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Sunday, June 30, 2013

Tareekh Par Tareekh Dene Vale Jajon (Judges) Par Lagegaaa Jurmana

Tareekh Par Tareekh Dene Vale Jajon 

(Judges) Par Lagegaaa Jurmana



14 comments:

  1. उम्मीद है कल सभी रिट पर एक साथ सुनवाई की वास्तविक तिथि निर्धारित हो जाएगी

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  2. Tet sathiyo
    Namaskar
    TET update nimnwat hai
    (1)-abhi apni file A.P. shahi k court me fansi hai
    ummid hai ki kal shaam tk use nikalane me hum
    sabhi kamyab ho jay (2)- writ no. 237/2013 advocate V.K.Singh ka case
    Harkauli g k paas 29 no par lagi hai.
    (3)- ses rito k saath-saath, 237/2013 ki bhi sunwayi
    ki jay (tatha un sabhi ko ek saath manga liya jay k
    sambandh me application aaj draft hokar advocate
    V.K.Singh dwara taiyar kiya gaya hai jo kal 237 pr bahas k saath prastut kiya jayega .
    (4)- sab kuchh thik raha to 1 ya 2 july me ye tay
    hoga agali sunwayi ki date KB pad rahi hai .
    (5)- Dua kariye kal ka din humare liye subh ho Jay TET

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  3. बरसात के मौसम है ऐसे में अगर आप का फोन पानी में भीग जाए तो परेशानी होना स्वभाविक है।
    आइये जानते हैं पानी में गिरे मोबाइल को कैसे सुखाएं, मोबाइल फोन एक ऐसा गैजेट है जिसे आप चाहें तो कहीं भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं जैसे बाथरूम, किचन, गार्डेन में ऐसे मे मोबाइल के भीगने का खतरा दुगना रहता है। अगर बरसात का मौसम हो तब तो मोबाइल फोन का खास ध्‍यान रखना चाहिए। काफी लोगों से इस बारे में बात करने पर पता चला ज्‍यादातर लोग अपने फोन को धूप में रख देते हैं लेकिन बाद में उनका फोन तो सही काम करने लगता है लेकिन स्‍क्रीन खराब हो जाती है। ऐसे ही कई लोग फोन को सुखाने के लिए अनोखे तरीके अपनाते हैं।

    जैसे ओवन में फोन को रख कर सुखाना, हीटर के ऊपर रखना। लेकिन ये सभी तरीके आपके फोन को खराब कर सकते हैं मैं आपको कुछ ऐसे तरीके बताता हूँ जिनकी मदद से आप बिना किसी नुकसान के अपना फोन सुखा सकते हैं। फोन को सुखाने से पहले कुछ बातों का ध्‍यान रखें सबसे पहले अपने फोन को स्‍विच ऑफ कर दें। फोन भीग जाने पर कभी भी उसे ऑन करने की कोशिश न करें फोन में अंतर शार्ट सर्किट हो सकता है। फोन स्‍विच ऑफ करने के बाद उसके बैक पैनल को ओपेन करें और बैटरी, सिम कि अलावा मैमोरी कार्ड अलग कर दें। अगर आपके पास टिशू पेपर है और फोन के ऊपरी भाग में पानी दिख रहा हो तो टिशू पेपर से उसे साफ कर दें। लेकिन ध्‍यान से टिशू पेपर पानी में रखते ही अपने आप पानी सोख लेगा कभी भी पेपर को फोन की चिप में रगड़े नहीं। अब एक बॉउल में चावल ले भर कर लें, चावल सभी लोगों के घर में आसानी से उपलब्‍ध रहता है। बाउल में भरे चावल में अपने फोन की बैटरी, सिम, और फोन को रख दे, फोन को चावल के थोड़ा अंदर तक रखें। अब बाउल को थोड़ी देर के लिए धूप में रख दें, इससे आपका फोन धूप में खराब भी नहीं होगा और चावल गर्म होने के से फोन के अंदर का पानी सूख जाएगा। धूप में थोड़ी देर रखने के बाद आप अपने फोन को चावल से निकाल कर ध्‍यान से देख लें कि फोन के ऑडियो पोर्ट में और जैक में चावल के दाने तो नहीं चले गए है। जैक और पोर्ट चेक करने के बाद फोन में बैटरी और सिम लगाकर ऑन करके देखें आपको फोन पहले की तरह काम करने लगेगा ।

