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Sunday, April 27, 2014

RTE ACT NEWS : RIGHT TO EDUCATION ACT IMPLEMENTATION FAILURE

RTE ACT NEWS : RIGHT TO EDUCATION ACT IMPLEMENTATION FAILURE
Various News of RTE Act and Its Implementation in India :-



जागरूकता के अभाव में परवान नहीं चढ़ा आरटीई
RTE did not go through due to lack of awareness
नागौर।जरूरतमंद एवं असहाय बच्चों को निजी स्कूलों में नि:शुल्क प्रवेश देकर अच्छी शिक्षा देने के लिए वर्ष 2010 में लागू किया गया शिक्षा का अधिकार अधिनियम उदासीनता के चलते परवान नहीं चढ़ पाया है। एक्ट को लागू किए हुए चार वर्ष पूरे हो रहे हैं, लेकिन आज भी इसकी स्थिति संतोषजनक नहीं है।


आरटीई के नियमों में पेचिदगियां इतनी है कि खुद अधिकारी भी समझ नहीं पाए हैं। आरटीई एक्ट को लेकर जागरूकता नहीं होने का परिणाम यह है कि जिले में 1600 से अधिक निजी स्कूलों के 10 हजार बच्चों को भी नि:शुल्क प्रवेश नहीं मिल रहा है, जबकि हर स्कूल को पहली कक्षा में 25 प्रतिशत बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश देना अनिवार्य है। नियमानुसार कोई भी व्यक्ति, जिसकी मासिक आय 20 हजार 700 रूपए तक है, अपने बच्चे को क्षेत्र के निजी स्कूल में नि:शुल्क प्रवेश दिला सकता है। जहां उसके बच्चे को नि:शुल्क शिक्षण के साथ किताबें, स्कूल यूनिफॉर्म आदि भी फ्री दिए जाने हैं।

नियमावली स्पष्ट नहीं
आरटीई एक्ट की नियमावली खुद शिक्षा विभाग के अधिकारियों के लिए पहेली बनी हुई है। निजी स्कूल जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश तो दे रहे हैं, लेकिन नियमों को लेकर गफलत होने से पुनर्भरण राशि नहीं मिल रही है। यह विडम्बना ही है कि आरटीई के एपीसी का पद साल भर से रिक्त है। जिले की स्थिति यह है कि निजी स्कूलों के संस्था प्रधानों को नियमों के मकड़जाल में फंसा रखा है। पुनर्भरण में भी अधिकारी अपनी मनमर्जी चला रहे हैं। - विनेश शर्मा, सचिव, निजी स्कूल एसोसिएशन, नागौर


नियमों की जटिलता बनी बाधक

एक्ट के नियमों की जटिलताओं का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि निजी स्कूलों द्वारा पुनर्भरण राशि के लिए पेश किए गए आवेदनों में से आधे तो ब्लॉक अधिकारियों के भौतिक सत्यापन में फर्जी घोषित हो रहे हैं।
एक्ट के अनुसार नि:शुल्क प्रवेश में वार्ड के बच्चे को वरियता दी जानी है। इसके बावजूद पूरे प्रवेश नहीं हो तो दूसरे वार्ड के बच्चों को प्रवेश दिया जाना चाहिए। इस वर्ष ऑनलाइन व्यवस्था होने से नि:शुल्क प्रवेश में स्कूल व बच्चे का वार्ड बदलते ही प्रवेश निरस्त मान लिया गया है। हाईकोर्ट के आदेश हैं कि किसी भी बच्चे को नि:शुल्क प्रवेश देकर बाहर नहीं निकाल सकते।


सरकार ने शिक्षण शुल्क, किताबें, यूनिफॉर्म व बस किराया मिलाकर पुनर्भरण की फीस 11 हजार 900 रूपए तय किए। इसके बाद शिक्षा विभाग ने निजी स्कूलों से शिक्षण शुल्क की जानकारी मांगी, स्कूलों ने भी केवल शिक्षण शुल्क की जानकारी दे दी। अब उन्हें पुनर्भरण का भुगतान भी मात्र शिक्षण शुल्क का ही हो रहा है, जबकि किताबें, यूनिफॉर्म व बस किराया भी देना चाहिए। इसी गफलत में बच्चों को बाकी का खर्चा उठाना पड़ रहा है

News Source / Sabhaar : rajasthanpatrika.patrika.com (26.04.2014/ Sat, 26 Apr 2014 01:48:06)
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PIL: Rajasthan failed to implement RTE properly

 RTE properly|Rajasthan|PIL|
RELATED
JAIPUR: The Rajasthan High Court has issued a notice to the state government on the tardy implementation of the Right of Children to Free and Compulsory Education (RTE) Act in the state.

