***जिंदगी का लेखा जोखा ***
उम्र के सातवें दशक को प्राप्त कर चुके राम बाबू ठण्ड में दोपहर का खाना खाने के पश्चात धूप में बैठे अलसा रहे थे. लगभग एक घंटे के पश्चात उन्हें प्यास लग आयी. घर में पत्नी के अलावा और कोई नहीं था और वह भी धूप का आनंद लेकर कमरे में रजाई ओढ़ कर सो रही थी. थोड़ी देर तक तो सोचते रहे कि पानी पियूं कि नहीं फिर, चूँकि बहुत देर से धूप में बैठे थे, अतः प्यास ज्यादा लग रही थी, तो उठे और किचन में जाकर पानी पिया और वापस धूप में आकर बैठ गए और विचारों में मग्न हो गए कि एक ज़माना था कि मुहं से पानी का पा....
भी निकलता था तो नौकर पानी का गिलास लेकर आ जाता था और आज....................
एक आंसू का कतरा उनकी आँखों से निकल पड़ा. बैठे बैठे वे बीते जीवन का लेखा जोखा लगाने लगे..,...........
राम बाबू, उनका जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था. परिवार गाँव में रहता था अतः राम बाबू की ज्यादातर पढ़ाई समीप के बड़े शहर में हुई. इस कारण राम बाबू शुरू से ही परिवार से अलग रहे. धीरे धीरे परिवार सिर्फ मतलब का रह गया. पढ़ाई में अच्छे थे अतः पढ़ लिख कर एक शासकीय विभाग में अच्छे पद पर लग गए. ऊपर और नीचे, हर तरफ से कमाई. अच्छे घर में शादी हो गई. एक लड़का और एक लड़की, दो संतानों के पिता बन गए. घर में ढेर सारे नौकर चाकर. सब कुछ अच्छा चल रहा था, इससे राम बाबू भी गरूर में रहते थे. बच्चों को सब सुविधाएं दी पर शायद पिता का प्यार न दे पाये. शायद उन्होंने भी, शहर में रहकर पढ़ाई करने के कारण, माता पिता के प्यार का अहसास नहीं प्राप्त किया था.
बच्चे भी अच्छे पढ़ लिख गए पर उनमें भी अमीरी का गरूर पिता से आ गया. घर में सभी साथ रहते थे पर शायद अपनत्व नहीं था. बेटा पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी में लग कर अन्य शहर चला गया. बेटे की शादी भी कर दी. शायद बेटे में पिता के गरूर के कुछ अंश आये थे और अपनत्व की भावना नहीं थी, अतः वह बहुत ही कम आता और महीने - दो महीने में बात कर लेताहै. बेटी की शादी एक अच्छे घर में कर दी. पर बेटी को भी पिता का गरूर था. अतः ससुराल में बेटी की जमी नहीं और वह भी वापस मायके आ गई. तलाक हो गया. अच्छी पढ़ी लिखी होने के कारण बेटी ने भी एक अच्छी नौकरी कर ली और अपना जीवन अपने हिसाब से जीने लगी. रहती तो माता पिता के साथ, पर यह सम्बन्ध नाम मात्र का.
नौकरी में रहते राम बाबू को सब तरह की सुविधा और नौकर चाकर की सुविधा प्राप्त थी पर सेवा निवृत्ति के पश्चात वह सुविधा कहाँ. जो भी नौकर चाकर लगे वे अपना अपना काम निबटा कर चले जाते.
धुप में बैठे बैठे राम बाबू यही सोच रहे थे कि जीवन में उन्होंने धन तो बहुत कमाया पर सम्बन्ध बिलकुल नहीं कमाए. काश उन्होंने अपने माता पिता के सम्बन्धों को समय रहते पहचाना होता और कद्र की होती और अपने बच्चों में भी वही संस्कार दिए होते तो शायद बात कुछ और होती. पर अब क्या हो सकता है? जिंदगी इसी तरह बितानी पड़ेगी.,........
