UPPSC : पी सी एस परीक्षा की नयी आरक्षण नीति वापस
आज सारे न्यूज़ पेपर सरकार के नयी आरक्षण नीति को वापस लिए जाने से भरे पड़े है -
त्रि स्तरीय आरक्षण पद्दति में आरक्षित वर्ग का प्रतिशत काफी ज्यादा हो रहा था ,
भर्ती के जितने ज्यादा चरण होंगे आरक्षित वर्ग को उतना ही ज्यादा फायदा मिल रहा था , जबकि पदों की संख्या वही थी ।
पी सी एस परीक्षा में तीन चरण थे - प्री , मेन्स और इंटरव्यू , पदों की संख्या निश्चित , आरक्षण सीमा - 50 प्रतिशत
मान लीजिये प्री में 20 प्रतिशत आरक्षित वर्ग के लोग अधिक अंक पा कर सामान्य श्रेणी में आ जाते हैं ,
तो इस प्रकार प्री में सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व 30 प्रतिशत रहा ।
इसके उपरांत प्री के आरक्षित वर्ग से 10 प्रतिशत उत्तीर्ण अभ्यर्थी मेन्स में अधिक अंक पा कर सामान्य श्रेणी में जगह बनाने में सफल होते हैं तब सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व परीक्षा के बाद 20 प्रतिशत रह जाता है ।
अब अंतिम चरण - इंटरव्यू में 20 प्रतिशत सामान्य वर्ग से व 80 प्रतिशत अभ्यर्थी आरक्षित वर्ग से हो गए ।
मान लीजिये इसके बाद अंतिम चरण में आरक्षित वर्ग के 5 प्रतिशत अभ्यर्थी , सामान्य श्रेणी में जगह बनाने में कामयाब होते हैं , तो सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थीयों का पदों के सापेक्ष प्रतिनधित्व - 15 प्रतिशत तक रह जाता है
नोट - प्रतिशतता के आंकड़े उदाहरनार्थ लिया गए हैं और ये उत्तीर्ण प्रतिशतता घट बढ सकती है , लेकिन ये निश्चित है कि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थीयों को प्रत्येक चरण में दी जाने वाली आरक्षण व्यवस्था से नुक्सान है ।
दूसरी बात मुझे अभी इस बात की जानकारी नहीं है - कि आरंभिक चरण में आरक्षित वर्ग अगर सामान्य वर्ग की 5० प्रतिशत सीमा 10-20 प्रतिशत सीट हासिल कर लेता है तो अगले चरणों में सामान्य श्रेणी में ही आयेगा या फिर आरक्षित श्रेणी की सीट में ।
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या अगर मेने कुछ गलत लिखा है तो सही जानकारी दे कर लेख को सुधारने में मदद कर सकते हैं
आज न्यूज़ पेपर से लोगों के दृष्टीकोण मेने देखे वे इस प्रकार हैं -
जागरण अख़बार से -
यह कानूनी जीत है। आयोग के अध्यक्ष और एसपी सिटी ने जातीय विभाजन पैदा करने का काम किया है। इन दोनों की सीबीआई जांच होनी चाहिए। अध्यक्ष के कार्यकाल में जारी किए गए सभी परीक्षा परिणामों की सीबीआई जांच होनी चाहिए।1- अभिषेक सिंह सोनू
जब कोई पार्टी का कैडर आयोग जैसे महत्वपूर्ण संस्थान का मुखिया बनता है तो वह पार्टी को खुश करने के लिए ही निर्णय लेता है। मौजूदा आयोग अध्यक्ष यहीं कर रहे थे। इनके पूरे कार्यकाल की सीबीआई जांच होनी चाहिए। अध्यक्ष पर कार्रवाई होने तक आंदोलन जारी रहेगा। 1- अयोध्या सिंह
एक जाति विशेष को समर्थन करने के लिए ही आरक्षण की दोहरी प्रणाली अपनाकर प्रदेश में पहली बार सिपाही भर्ती में भी प्री और मेंस का चरण अपनाया जा रहा है। आयोग के अध्यक्ष के सभी कामों को सरकार का समर्थन था। मौजूदा निर्णय चुनावों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। 1- राजीव राय
1जब किसी संस्था में अयोग्य लोग बैठाए जाएंगे तो इसी तरह की स्थिति पैदा होगी। पार्टी के कैडर को खुश करने के लिए सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए गए। लैपटॉप बांटकर नौजवानों को लुभाने की कोशिश में लगी सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ तो निर्णय बदल दिया। 1- विकास तिवारी
युवाओं के हित में सरकार को यह फैसला पहले ले लेना चाहिए था। यह राजनीतिक नफा नुकसान का आंकलन करने के बाद लिया गया निर्णय है। मौजूदा अध्यक्ष को हटा कर इनके आयोग के सदस्य रहने के दौरान से सभी परीक्षा परिणामों की सीबीआई जांच होनी चाहिए। 1- मनोज कुमार मिश्र
एसपी सिटी और आयोग के अध्यक्ष को हटाए जाने तक आंदोलन जारी रहेगा। छात्रों पर लगे सभी मुकदमें भी वापस होने चाहिए। संविधान की मूल भावना की हत्या करने वाले इस तरह के अधिकारियों पर मुकदमा कायम होना चाहिए। 1- ज्ञान शुक्ला
इस निर्णय पर हम तभी खुशी मनाएंगे जबतक जेल में बंद सभी प्रतियोगी छात्र रिहाकर उनपर सभी मुकदमे वापस नहीं लिए जाते। एसपी सिटी की बर्खास्तगी होनी चाहिए। वह शहर में अराजकता का माहौल बना रहे हैं। आयोग के अध्यक्ष ने प्रदेश के युवाओं को बांटने का काम किया है। 1- विवेकानंद
इस फैसले का स्वागत है लेकिन जब तक अध्यक्ष हटाए नहीं जाते लड़ाई अधूरी रहेगी। एक भ्रष्ट व्यक्ति के इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठाए जाने का परिणाम लाखों नौजवानों को भुगतना पड़ रहा है। मौजूदा अध्यक्ष के कार्यकाल में जारी सभी परीक्षा परिणामों की सीबीआई जांच की जानी चाहिए। 1- अरुण सिंह
आयोग की छात्र विरोधी नीति पर प्रतिनिधिमंडल की मुलायम सिंह से मुलाकात का नतीजा बेहतर रहा। आयोग के अध्यक्ष के क्रियाकलाप की जांच के साथ सभी परीक्षा परिणामों की जांच से भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आएगा। नियमों के विरुद्ध किसी भी निर्णय के खिलाफ छात्र एकजुट होकर इसी तरह की प्रतिक्रिया देंगे।1- अभिषेक शुक्ला
सभी छात्रों ने एकजुटता दिखाई है। आरक्षण की पुरानी व्यवस्था से ही सभी को बराबर प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। सरकार द्वारा जाति विशेष के लोगों की नियुक्तियों के खिलाफ यह युवाओं का आक्रोश था। इस आक्रोश से सरकार डरी है। आयोग के निर्णय के जरिए सपा सरकार का चुनावी दांव उल्टा पड़ गया। - दिनेश दुबे