैयार करने के लिए एनसीटीई द्वारा टीईटी को अनिवार्य किया गया है। हालांकि इसे पात्रता परीक्षा की श्रेणी में शामिल किया गया है, लेकिन साथ ही राज्य सरकारों को छूट दी गई है कि वह इसके आधार में बदलाव कर सकते हैं। बता दें कि प्रदेश में तत्कालीन बसपा सरकार ने टीईटी की मेरिट को ही शिक्षक नियुक्ति का आधार बना दिया था। कई पेचों में उलझी यह प्रक्रिया अभी तक लटकी है।

कई राज्यों में उलझी है प्रक्रिया

टीईटी से प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया अभी तक कई राज्यों में परवान नहीं चढ़ सकी है। सूत्रों के मुताबिक हरियाणा में पैरा टीचर्स को लेकर मामला फंसा है। इसके अलावा पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड व छत्तीसगढ़ आदि में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। बताया जाता है कि एक जनवरी 2012 तक टीईटी उत्तीर्ण बीएड डिग्रीधारकों की शिक्षक पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया अधिकांश राज्य पूरी नहीं कर सके हैं। उत्तर प्रदेश में कानूनी पेंच व घोटाले के भंवर में मामला फंसा है।

एक्ट में छूट का प्रावधान!


विभागीय सूत्रों के मुताबिक एनसीटीई द्वारा बनाए गए टीईटी एक्ट में राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वह 31 मार्च 2015 तक शिक्षकों की भ‌र्त्ती करने के लिए नियमों को शिथिल कर सकती है। बताते हैं कि किसी भी राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार से बीएड डिग्रीधारकों के लिए टीईटी को और समय देने का अनुरोध नहीं किया है। केवल उत्तर प्रदेश ने केन्द्र सरकार से 31 मार्च 2015 तक समय बढ़ाने की फरियाद की है। बहरहाल सवाल पैदा होता है कि क्या प्रदेश में टीईटी एक्ट के प्रावधानों को समझने में नासमझी हुई है? या फिर मामले को उलझाने के लिए यह सब नूरा कुश्ती चल रही है।

News : Jagran (16.4.12)

21 comments:

  1. tet ko govt.kisi alag sanstha jaiae ki sangh lok seva ayog ki tarah alag se karaye to ghotalo se bacha jaa sakta hai...

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  2. SARKAR IS VACANCY KO VOTE BANK BANA RAHI HAI.

    VACANCY KEWAL 2011 TET SE AUR TET BASE SE HI JALDI BHARI JA SAKTI HAI.

    KISI BHI BADLAW KA MATLAB HAI KI VACANCY LATKANA.

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  3. Dost agar exam uppsc lene lage to munna bhaiyo aur munni bahino ka kya hoga, sarkar ko to inko bi leke chalna hai.

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  4. yadi prawdhan hai to faryad karne ki kya zaroorat hai?

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  5. Frnds c.m. Ne kendra se 31 march 2015 tak b.ed ko 1 to 5 me vailid karne ki jo mang ki hai, wah puri tarah se rajneeti se prerit hai. C.m. Ko berojgari bhatta dena hai, laptop aur tablet dene hai, aur bahut yojnayein hai, uski liye c.m. Ko dhan chahiye, unhe b.ed berojgar achha chara nazar aye hai, jo unki yojnao k liye dhan uplabdh karane k karan banenge. 2015 tak 6 bar ya 3 bar tet hoga , isse sarkar ko carodon rupeye milenge, jinse vo apni chunavi vaade porey karenge. To lutane aur barbad hone k liye taiyar ho jaye.

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  6. lagta hai saare tetians naukri karne chale gaye

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  7. 2015 date maang kar cm sahab apne mulayam papa ko PM banane ke funde apna raeh hai janta ko kuch bhala ho na ho par mulayam ka bhala jarur ho jayega.dono baap bete jamke janta ko lutenge aur 2015 tak sarkar 4 baar tet karake malamaal ho chuki hogi kyoki b.ed walo ki sankhya jyada hai inki date 2015 tak mangenge to hi jyada kamayi hogi BTC wale to mehaj 25000 tak hi honge inse sarkar kya maje le payegi.sab to exam karne main kharch ho jayega isliye b.ed walo ko 2015 tak ghasitne se sarkari mantri malamaal ho jayenge.