A bench of Justice Ajay Rastogi and Justice J K Ranka issued the notice on a PIL filed by Prof Rajiv Gupta and others. The government was asked to respond within four weeks. According to petitioner's counsel Pratik Kasliwal, the RTE Act came into force in April 2010 and a three-year time was given to all schools to improve basic infrastructure. However, even after three years, most of the schools are lacking basic infrastructure.

Also, all the aided and unaided private schools are under obligation to provide 25% reservation to children belonging to weaker sections and disadvantaged groups by virtue of Section 12 of RTE Act, 2009. Here too the state government failed to fulfill its legal duties properly, it was pointed out. The petition claims that the state government had failed to give wide interpretation to the term "children belonging to disadvantaged groups" as it only includes children of SC/ST/group having less than Rs 2.5 lakh annual income.

"There are many others like street kids, migrants, children in conflict regions, children of manual scavengers, sex workers and even those girls of upper caste and majority religion(s) who are not allowed to undergo education due to conservatism, patriarchy and orthodox beliefs, who are facing serious disadvantages too."


The state government vide notification dated March 29, 2011 specified the category of "children belonging to disadvantaged groups" but did not include the above categories of children, which is essential if the spirit of inclusiveness embedded in the RTE Act has to be followed.

The petition pointed out that the state government had failed to provide free pre-school education which would create a strong foundation for the children belonging to weaker sections and disadvantaged groups in order to stand at par with other children of same age group.

It pleaded the court to ensure that schools which have pre-school education and are making fresh admission in pre-primary and Class 1 will have to conform to 25% reservation at all levels wherever fresh admissions are there. The admission process by lottery system should be conducted in front of all parents who have applied for such admission and in the presence of a functionary of the education department among others, it demanded.

News Source : http://timesofindia.indiatimes.com (24.04.2014) / P J Joychen,TNN | Apr 24, 2014, 03.18 AM IST
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Only 4% EWS parents aware of reservation under RTE Act: Study


The report was released at a Delhi state-wide conference on the Right to Education Act by Indus Action — an NGO.


Only four per cent of parents from economically weaker sections (EWS) are aware about the availability of 25 per cent seats under EWS category in the capital’s private schools, under the RTE Act, a study has shown.
The study also found that only half of these four per cent parents have managed to navigate through bureaucratic and psychological barriers to apply.
The report was released at a Delhi state-wide conference on the Right to Education Act by Indus Action — an NGO working exclusively towards implementation of Section 12(1)(C) clause of the RTE Act — with support from Central Square Foundation.
“The Right to Education has opened up many opportunities for children from economically weaker sections. Yet, despite the best efforts to spread awareness, eligible families seem to have little knowledge about the policy. Section 12(1)(c) of RTE Act has the potential to put roughly 10 million children across India on a different path in the next five years, making it the single largest opportunity seat scheme in the world. But we need a better state-wide implementation plan for that to happen,” Tarun Cherukuri, founder, Indus Action, said.
The report details on-ground implementation of the mandatory 25 per cent reservation for EWS children and those who are socially disadvantaged. It is based on responses from 350-odd families in South, Southeast, Southwest, North, Northeast and Central Delhi.
Section 12(1)(c) of the RTE Act mandates that private unaided schools reserve 25 per cent of their seats in entry-level classes for EWS students and those from disadvantaged groups.
Even though awareness levels are low, the report states that eligible families were adequately equipped to apply.
“ 94.8 per cent people had at least one of the birth proof certificates. 96.85 per cent people had at least one of the accepted documents for address proof. And 82.8 per cent people had at least one of the accepted documents for proof of income,” the report states.
Yet, families chose not to apply, with the exception of four per cent families who did — high fees being a major concern discouraging them from applying to private schools.
The report notes that families did not approach government officials for information, relying instead on help from other families ( 29 per cent) and employers (28 per cent)
News Source : indianexpress.com (26.04.2014)
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RTE कोटे से ऑनलाइन ऐडमिशन का हुआ आगाज
Apr 11, 2014, 08.30AM IST
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मुंबई:ऑनलाइन ऐडमिशन के जरिए भले ही सरकार गरीब वर्ग के बच्चों को शिक्षण सुविधा मुफ्त में देने की बात कही है पर, व्यावहारिक तौर पर देखें तो मुंबई स्थित 304 स्कूलों में से पंजिकृत हुए 282 स्कूलों में बच्चों को ऐडमिशन मिलना किसी चुनौती से कम नहीं है। अभिभावकों का आरोप है कि राइट टू एजुकेशन (RTE) के तहत जब स्कूलों में आवेदन करते हैं, तो अधिकतर स्कूल्स द्वारा उनके बेवसाइट पर RTE के बारे में कुछ जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। इसके चलते अभिभावकों में उलझन हैं। इसके चलते ऑनलाइन ऐडमिशन का पहला दिन ही अभिभावकों के लिए परेशानी भरा रहा। गौरतलब है कि RTE को लेकर बीएमसी और शिक्षण विभाग में अनबन चल रही है। इस वजह से RTE के मुद्दे पर दोनों विभाग एक दूसरे पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए आधिकारिक बयान से देने से कन्नी काट रहे हैं। 8 हजार सीटें के लिए 30 अप्रैल तक आवेदन किया जा सकता है। इस बाबत अनुदानित शिक्षा बचाव समिति के अध्यक्ष एस. एम. परांजपे द्वारा बीएमसी शिक्षणाधिकारी शुभांगी जोग से मुलाकात करने की बात समिति ने कही है।
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पंजिकृत स्कूल: 282
हेल्प सेंटर्स:26
क्लास: नर्सरी, केजी, फर्स्ट क्लास

