Railway Protection Force (RPF) Constable Examination News -
- एसटीएफ ने रेलवे भर्ती बोर्ड को भेजी रिपोर्ट
लखनऊ : आरपीएफ आरक्षी की भर्ती परीक्षा का प्रश्नपत्र आउट करने वाले गिरोह के सात सदस्यों को गिरफ्तार कर विधिक प्रक्रिया पूरी करने के बाद स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने रेलवे भर्ती बोर्ड को एफआइआर समेत अन्य सम्बंधित दस्तावेज भेज दिए हैं। एसटीएफ ने बोर्ड को एक रिपोर्ट भेजी है, जिसमें उसके द्वारा की गयी कार्रवाई का पूरा ब्योरा दर्ज है। माना जा रहा है कि आरक्षी भर्ती परीक्षा निरस्त करने के लिए एसटीएफ के ये दस्तावेज पर्याप्त हैं।
रविवार को होने वाली आरपीएफ आरक्षी की भर्ती परीक्षा के सिलसिले में 23 जून को भी दो आदमी पकड़े गये थे। इन दोनों ने करीब 60-70 प्रश्नों को पहले ही लीक कर दिया था। एसटीएफ के एसएसपी डीके चौधरी से आरपीएफ के अधिकारियों ने सोमवार को सम्पर्क कर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया। आइजी एसटीएफ आशीष गुप्ता ने बताया कि रेलवे भर्ती बोर्ड को ब्योरा उपलब्ध करा दिया गया है। परीक्षा निरस्त कराने सम्बंधी फैसला उनका होगा। एसटीएफ ने अपना काम पूरा कर दिया है। एसटीएफ ने इस मामले में रेलवे भर्ती बोर्ड को यह भी जानकारी दी है कि परीक्षा 11 बजे शुरू होनी थी, लेकिन 10.30 बजे ही प्रश्न पत्र आउट हो गये थे। ऐसे में निष्पक्ष परीक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
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गिरोह की जड़ तक नहीं पहुंच रही पुलिस
जाब्यू, लखनऊ : भर्ती परीक्षाओं का प्रश्नपत्र आउट करने का खेल बहुत पुराना है। साल-दर-साल परीक्षाओं के दौरान दस-पांच जरूर पकड़े जाते, लेकिन फिर पुलिसिया तंत्र इस ओर से बेखबर हो जाता है। आरपीएफ आरक्षी भर्ती परीक्षा का यह खेल एसटीएफ ने भले उजागर कर दिया, लेकिन सूत्रों का दावा है कि ऐसी जालसाजी तो हर परीक्षा में होती है लेकिन बहुतों की जानकारी नहीं लग पाती है।
पुलिस ने वैसे भी अब तक जिन लोगों को पकड़ा, उसका फालोअप न होने से मनोबल ऊंचा हो रहा है। सच बात तो यह है कि इन गिरोहों का आपसी सामंजस्य है और अन्तर्राज्यीय स्तर पर समन्वय के साथ इनका धंधा चल रहा है। पर कुछ लोगों की गिरफ्तारी के बाद ही पुलिस अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। सबसे खास बात तो यह कि इस खेल में सम्बंधित विभागों के लिपिक से लेकर अफसर तक शामिल रहते हैं, लेकिन कभी उन तक हाथ नहीं पहुंचते। इन गिरोहों को प्रश्न पत्र कहां से मिले और इसमें विभाग के कौन लोग थे, इस दिशा में पहल कम ही हुई है। शायद यही वजह है कि भर्तियों के दौरान इस तरह की गड़बड़ी सामने आती
News Sabhaar : Jagran (01 Jul 2013)
एक साजिश के तहत आम चुनाव के पहले मुस्लिम उत्पीडऩ की तस्वीर पेश करने के लिए लश्कर की आतंकी इशरत जहाँ की मौत का राजनीतिकरण किया जा रहा है. मोदी की मुस्लिम विरोधी छवि बनाने के लिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) लश्कर की आतंकी इशरत को निर्दोष के तौर पर पेश कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस और एनसीपी की इस रणनीति को पिछले हफ्ते तब तगड़ा झटका लगा जब आइबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम ने सीबीआइ, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय के सामने ठोस सबूत पेश किया कि पाकिस्तानियों—अमजद अली राणा और जीशान जौहर समेत वे चारों मोदी की हत्या के इरादे से गठित लश्करे-तय्यबा के एक मॉड्यूल का हिस्सा थे. इन चारों के एक आतंकी मिशन पर होने को साबित करने वाला शेख के साथ एक लश्कर आतंकी की बातचीत का टेप और एफबीआइ के समक्ष 2008 के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी डेविड हेडली द्वारा दी गई यह गवाही भी थी कि इशरत लश्कर की सदस्य थी. इंडिया टुडे समूह के समाचार चैनल आजतक तथा हेडलाइंस टुडे ने लश्कर आतंकी तथा शेख की टेप की हुई बातचीत को सबसे पहले प्रसारित किया. दिलचस्प तो यह है कि मुठभेड़ के दिन लाहौर में लश्कर के मुखपत्र गजवा टाइम्स ने इशरत को लश्कर की सदस्य बताते हुए उसे 'इस्लाम की खातिर शहीद’ बताया था. बहरहाल 2007 में शेख के पिता द्वारा सीबीआइ जांच की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाने के कुछ दिन पहले लश्कर के मूल संगठन जमात-उद-दावा ने पहले के बयान को वापस लेते हुए दावा किया कि इशरत लश्कर की सदस्य नहीं थी. इस नए बयान में पहले किए गए दावे को एक भूल करार देते हुए संगठन द्वारा खड़ी की गई मुश्किलों के लिए इशरत के परिवार से माफी मांगी गई. लश्कर से संबंधित मामले के घटनाक्रम और याचिका का दायर किया जाना इस बात का संकेत है कि आतंकी संगठन लश्करे-तय्यबा के इस यू-टर्न का उद्देश्य भारत में अदालत को गुमराह और आइबी को बदनाम करना था.
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