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  8. sarkar ko jald se jald tet abhyarthiyon k pach main ek thos nirnaya dena chahiye

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  9. sarkar ko jald se jald tet abhyarthiyon k pach main ek thos nirnaya dena chahiye

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  10. Koi kaam karne k hajaar bahane and na karne k bhi hajaar.govt ko mayawati ji ka pura homework kia hua mil raha hai to bajai kaam karne ke ye bhi talla de rahe.LETS GO TO SUPREME COURT.DNT DELAY PLZZZZZZZZZ.

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  11. ADITYA FAIZABAD,EXAME koi bhi sanstha le lekin decission lene ke liye political will power bahut jarroore hai.

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  12. dear tet holders tet paas b.ed. berojgaro ke sambandh mai roj nayi nayi khabre aa rahi hai hum tet holders ka har parkar se utpidan kiya ja raha hai dosto ab samay aa gaya hai hame apni takat ko dikhana hoga sabse pahle hame stay ke khilaaf supreem court mai writ dalni hogi iske baad bharti ke liye dabav banane ko shantipurn dhang se aandolan karna hoga anyatha gov. hame yun hi latkaye rakhegi. ashish rajvanshi mzn 9927756345

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  13. Kal hamare leaders c.m. se milne ja rahe hai. Sab aapne ist devta se pray karo.ki kal ki meeting sahi ho.agar jyada tension ho to listen heart touching song of Sai baba"deewana tera aaya baba teri sirdi me.too melodious voice of singer.

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  14. is baat ka pata to is month ke last tak chal jayega ki sarkar vastav me bharti karna chahati hai ya vote bank banane ke firak me hai.lekin sarkar ko sochana padega ki jo hal cogress ka delhi ke mcd chunav me hua hai vahi hal sp ka u.p me na ho jaye.

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  15. IS tet ko patrata hi rahane dena chahiye varna aur vibhago ki tarah prt me bhi ek bhi post bina paise k nahi bhara ja sakata kyaki is countary me 99'/.log baiman hai aur paise k liye kisi bhi hada tak gir sakate hai jaisa tet me dekhane ko mila koi soch bhi nahi sakata tha ki itani satarkata k baad bhi itana bada dhadhali ho sakata hai aur vibhag ka mukhiya hee isame lipta hoga.filahal lok seva ayog ki karya pradali bhi kuchh year se sandeho me hai .atah jab 100me 99 baiman hai to kisi bhi agency par belive nahi kiya ja sakata kyaki vartaman samay me logo k liye sabase badakar paisa ho gaya hai.

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  16. Kal c.m. Sir ke samne hamare jo do tet pass mtr swargvasi ho gaye hai,unke bare me bhi bataye aur unke parivar aur bachcho ke liye help mange.c.m. Sir ke bhi 3 bachche hai aur hamare Angad ji ke bhi 3 abodh bachche hai.

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  17. Dear chief ministerji
    KYU BACHCHO KI JAAN LE RAHE?sahi decision lijiye and appointment kijiye.itna dippression to kabhi nahi hua aaj tak.

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  18. यूपीटीईटी-बहुत कठिन है डगर पनघट की

    भ्रष्टाचार का आरोप मढ़कर हम अपनी असफलता छुपा सकते हैं और सच का गला भी घोंट सकते हैं,विशेषकर जब यह बात उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश में शिक्षा की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में कही जा रही हो तब हमें इस कथन की सत्यता जांचने के लिए अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ेगा|पूरे प्रदेश में इस बात को जोर शोर से प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है की उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा नवम्बर में आयोजित परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई और अब इस आधार पर इस परीक्षा को रद्द कर देना चाहिए|मजे की बात तो यह है की परीक्षा में प्राथमिक स्तर पर लगभग २ लाख ७० हजार अभ्यर्थी उत्तीर्ण घोषित किये गए|क्या इसका यह अर्थ है की प्राथमिक स्तर पर परीक्षा में उत्तीर्ण समस्त २ लाख ७० हजार अभ्यर्थी बेईमान हैं?फिलहाल कथित टीईटी घोटाले के आरोप में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद निदेशक श्री संजय मोहन समेत माध्यमिक शिक्षा परिषद के कुछ अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी हिरासत में हैं,उन पर गैंगेस्टर लग चुका है और मामले की तफ्तीश चल रही है|
    हमें यह नहीं भूलना चाहिए की उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय श्री अखिलेश यादव अपनी चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री बनने से पहले ही टीईटी निरस्त करने की सार्वजनिक घोषणा कर चुके हैं और इस घोषणा को आधार मानकर उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी तथा मीडिया का एक विशिष्ट वर्ग उत्तर प्रदेश विधानसभा में समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत पाता देखकर मतगणना की शाम से ही टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करने लगा|टीईटी के आधार पर नियुक्ति की मांग कर रहे अभ्यर्थियों पर पुलिसकर्मियों द्वारा बर्बरतापूर्ण लाठियां भी बरसाई गई|यही नहीं, विधानसभा के बाहर क्रमिक अनशन पर बैठे आंदोलनरत अभ्यर्थियों की व्यथा को किसी ने भी संज्ञान में लेने की आवश्यकता नहीं समझी और वर्तमान शासन ने भी टीईटी को लेकर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है|टीईटी को लेकर असमंजस और उससे उपजे अवसाद के चलते संत कबीर नगर के अंगद चौरसिया और बुलंद शहर के महेंद्र सिंह की मृत्यु हो चुकी है|इससे पहले भी एक टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी की माँ नकारात्मक समाचार सुनकर स्वर्ग सिधार चुकी है|इन सब ख़बरों को लेकर हमारा युवा हतोत्साहित है और आक्रोशित भी|(part-1)