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  4. वो मुझसे कहती थी उसके
    जैसी कभी नहीं मिलेगी .....
    .
    .
    .
    . .
    .javascript:void(0)
    .
    ..
    .
    मैंने उसका नाम लिख कर फेसबुक पर सर्च किया तो 121 और
    मिल गयी ....
    लड़कियों की कमी नहीं है भाई

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  5. Wo kehti hai tumhari batain achchhi lagti hain
    Mein kehta hoon sooraj ki roshni tumko sazti hai

    Woh kahti hai tumhari baton mein apnaiyet hai
    Mein kehta hoon muhabbat rafta rafta badhti hai

    Woh kehti hai itney din bad miley ho
    Mein kehta hoon shayed sadiyan beet gai hain

    Woh kehti hai meri zindagi mein khawab buhat hain
    Mein kehta hoon sarey khawab samet lo

    Woh kehti hai kya ab bhi mujhko chahtey ho?
    Mein kehta hoon tumhein khabar nahi hai shayed

    Woh kehti hai dekho amawas ki raat hai
    Mein kehta hoon haan chand mere pehloo me hai

    Woh kehti hai zindagi kitni khoobsurat hai
    Mein kehta hoon zara aik sapna tootney do

    Woh kehti hai mousam buhat pyara hai
    Mein kehta hoon zara tanhai me dekhna

    Woh kehti hai dekho saawan barasta hai
    Mein kehta hoon haan badal akser rota hai

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  6. Bari Mushkil se Sulaaya tha Khud Ko Main ne Aaj...!
    Apni Aaankon Ko Tere Khuwaab Ka Laalach Day Ker.....!

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  7. ApNi Neend sE MujhE kuCh yon b bohot PeyAr hy
    K UsNe kAhA thA “MujhE pÄnÄ TuMhArE LiyE sirf Ek KhÄwÄb hy.

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  8. मेरी समझ मे ये नही आ रहा है कि टेट 2013 जब एक पात्रता परीक्षा है तब ये नंबर का खेल क्यो ? सिर्फ क्वालीफाई अथवा डिसक्वालीफाई क्यो नही किया गया|

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  9. उन्हें बाबरी याद है ...... और हम सोमनाथ
    को भूल गए ....
    उन्हें गौरी-औरंगजेब पे फक्र है ....... और
    उनको धुल चटाने वाले चौहानऔर शिवाजी को भूल
    गए
    उन्हें मुगलिया काल पे नाज है ........और हम
    हल्दी घाटी को भूल गए ......
    वो अकबर को महान कहते है .......... हम जौहर
    प्रथा को भूल गए ....
    उन्हें १९९२ याद है ....... हम ४७ के बंगाल दंगे
    को भूल गए
    उन्हें गुजरात याद है ....... हम गोधरा को भूल
    गए .....
    उन्हें १९८९ भागलपुर याद है ....... हम 1990
    काण्ड कश्मीरी पंडितो कोभूल गए
    उन्हें बंगाल से केरल तक "हरे रंग" में रंगा अलग
    चाहिए .... और हम बार-बार खंडित हुए अखंड
    भारत को भूल गए
    उन्हें हिंदुस्तान का मुकुट कश्मीर अलग
    चाहिए ....... और हम गुलाम कश्मीर को भी भूल
    गए ...
    उन्हें सब कुछ याद है ............
    हम सब कुछ

    भूल गए...
    सब कुछ
    भूल गए...
    सब कुछ
    भूल गए...

