(PUBLIC INTEREST LITIGATION - PIL in SUPREME COURT )
पहले केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार करेगी।
भारत की न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण पड़ाव 80 के दशक की शुरुआत को माना जाता है, जब जनहित याचिकाओं की शुरुआत हुई। इसके पीछे जजों का आशय यह था कि जो भी गरीब कोर्ट में नहीं जा सकते या अपने कानूनी अधिकारों से अनभिज्ञ हैं, उनके लिए कानूनी मदद सुनिश्चित की जाए। न्यायालय ने इस बात की अनुमति दी कि कोई भी व्यक्ति भले ही वह उस मामले से सीधे सीधे जुड़ा हुआ न भी हो, याचिका दायर कर सकता है बशर्ते वह लोकहित में हो। ऐसे बहुत से मामले हैं जिसमें कोर्ट ने बंधुआ मजदूरों, कैदियों और समाज के विभिन्न शोषित वर्गों के लोगों की जनहित याचिकाएं स्वीकार की जो कि केवल पत्र के रूप में कोर्ट में भेजी गई थीं और जजों ने संज्ञान लेते हुए उसे जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन- पीआईएल) माना और निर्णय दिया। अगर किसी व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन हो रहा हो तो वह सीधे तौर पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है, लेकिन अगर लोगों के हितों से जुड़ी कोई बात हो तो कोई भी व्यक्ति कोर्ट में जनहित याचिका या पीआईएल दायर कर सकता है। आज जनहित याचिकाओं की लोकप्रियता अपने चरम पर है।
कोई भी दायर कर सकता है पीआईएल
1981 से पहले जनहित याचिका दायर करने का चलन नहीं था। 1981 में ‘अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि कोई गैर-रजिस्टर्ड एसोसिएशन ही संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट् दायर कर सकती है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसा संस्थान जनहित याचिका भी दायर कर सकता है, लेकिन इसके बाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी एन भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने बहुचर्चित जज ट्रांसफर केस में ऐतिहासिक फैसला दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम लोगों के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। ‘ऑस्ट्रेलियन लॉ कमिशन’ की एक सिफारिश का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स जनहित याचिका दायर कर सकता है।
इससे पहले केवल पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो कोर्ट उस पत्र को जनहित याचिका के रुप में स्वीकार करेंगी।
दरअसल यह देखा गया है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके अधिकारों का हनन हो रहा होता है, लेकिन वे इस स्थिति में नहीं होते कि कोर्ट में याचिका दायर कर अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। बंधुआ मजदूर या जेल में बंद कैदी भी इन लोगों में शुमार हैं। इन लोगों के लिए एनजीओ आदि ने समय-समय पर जनहित याचिकाएं दायर की और इन्हें कोर्ट से इंसाफ दिलाया है।
दो तरह की होती हैं पीआईएल :
वैसे, याचिकाएं दो तरह की होती हैं - एक ‘प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ और दूसरा ‘पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन’। प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन में पीड़ित खुद याचिका दायर करता है। इसके लिए उसे संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता को कोर्ट को बताना होता है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है। वहीं जनहित याचिका (पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन) दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को यह बताना होगा कि कैसे आम लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है? अपने स्वयं के हित के लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं हो सकता। कोर्ट को पत्र लिखकर भी आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए गुहार लगाई जा सकती है। अगर कोर्ट चाहे तो उस पत्र को जनहित याचिका में बदल सकती है। पिछले दिनों जेल में बंद कुछ कैदियों ने ‘स्पीडी ट्रायल’ के लिए हाई कोर्ट को पत्र लिखा था। उस पत्र को कोर्ट ने जनहित याचिका के रुप में स्वीकार कर लिया। मीडिया में छपी किसी खबर के आधार पर हाई कोर्ट खुद भी संज्ञान ले सकती है और ऐसे मामले को स्वयं ही जनहित याचिका या पीआईएल में बदल सकती है।
