79 सहायक समीक्षा अधिकारियों का चयन अवैध
मुख्य सचिव ने नियुक्ति की मांग का प्रत्यावेदन निरस्त किया
लखनऊ। शासन ने डेढ़ साल पहले हुई 79 सहायक समीक्षा अधिकारियों की चयन प्रक्रिया को अवैध करार देते हुए नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया है। बिना बैकलॉग पदों को भरने की मांग भेजने के लिए तत्कालीन विशेष सचिव सहित पांच अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस फैसले से चयनित होने के बावजूद अभ्यर्थियों की नौकरी का सपना टूट गया है।
बताते चलें कि चयन वर्ष 2001-02 में सहायक समीक्षा अधिकारी संवर्ग में मौजूद रिक्तियों का हवाला देते हुए 2004 में विशेष चयन के लिए उप्र लोक सेवा आयोग को मांग भेजी गई थी। यह चयन कार्यवाही सीधी भर्ती के बैकलॉग के अंतर्गत 81 पदों पर होनी थी। आयोग ने वर्ष 2009 में प्रारंभिक परीक्षा व 2011 में मुख्य परीक्षा कराई। इसके बाद 81 पदों के सापेक्ष 79 अभ्यर्थियों की नियुक्ति के लिए नवंबर 2012 में शासन को सिफारिश भेज दी। जब चयनित अभ्यर्थी जॉइनिंग के लिए पहुंचे तो सरकार ने नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया। इस पर अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने शासन को आवेदकों के प्रत्यावेदन का निबटारा करने व यदि याची नियुक्ति के पात्र हैं तो बिना देर किए जॉइन कराने का निर्देश दिया था।
अब मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने सहायक समीक्षा अधिकारियों के चयन के लिए भेजे जाने वाली मांग को विधि विरुद्ध बताते हुए नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया है। उन्होंने चयन के बावजूद नियुक्ति न देने के लिए उच्चतम न्यायालय के शंकरसन दास बनाम भारत संघ में दिए फैसले का सहारा लिया है। सचिव सचिवालय प्रशासन अरविंद नारायण मिश्र ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।
गड़बड़ी के लिए विशेष सचिव सहित पांच जिम्मेदार
आयोग को मांग भेजने के बाद ही शासन को पता चल गया था कि सीधी भर्ती कोटे में कोई बैकलॉग नहीं है। इसके बावजूद शासन मूकदर्शक बना रहा और आयोग ने चयन संबंधी कार्यवाही भी पूरी कर दी। जब आयोग से चयनित अभ्यर्थी शासन में जॉइनिंग के लिए पहुंचे तो जॉइनिंग न कराकर मामले की जांच बैठा दी गई। इसमें बिना बैकलॉग के ही पदों को भरने की मांग भेजने और जानकारी होने के बावजूद उप्र लोक सेवा आयोग को जानकारी न देने का खुलासा हुआ।
जांच अधिकारी ने प्रकरण से जुड़े सहायक समीक्षा अधिकारी, अनुभाग अधिकारी, अनुसचिव, संयुक्त सचिव व विशेष सचिव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। मुख्य सचिव ने चयनित अभ्यर्थियों का प्रत्यावेदन निरस्त करते हुए इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया जारी होने की बात कही है
मुख्य सचिव ने नियुक्ति की मांग का प्रत्यावेदन निरस्त किया
लखनऊ। शासन ने डेढ़ साल पहले हुई 79 सहायक समीक्षा अधिकारियों की चयन प्रक्रिया को अवैध करार देते हुए नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया है। बिना बैकलॉग पदों को भरने की मांग भेजने के लिए तत्कालीन विशेष सचिव सहित पांच अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस फैसले से चयनित होने के बावजूद अभ्यर्थियों की नौकरी का सपना टूट गया है।
बताते चलें कि चयन वर्ष 2001-02 में सहायक समीक्षा अधिकारी संवर्ग में मौजूद रिक्तियों का हवाला देते हुए 2004 में विशेष चयन के लिए उप्र लोक सेवा आयोग को मांग भेजी गई थी। यह चयन कार्यवाही सीधी भर्ती के बैकलॉग के अंतर्गत 81 पदों पर होनी थी। आयोग ने वर्ष 2009 में प्रारंभिक परीक्षा व 2011 में मुख्य परीक्षा कराई। इसके बाद 81 पदों के सापेक्ष 79 अभ्यर्थियों की नियुक्ति के लिए नवंबर 2012 में शासन को सिफारिश भेज दी। जब चयनित अभ्यर्थी जॉइनिंग के लिए पहुंचे तो सरकार ने नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया। इस पर अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने शासन को आवेदकों के प्रत्यावेदन का निबटारा करने व यदि याची नियुक्ति के पात्र हैं तो बिना देर किए जॉइन कराने का निर्देश दिया था।
अब मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने सहायक समीक्षा अधिकारियों के चयन के लिए भेजे जाने वाली मांग को विधि विरुद्ध बताते हुए नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया है। उन्होंने चयन के बावजूद नियुक्ति न देने के लिए उच्चतम न्यायालय के शंकरसन दास बनाम भारत संघ में दिए फैसले का सहारा लिया है। सचिव सचिवालय प्रशासन अरविंद नारायण मिश्र ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।
गड़बड़ी के लिए विशेष सचिव सहित पांच जिम्मेदार
आयोग को मांग भेजने के बाद ही शासन को पता चल गया था कि सीधी भर्ती कोटे में कोई बैकलॉग नहीं है। इसके बावजूद शासन मूकदर्शक बना रहा और आयोग ने चयन संबंधी कार्यवाही भी पूरी कर दी। जब आयोग से चयनित अभ्यर्थी शासन में जॉइनिंग के लिए पहुंचे तो जॉइनिंग न कराकर मामले की जांच बैठा दी गई। इसमें बिना बैकलॉग के ही पदों को भरने की मांग भेजने और जानकारी होने के बावजूद उप्र लोक सेवा आयोग को जानकारी न देने का खुलासा हुआ।
जांच अधिकारी ने प्रकरण से जुड़े सहायक समीक्षा अधिकारी, अनुभाग अधिकारी, अनुसचिव, संयुक्त सचिव व विशेष सचिव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। मुख्य सचिव ने चयनित अभ्यर्थियों का प्रत्यावेदन निरस्त करते हुए इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया जारी होने की बात कही है