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  10. शिक्षामित्र व अनुदेशकों के भरोसे शिक्षा
    मुंह चिढ़ा रहीं शिक्षा की दर्जन भर योजनाएं
    बी. सिंह
    इलाहाबाद। अनपढ़ों तथा स्कूल न पहुंच पाने वाले
    गरीब दलित छात्रों को शिक्षित बनाने और
    शिक्षा की मुख्य धारा में लाने के लिए सामाजिक
    शिक्षा, ग्राम शिक्षा मुहीम, फारमर्स फंक्शनल
    लिटरेसी प्रोग्राम, वर्कर्स एजुकेशन प्रोग्राम,
    नानफारमर्स एजुकेशन फॉर यूथ, राष्ट्रीय प्रौढ़
    शिक्षा, ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड
    जैसी दर्जनों योजनाएं शुरू की गईं। गरीब
    तथा दलित की शिक्षा तो मजबूत नहीं हुई और न
    आगे बढ़ पाई। उल्टे ये योजनाएं गरीबों को मुंह
    चिढ़ाने, लूट-खसोट तथा नौकरशाहों और उनके
    आकाओं के लिए कमाई का जरिया जरूर साबित
    हुई। दूसरी ओर स्कूलों में
    शिक्षकों की कमी बनी हुई है। कई ऐसे स्कूल हैं
    जहां एक भी अध्यापक नहीं हैं और ऐसे भी स्कूल हैं
    जहां एक ऐसा अध्यापक तैनात हैं
    जो सरकारी योजनाओं में उलझा रहता है।
    ऐसे में सर्व शिक्षा अभियान को बराबर
    पलीता लग रहा है। अभी भी सूबे में 2.75 लाख
    शिक्षकों की जरूरत बनी हुई है।
    शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी उलझी
    कठिन हो गई है कि वह आगे बढ़ ही नहीं पा रही है।
    शिक्षामित्रों तथा अनुदेशकों के सहारे बेसिक
    शिक्षा की गाड़ी कब तक चलेगी। इसका जवाब
    कोई नहीं दे पा रहा है। इन योजनाओं के असफल
    होने और पहले की जारी हुई योजनाओं के बजट
    को पचाने के लिए सर्वशिक्षा अभियान के नाम से
    एक नई योजना शुरू की गई। सरकार इस
    योजना की सफलता का चाहे जितनी ढोल पीटे
    लेकिन हकीकत यह है कि स्कूलों में बच्चे जुटाने
    और पंजीकरण बढ़ाने के नाम पर मुफ्त मिड डे मील,
    मुफ्त किताबें, ड्रेस तथा बिना स्कूल आए
    छात्रवृत्ति बांटने में
    ही गरीबों तथा दलितों को शिक्षा देने का दावा गुम
    होता जा रहा है। सरकार प्राथमिक स्कूलों में
    सबकुछ दे रही है लेकिन पढ़ाई केनाम पर कहीं कुछ
    नहीं दिखाई दे रहा है। वही पड़ोस में निजी चलने
    वाले स्कूलों में अधिक फीस लेने के बाद भी भीड़ हर
    वर्ष बढ़ती जा रही है।मुंह
    चिढ़ा रहीं शिक्षा की दर्जन भर योजनाए

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  11. देश को नाज है आप पर........भारत माँ की रक्षा के लिये हमेशा तत्पर.......केवल एक मंद मोहन को छोडकर .........लुटेरो की गोद मे बैठ कर .....मौनी बाबा बन गया.....

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  12. अभी इस निर्णय पर पहुँच जाना जल्दबाजी होगी कि इस मामले में प्रथम या द्वितीय सेमेस्टर अध्ययनरत होने के बावजूद टेट में आवेदन कर के उत्तीर्ण हो जाने वाले अभ्यर्थियों को वर्तमान भर्ती-प्रक्रिया से बाहर किये जाने के मामले में कोर्ट इस आधार पर कतई राहत नहीं देगा कि उन्होंने टेट विज्ञापन की शर्तो को स्वीकार करते हुए आवेदन किया था। दूर मत जाइये, 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती-प्रक्रिया के 30.11.2011 को प्रकाशित विज्ञापन में दिए गए नियमों के अनुसार आवेदन करने के बाद भी, यानी आपके अनुसार विज्ञापन की शर्तें स्वीकार करने के बावजूद, यादव कपिलदेव लालबहादुर ने न सिर्फ विज्ञापन की वैधता को चुनौती दी बल्कि उसपर ऐसा स्थगनादेश लगवाने में सफल रहे, जो एकल पीठ में कभी नहीं हटा।
    चूँकि यह मामला केवल दो व्यक्तियों के बीच के व्यक्तिगत हित के मुद्दे के तौर पर नहीं, ऐसे मुद्दे के तौर पर पेश किया जाना तय है जो,
    1. आजीविका के अधिकार, जो नागरिको को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार यानी "जीने के अधिकार" के अंतर्गत आता है,
    2. सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार से सम्बंधित है, जहां राज्य से एक आदर्श नियोजक होने की अपेक्षा की जाती है (सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा जारी निर्देश के अनुसार)
    3. राज्य द्वारा विधि-विरुद्ध किये गए कार्य के संरक्षण का है (जबकि न्यायपालिका का स्थापित सिद्धांत है - A patent illegality can not be allowed to continue.)
    3. प्रथम दृष्ट्या राज्य सरकार द्वारा की गई लापरवाही से, गलती से या इरादतन अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर एक विधि द्वारा जनित, संरक्षित और प्रभावी नियमो के विरुद्ध एक अवैध निर्णय लेने, उसे क्रियान्वित करने और संज्ञान में लाये जाने पर भी भूल-सुधार के बजाय उसपर अड़े रहने का है, जबकि इस से बड़ी संख्या में निर्दोषों के वैध हित मारे जा रहे हैं।