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  19. (part-2)हमें समस्या के मूल में जाना होगा|जनता को यह जानने का हक है की उसके खून पसीने की कमाई कहाँ जाती है और नौनिहालों की शिक्षा पर होने वाले व्यय की क्या सार्थकता है? हमारे देश को आजाद हुए ६४ वर्ष से अधिक हो गए हैं,हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने पराधीन भारत में स्वतंत्र भारत का जो स्वप्न देखा था,हम उसके आस पास भी नहीं हैं|अपने अधिकारों और कर्तव्यों की कौन कहे,इन ६४ सालों में हम आज तक समग्र साक्षरता के मह्त्वाकांक्षी लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर पाए हैं|हालांकि,इतने सालों में हमने अच्छी उपलब्धि हासिल की है और आज साक्षरता के क्षेत्र में हम ब्रिटिश राज के १२ प्रतिशत के आकडें को पार करते हुए २०११ के आंकड़ों के अनुसार ७५.०४ प्रतिशत तक पहुँच गए हैं किन्तु तुलनात्मक दृष्टि से हम आज भी विश्व साक्षरता के औसत (८४ प्रतिशत) से भी लगभग १० अंक निचले पायदान पर स्थित हैं|बात यही पर खत्म नहीं होती है,यदि हम नेपाल,बंगलादेश और पाकिस्तान जैसे संसाधनविहीन देशों को छोड़ दे तो हमारे अन्य पडोसी मसलन चीन,म्यामार,यहाँ तक की श्रीलंका जैसे छोटे देश भी साक्षरता के क्षेत्र में ९० प्रतिशत से ऊपर पहुँच चुके है|ध्यातव्य है की साक्षरता के ये आंकड़े ७ वर्ष से ऊपर आयु वर्ग की जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं|
    हम योजना दर योजना मूल्य आधारित,गुणवत्तापरक और सामूहिक शिक्षा की बात करते तो हैं किन्तु जब इन्हें अमली जामा पहनाने का वक्त आता है तो हम बजट की कमी का रोना रोने लगते हैं|राज्य, केन्द्र पर दोषारोपण करता है और केन्द्र सरकार राज्यों को दोषी ठहराने लगती है|वर्तमान में भारत शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र ४.१ फीसदी व्यय कर रहा है जो आगे बढ़ कर लगभग ६ फीसदी होने का अनुमान है|सर्व शिक्षा अभियान केन्द्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जो शत प्रतिशत साक्षरता और शत प्रतिशत स्कूली शिक्षा के ध्येय को समर्पित है|सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत केन्द्र, राज्यों के प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले समस्त व्यय का ६५ प्रतिशत स्वयं वहन करती है और शेष ३५ प्रतिशत व्यय राज्य सरकार वहन करती है|विशिष्ट बी टी सी से पूर्व प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का सारा दारोमदार बी टी सी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों पर ही निर्भर था किन्तु योग्य अध्यापकों की अनुपलब्धता के चलते बी. एड. उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को भी प्राथमिक शिक्षा के लिए अर्ह मानते हुए १९९८ से विशिष्ट बी टी सी की व्यवस्था अपनाई गयी|नयी व्यवस्था होने के कारण इसका विरोध हुआ किन्तु तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की दृढता के चलते किसी की भी एक न चली और राज्य में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए|२००१ में विशिष्ट बी टी सी के आवेदन तो निकाले गए किन्तु तकनिकी बाधाओं के चलते नियुक्तियां नहीं हो पायी|२००४ और २००८ में पुनः विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से राज्य में प्राथमिक शिक्षकों का चयन किया गया|
    चूंकि इस प्रक्रिया में चयन का आधार मात्र अकादमिक उपलब्धियां थी अतः अनेक मेधावी छात्र जिनकी अकादमिक उपलब्धि संतोषजनक थी,अध्यापक बनने की प्रक्रिया से बाहर हो गए|दूसरी ओर,ऐसे अभ्यर्थी जिनके पास तकनिकी अथवा जुगाडू डिग्रियां थी, प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापक नियुक्त कर लिए गए|शिक्षा के क्षेत्र में फर्जीवाडा कोई नई बात नहीं है|किसी दूसरे के स्थान पर परीक्षा दे देना,डिग्रियों में हेर फेर,प्रश्न पत्र आउट करवा देना यहाँ तक की संसाधनों के नितांत अभाव के बावजूद उच्च शिक्षण संस्थान संचालित करने की मान्यता प्राप्त कर लेना सब कुछ चलता है|जनता यह जानना चाहती है की उत्तर प्रदेश में नक़ल माफियाओं और शिक्षा माफियाओं की जड़े कितनी गहरी है और हाल ही में बोर्ड परीक्षाओं के दौरान प्रश्न पत्र लीक होने की घटनाओं को कितनी गंभीरता से लिया गया और उस पर अब तक क्या क्या कार्यवाहियां हुई हैं?अभी हाल ही में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर बिंदा प्रसाद मिश्र ने अपनी हत्या की साजिश रचे जाने की आशंका व्यक्त की है|कारण स्पष्ट है, कुलपति महोदय शिक्षा माफियाओं के राह में रोड़ा बने हुए है और प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त अध्यापकों के अंकपत्रों तथा प्रमाण पत्रों के सत्यापन में अपना सहयोग दे रहे हैं|