मूल अधिकारों के लिए सरकार उत्तरदायी
कानूनविदों की कहना है कि कई बार पीआईएल का गलत इस्तेमाल भी होता रहा है, लेकिन समय-समय पर कोर्ट ने ऐसे याचिकाकर्ताओं पर भारी हर्जाना लगाया है। जनहित याचिका हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 और सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद-32 के तहत दायर की जाती है। संविधान में प्राप्त मूल अधिकारों के उल्लंघन के मामले में दायर की जाने वाली इस तरह की याचिका में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है क्योंकि मूल अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है। याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट सरकार को नोटिस जारी करती है और तब सुनवाई शुरू होती है।
जन हित याचिकाओं के पीछे लोकहित की भावना होती है। ये ऐसे न्यायिक उपकरण है जिनका लक्ष्य जनहित प्राप्त करना है। इनका लक्ष्य एक आम आदमी को तीव्र न्याय दिलवाने तथा कार्यपालिका, विधायिका को उनके संवैधानिक कार्य करवाने के लिए किया जाता है। यह व्यक्ति हित में काम नही आती है, इनका उपयोग पूरे समूह के हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है। यदि इनका दुरूपयोग किया जाये तो याचिकाकर्ता परजुर्माना लगाया जा सकता है। इनको स्वीकारना या न स्वीकारना पूरी तरह से न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
जनहित से जुड़े कुछ जरूरी तथ्य:
n लोकहित से प्रेरित कोई भी व्यक्ति, संगठन पीआईएल ला सकता है।
n : कोर्ट को दिया गया पोस्टकार्ड भी रिट् याचिका मान कर ये जारी की जा सकती है।
n कोर्ट को अधिकार होगा कि वह इस याचिका हेतु सामान्य न्यायालय शुल्क भी माफ कर दे।
n ये राज्य के साथ ही निजी संस्थान के विरूद्ध भी लाई जा सकती है।
पीआईएल के लाभ:
इस याचिका से जनता में स्वयं के अधिकारों और न्यायपालिका की भूमिका के बारे मे चेतना बढ़ती है। यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के क्षेत्र को विस्तृत बनाती है। साथ ही इससे व्यक्ति को कई नए अधिकार मिलते हैं। यह कार्यपालिका व विधायिका को उनके संवैधानिक कर्तव्य करने के लिए बाधित करती है, साथ ही यह भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन भी सुनिश्चित करती है।
Information Source : NayaIndia.Net
Mujhe naukari mile ya na mile par mujhe ye baat samajh me aagayi hai ki court vah sthan hai jaha sach ko jooth me aur jhooth ko sach me badla jata hai. Nyay dene me voice of soul ka bahut bada yogdaan hota hai jabki aajkal ki nyay byavastha me iska bahut harash hai.
ReplyDelete
ReplyDeleteAap postcard likh kar ke bhee SC ka bata sakte hain
Aur vhe swat sangyan mein lete hue aapke janhit mamle ko PIL mein badal sakta hai.
Bata Sakte hain -
1. RTE implemenation mein kitnee rukavaten hain.
2.Kisee bhee dhandhlee mein doshee logon ko saja dee jaye na kee sabhee TET candidates ko.
3. Aakhir TET candidates ka kya dosh hai kee recruitment process start nahin ho rahee hai.
4. Apnee mansik pareshanee ko, kee koee patrta pariksha batata hai, koee rule badalne ko bata hai
etc.
ReplyDeleteAap dhyan se is BLOG POST ko paden kee, sirf Postcard Supreme Court ko likhkar apnee baat ko janhit yachika mein badal sakte hain.
iske leeye koee shulk bhee nahin dena padega
a PIL can also be filed in the Supreme Court under Article 32 of the Constitution. Article 32 of the
ReplyDeleteConstitution empowers the Supreme Court to issue writs, directions or order for the enforcement of
fundamental rights.
ReplyDeleteFake Baruta, Tumne jo NONSEN SE news dee hai, vo 20 April 2011 kee hai
Source:http://articles.economictimes.indiatimes.com/2011-04-20/news/29451134_1_hind-swaraj-trust-anna-hazare-justice-sawant
Uske baad se Anna Hazare jee tamam baar jaanch ho gayee.
Tum Samaj ke dushman ho, jo kisee par bhee gala iljam lagane se nahin peeche rehte.
---------------
Tumne koee achha kaam keeya ho to batana, Sirf kisee ka bhee mukhota laga kar, kisee par oot patang comment karna tumaharee aadat hai.