    ऐसे में इस बात की अत्यंत क्षीण सम्भावना है कि नागरिकों को प्राप्त रिट के अधिकार के प्रयोग को कोर्ट द्वारा अनदेखा किया जायेगा बल्कि इस लिए कम से कम मुझे तो कोई आश्चर्य भी नहीं होगा अगर इस मामले में कोर्ट बाहर किये जा रहे अभ्यर्थियों के पक्ष में निर्णय सुना दे। क्या, कब, कैसे होगा, इसका द्वारा करने की स्थिति में नहीं हूँ, पर इतना तो तय है हैं कि इस गलती के प्रति किसी ने कोई भी रवैया अपनाया हो, गलती (अगर कोर्ट मानता है तो) इसकी शुरुआत सरकार की तरफ से ही हुई है।

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  13. यदि टिहरी बाँध बन गया तो (1995):

    हिमालय क्षेत्र में बन रहा टिहरी बाँध शुरू से ही विवादों के घेरे में रहा हैं। योजना आयोग द्वारा 1972 में टिहरी बाँध परियोजना को मंजूरी दी गई। जैसे ही योजना आयोग ने इस परियोजना को मंजूरी दी, टिहरी और आस-पास के इलाके में बाँध का व्यापक विरोध शुरू हो गया। कई शिकायते इस संबंध में केंद्र सरकार तक पहुंची। संसद की ओर से इन शिकायतों की जांच करने के लिए 1977 में पिटीशन कमेटी निर्धारित की गई। 1980 में इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने बाँध से जुड़े पर्यावरण के मुद्दों की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाई। इस समिति ने बाँध के विकल्प के रूप में बहती हुई नदी पर छोटे-छोटे बाँध बनाने की सिफ़ारिश की। पर्यावरण मंत्रालय ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के बाद अक्टूबर, 1986 में बाँध परियोजना को एकदम छोड़ देने का फैसला किया।

    अचानक नवंबर, 1986 में तत्कालीन सोवियत संघ सरकार ने टिहरी बाँध निर्माण में आर्थिक मदद करने की घोषणा की। इसके बाद फिर से बाँध निर्माण कार्य की सरगर्मी बढ़ने लगी। फिर बाँध से जुड़े मुद्दों पर मंत्रालय की ओर से समिति का गठन हुआ। इस समिति ने बाँध स्थल का दौरा करने के बाद फरवरी, 1990 में रिपोर्ट दी कि टिहरी बाँध परियोजना पर्यावरण के संरक्षण की दृष्टि से बिलकुल अनुचित हैं। मार्च, 1990 में एक उच्च स्तरीय समिति ने बांध की सुरक्षा से जुड़े हुए मुद्दों का अध्ययन किया। जुलाई, 1990 में मंत्रालय ने बांध के निर्माण कार्य को शुरू करने से पूर्व सात शर्तों को पूरा करने के लिए कहा। इन सात शर्तों को पूरा करने के लिए समय सीमा निर्धारित की गयी।

