UPTET : Article / Information By Shyam Dev Mishra Ji
क्या संघर्ष भी कभी सुखद होताहै?
क्या कोई इसी आशा में था?
यह पोस्ट केवल उन चुनिन्दा लोगो के लिए हैं जो खास हैं, खुद को संघर्षशील मानते हैं, संघर्ष को कठिन मानते हैं, कठिनाई के किसी भी रूप में आने से विचलित नहीं होते बल्कि उसका डटकर सामना करते हैं। बाकियों के लिए बस इतना कहूँगा कि इन 72825 पदों के अलावा और भी नौकरियां हैं, जिनकी हिम्मत इस संघर्ष में जवाब दे गई है, वे उनके लिए प्रयास करें और अपने परिजनों-प्रियजनों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करें।
पर जिन्हें अपने हक़ का भरोसा है, अपनी मजबूती पर भरोसा है, लड़कर अपना हक़ लेने का जज्बा है और इस लड़ाई की बड़ी से बड़ी बाधा पार कर जाने का इरादा है,वे लड़ रहे हैं, आगे भी लड़ेंगे और जीतेंगे भी। संभव हुआ तो इलाहाबाद में, अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय में, आज नहीं तो कल, पर जीतेंगे जरूर!!
कल खंडपीठ में जो हुआ, अप्रत्याशित हुआ, पर कोई अनहोनी नहीं। हालिया घटनाक्रम से लोग सकते में इसलिए भी हैं क्यूंकि पहले लार्जर बेंच के निर्णय की लम्बी प्रतीक्षा और फिर जून की छुट्टियों में उबाऊ इंतज़ार के बाद, यानि अपने मामले की 12 मार्च को खंडपीठ में हुई सुनवाई के बात अब जाकर 8 जुलाई को अपने केस की सुनवाई का नुम्बर आया, और मिला क्या, "सभी सम्बद्ध अपीलें किसी अन्य बेंच में सुनवाई के लिए अगली कॉज-लिस्टमें सूचीबद्ध की जाएँ!" का वन-लाइनर आर्डर!
निश्चित रूप से तो नहीं कह सकता, पर अपने मामले को अन्य किसी बेंच को भेजे जाने के कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि पहले उन्होंने मामले को किसी भूलवश या जानबूझकर अपने पास रखा हो और बाद में इसे गलत, मुश्किल या अव्यवहारिक मानकर अन्य बेंच को भेजने का आदेश दिया हो।
जज भी एक आम इंसान है, जो गलतियाँ करता है,उसे सुधारता है, एक विचार बनाता है और सही न लगने पर उसेबदलकर नया विचार बनाता है, अपनी बची हुई छुट्टियाँ लेना चाहता है, उतने उतने ही काम हाथ में रखना चाहता है जितने सेवा-निवृत्ति के पूर्व आसानी से संपन्न हो जाएँ, नहीं चाहता कि कोई ऐसा काम हाथ में रह जाये जिसकी औपचारिकता पूरी करने के लिए उसे सेवा- निवृत्ति के अंतिम क्षण तक या उसके बाद भी कार्यालय में बैठना पड़े। इस तरह के मामलों में अगर मौजूदापीठ ही सुनवाई करती तो आर्डर भी उसे ही लिखवाना पड़ता और निश्चित रूप से वरिष्ठ होने के कारण निर्णय लिखवाने के दुरूह, समयसाध्य और गंभीर कार्य में हरकौली जी को ही समय देना पड़ता, जो शायद आसन्न सेवा-निवृत्ति के मद्देनज़र, संभवतः उनके लिए मुश्किल हो। जो साथी पीठ-परिवर्तन को एक षड़यंत्र मानकर आशंकित हैं, वोभी समझ चुके होंगे कि उनकी आशंका सही होने की स्थिति में भी आपकी जीत केवल विलंबित हो सकती है, हार नहीं बन सकती।
