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Tuesday, April 17, 2012

RTE (Right To Education Act) : महज सपना बनकर न रह जाए शिक्षा का अधिकार


RTE (Right To Education Act) : महज सपना बनकर न रह जाए शिक्षा का अधिकार



•न्‍यूपा के सर्वेक्षण के मुताबिक सभी स्कूलों में सुविधाओं की भारी कमी
•मुफ्त-अनिवार्य शिक्षा देने के लिए करनी होगी सरकारों को बड़ी कसरत


नई दिल्ली। चौदह साल तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के कानून की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट ने भले ही जारी रखा हो लेकिन राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (न्यूपा) के ताजा अध्ययन के मुताबिक देश के सभी प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में सुविधाओं का इतना अभाव है कि गरीब वर्ग को शिक्षा का अधिकार मिलना किसी सपने से कम नहीं लग रहा। न्यूपा के मुताबिक स्कूलों में क्लास-रूम, पानी, शौचालय, फर्नीचर और तकनीकी शिक्षा अध्यापकों की भारी कमी है।

देश के प्रति प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में अनुमानित तौर पर महज 4.6 प्रतिशत कमरे ही हैं। स्कूलों लड़कों के 42.59 और लड़कियों के 60.28 प्रतिशत शौचालय ऐसे है जो काम नहीं कर रहे। सर्वेक्षण में कहा गया है कि 62.61 प्रतिशत स्कूलों में ही आम शौचालय (लड़का-लड़की दोनों के लिए) हैं। इनमें से सिर्फ 72 प्रतिशत ही काम कर रहे हैं। इसके अलावा पूरे देश में प्रति स्कूल अध्यापकों का प्रतिशत 4.7 है। यह सर्वेक्षण सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर पेश किया गया है जो एक एनजीओ की ओर से उठाई गई मांगों पर तलब किया गया था। जस्टिस दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मसले पर केंद्र और राज्य सरकारों से भी जवाब मांगा है

अध्यापकों के मुद्दे को छोड़ दिया जाए तो मूल सुविधाओं के मसले पर सभी सरकारें अदालत में इस बाबत राज्य में कार्य को गति देने की बात कह चुकी हैं। एनजीओ के अधिवक्ता रविंदर बाना का कहना है कि न्यूपा की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि राज्यों की ओर से महज कागजों पर ही स्कूलों को सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।
सिर्फ 19 फीसदी स्कूलों में दी जा रही कंप्यूटर शिक्षा

न्यूपा ने अपने सर्वेक्षण में सहायता प्राप्त, गैर सहायता प्राप्त, सरकारी और गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों में मिलने वाली सुविधाओं का राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग ब्यौरा दिया है। सरकारी स्कूलों में तकनीकी शिक्षा देने के दावे भी इस सर्वेक्षण से खोखले साबित होते हैं। देश के महज 18.70 प्रतिशत स्कूलों में ही कंप्यूटर की शिक्षा उपलब्ध है। इनमें से भी मात्र 82 प्रतिशत कंप्यूटर ही काम करते हैं। 45 प्रतिशत स्कूलों में चहारदीवारी तक नहीं है, जबकि 43.14 प्रतिशत स्कूलों को ही बिजली का कनेक्शन हासिल है। रिपोर्ट में खुशी की खबर बस यह है कि स्कूलों में सुविधाओं का स्तर भले ही गिर रहा हो, लेकिन छात्रों की संख्या दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। सर्वेक्षण के मुताबिक 2010 में कक्षा एक से पांच तक में 18 लाख छात्रों की संख्या बढ़ी है।