    लेकिन इस समय सीमा के बीत जाने के बावजूद आज तक एक भी शर्त पूरी नहीं की गई। अब बांध का निर्माण कार्य बिना शर्त पूरा किए शुरू कर दिया गया है। बांध का निर्माण कार्य करने वाली एजेंसियो को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कई बार याद दिलाया गया, लेकिन बांध निर्माण से जुड़ी हुई कोई भी शर्त नहीं मनी गयी। अगस्त, 1991 में इसी बात को लोकसभा में चेतावनी के रूप में उठाया गया, जिस पर काफी बहस हुई। कई सांसदो ने बांध क्षेत्र में भूकम्प की संभावनाओं पर चिंता व्यक्त की। अक्टूबर, 1991 में उत्तरकाशी में भूकम्प आया, जिससे जान-माल की काफी हानि हुई। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि बांध क्षेत्र में भूकम्प की आशंकाए निरधार नहीं हैं।

    टिहरी बांध बनाने से 125 गाँव डूबेंगे और 2 लाख से अधिक लोगो को विस्थापित होना पड़ेगा। बॉटनीकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार बांध बनने से पेड़-पौधो की 462 प्रजातियाँ लुप्त हो जाएगी। इनमें से 12 प्रजातियाँ अत्यंत दुर्लभ मानी जाती हैं। बांध के बनने से 70 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 20 हजार हेक्टेयर उपजाऊ भूमि पूरी तरह से डूब जाएगी। 1993 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री को भेजे गये एक नोट में कहा गया है कि यदि यह बांध टूट जाता हैं तो यह विशाल जलाशय 22 मिनट मे खाली हो जाएगा, 63 मिनट में ऋषिकेश 260 मीटर पानी में डूब जाएगा।

    अगले बीस मिनट में हरिद्वार 232 मीटर पानी के नीचे होगा। बाढ़ का यह पानी विनाश करते हुए बिजनौर, मेरठ, हापुड़ और बुलंदशहर को 12 घंटो में 8.5 मीटर गहरे पानी में डुबो देगा। करोड़ो लोगों के जान-माल का जो नुकसान होगा, वह बांध की लागत से कई गुना अधिक होगा। दूसरा खतरा यह है कि यह बांध चीन की सीमा से लगभग 100 मील की दूरी पर हैं। चीन के साथ किसी संघर्ष में यदि इस बांध को दुश्मनों द्वारा तोड़ दिया जाए तो भी विनाश का यही दृश्य उपस्थित हो सकता हैं जो भूकम्प के आने पर होगा। जल प्रलय की यह भयावह आशंका रूह को कंपा देती हैं। अगस्त, 1975 में चीन के हिनान प्रांत में इसी तरह का बांध टूटा था जिसके जल प्रलय मे 2 लाख 30 हजार लोगों की मौत हुई।

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  14. टिहरी बांध के निर्माण में व्याप्त भ्रष्टाचार आंखे खोल देने वाला हैं। 1986 में भारत के महानियंत्रक लेखा परीक्षक श्री टी.एन. चतुर्वेदी द्वारा दी गई रिपोर्ट में बांध के बेतहाशा बढ़ते हुए खर्चे की ओर सरकार का ध्यान दिलाया गया। 1972 में इस परियोजना की लागत 198 करोड़ थी, लेकिन आज यह बढ़कर 8000 करोड़ रुपये से भी अधिक हो चुकी हैं। इसका मुख्य कारण मुद्रास्फीति नहीं, बल्कि इसमें होने वाला भ्रष्टाचार हैं। क्योंकि 1972 से 1994 तक मुद्रास्फीति की दर उस रफ्तार से कतई नहीं बढ़ी हैं, जिस रफ्तार से बांध की लागत को बढ़ाया गया हैं श्री टी.एन. चतुर्वेदी जी ने स्पष्ट कहा था कि, “यह बांध परियोजना घाटे का सौदा हैं। ”

    हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र काफी कच्चा हैं। इसलिए गंगा में बहने वाले जल में मिट्टी की मात्रा अधिक होती हैं देश की सभी नदियों से अधिक मिट्टी गंगा जल में रहती हैं। अत: जब गंगा के पानी को जलाशय मे रोका जाएगा तो उसमें गाद भरने की दर देश के किसी भी अन्य बांध में गाद भरने की दर से अधिक होगी। दूसरी ओर, टिहरी में जिस स्थान पर जलाशय बनेगा वहाँ के आस-पास का पहाड़ भी अत्यंत कच्चा हैं। जलाशय में पानी भर जाने पर पहाड़ की मिट्टी कटकर जलाशय में भरेगी। अर्थात गंगा द्वारा गंगोत्री से बहाकर लायी गयी मिट्टी तथा जलाशय के आजू-बाजू के पहाड़ से कटकर आयी मिट्टी दोनों मिलकर साथ-साथ जलाशय को भरेंगे। गाद भरने की दर के अनुमान के मुताबिक टिहरी बांध की अधिकतम उम्र 40 वर्ष ही आँकी गई हैं। अत: 40 वर्षो के अल्प लाभ के लिए करोड़ों लोगों के सिर पर हमेशा मौत की तलवार लटकाए रखना लाखों लोगों को घर-बार छुड़ाकर विस्थापित कर देना एवं भागीरथी और भिलंगना की सुरम्य घाटियो को नष्ट कर देना पूरी तरह आत्मघाती होगा।

    टिहरी बांध से होने वाले विनाश में एक महत्वपूर्ण पहलू गंगा का भी हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गंगा के बहते हुए जल में ही श्राद्ध और तर्पण जैसे धार्मिक कार्य हो सकते है लेकिन बांध बन जाने से गंगा का प्रवाह जलाशय में कैद हो जाएगा हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गंगा का जल जितनी तेज गति से बहता है उतना ही शुद्ध होता हैं। यही गतिमान जल गंगा में बाहर से डाली गई गंदगी को बहाकर ले जाता हैं। गंगा भारत की पवित्रतम् नदी तो हैं ही, हमारी सभ्यता-संस्कृति की जननी भी हैं। प्रत्येक भारतवासी के मन में गंगा में एक डुबकी लगाने या जीवन के अंतिम क्षणों में गंगा जल की एक बूंद को कंठ से उतारने की ललक रहती हैं। जब भी कोई भारतवासी किसी अन्य नदी में स्नान करता हैं तो सर्वप्रथम वह गंगा का स्मरण करता हैं। यदि वह गंगा से दूर रहता हैं तो मन में सदैव गंगा में स्नान करने की इच्छा रखता हैं। जब वह अपने मंतव्य में सफल हो जाता हैं तो गंगा के परम पवित्र जल में स्नान करने के पश्चात अपने साथ गंगा जल ले जाना नहीं भूलता और घर जाकर उसे सुरक्षित स्थान पर रख देता हैं। जब भी घर में कोई धार्मिक अनुष्ठान हो तो इसी गंगा जल का प्रयोग होता हैं।

    राष्ट्र की एकता और अखंडता में गंगा का बहुत महत्वपूर्ण योगदान हैं। शास्त्रों के अनुसार गंगोत्री से गंगा जल ले जाकर गंगा सागर में चढ़ाया जाता हैं और फिर गंगा सागर का बालू लाकर गंगोत्री में डाला जाता हैं। इस पूरी प्रक्रिया में व्यक्ति को गंगोत्री से गंगासागर और फिर गंगासागर से गंगोत्री तक की यात्रा करनी होती हैं। देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक की यह यात्रा ही राष्ट्रीय एकता के उस ताने-बाने को बुनती हैं जिसमें देश की धरोहर बुनी हुई हैं। गंगा हमारे राष्ट्र की जीवनधारा हैं और इसे रोकना राष्ट्र के जीवन को रोकने जैसा हैं। 1914-16 में स्व. पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने अंग्रेज़ो द्वारा भीमगौड़ा में बनाए जाने वाले बांध के खिलाफ आंदोलन किया था। इस आंदोलन से पैदा हुए जन आक्रोश के कारण बाँध बनाने का फैसला रद्द कर दिया था। मालवीय जी ने अपनी मृत्यु से पूर्व श्री शिवनाथ काटजू को लिखे पत्र में कहा था कि “गंगा को बचाए रखना।”

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