इस मामले में तो जीत की पटकथा 4 फ़रवरी को ही जस्टिस हरकौली और जस्टिस मिश्रा ने लिख दी थी। अपने आदेशों में उन्होंने "प्रशिक्षु शिक्षक"पदनाम के आधार पर, चयन के आधारमें सुधार के लिए किये संशोधनके प्रभाव से और तथाकथित धांधली के प्रभाव को कम करने के लिए भर्ती को रद्द करने के सरकार के अबतक निर्णय, यानि मामले के सभी पहलुओं को न सिर्फ उठाया, बल्कि तार्किक और विधिसम्मत आधारों पर उनकी समीक्षा करते हुए स्पष्ट रूप से उन्हें औचित्यहीन और गलत ठहराया। अपने निष्कर्षों और निर्णय की वैधता और सत्यता परखंडपीठ को इस सीमा तक विश्वासथा कि सरकार द्वारा बदले यानि गुणांक-आधार वाले नए विज्ञापन के अनुसार शुरू हो रही काउन्सलिंग को यह कहकर रोक दिया कि अपीलकर्ताओं की अपील स्वीकार होने की स्थिति में यह एक निरर्थक प्रक्रिया भर रह जाएगी। तथाकथित धांधलीबाजों को बाहर निकाले जाने की सम्भावना तलाशे जाने की मंशा से खंडपीठ द्वारा बार-बार मौका दिए जाने भी सरकार ने जो और जैसे सबूत पेश किये, खंडपीठ ने उन्हें विचार-योग्य ही स्वीकार नहीं किया। केवल नॉन-टेट अभ्यर्थियों के भर्ती के लिए अयोग्य होने के लार्जर बेंच के औपचारिक आदेश की प्रतीक्षा में रोका गया निर्णय आना बाकी था, और अब भी वही बाकी है।
एक बात स्पष्ट कर दूँ कि मामला अन्य किसी बेंच को ट्रान्सफर हो रहा है आगे की सुनवाई/कार्यवाही के लिए, न कि अबतक की कार्यवाही के रिव्यु/समीक्षा के लिए! जो भी खंडपीठ मामले को देखेगी, वह अबतक की कार्यवाही और अबतक के निष्कर्षों के आधार पर आगे सुनवाई/निर्णय करेगी। क्या किसी को ऐसा लगता है कि नई बेंच मामले को हाथ में लेते ही कहेगी कि अबतक खंडपीठ द्वारा निकाले गए सभी निष्कर्ष गलत हैं और हम स्टे हटाते हैं? ऐसा ख्वाब तो कोई दीवाना अकादमिक समर्थक भी नहीं देखता। सबसे ज्यादा संतोषजनक बात ये है कि वृहत दृष्टिकोण वाले खंडपीठ के अबतक के आदेश और न्यायसम्मत निष्कर्ष, सिर्फ जुबानी जमा-खर्च नहीं, लिपिबद्ध न्यायिक दस्तावेज है, और इन्हें अनदेखा करना या इनके विरुद्ध जाना, हमारे , आपके औरसरकार तो क्या, खुद न्यायाधीशों के लिए भी भारी पड़ जायेगा। "कैसे?" अब ये न पूछिए!! यह पूछने-बताने नहीं, करने-देखने की बात है। वैसे इसकी नौबत न ही आये तो सबके लिए अच्छा!!
चलते-चलते इतना और बता दूँ कि इलाहाबाद में आपके साथी निराशा से दूर, बुलंद इरादों के साथ इस केस की औपचारिकतायें लगभग पूरी करवाचुके हैं और आने वाले दो-एक दिनों में बेंच नॉमिनेट हो जाएगी जहां अपना केस प्राथमिकता के आधार पर, यानी "अनलिस्टेड केस" के तौर पर सुना जायेगा, फ्रेश केस के तुरंत बाद
दरोगाओं की शारीरिक भर्ती परीक्षा पर रोक
ReplyDeleteUpdated on: Tue, 09 Jul 2013 07:46 PM (IST)
- कोर्ट में तर्क-'खेल के नियमों में बीच में बदलाव नहीं किया जा सकता'
- राज्य सरकार से जवाब तलब,11 जुलाई को फिर सुनवाई
जागरण ब्यूरो, इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय नेप्रदेश में दरोगाओं की भर्ती के लिए चल रही शारीरिक दक्षता परीक्षा पररोक लगा दी है। अदालत ने यहआदेश याचियों के इस तर्क पर दिया कि खेल के नियमों में बीच में बदलाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगाहै। सुनवाई 11 जुलाई को होगी।
