लखनऊ : प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापकों की भर्ती के लिए अनिवार्य की गई शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) ने शासन की लचर कार्यशैली की कलई खोलकर रख दी है। प्रदेश में पहली बार आयोजित होने वाली इस परीक्षा को लेकर शासन की गफलत का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि टीईटी के सिलसिले में एक महीने के अंदर चार शासनादेश जारी हो चुके हैं। टीईटी के लिए आवश्यक अर्हता के सिलसिले में शासन द्वारा लगातार किये जा रहे संशोधनों का सिलसिला अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा।
प्रदेश में टीईटी के आयोजन के सिलसिले में पहला शासनादेश सात सितंबर को जारी हुआ था। इस शासनादेश के मुताबिक टीईटी में वे अभ्यर्थी शामिल हो सकते थे जिन्होंने न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ बीए/बीएससी/बीकॉम करने के साथ बीएड भी किया हो। शासनादेश में दी गई यह शैक्षिक योग्यता राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा 23 अगस्त 2010 को जारी की गई अधिसूचना और बाद में उसमें संशोधन के लिए चार मई 2011 को जारी किये गए परिपत्र पर आधारित थी। यह स्थिति तब थी जब एनसीटीई इससे पहले बीती 10 जून और 29 जुलाई को टीईटी और शिक्षकों की नियुक्ति के लिए निर्धारित शैक्षिक योग्यताओं में बदलाव कर चुका था। जब शासन को एनसीटीई की 29 जुलाई की संशोधित अधिसूचना का हवाला दिया गया तो अपनी गलती को सुधारने के लिए उसने 17 सितंबर को पहला संशोधित शासनादेश जारी किया। संशोधित शासनादेश के जरिये समय-समय पर जारी एनसीटीई विनियमों के अनुसार न्यूनतम 45 प्रतिशत अंकों से स्नातक के साथ बीएड उत्तीर्ण कर चुके अभ्यर्थियों को भी टीईटी में शामिल होने का मौका दिया गया।
टीईटी के लिए तय की गईं शैक्षिक योग्यताओं को लेकर दूसरा संशोधित शासनादेश 19 सितंबर को जारी हुआ। दूसरे संशोधित शासनादेश के जरिये वर्ष 1997 से पहले के मोअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डिप्लोमा इन टीचिंग उपाधिधारकों को भी टीईटी में शामिल होने की छूट दे दी गई। जबकि शासन ने 1997 के पहले के मोअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों की परिषदीय स्कूलों में उर्दू शिक्षक के पद पर नियुक्त करने के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुज्ञा याचिका को वापस लेने का फैसला 29 जून को ही कर लिया था। 21 सितंबर को टीईटी के आयोजन के सिलसिले में एक और शासनादेश जारी हुआ जिसमें परीक्षा का विस्तृत कार्यक्रम तय कर दिया गया।
इस सबके बाद भी टीईटी को लेकर शासन स्तर पर एक और संशोधन पर विचार हो रहा है। प्रस्तावित संशोधन के जरिये इस साल बीएड की परीक्षा में बैठने वालों को भी टीईटी में शामिल होने का मौका देने की मंशा है। इस संशोधन की जरूरत भी शासन की लापरवाही के कारण पड़ रही है। एनसीटीई ने 11 फरवरी को टीईटी के लिए राज्यों को जो दिशानिर्देश जारी किये थे, उसमें स्पष्ट कहा गया था कि यदि कोई अभ्यर्थी 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना में उल्लिखित शिक्षण प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रहा हो तो वह भी टीईटी में बैठ सकता है। शासन ने एनसीटीई के इस दिशानिर्देश की भी अनदेखी की।
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CHALTA HAI BHAI.
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