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Sunday, September 13, 2015

UPTET SARKARI NAUKRI News - यूपीः पौने दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द -

UPTET SARKARI NAUKRI   News - यूपीः पौने दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द





फैसले के आधार
- शिक्षामित्र अस्थायी व संविदा पर नियुक्त किए गए। ऐसे में इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता।
- शिक्षामित्रों का चयन किसी पद के सापेक्ष नहीं हुआ इसलिए रद्द हुआ समायोजन।
- शिक्षामित्रों के लिए किए गए सरकार के सभी कार्य पूर्व नियोजित व दुर्भावनापूर्ण।
- शिक्षामित्रों की नियुक्ति में नहीं हुआ आरक्षण का अनुपालन। अधिकतर मामलों में जहां जिस जाति के ग्राम प्रधान थे, वहां उसी जाति के शिक्षामित्रों की कर दी गई नियुक्ति।
 - शिक्षामिक्षों को समायोजित करने के लिए अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया संशोधन 16 ए अवैधानिक। ऐसे में शिक्षामित्रों का


शिक्षामित्रों के समायोजन के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को बड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए करीब पौने दो लाख शिक्षामित्रों के प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के पद पर समायोजन को असंवैधानिक करार दिया है। पीठ ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा माध्यम से दिए गए प्रशिक्षण को भी अवैधानिक ठहराया है।

यह महत्वपूर्ण फैसला मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्ण पीठ ने शनिवार को खचाखच भरे न्याय कक्ष में सुनाया। पूर्ण पीठ ने कहा कि न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने और उसमें ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है। ऐसे में राज्य सरकार ने सर्व सिक्षा अभियान के तहत बिना पद के संविदा पर नियुक्त शिक्षामित्रों का समायोजन करने में अपनी विधायी शक्ति का उल्लंघन किया है। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानक एवं न्यूनतम योग्यता को लागू करने में भी राज्य सरकार असफल रही।

शिवम राजन सहित कई अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए पूर्ण पीठ ने कहा कि शिक्षामित्र अध्यापक पद पर नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते लेकिन उनके समायोजन के लिए राज्य सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के प्रावधान के विपरीत बिना विधिक अधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। इसके सरकार ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन भी नहीं किया। राज्य सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए, जिसका उसे वैधानिक अधिकार नहीं था।

पूर्ण पीठ ने कहा कि बेसिक शिक्षा अधिनियम के तहत 2001 के पूर्व बनाई गई उत्तर प्रदेश अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के अनुसार सहायक अध्यापक के लिए स्नातक व इसके निमित्त प्रशिक्षण आवश्यक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति 26 मई 1999 के शासनादेश से हुई है और वे न तो सेवा नियमावली 1981 के तहत न्यूनतम योग्यता रखते हैं और न रूल 2001 के तहत। ऐसे में वे 27 अगस्त 2010 को जारी अधिसूचना द्वारा लागू टीईटी से छूट के काबिल नहीं हैं। ऐसे में शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने के लिए सेवा नियमावली 1981 में किया गया 19वां संशोधन असंवैधानिक है।

फैसले के आधार
- शिक्षामित्र अस्थायी व संविदा पर नियुक्त किए गए। ऐसे में इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता।
- शिक्षामित्रों का चयन किसी पद के सापेक्ष नहीं हुआ इसलिए रद्द हुआ समायोजन।
- शिक्षामित्रों के लिए किए गए सरकार के सभी कार्य पूर्व नियोजित व दुर्भावनापूर्ण।
- शिक्षामित्रों की नियुक्ति में नहीं हुआ आरक्षण का अनुपालन। अधिकतर मामलों में जहां जिस जाति के ग्राम प्रधान थे, वहां उसी जाति के शिक्षामित्रों की कर दी गई नियुक्ति।
 - शिक्षामिक्षों को समायोजित करने के लिए अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया संशोधन 16 ए अवैधानिक। ऐसे में शिक्षामित्रों का
समायोजन अवैध।
- राज्य सरकार ने केंद्र के नियमों को न मानकर मनमाने तरीके से संशोधन किए, ऐसे में वे असंवैधानिक।
- शिक्षामित्रों को तथ्य छिपाकर ट्रेनिंग कराई गई है, ऐसे में ट्रेनिंग अवैध।
- शिक्षामिक्षों की नियुक्ति 11 माह के लिए की गई थी, जिसका प्रत्येक वर्ष रिन्युअल होता था, वह भी एकतरफा और पूर्व नियोजित थी।
- शिक्षामित्र 1981 की नियमावली का पालन नहीं करते इसलिए वे टीईटी के योग्य भी नहीं।
- राज्य सरकार ने केंद्रीय आरटीई एक्ट 2009 में कानून के विपरीत संशोधन किए, जो असंवैधानिक है।


यह था मामला
प्रदेश में 1.71 लाख शिक्षामित्र हैं। इनकी नियुक्ति बिना किसी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009  में तत्कालीन बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया। 2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया।

दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बना दिए गए। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। बीटीसी प्रशिक्षु शिवम राजन सहित कई युवाओं ने समायोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विचाराधीन याचिकाओं पर अन्तिम निर्णय लेने को कहा। जिस पर यह पूर्णपीठ सुनवाई कर रही है।