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  20. (part-3)इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और फर्जीवाड़े पर लगाम लगा कर योग्यता के वास्तविक पहचान के लिए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने अध्यापक पात्रता परीक्षा आयोजित करने का निश्चय किया|उत्तर प्रदेश में आयोजित टीईटी की परीक्षा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के मानकों के अनुरूप ही हुई थी और इस परीक्षा में पारदर्शिता तथा शुचिता बनाये रखे जाने का पूर्ण प्रबंध किया गया था|खेद का विषय है की राज्य सरकार द्वारा मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति टीईटी के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति के बिंदु तलाशने के स्थान पर इस प्रक्रिया को निरस्त किये जाने के बिंदु तलाशने में अपनी ऊर्जा अधिक व्यय कर रही है|सोचने की बात तो यह है की ९० मिनट की सार्वभौमिक(टीईटी अभ्यर्थियों के लिए) समय सीमा के अंदर जो अभ्यर्थी ९० अंक (सामान्य वर्ग के लिए) भी नहीं ला सका, वह प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त होने का किस तरह का नैतिक आधार रखता है? और उसे प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त ही क्यों किया जाय जबकि वह निर्धारित समय सीमा के अंदर कक्षा ८ स्तर तक के प्रश्नों का भी समुचित उत्तर नहीं दे सका?अब यदि यह मान भी लिया जाय की माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में जो भी अंक बढ़ाये गए, उनमे धांधली हुई है तो इसका दोषी वह प्रतिभाशाली युवक कैसे है, जिसने स्वयं के बल परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त किये और इस आधार पर वह प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त होने का नैतिक आधार रखता है?आप नियुक्ति के पश्चात भी जांच करवा सकते हैं और आपका यह अधिकार संवैधानिक भी है किन्तु यदि संजय मोहन को आधार बनाकर इस प्रक्रिया को निरस्त किया जाता है तो हमें यह कहना होगा उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार का पौधा एक दरख्त बन चुका है क्योंकि मात्र राजनैतिक विद्वेष के चलते एक अच्छी व्यवस्था को लागू होने से पहले ही खत्म कर दिया गया|प्रधान,शिक्षा मित्र और बीएसए गठजोड़ हमारे प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा को पहले ही निगल चुका है|

    Commented by Manoj kumar "Mayank"

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  21. क्या जमाना आ गया है दोस्तों, आज तो हमे अंधे भी रास्ता दिखा रहे हैं!