न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने यह आदेश राजेश कुमार व अन्य तथा यज्ञ नारायण यादवव अन्य की याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याची का कहना है कि सरकार ने भर्ती के दौरान शारीरिक दक्षता परीक्षा केनियमों बदलाव किया है जबकिऐसा नहीं होना चाहिए था। ऐसा करना विज्ञापन में बदलाव माना जाएगा। तर्क दिया कि खेल के बीच में नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। यह विधि सम्मत नहीं है। याची के अधिवक्ता रंजीत कुमार यादवका कहना था कि चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए था। अदालतने कहा कि याचियों के तर्क में दम है और इस पर विचार किया जाना जरूरी है। गुरुवार को अदालत इस मामलेमें विचार करेगी।
उल्लेखनीय है कि उप निरीक्षक नागरिक पुलिस एवंप्लाटून कमांडर प्रादेशिक आम्डना कांस्टेबिलरी-2011परीक्षा के लिए प्रदेश मेंशारीरिक दक्षता परीक्षा शुरू की गई थी। इस दौरान एकयुवक की दौड़ के बीच ही मौत हो जाने के बाद प्रदेश सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी। इसके बाद दौड़ के नियमों में बदलाव किया गयाऔर पुरुषों के लिए 35 मिनटमें 4.8 किमी और महिलाओं केलिए 20 मिनट में 2.4 किमी दौड़ के मानक तय किए गए। इससे पहले यह मानक पुरुषोंके लिए 60 मिनट में दस किमी और महिलाओं के लिए 35मिनट में 4.8 किमी था। याचियों का कहना था कि प्रदेश सरकार के इस फैसले से हजारों अभ्यर्थी प्रभावित होंगे क्योंकि वेपुराने मानक के अनुसार दौड़में शामिल हो चुके हैं।
ye baat court aur govt. ko ab tak kyon samajh me nahi aa rahi hai
??????????????????????????????
जब 70-80 रुपैय का सीमेंट 350-375 रुपये और 5 रुपये की अंग्रेजी दवाओ 150 रुपये में बेचीं जाती है तो भारत सरकार क्यों नहीं मूल्य निर्धारक अधिकरण बनाती जिससे जनता को लुट से बचाया जा सके...पढ़े....
ReplyDelete१- भारत में कम्पनिया अपना सामान लागत से 8 से 25 गुना दामो पर बेचती है जब की कृषि उत्पादों का दाम लागत भी नहीं दे रहा है, जैसे घर बनाने के लिए सीमेंट 70-80 रुपये में बनकर तैयार हो जाता है परन्तु बाज़ार में वह 350-375 रुपये में बेचीं जाती है जब की यह सब मिटटी को पीसकर बनाया जाता है. यह एक उदहारण है. इसका दाम कंपनी तय करती है.
२- जान बचाने केलिए बनाई गयी अंग्रेजी दवाओ की कीमत लागत की २५ गुनी पर बेचीं जा रही है और इसमे किसी प्रकार का मोलभाव नहीं किया जा सकता है इसके लिए चाहे घर बेचना पड़े.
३- खेतों में डाला जाने वाला कीट नाशक भी 15-50 गुने दाम पर बेचा जाता है जिसमे सभी विदेशी कमापनिया शामिल है जिसकी बजह से खेती की लागत बहुत ज्यादा हो गयी है.
४- कहने का मतलब कारखानों में बनने वाले सामानों की कीमत इतना ज्यादा क्यों रखा जाता है जिसे भारत की जनता मजदूरी और अनाज बेचकर खरीदती है जिससे खेती लागत बढ़ने से किसान गरीब हो जाता है उसके खेती की उपज सस्ते में बिकने से किसान दरिद्र हो जाता है.
उस पर तुर्रा यह की किसानो के उपज का दाम सरकार तय करती है और कारखानों की उपज का दाम लुटेरी कम्पनिया, इसलिये बाबा रामदेव जी ने सरकार से हर सामान का मूल्य निर्धारण अधिकरण बनाने की माग की है जो की लागत पर आधारित होगा जिसका हम सबको समर्थन करना चाहए...!!!
क्या संघर्ष भी कभी सुखद होता है?
ReplyDeleteक्या कोई इसी आशा में था?