News Source / Sabhar : economictimes.indiatimes.com (11.04.2014)

3 comments:

  1. सभी भाईयों से अनुरोध है की कुछ दिन तक धैर्य रखे क्यों की सरकारी काम सदैव धीरे धीरे होता है । इन सब मे एक बात यह भी सत्य है की सरकारी नौकरी जितनी कठिनाई से मिलती है उतनी ही मुश्किल से जाती है ऐसा नहीं है की जब चाहा नौकरी मे रख ली और जब चाहा तब हटा दिया ।

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  2. सचिव बेसिक शिक्षा के अनुसार 10 दिनों का समय दिया गया है ताकि फार्मो के स्कैनिग का काम पूरा हो सके ।इसके बाद ही आगे की कार्यवाही सम्भव है । इसलिए तबतक धैर्य पूर्वक इन्तजार तो करना ही पडेगा

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  3. नई दिल्ली। न्यायाधीश आर एम लोढ़ा ने भारत के 41वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ले ली है। उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शपथ दिलाई। गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम 26 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो गए। जस्टिस लोढ़ा करीब पांच महीने मुख्य न्यायधीश के पद पर रहेंगे। वे इसी वर्ष सितंबर में सेवानिवृत्त हो जाएंगे।शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने अपनी पहली प्रेस वार्ता में कहा कि उनकासबसे पहला काम जजों की नियुक्ति करना है। इसके अलावा वह जजों की नियुक्ति को लेकर होने वाले कोलेजियम प्रक्रिया पर भी चर्चा करेंगे। जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि उन्होंने फांसी की सजा पर हाईकोर्ट के जजों को इसे अपवाद के रूप में लेने की बात कही है।एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सभी की तरह न्याय व्यवस्था को भी अपनी हद में रहकर ही काम करना होगा। नर्सरी दाखिले पर किए गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने इस विषयपर चिंता जताते हुए कहा कि वह देखेंगे कि इसका जल्द से जल्द समाधान कैसे निकाला जा सकता है।जस्टिस लोढ़ा इस समय कोयला घोटाले,दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगानेजैसे कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई कर रहे हैं। अभी पिछले दिनों उन्होंने सांसदों व विधायकों के खिलाफ अदालतों में लंबित आपराधिक मुकदमों की सुनवाई एक साल में पूरी करने का फैसला सुनाया था। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरलवीके सिंह की उम्र संबंधी याचिका पर भी जस्टिस लोढ़ा की पीठ ने ही फैसला सुनाया था।जस्टिस लोढ़ा का जन्म राजस्थान के जोधपुर में 1949 में हुआ था। उनके पिता एसके मल लोढ़ा भी राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे। जस्टिसआरएम [राजेन्द्र मल] लोढ़ा 1973 मेंराजस्थान बार काउंसिल में वकील पंजीकृत हुए उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। जनवरी 1994 में वे राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए और 15 दिन बाद उन्हें बांबे हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया।वे 13 वर्ष तक बांबे हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे। फरवरी 2007 को वे राजस्थान हाईकोर्ट स्थानांतरित हुए। 13 मई 2008 को वे पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और 17 दिसंबर 2008 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने।

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