संतान जीवन कि सबसे बड़ी पूंजी होती है ,। अपने समय का का कुछ हिस्सा जरुरी कामों के साथ बच्चों पर भी व्यतीत कीजिये ,.... सही संस्कार बच्चों में माता-पिता के अलावा कोई नहीं दे सकता,… घर ही संस्कारों कि पहली सीढ़ी होती है,…… smile emoticon
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उम्र के सातवें दशक को प्राप्त कर चुके राम बाबू ठण्ड में दोपहर का खाना खाने के पश्चात धूप में बैठे अलसा रहे थे. लगभग एक घंटे के पश्चात उन्हें प्यास लग आयी. घर में पत्नी के अलावा और कोई नहीं था और वह भी धूप का आनंद लेकर कमरे में रजाई ओढ़ कर सो रही थी. थोड़ी देर तक तो सोचते रहे कि पानी पियूं कि नहीं फिर, चूँकि बहुत देर से धूप में बैठे थे, अतः प्यास ज्यादा लग रही थी, तो उठे और किचन में जाकर पानी पिया और वापस धूप में आकर बैठ गए और विचारों में मग्न हो गए कि एक ज़माना था कि मुहं से पानी का पा....
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राम बाबू, उनका जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था. परिवार गाँव में रहता था अतः राम बाबू की ज्यादातर पढ़ाई समीप के बड़े शहर में हुई. इस कारण राम बाबू शुरू से ही परिवार से अलग रहे. धीरे धीरे परिवार सिर्फ मतलब का रह गया. पढ़ाई में अच्छे थे अतः पढ़ लिख कर एक शासकीय विभाग में अच्छे पद पर लग गए. ऊपर और नीचे, हर तरफ से कमाई. अच्छे घर में शादी हो गई. एक लड़का और एक लड़की, दो संतानों के पिता बन गए. घर में ढेर सारे नौकर चाकर. सब कुछ अच्छा चल रहा था, इससे राम बाबू भी गरूर में रहते थे. बच्चों को सब सुविधाएं दी पर शायद पिता का प्यार न दे पाये. शायद उन्होंने भी, शहर में रहकर पढ़ाई करने के कारण, माता पिता के प्यार का अहसास नहीं प्राप्त किया था.
बच्चे भी अच्छे पढ़ लिख गए पर उनमें भी अमीरी का गरूर पिता से आ गया. घर में सभी साथ रहते थे पर शायद अपनत्व नहीं था. बेटा पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी में लग कर अन्य शहर चला गया. बेटे की शादी भी कर दी. शायद बेटे में पिता के गरूर के कुछ अंश आये थे और अपनत्व की भावना नहीं थी, अतः वह बहुत ही कम आता और महीने - दो महीने में बात कर लेताहै. बेटी की शादी एक अच्छे घर में कर दी. पर बेटी को भी पिता का गरूर था. अतः ससुराल में बेटी की जमी नहीं और वह भी वापस मायके आ गई. तलाक हो गया. अच्छी पढ़ी लिखी होने के कारण बेटी ने भी एक अच्छी नौकरी कर ली और अपना जीवन अपने हिसाब से जीने लगी. रहती तो माता पिता के साथ, पर यह सम्बन्ध नाम मात्र का.
नौकरी में रहते राम बाबू को सब तरह की सुविधा और नौकर चाकर की सुविधा प्राप्त थी पर सेवा निवृत्ति के पश्चात वह सुविधा कहाँ. जो भी नौकर चाकर लगे वे अपना अपना काम निबटा कर चले जाते.
धुप में बैठे बैठे राम बाबू यही सोच रहे थे कि जीवन में उन्होंने धन तो बहुत कमाया पर सम्बन्ध बिलकुल नहीं कमाए. काश उन्होंने अपने माता पिता के सम्बन्धों को समय रहते पहचाना होता और कद्र की होती और अपने बच्चों में भी वही संस्कार दिए होते तो शायद बात कुछ और होती. पर अब क्या हो सकता है? जिंदगी इसी तरह बितानी पड़ेगी.,........
संतान जीवन कि सबसे बड़ी पूंजी होती है ,। अपने समय का का कुछ हिस्सा जरुरी कामों के साथ बच्चों पर भी व्यतीत कीजिये ,.... सही संस्कार बच्चों में माता-पिता के अलावा कोई नहीं दे सकता,… घर ही संस्कारों कि पहली सीढ़ी होती है,…… smile emoticon
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