यह पोस्ट केवल उन चुनिन्दा लोगो के
लिए हैं जो खास हैं, खुद को संघर्षशील
मानते हैं, संघर्ष को कठिन मानते हैं,
कठिनाई के किसी भी रूप में आने से
विचलित नहीं होते बल्कि उसका डटकर
सामना करते हैं।
बाकियों के लिए बस
ReplyDeleteइतना कहूँगा कि इन 72825 पदों के
अलावा और भी नौकरियां हैं,
जिनकी हिम्मत इस संघर्ष में जवाब दे गई
है, वे उनके लिए प्रयास करें और अपने
परिजनों-प्रियजनों के प्रति अपने
उत्तरदायित्व का निर्वाह करें।
पर जिन्हें अपने हक़ का भरोसा है,
अपनी मजबूती पर भरोसा है, लड़कर
अपना हक़ लेने का जज्बा है और इस लड़ाई
की बड़ी से बड़ी बाधा पार कर जाने
का इरादा है, वे लड़ रहे हैं, आगे भी लड़ेंगे
और जीतेंगे भी। संभव हुआ तो इलाहाबाद
में, अन्यथा सर्वोच्च न्यायालय में, आज
नहीं तो कल, पर जीतेंगे जरूर!!
कल खंडपीठ में जो हुआ, अप्रत्याशित हुआ,
ReplyDeleteपर कोई अनहोनी नहीं।
हालिया घटनाक्रम से लोग सकते में
इसलिए भी हैं क्यूंकि पहले लार्जर बेंच के
निर्णय की लम्बी प्रतीक्षा और फिर जून
की छुट्टियों में उबाऊ इंतज़ार के बाद,
यानि अपने मामले की 12 मार्च
को खंडपीठ में हुई सुनवाई के बात अब
जाकर 8 जुलाई को अपने केस की सुनवाई
का नुम्बर आया, और मिला क्या,
"सभी सम्बद्ध अपीलें किसी अन्य बेंच में
सुनवाई के लिए अगली कॉज-लिस्ट में
सूचीबद्ध की जाएँ!" का वन-लाइनर
आर्डर!
निश्चित रूप से तो नहीं कह सकता, पर
ReplyDeleteअपने मामले को अन्य किसी बेंच को भेजे
जाने के कई कारण हो सकते हैं।
हो सकता है कि पहले उन्होंने मामले
को किसी भूलवश या जानबूझकर अपने पास
रखा हो और बाद में इसे गलत, मुश्किल
या अव्यवहारिक मानकर अन्य बेंच
को भेजने का आदेश दिया हो। जज भी एक
आम इंसान है, जो गलतियाँ करता है, उसे
सुधारता है, एक विचार बनाता है और
सही न लगने पर उसे बदलकर नया विचार
बनाता है, अपनी बची हुई
छुट्टियाँ लेना चाहता है, उतने उतने
ही काम हाथ में रखना चाहता है जितने
सेवा-निवृत्ति के पूर्व आसानी से संपन्न
हो जाएँ, नहीं चाहता कि कोई ऐसा काम
हाथ में रह जाये
जिसकी औपचारिकता पूरी करने के लिए
उसे सेवा- निवृत्ति के अंतिम क्षण तक
या उसके बाद भी कार्यालय में बैठना पड़े।
इस तरह के मामलों में अगर मौजूदा पीठ
ही सुनवाई करती तो आर्डर भी उसे
ही लिखवाना पड़ता और निश्चित रूप से
वरिष्ठ होने के कारण निर्णय लिखवाने के
दुरूह, समयसाध्य और गंभीर कार्य में
हरकौली जी को ही समय देना पड़ता,
जो शायद आसन्न सेवा-निवृत्ति के
मद्देनज़र, संभवतः उनके लिए मुश्किल हो।
जो साथी पीठ-परिवर्तन को एक षड़यंत्र
ReplyDeleteमानकर आशंकित हैं, वो भी समझ चुके होंगे
कि उनकी आशंका सही होने की स्थिति में
भी आपकी जीत केवल विलंबित
हो सकती है, हार नहीं बन सकती।
इस मामले में तो जीत की पटकथा 4
फ़रवरी को ही जस्टिस हरकौली और
जस्टिस मिश्रा ने लिख दी थी। अपने
आदेशों में उन्होंने "प्रशिक्षु शिक्षक"
पदनाम के आधार पर, चयन के आधार में
सुधार के लिए किये संशोधन के प्रभाव से
और तथाकथित धांधली के प्रभाव को कम
करने के लिए भर्ती को रद्द करने के