नेताओं की जिद में शिक्षामित्रों को लगा झटका
बगैर टीईटी सहायक अध्यापक पद पर समायोजन निरस्त होने से शिक्षामित्रों को जो झटका लगा है, उसके लिए शिक्षामित्र नेता भी कम जिम्मेदार नहीं। तत्कालीन प्रमुख सचिव नीतिश्वर कुमार ने शिक्षामित्र के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों से जनवरी 2014 में वार्ता के दौरान टीईटी कराए जाने का प्रस्ताव रखा था।

सरकार का कहना था कि शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने के बाद दो-चार साल का अवसर टीईटी पास करने के लिए दे दिया जाए। कुछ नेता इसके लिए राजी भी हो गए लेकिन एक धड़े ने सरकार के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार ने बगैर टीईटी ही शिक्षामित्रों को नियुक्ति पत्र जारी कर दिया। इसके खिलाफ बीटीसी-2011 बैच के पहले प्रशिक्षित बगैर टीईटी पास अभ्यर्थियों ने भी याचिका की थी क्योंकि सरकार ने इन्हें बगैर टीईटी सहायक अध्यापक बनाने से इनकार कर दिया था।

यदि उसी वक्त शिक्षामित्रों के नेता सरकार के टीईटी कराए जाने संबंधी प्रस्ताव को मान गए होते तो शायद 1.71 लाख शिक्षामित्रों को आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।

कदम-कदम पर सरकार को मिली शिकस्त
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती सपा सरकार को रास नहीं आई। बगैर टीईटी 1.71 लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन निरस्त होना अब तक का सबसे बड़ा झटका है। एनसीटीई ने पूर्व में भी शिक्षक भर्ती के लिए टीईटी को अनिवार्य बताया था लेकिन सरकार ने शिक्षामित्रों को नियुक्ति पत्र जारी कर दिए।

2012 में सत्ता में आने के बाद सपा सरकार ने 72,825 प्रशिक्षु शिक्षकों के लिए आयोजित टीईटी-11 की जांच तत्कालीन मुख्य सचिव जावेद उस्मानी से कराई और उस्मानी कमेटी की संस्तुति पर टीईटी-11 की मेरिट की बजाय एकेडमिक रिकार्ड के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करने का फैसला किया।

दिसम्बर 2012 में एकेडमिक रिकार्ड के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी सरकार ने शुरू कर दी जिस पर हाईकोर्ट ने फरवरी 2013 में रोक लगा दी। इसके बाद नवंबर 2013 में हाईकोर्ट ने टीईटी मेरिट पर भर्ती के नवंबर 2011 के विज्ञापन को बहाल कर दिया। इसके खिलाफ सपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका की।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए टीईटी-11 की मेरिट के आधार पर भर्ती के आदेश दिए। इसके बाद से अब तक सरकार 72,825 में से 58 हजार प्रशिक्षु शिक्षकों को नियुक्ति पत्र दे चुकी है। नवंबर 2014 में शुरू हुई 15 हजार सहायक अध्यापकों की भर्ती में भी सरकार की नहीं चली।

सरकार ने टीईटी/सीटीईटी पास बीटीसी व विशिष्ट प्रशिक्षुओं के लिए भर्ती शुरू कर दी थी। इसके खिलाफ डीएड स्पेशल एजुकेशन और बीएलएड प्रशिक्षुओं ने हाईकोर्ट में याचिका की तो कोर्ट ने इन डिग्रीधारियों को भी भर्ती में शामिल करने के आदेश दिए थे। इसके खिलाफ भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल अपील की जो खारिज हो गई।

सवा साल पहले ही साफ हो गई थी तस्वीर
परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 1.71 लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन शनिवार को निरस्त होने के सवा साल पहले ही राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने साफ कर दिया था कि स्थायी नियुक्ति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य है। हिन्दुस्तान ने 29 जुलाई 2014 को यह खबर पहले पेज पर प्रमुखता से प्रकाशित भी की थी।

गोंडा के दुर्गेश प्रताप सिंह की आरटीआई के जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 23 जून, 2014 के पत्र में उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट दिए जाने से साफ इनकार कर दिया था। आरटीआई के एक सवाल ‘क्या कोई नियोक्ता बगैर टीईटी पास किए किसी को प्राइमरी स्कूल में शिक्षक नियुक्त कर सकता है?’ के जवाब में केंद्र सरकार ने साफ कहा था कि ऐसा नहीं किया जा सकता।

एक अन्य प्रश्न ‘क्या केंद्र सरकार या एनसीटीई किसी राज्य को कक्षा 1 से 8 तक सहायक अध्यापक की नियुक्ति में टीईटी से छूट दे सकती है’ के जवाब में एमएचआरडी में स्कूल एजुकेशन एंड लिटरेसी विभाग के अंडर सेक्रेटरी और मुख्य जनसूचना अधिकारी आलोक जवाहर ने लिखा था कि आरटीई के तहत एनसीटीई द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता में छूट सिर्फ केंद्र सरकार दे सकती है।

हालांकि 8 नवंबर 2010 की गाइडलाइन में केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि किसी राज्य सरकार को टीईटी अनिवार्यता से छूट नहीं देगी। सवाल ‘क्या केंद्र सरकार या एनसीटीई ने उत्तर प्रदेश को सहायक अध्यापक पद पर शिक्षामित्रों के बगैर टीईटी समायोजन की छूट दी है’ के जवाब में ऐसी कोई छूट नहीं देने की बात कही गयी थी।

News Source : http://livehindustan.com/news/uttarpradesh/article1--UP-:-Allahabad-High-Court-cancel-appointment-of-1.71-lakh-Shiksha-mitra--494378.html

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