News : Amar Ujala (17.04.12)
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‘अभिभावकों पर बोझ नहीं डालेंगे स्कूल’
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षा के अधिकार को संवैधानिक रूप से अनिवार्य करने के बाद सरकार ने निजी शिक्षण संस्थानों को संकेत दे दिए हैं कि वे फीस बढ़ा कर विद्यार्थियों के अभिभावकों पर बोझ नहीं डाल सकते। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत सरकार से सहायता पाने वाले निजी स्कूलों को अपनी 25 प्रतिशत सीटें छह से 14 साल तक के गरीब बच्चों को मुफ्त देना होंगी।
एक टीवी कार्यक्रम में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार स्कूलों के साथ मिल बढ़े खर्च का विश्लेषण करेगी और राह निकालेगी। उन्होंने कहा कि सरकार के पास 12वीं पंचवर्षीय योजना में आरटीई के लिए कई परियोजनाएं हैं। सरकार आरटीई को पूरी तरह लागू करने के लिए अगले पांच साल में 2.31 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें सब कुछ ठीक हो जाएगा। इसके लिए निजी स्कूलों को अपने अन्य संसाधनों को खंगालना होगा।
सिब्बल ने कहा कि कारपोरेट जगत में कई संस्थाएं अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए आ रही हैं। उनकी मदद आरटीई में ली जा सकती है। अत: स्कूलों के पास कई रास्ते हैं कि वे बढ़े खर्चों को अभिभावकों के कंधे पर न डालें। बोर्डिंग स्कूलों को आरटीई के दायरे से क्यों बाहर खा गया? इस पर उन्होंने कहा कि वहां का माहौल पूरी तरह अलग है और वे कक्षा छह से शुरू होते हैं। एजेंसी
लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर सरकार के पास इन्हें आरटीई दायरे में लाने की कुछ सकारात्मक योजनाएं रहीं, तो विचार किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ रही है। इसे पाटने की आवश्यकता है। सिब्बल के अनुसार सरकार के लिए संभव नहीं कि हर बच्चे को मुफ्त शिक्षा दे सके, इसलिए सरकारी सहायता पाने वाले निजी स्कूलों को इस दिशा में साथ लिया गया है। शिक्षा की तरह समान स्वास्थ सेवाएं भी मुहैया कराने की दिशा में क्यों काम नहीं हो रहा, तो उन्होंने कहा कि यह देखना स्वास्थ्य मंत्री का काम है। (एजेंसी)

News : Amar Ujala

3 comments:

  1. dosto jab bhi des ko achha leadear
    mila hai usaki maut itani safai se kar di jati hai ki esa lagata hai jase ki koi durghatana hui hai .jiane bhi log sach bolate hai unki juban band kar di jati hai.anginat ase neta hai mai kinka naam lu kinakana nalu abhi hal hi me hamare
    neta rajiv dikhit ji ki mritu hui wah bhi bata di ya gaya ki hart attack se . jo vyakti jahnit ke liye
    swasth samwardhan andolan kar raha tha kai kai ghante bol ke logo ko jagane ka kam kar raha tha wah kaya hart marij ho sakta hai ?
    bhai bahut bada jhol hai .is des me ankh kan muh band kar ke janwaro ki tarah jiya ja sakata hai
    meri sabhi tet passed logo se gujarish hai ki aap RAJIV DIKHIT JI KE BARE ME jarur jane ke liye youtub kasahara le .aur jitane bhi jyada se jyada logoko ko inke vishay me bataye. jai hind.

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  2. Writ - A : 76039 of 2011 [Varanasi]
    Petitioner: YADAV KAPILDEV LAL BAHADUR
    Respondent: STATE OF U.P. & OTHERS
    Counsel (Pet.): ALOK KUMAR YADAV
    Counsel (Res.): C.S.C.
    Category: Service-Writ Petitions Relating To Primary Education (teaching Staff) (single Bench)-Appointment
    Date of Filing: 21/12/2011
    Last Listed on: 16/04/2012 in Court No. 33
    Next Listing Date (Likely): 30/04/2012


    http://allahabadhighcourt.in/casestatus/caseDetailA.jsp?type=WRIA&num=76039&year=2011

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  3. court ka b bura hal hai ki yaha kitno ki life ka sawal hai or wo date pr date diye jaa rha hai dicision kyo nhi deta...or dusri taraf sarkaar teacher vacansi ko latkaye huye hai...jab tak kam se kam 50,000 tetesion ek sath lucknow nhi jayenge or govt.ko apni takat ka ehsaas nhi karayenge tab tak kuchh nhi hone wala ....JAGO TETEION JAGO....

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