सरकार के अबतक निर्णय, यानि मामले के
सभी पहलुओं को न सिर्फ उठाया,
बल्कि तार्किक और विधिसम्मत
आधारों पर उनकी समीक्षा करते हुए
स्पष्ट रूप से उन्हें औचित्यहीन और गलत
ठहराया। अपने निष्कर्षों और निर्णय
की वैधता और सत्यता पर खंडपीठ को इस
सीमा तक विश्वास था कि सरकार
द्वारा बदले यानि गुणांक-आधार वाले नए
विज्ञापन के अनुसार शुरू
हो रही काउन्सलिंग को यह कहकर रोक
दिया कि अपीलकर्ताओं की अपील
स्वीकार होने की स्थिति में यह एक
निरर्थक प्रक्रिया भर रह जाएगी।
तथाकथित धांधलीबाजों को बाहर
निकाले जाने की सम्भावना तलाशे जाने
की मंशा से खंडपीठ द्वारा बार-बार
मौका दिए जाने भी सरकार ने जो और जैसे
सबूत पेश किये, खंडपीठ ने उन्हें विचार-
योग्य ही स्वीकार नहीं किया।
केवल
ReplyDeleteनॉन-टेट अभ्यर्थियों के भर्ती के लिए
अयोग्य होने के लार्जर बेंच के औपचारिक
आदेश की प्रतीक्षा में रोका गया निर्णय
आना बाकी था, और अब
भी वही बाकी है।
एक बात स्पष्ट कर दूँ कि मामला अन्य
किसी बेंच को ट्रान्सफर हो रहा है आगे
की सुनवाई/कार्यवाही के लिए, न
कि अबतक की कार्यवाही के रिव्यु/
समीक्षा के लिए! जो भी खंडपीठ मामले
को देखेगी, वह अबतक की कार्यवाही और
अबतक के निष्कर्षों के आधार पर आगे
सुनवाई/निर्णय करेगी।
क्या किसी को ऐसा लगता है कि नई बेंच
मामले को हाथ में लेते ही कहेगी कि अबतक
खंडपीठ द्वारा निकाले गए सभी निष्कर्ष
गलत हैं और हम स्टे हटाते हैं? ऐसा ख्वाब
तो कोई दीवाना अकादमिक समर्थक
भी नहीं देखता। सबसे ज्यादा संतोषजनक
बात ये है कि वृहत दृष्टिकोण वाले खंडपीठ
के अबतक के आदेश औरन्यायसम्मत निष्कर्ष,
सिर्फ जुबानी जमा-खर्च नहीं, लिपिबद्ध
न्यायिक दस्तावेज है, और इन्हें
अनदेखा करना या इनके विरुद्ध जाना,
हमारे , आपके और सरकार तो क्या, खुद
न्यायाधीशों के लिए भी भारी पड़
जायेगा। "कैसे?" अब ये न पूछिए!! यह पूछने-
बताने नहीं, करने-देखने की बात है। वैसे
इसकी नौबत न ही आये तो सबके लिए
अच्छा!!
चलते-चलते इतना और बता दूँ
कि इलाहाबाद में आपके साथी निराशा से
दूर, बुलंद इरादों के साथ इस केस
की औपचारिकतायें लगभग पूरी करवा चुके
हैं और जहां अपना केस
प्राथमिकता के आधार पर,
यानी "अनलिस्टेड केस" के तौर पर
सुना जायेगा, फ्रेश केस के तुरंत बाद।
राकेश भाई और सुजीत भाई ने हमारे मामले के न्यायमूर्ति महापात्रा और न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव की बेंच में जाने की पुष्टि कर दी है ,,अब हमारा मामला वहां टाइड अप हो जाएगा,,,, यदि बहुत ज्यादा ही देर लग गई तो भी अगस्त के पहले मंगलवार तक निर्णय आ जाएगा,,इतना भी समय लगने की बात इसलिए लिखी है कि ज्यादा जल्दी निर्णीत होने की अपेक्षाएं किसी संकट की घड़ी में संकटवर्धक का ही काम करती हैं,,,, अभी हमारा मामला 15 की advance cause list में है,कल शाम तक daily cause list आने के बाद यह निश्चित हो पायेगा कि 15 को हमारी सुनवाई होगी या नहीं,,