    दैनिक जागरण (16.04.2012) की खबर पढ़कर लग रहा है कि किसी ज़माने में स्व. नरेन्द्र मोहन जैसे कर्मयोगी और निर्भीक पत्रकारों द्वारा प्रेरित यह समाचार पत्र आज अंधे मूर्खों द्वारा संचालित या सम्पादित हो रहा है जो पत्रकारिता के विश्वसनीयता और जिम्मेदारी जैसे दायित्वों को दफना चुके हैं. किसी सामान्य पढ़े-लिखे व्यक्ति को भी पता है कि टी.ई.टी. एक्ट नाम का कोई एक्ट नहीं है न ही एन.सी.टी.ई. को कोई एक्ट बनाने का अधिकार है. वास्तव में संसद द्वारा पारित "राईट ऑफ़ फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन टू चिल्ड्रेन एक्ट, 2010" में एन.सी.टी.ई. को इस एक्ट के दायरे में आनेवाली विद्यालयों में शिक्षकों के तौर पे नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यताएं निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है. एक्ट के अनुसार यदि किसी राज्य में पर्याप्त संख्या में योग्य अभ्यर्थी नहीं है या ऐसी योग्यता प्रदान करने वाले संस्थान पर्याप्त संख्या में नहीं हैं तो केंद्र सरकार, राज्य सरकार द्वारा इस आशय का अनुरोध प्राप्त होने पर एक निश्चित अवधि के लिए, जो एक्ट के प्रभावी होने की तिथि, (01.04.2010) से पांच वर्ष से अधिक न होगी, अध्यापक के लिए नियुक्ति के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यताओं को एक अधिसूचना के माध्यम से शिथिल कर छूट प्रदान कर सकती है. पर ध्यान दें कि एक्ट में स्पष्ट है कि भले केंद्र सरकार शैक्षणिक योग्यता में भले राज्य के अनुरोध पर अधिकतम पांच वर्ष के लिए छूट दे सकती है पर एक्ट के अनुसार टी.ई.टी. से छूट, एन.सी.टी.ई. तो क्या, खुद केंद्र सरकार चाहकर भी नहीं दे सकती जबतक एक्ट में संसद द्वारा संशोधन करके ऐसा प्रावधान न किया जाये जो कि अभी दूर की कौड़ी है.
    ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री से बी.एड. डिग्री-धारकों की प्राइमरी स्कूलों में अध्यापक के तौर पर नियुक्ति के लिए समय सीमा बढ़ाने की मांग तो फिर भी क़ानूनी तौर पे सही है पर "विभागीय सूत्रों के मुताबिक" जैसे जुमलों की आड़ में ये चालाक-सह-मूर्ख संवाददाता केवल पन्ना काला करने के लिए मनगढ़ंत बातें, जैसे "एन.सी.टी.ई. के बनाये टी.ई.टी. एक्ट (भारत में ऐसा कोई एक्ट नहीं है) में राज्य सरकारों को अधिकार है कि वह 31 मार्च 2012 तक शिक्षकों की भर्ती के लिए नियम शिथिल कर सकती हैं." गैरजिम्मेदाराना तरीके से फैला रहे हैं. असल में अगर राज्य केंद्र द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत संचालित विद्यालयों के सञ्चालन के लिए दी जानेवाली 65 फीसदी अंशदान पाना चाहता है तो उसे इस अधिनियम के दायरे में नियमावली बनाकर अधिसूचित करना होगा जैसा कि मायावती शासनकाल में किया गया. राज्य को अगर यह मदद चाहिए तो उन्हें एन.सी.टी.ई. द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना ही होगा, हाँ, पर्याप्त अध्यापन-प्रशिक्षण संस्थान और अर्ह अभ्यर्थी उपलब्ध न होने पर राज्य केंन्द्र सरकार से एक अवधि तक शैक्षणिक योग्यता में शिथिलीकरण का अनुरोध तो कर सकती है, खुद नहीं कर सकती जैसा कि इस अख़बार ने छाप दिया.
    रही बात हरयाणा की, तो हरियाणा में गैर-टी.ई.टी.उत्तीर्ण शिक्षकों की नियुक्ति की दशा में उनको मिलने वाली केन्द्रीय सहायता में रोक लगनी तय है अगर यह मामला उचित मंचों पर उठाया जाता है. और दूसरी बात, अगर कही कुछ गैर-कानूनी हो रहा है तो हमे भी कुछ गैर-कानूनी करने का अधिकार नहीं मिल जाता. ध्यान दें की यहाँ मैं नैतिक आधार पर सही-गलत की बात नहीं कर रहा, वर्तमान प्रभावी कानूनों के आलोक में वैध-अवैध की बात कर रहें है.
    कृपया अख़बार मनोरंजन के लिए भले पढ़े पर कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर स्वयं उचित संसाधनों या जरियों से जानकारी प्राप्त करें न कि जागरण जैसे अख़बारों से.

    श्याम देव मिश्रा

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