Public Interest Litigation
ReplyDeleteRemedies - Public Interest
Litigation (PIL) - Part: 1
We briefly dealt with Public
Interest Litigation in the earlier
Project on "Knowledge of Law
Essential for Public Servants". For
your beneift the biref is
reproduced hereunder:
A Public Interest Litigation (PIL)
can be filed in any High Court or
directly in the Supreme Court. It
is not necessary that the
petitioner has suffered some
injury of his own or has had
personal grievance to litigate.
PIL is a right given to the socially
conscious member or a public
spirited NGO to espouse a public
cause by seeking judicial for
redressal of public injury. Such
injury may arise from breach of
public duty or due to a violation
of some provision of the
Constitution. Public interest
litigation is the device by which
public participation in judicial
review of administrative action
is assured. It has the effect of
making judicial process little
more democratic.
According to the guidelines of
the Supreme Court any member
of public having sufficient
interest may maintain an action
or petition by way of PIL
provided: -
» There is a personal injury or
injury to a disadvantaged
section of the population for
whom access to legal justice
system is difficult,
» The person bringing the action
has sufficient interest to
maintain an action of public
injury,
» The injury must have arisen
because of breach of public
duty or violation of the
Constitution or of the law,
It must seek enforcement of
such public duty and observance
of the constitutional law or legal
provisions.
» This is a powerful safeguard
and has provided immense
social benefits, where there is
essentially failure on the part of
the execute to ameliorate the
problems of the oppressed
citizens. Considering the
importance of ths subject, three
articles from the web on the
subject are reproduced
hereunder.
@ MUSKAN ji
ReplyDeleteu r quite right that the double bench decision might be supportive for us as it suggests the single judge to resolve the issue as soon as possible i.e "earliest", we should not take it too POSITIVE, as it appears NEUTRAL as well as NEGATIVE also on the ground of INTERPRETATION.
SIMPLE ILLUSTRATION OF DECISION
1.regarding adv issue on 30/11/11.
2.history of case from stay.
3.justification of appeal against stay
4.our lawyer's claim for vacating stay(single person challenged+other points)
5.gov lawyer's claim for showing correctness of stay(many person challenged through connected writs)
6.Suggesting to resolved the case earliest as in WEEK COMMENCING 09/04/12.
7.final order from single judge, so this appeal dismissed.
Muskan ji Case no.16279 and Case no.76039 kya ek hi case hai.
ReplyDeleteaap shi kh rhi ho muskan ji.future me is tarah ki problem se bacne k liye hamare tet pritnidhiyo ko sc me pil kr deni chaiye abhi.
ReplyDeleteJitni samay hum yaha nast karenge wo hamare liye theek nahi. Isliye behtar hoga sc me pil dali jaye. Mai harshambhav madad k liye ready hu. My email id is -
ReplyDeletearpan8040@gmail.com
Muskan ji,
ReplyDeleteif any body want to PIL in SC then contact me for any support..
singh.amt1986@gmail.com
अध्यापक भर्ती पर रोक के खिलाफ अपील खारिज
ReplyDeleteStory Update : Saturday, April 07, 2012 1:54 AM
इलाहाबाद। सहायक अध्यापक भर्ती पर लगी हाईकोर्ट की रोक के खिलाफ दाखिल विशेष अपील खारिज कर दी गई है। न्यायालय ने भर्ती पर रोक के आदेश में कोई हस्तक्षेप न करते हुए याची को कहा है कि इससे संबंधित याचिका की सुनवाई के समय वह अपनी बात रखे। ललित मोहन सिंह और अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर न्यायमूर्ति यतींद्र सिंह और न्यायमूर्ति अमित बी स्थालकर की खंडपीठ ने सुनवाई की। याचिका में यादव कपिलदेव लाल बहादुर व अन्य के मामले में एकल पीठ द्वारा चार जनवरी को दिए गए स्थगन आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया कि राज्य प्राधिकारियों द्वारा सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों की ओर से एक साथ विज्ञापन जारी करने में कोई गलती नहीं है, क्योंकि अंतत: चयन जिला स्तर पर ही किया जाना है। इससे चयन प्रक्रिया पर प्रभाव नहीं पड़ता है। इस आधार पर पूरी चयन प्रक्रिया पर रोक लगाना उचित नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि इससे संबंधित मामले की सुनवाई नौ अप्रैल को एकल पीठ में होनी है। याचीगण अपना पक्ष वहां रख सकते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की सहायक अध्यापक पदों पर भर्ती के जारी विज्ञापन पर हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी है।