ReplyDeleteबहुत से साथियों को यह गलतफहमी रहती है कि किसी नए जज को केस समझने में वक्त लगता है,,,उन्हें याद करना चाहिए कि चार फरवरी को हरकौली साहब ने सिर्फ स्टे ही नहीं दिया था बल्कि अपने आदेश में उस मामले में और कुछ समझने लायक छोड़ा ही नहीं था,,उन्होंने हमारा मामला कब और कितनी देर में समझा था? मैं बताता हूँ,,उन्होंने सुनवाई की डेट से पूर्व न्यायमूर्ति अरुण टण्डन की सिंगिल बेंच का आदेश पढ़ा और सब समझ लिया ,, महापात्रा साहब को सारा मामला समझने के लिये टण्डन और हरकौली साहब का आदेश समझना है बस..... अपने केस में सारी कागजी कार्यवाही पूरी हो चुकी है और यदि जरूरत समझी जायेगी तो हमारे वकील अपने-अपने rejoinder पर बहस करेंगे ,,टेट के सिर्फ पात्रता होने के बारे में सवाल को वृहद पीठ पहले ही दफ़न कर चुकी है ,,
ReplyDelete,आप अगर चाहें तो कल कोर्ट में जो कुछ भी हुआ उसे इस रूप में कल्पना सकते हैं कि कल हमारे केस का नंबर नहीं आया या शाम को हरकौली साहब सेवानिवृत हो गये फिर हमारा मामला महापात्रा साहब के पास भेज दिया गया जिसे उन्होंने टाइड अप कर लिया ,,,,,एक बात का ध्यान रखते हुए नकारात्मक सोचने का प्रयास करें कि कुर्सी पर बैठा व्यक्ति नहीं बल्कि कुर्सी ,,,कुर्सी के बारे में अगर ऐसा सोचने की आदत ना हो तो कम से कम न्याय के सिंहासन के बारे में तो सोच ही सकते हैं,,,,,साथ भी इस बात का भी ध्यान रखियेगा कि हरकौली साहब हमारा फेवर नहीं कर रहे थे,,,वो जो भी कह या लिख रहे थे वो क़ानून सम्मत था इसलिए ,,,,, ......
ReplyDeleteकौन हराएगा हमे ??? हमे जीतने के लिए किसी जज की क्रपा की आवश्यकता न कल थी और न आज है । हमारे केस पर 4 फरवरी को जो हरकौली जी ने किया अगर अखिलेश यादव भी जज की कुर्सी पर होते तो उन्हे भी वही सब लिखना पड़ता जो हरकौली जी ने लिखा । दुनिया का कोई जज prospective amendment का प्रभाव retrospective होना स्वीकार नही कर सकता । दुनिया का कोई जज किसी चलती हुई प्रक्रिया के नियम बदलने को सही नही ठहरा सकता और न किसी सरकार को ऐसा करने की छूट या अनुमति दे सकता है । नियमावली मे प्रशिक्षु शब्द न लिखा होना भूषण जी हरकौली जी और फिर पूर्ण पीठ मे शाही जी अंबानी जी और बघेल जी महत्वहीन स्वीकार कर चुके है । दुनिया का कोई जज धाँधली धाँधली चिल्लाने मात्र से धाँधली होना स्वीकार नही कर सकता हर जज सबूत माँगेगा और जो हुआ ही नही उसका सबूत कहाँ से आएगा । झूठे सबूत छोटे मोटे कोर्ट मे पेश कर दिए जाते है लेकिन इतने महत्वपूर्ण केस मे ऐसा करने की कोई हिम्मत भी नही कर सकता । उक्त बातों के अलावा हमारे केस मे कोई नया बिंदु परिभाषित नही होना है । बेँच और जज बदलने से फैसला नही बदलता । सभी जजो के लिए कानून की किताब एक है । संविधान की रक्षा करना ही उनका धर्म है । बिना वजह अपना BP मत बढाइए । जरूरत महसूस हो तो 4 फरवरी 12 मार्च और 31 मई का आदेश खुद पढ़िए और अकेडमिक वालों को भी पढ़वाइए । टैंसन लेने की बजाय देने की ताकत हर टेट सपोर्टर मे कूट कूट कर भरी है । उसे बाहर लाने भर की जरूरत है । और 15 अगस्त आप अपने अपने स्कूलो मे ही मनाएँगे ।
ReplyDeleteएकेडमिक भाइयोँ के लिए बुरी खबर...
ReplyDeleteइलाहाबाद हाईकोर्ट से...
खेल के बीच मेँ नियम बदलना गलत इस आदेश को आये अभी 1 घंटा भी नही हुआहै अब दरोगा भर्ती भी रुकी..
dear tetian
ReplyDeletehumara case 15 july ko court 3 mai luxmi mahapatra jo katak odisa ke retairment 2016 hai & rakesh srivastava lucknow university se padhe retairment 2022 ke d.b. mai hogi.
jai tet
यहाँ भी पिट रही है उ.प्र.
ReplyDeleteसरकार.....कोर्टने यहाँ भी फ़ट्कार
लगाई सरकार पर कि खेल का नियम
बीच मे नही बदला जा सकता.....पर
सरकार है कि कमीनागीरी पर उतारू
है.......टेट मेरिट जिंदाबाद.....
हमारी बेंच बदल जाने को बहुत ज्यादा नकारात्मक रूप में ना लें ,,,ऐसा क्यों हुआ इस बारे में सिर्फ तुक्केबाजी ही की जा सकती है ,,और इसका क्या परिणाम होगा यह पन्द्रह तारीख को ही समझ में आना शुरू हो पायेगा यदि उस दिन हमारा केस सुना जा सका तो,,,,, अगर किसी को इस सबमें हेराफेरी की बू आ रही हो तो मैं उससे यह कहना चाहता हूँ कि हमारा केस जिस भी जज के पास जाएगा उसकी पहली जिम्मेदारी आपकी बू सूंघ लेने और उसे विभिन्न माध्यमों द्वारा विसर्जित करने की आपकी क्षमताओं से अपना बचाव करने की होगी ,,इतने हाई-प्रोफाइल मामले में कल अचानक आया यह ट्विस्ट किसी के भी कान खड़े कर देने के लिए पर्याप्त है,,, सुजीत भाई एवं राकेशमणि के द्वारा जो सूचना आई है उसके अनुसार हमरे केस की फ़ाइल आफिस में चल नहीं रही है बल्कि उड़ रही है
ReplyDeleteअब हमारे मामले में आने वाले नए जज की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विश्वसनीयता को बनाए रखने की जिम्मेदारी होगी और यदि उन्होंने हमारे मामले को टाइड अप करके अनलिस्टेड कर दिया तो हम उम्मीद से कम समय में जीतने की उम्मीद कर सकते हैं,,
ReplyDelete,इलाहाबाद के हमारे सभी साथी अपनी समस्त इच्छाशक्ति और जीतने की जिद के साथ कोर्ट में मौजूद हैं ,,,,,, गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद एस.के.पाठक आज भी कोर्ट गये जिसके लिए सभी टेट मेरिट चाहने वालों की ओर से मैं उनके जज्बे को सलाम करता हूँ ,,,,
ReplyDeleteअंत में हरकौली साहब के बारे में बस इतना कहना चाहता हूँ कि भले ही किन्हीं कारणोंवश वो हमारी जीत पर अंतिम मोहर ना लगा पाए हों लेकिन स्टे वाले दिन और बाद की टेट 2011 को धांधली के झूठे आरोपों से मुक्त कराने वाले अपने आदेशों के साथ वो हमेशा हमारे दिलो पर राज करेंगे ,,चार तारीख को जब काउंसिलिंग शुरू हो चुकी थी और हमारी टेट मेरिट एकैडमिक मेरिट के सामने बेबस नजर आ रही थी उस दिन जो खुशी उनके मुखमंडल से निकले शब्दों ने हम सबको दी थी वो शायद जीतने का आदेश सुनने से मिलने वाली खुशी से भी ना मिल पाए ,,शायद ईश्वर ने श्वेत बालों वाले संत के रूप में हरकौली साहब को हमारी रक्षा के लिए भेजा था ,,अब हमें ईश्वर के अगले चुनाव का इन्तजार करना है जिसे उसने हमें मंजिल तक पहुँचाने के लिए नियुक्त किया होगा ,,,,
ReplyDeleteok
ReplyDeletebye
8
9
2
3
0
0
3
8
0
3
MANAV SHRI G
ReplyDelete1 baat ko bar bar likhne/ kahne ka ye matlab hota hai ki aapki baaton par koi dhyaan nahi deta hai ya fir aapki baaton me koi asar nahi hai.
Jo jitna badaa thug,wo utna badaa pravachan karta.
ReplyDeleteBaat bhi sahi hai,ye agar logon ko uksayenge nhi......., to apni jeben kaise bharenge.........???????
Ab pairvi karne koi BHAGAT SINGH, CHANDRA SHEKHAR nhi aayega.